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गुरुवार, 29 जून 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा .... सही निर्णय


 सुधा के पति के देहांत को आज दस दिन पूरे हो गए ।उसकी दोनों बेटियां मोनिका और मीनू  घर को व्यवस्थित करने में लगी थी। तभी सुधा ने आकर कहा," मीनू ,अपने चाचा से कहो कि वह अपने लिए घर देख ले।" सुनकर दोनों बेटियां अचंभित हो गई क्योंकि बचपन से ही चाचा हर्ष उनके साथ रह रहे थे ।उनके बचपन का बहुत सारा सुन्दर समय उन्होंने चाचा के साथ व्यतीत किया था । पिता ने सदैव भाई को पुत्र की तरह रखा। 

      मां की बात सुनकर मोनिका बोली," मां ,अब इस उम्र में चाचा कहां जाएंगे ?आप सोचो पापा ने हमेशा चाचा को अपने साथ रखा"। इस पर सुधा ने तटस्थ रहकर उत्तर दिया," अब वो चले गये। लेकिन मुझे घर खाली चाहिए और कोई आमदनी का जरिया नहीं है किराए पर मकान दूंगी जिससे मुझे किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा"। सुनकर बेटियां ही नहीं दरवाजे पर खड़े उसके देवर हर्ष भी आश्चर्य चकित थे। बेटियों ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर वो अपने निर्णय पर अडिग रही।हमेशा से आज्ञा कारी रहे हर्ष ने इसे भी स्वीकार कर लिया।रात में घर से बाहर सामान लेकर जाते हुए चाचा को देखकर सबका दिल जार जार  जोर रहा था।सुधा भी तटस्थ खड़ी थी ।उसके कानों में मामी चाची के कई शब्द गूंज रहे थे," एक  दो दिन मे बेटियां अपने घर चली जाएंगी तो अकेले मर्द के साथ घर में रहेगी । पीछे पता नहीं क्या क्या होगा"।अब किसी को कुछ कहने का अवसर नहीं मिलेगा समाज के कारण अपने मन पर पत्थर रखकर वह सब देख रही थी।                

✍️ डॉ श्वेता पूठिया 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 1 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....हार या जीत


दौरे के बाद राधा अभी अभी आफिस आकर बैठी ही थी कि फोन आया मैडम आप तुरंत घर आइये दुर्घटना हो गयी। इससे पहले वह कुछ पूछती, फोन कट गया।ड्राइवर से गाडी़ निकलवा कर वह घर पहुंची। बाहर पुलिस की और लोगो की भीड़ जमा थी।घबराहट के साथ नीचे उतरी एस एस पी साहब वहीं थे । आगे आकर बोले,"आपके पति ने आत्महत्या कर ली है"।वह सन्न रह गयी। रितेश से कितनी बार कहा कि वह अब अच्छी नौकरी पर है।उसे नौकरी छोड़ देना चाहिए।तभी सास ससुर भी आ गये।सास रोते रोते बोली,"मेरे बेटे ने तुझे पढा़या लिखाया, इस लायक बनाया और तूने ही उसको मरने पर मजबूर कर दिया"।वह स्तम्भित  थी।एक पल में उसकी दुनिया उजड़ गयी।

      सच था कि जब उसकी शादी हुई ,उसने 12वीं पास की थी। पति सरकारी विभाग में चपरासी थे ।परिवार ने शादी कर दी ।मगर जब उसने रितेश से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो वह खुशी खुशी तैयार हो गया।दो बच्चों के जन्म और परिवार की जिम्मेदारी के साथ वह पढ़ती रही।और प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बन गयी।मगर उस पर बिजली तब गिरी जब उसकी पोस्टिंग उसी कार्यालय में हुई जहाँ उसके पति चपरासी थे। बडी विषम स्थिति थी।उसने कहा कि वह नौकरी छोड़ दे।मगर रितेश न माना।उसने उनका स्थानांतरण दूसरे आफिस में करवा दिया। मगर उसके साब जब मैडम से मिलने आते तो बड़ी विषम परिस्थिति हो जाती। रितेश उन्हें देखकर खडा़ हो जाता।अपने चपरासी को मैडम के पति होने के नाते नमस्कार करना उन्हें बडा नागवार गुजरता था। घर का वातावरण भी कभी कभी बडा़ बोझिल हो जाता।वह बहुत प्रयास करती मगर स्थिति मे संतुलन लाना कठिन था।फिर भी वह रितेश के सामने पत्नी ही रहने की कोशिश करती।

     किंतु नये साल की पार्टी में अग्रिम पक्ति मे बैठे रितेश को नशे मे धुत अधिकारी द्वारा अपमानित करने पर वह पार्टी छोड़कर आ गयी।रितेश ने दो दिन की छुट्टी ले ली थी।वह उसे नौकरी छोड़कर व्यापार करने को मना रही थी।मगर रितेश ये कदम उठा लेगा उसे यकीन नहीं हो रहा था।

     रितेश का यूं जाना ,उसकी सबसे बड़ी हार थी।जब नौकरी लगी थी तब उसे लगा कि वह जीत गयीं।आज वह समझ नहीं पा रही थी कि वह हार गयी या जीत गयीं।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....सरकारी मीटिंग


आज सुबह ग्यारह बजे से मीटिंग थी इसलिए रवि सुबह से  फाईल दो बार पढ़ चुका था। अभी छह माह पूर्व ही उसे समाज कल्याण विभाग में अधिकारी की नियुक्ति मिली थी। नया जोश था। बहुत कुछ बदलने की इच्छा भी थी और वह इसके लिए प्रयास भी करता था। अपने कार्यालय में कई बाबुओं को वह नोटिस भी जारी कर चुका था। 

         डीएम साहब ने आज उसे मीटिंग के लिए बुलाया था। वह तैयार हो कर डीएम साहब के कार्यालय पहुंचा। पता चला साहब राउंड पर निकले हैं लगभग एक घंटे में वापसी होगी। उसे मजबूरन बैठकर इंतजार करना पड़ा।डीएम साहब ने आते ही गर्मजोशी से हाथ मिलाया और बोले,"रवि बढ़िया कर रहे हो। सब काम दुरस्त होना अच्छी बात है।"

      वह गदगद हो गया और बोला ,"सब आपका आशीर्वाद ..... मार्गदर्शन है"।

      डीएम बोले, "नियम पालन करवाओ मगर भाई, सुरेश ! अरे, वही जो प्रधान लिपिक है , मेरे गांव के नाते साला लगता है, पर जरा हल्का हाथ रखना। अब उसे कोई नोटिस जारी मत करना वरना मुझे घर में सुनने को मिलेगा" कहकर हँस दिये।वह बोला ,"जी सर "। बाहर आकर गाड़ी में फाईल पटक दी। सारी तैयारियां धरी रह गयीं। व्यक्तिगत काम को सरकारी मीटिंग में बदलना अब उसे समझ में आ रहा था। वह भारी मन से अपने आफिस की ओर चल दिया।

✍️ डॉ.श्वेता पूठिया

मुरादाबाद

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा....आज्ञाकारी बेटा

 


प्रिया का मन आज बहुत उदास था उसका विश्वास चूर  चूर हो चुका था ।असहाय बिस्तर पर पड़ी वह आंसू बहा रही थी । उसे आज मां के कहे शब्द'" बेटा रिश्तों का नाम होना भी बहुत जरूरी है । यह नाम ही आधार होते हैं जो रिश्तों को बनाए रखते हैं इसलिए बेनाम रिश्ते सदैव दर्द देते हैं।  मगर आधुनिकता की दौड़ में दौड़ती हुई प्रिया के पास इन शब्दों पर ध्यान देने का वक्त न था। 

      तीन साल से वह विशाल के साथ लिव-इन में रह रही थी। उसे पूरा भरोसा था कि विशाल उसके अतिरिक्त किसी और से शादी नहीं करेगा। मगर आज विशाल ने फोन पर उसे अपनी शादी की सूचना दी तो वह बिखर कर रह गई विशाल से कहा ,"तुमने तो मेरे साथ रहने का वादा किया था फिर यह क्यों"? विशाल ने कहा 'रहूंगा ना , इस शहर में तुम्हारे साथ रहूंगा और घर में पत्नी के साथ रहूंगा "।इतना सुनकर वह रो पड़ी। उसका रोना सुनकर विशाल बोला मैंने इस रिश्ते में तुम्हें जबरदस्ती नहीं बांधा था। तुम अपनी मर्जी से आई थी मेरे साथ रहने के लिए। अब मां चाहती हैं कि मैं शादी करके घर बसाऊं तो मैं उनकी बात नहीं टाल सकता आखिरकार वह मेरी मां है और एक बेटे का अधिकार है कि वह वह अपनी मां की आज्ञा माने उसे सुख दे। अब मैं मां की पसंद की लड़की से शादी करके उनका मान रखूंगा और देख लो तुम्हें क्या करना है वैसे भी तुम्हारे मेरे रिश्ते का कोई आधार नहीं है। 

     उसने पूछा कि जब उसने प्यार किया था तब मां से क्यों नहीं पूछा ? विशाल ने उत्तर दिया," प्यार करना साथ रहना मेरी मर्जी थी लेकिन जिंदगी में रिश्तों से बड़ी पूंजी कोई और नहीं होती यह बात तुम जितनी जल्दी समझ जाओ उतना ही अच्छा है"। विशाल के यह शब्द उसके कानों में हथौड़ी की तरह लगे मगर इस आधुनिकता की दौड़ ने उसके तन और मन दोनों को ही  बुरी तरीके से घायल करके छोड़ दिया था ।आज उसे मां बहुत याद आ रही थी......


✍️ डॉ. श्वेता पूठिया 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत



शुक्रवार, 4 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---पहचान


समाज में महिलाओं को जागरूक करने की मुहिम लता  ने शुरू कर रखी थी।शहर की संस्थाओं के बाद उसने गांव का रुख किया।एक गांव में वह सभा में आयी सभी स्त्रियों से उनके नाम पूछ रही थी।घूघंट निकाले जब एक नवयुवती का नम्बर आया तो वह चुपचाप रही।बहुत कहने के बाद वह खडी़ हुई।लता ने बडे प्यार से पूछा,"आप अपना नाम बताओ, हम अपने रिपोर्ट में लिखेगे"।वह बोली,"मेरा नाम  मुझे पता नहीं।सब यह सुनकर हँस पडे़ लता ने समझाया ",जिस नाम से सब आपको बुलाते हैं वह नाम बतायें"।

वह बोली",हम सच कह रहे हैं हमें अपना नाम पता करने के लिए अपने घर जाना होगा।बाबू से पता करके बतायेंगे।बचपन में सब रामुआ की लड़की कहते थे। दादी कलमुँही कहती थी।फिर ब्याह हो गया तो कलुआ की बहू के नाम से सब बुलाते थे।जब से किसना का जनम हुआ तो सभी किसना की अम्मा कहते हैं।यही हैं हमारे नाम ।बापू ने जो नाम दिया होगा हमें याद नहीं ।

उसकी बात सुनकर लता निरुत्तर रह गयी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

शुक्रवार, 12 मार्च 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --------व्यथा

 


सेवानिवृत्त हुए रमा को चार वर्ष बीत चुके थे।मगर उसके जख्म आज भी हरे थे।कक्षा दस पास करते ही गांव के चाचा के चपरासी लड़के से विवाह हो गया।पति का सरकारी नौकरी के कारण  बडा मान था। शहर मेंं आकर रहने के कारण सामान मेंं लिपटकर आये अखबार पढ़ते देखकर  भोला (पति) ने उसकी लगन देखकर इंटर का फार्म भरवा दिया।।घर बच्चे सब के साथ उसने इंटर, बी ए,एम ए की परीक्षा सफलता पूर्वक पास की।गांव से आने वाले दोनों का मजाक उड़ाते मगर वे अपनी दुनिया में खुश थे।एक दिन अखबार मेंं पद देखकर आवेदन किया , जिस दिन नियुक्ति पत्र मिला उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।पति के हाथ मेंं देकर बोली,"आप ही इसे खोलेंं।सब आपके कारण ही सम्भव हुआ"।भोलानाथ ने भी खुशी खुशी लिफाफा खोला मगर कार्यालय का नाम पढ़ते ही पत्र हाध से छूट गया क्योंकि रमा उसीके दफ्तर में उसकी अधिकारी नियुक्त हुई थी।।रमा बोली,"वह यह ज्वाइन नहीं करेगी"।मगर भोलेनाथ के जोर देने पर उसने कार्यभार ग्रहण किया।पति जिसे वह स्वयं से ज्यादा सम्मान देती थी, वह कमरे के बाहर बैठते थे।हर घंटी पर दौडे़़  आते।उसके लिए असहनीय था। कईबार उसने त्याग पत्र देने को कहा मगर हर बार भोलेनाथ उसे समझा देते थे।मगर उसदिन कृषि अधिकारी के हाथ पर पानी छलक जाने पर उनकी भोलेनाथ पर पडी डाँट भी वह असहाय होकर देखती रही।वह बार बार माफी मांंगता रहा।

अगले दिन भोलेनाथ ने छुट्टी ले ली बोला,"तुम जाओ मेरी तबीयत ठीक नहीं लग रही"।"तो मै छुट्टी ले लेती हूँ"।

नहीं तुम जाओ आज कमिश्नर सर की मीटिंग हैं"। वह बेमन से दफ्तर पहुंच गयी मगर बार बार पति का उदास चेहरा सामने आ रहा था। अपने साथी सहेली से बात करके उसने निश्चित कर लिया कि अब वह भोलेनाथ से त्याग पत्र दिलवा देगी और व्यापार करवा देगी जिससे ऐसी असहनीय परिस्थितियों से हमेशा के लिए बच सके।अभी मीटिंग समाप्त कर वह बाहर ही निकली थी कि एस पी साहब का फोन आया कि आप तुरन्त घर पहुंचे।वह गाड़ी मेंं बैठकर खैर मनाती रही घर के बाहर भीड़ देखकर वह डर गयी। गाड़ी से उतरते ही पुलिस ने बताया ," मैडम आपके पति ने आत्महत्या कर ली"।वह जम सी गयीं।बच्चे उससे लिपट गये।वह बस इतना ही कह पायी,"मेरे आने का इंतजार तो कर लेते,"।गांव से हर व्यक्ति ने उसे ही दोषी बनाया।वह असहाय हो गयी थी और अपना जीवन भी समाप्त कर देना चाहती थी।मगर बच्चों के जीवन का यक्ष प्रश्न उसके सामने था सो खुद को समेटकर फिर खडी हुई और पूरी सेवा करने के बाद रिटायर भी हो गयी।मगर एक प्रश्न वह हर रोज पति से करती है कि काश एकबार बात तो कर लेते"?।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----समझ


सोनल बहुत सुन्दर थी।बचपन से ही अपनी सुन्दरता के कारण वह सभी की प्रंशसा पाती रही।उसे भी अपने रुप का अभिमान हो चला था।

        शादी के बाद भी उसका वही स्वभाव रहा।पति प्रवीण शुरू मेंं उसके रुप से प्रभावित रहा। व्यवहार की कमी को अनदेखा करता रहा मगर जल्द ही रूप की चमक व्यवहार के कारण दबती गयी।जिस वह बीमार सास को घर मेंं अकेले घर मे छोडकर ब्यूटी पार्लर गयी उस दिन घर लौटे प्रवीण का गुस्सा सातवेंं आसमान पर पहुंच गया और उसने चेतावनी दे डाली।वह गुस्से मे घर छोडकर मां के घर आ गयी।

        आज छह माह बीत गये।मां पिता ने समझाया मगर वह न मानी।दिन बीतते गये अकेलेपन ने उसे बहुत कुछ सिखा दिया।आज करवा चौथ का दिन  है। वह प्रवीण को बहुत याद कर रही थी। सोचते सोचते वह उठ खडी हुई तैयार होकर बोली,"मां मै अपने घर जा रही हूँ"।उसे अपनी गलती समझ आ गयीं थी।वह जल्द से जल्द  अपने घर पहुंचना चाहती थी।


✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----सांड दादा


महानगर मेंं एक व्यापारी की मृत्यु के बाद जनता के शोर मचाने पर नगरनिगम ने सांड पकड़ने का अभियान शुरू किया।भूरा सांड  जोअपने क्षेत्र मे पेड़ के नीचे पड़ा पड़ा आराम करता था आज अपनी जान बचाने के लिए भागा भागा घूम रहा था।हाफँते हुए एक गली मे घुसा जहाँ गाडी़ नहीं जा सकती थी।देखा एक दीवार के पीछे कालु दादा छिपे थे लम्बी लम्बी साँसें ले रहे । भूरा बोला ," दादा आप भी ?"कालू बोला भाई सुबह से जान पर बन आयी है।भागते भागते थक गया हूं।भाई एक बात बताओ कि हमेंं सजा क्यों दी जा रही है?हमने क्या किया । उस गुस्सैल हीरा के कारण हम सबकी जान पर बन आयी है।"

साँस जब काबू मेंं आयी तब भूरा बोला,"दादा हमेंं भी विरोध करना चाहिए।एक की सजा सबको क्यों मिले?ये इंसान कितने विचित्र है खुद रोज एक दूसरे की जान लेते है और आजाद घूमते है ।हमारे एक साथी ने चोट खाने के बाद हमला किया।हमारी पूरी बिरादरी के पीछे पड़ गये।सुबह से कुछ खाने को भी नही मिला भाग भाग कर दम निकल रहा है।बस बहुत हुआ अब नही डरेगे"।भूरे सांड की बात पूरी भी नही हुई थी कि सरकारी गाड़ी का होर्न सुनाई दिया और भूरा और कालू बात छोड़ जान बचाने को विपरीत दिशा मेंं दौड़ पड़े ।

✍️ डा श्वेता पूठिया, मुरादाबाद


गुरुवार, 5 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -- ----- प्रयास


कल्पना एम ए की कक्षा मेंं  थी।अपनी सखियों के साथ बैठी हँसी ठिठोली कर रही थी।फ्री पीरियड था तो मस्ती करनी थी ताकि अगली कक्षा के लिए रिचार्ज हो जाये।इतने मे एक आंटी जैसी महिला ने आकर पूछा ,"एम ए हिन्दी की कक्षा किस कक्ष में लगती है?

   "पायल बोली ,"आपको किस से मिलना है।हम यहींं बता देंंगे,आप जाकर क्या करेगी।"वह महिला बोली,"मुझे किसी से नहीं मिलना,आज की क्लास अटेंड करनी है।मेरा कल ही एडमिशन हुआ है आज क्लास मेंं पढना है"।यह बात सुनकर सभी चौक गयीं।"आंटी आप हमारी क्लास मेंं पढेगी, आपके बच्चे?"कहकर वे सब चुप हो गयीं।लड़कियों के आश्चर्य मिश्रित भाव देखकर वह बोली,"मेरा बेटा एम एससी कर रहा हैऔर बेटी बी ए फायनल मेंं है।""फिर आप इस उम्र में क्यों पढ़ाई कर रही हैंं"।सबने एक साथ पूछा।

    "तुम सब हिन्दी एम ए की ही स्टूडेंट्स हो "वह बोली,"तो चलो क्लास मे चलकर ही बात करते है"।वह सभी के पीछे पीछे कक्ष की ओर चल दी।कक्ष मे पहुंच कर सब उसे घेर कर खड़ी हो गयींं।आंटी बताओ न।

   वह बोली,'मेरी शादी कक्षा आठ के बाद ही कर दी गयी।गांव मे कक्षा8के बाद स्कूल नहीं था।गांव से बाहर लडकी पढ़ने जाये ये तो कभी हुआ नहीं।सो 14साल की उम्र से गृहस्थी शुरू हो गयी।मगर मन जो पढ़ने की ललक थी वो नहीं गयी।ससुराल मे बहू का पढ़ना असम्भव  था।बेटा जब कक्षा दस के लिए पढ़ने शहर आया तो खाना व देखभाल के लिए हमे भेजा गया।बस यही अवसर मिला।मन की बात बेटे को बताई तो उसने प्राइवेट फार्म भर दिया।दोनोंं ने साथ परीक्षा दी।अच्छे नम्बर आये।इसी तरह इंटर होगया ।फिर सब से लड़कर बेटी को भी शहर लाई।अब हम सब पढ़ते ।आनंद आता।बीए मे मेरे अंक मेरे बेटे से ज्यादा थे।जब ये बात पति को पता चली।वो खूब नाराज हुए मगर बेटे के आगे ज्यादा न बोल सके ।आज मैंं यहां आपके साथ पढूंगी"।

   ..तभी कल्पना बोली,"आंटी अब इस उम्र मे नौकरी तो मिलने से रही फायदा क्या होगा आपकी पढाई का"?। वह बोली,"बेटा नौकरी के लिए पढ़ाई जरूरी होती हैं मगर पढ़लिखकर नौकरी की जाये जरूरी नहीं।मेरी पढ़ाई मुझे संतुष्ट करती है खुशी मिलती है। तुम सब खुशनसीब हो जो तुम्हारे माता पिता पढ़ा रहे है जिस दिन बच्चों की पढ़ाई पूरी होगी मुझे फिर गांव जाना होगा मगर अब मेंं घर के काम के बाद गांव की उन लड़कियों को पढा़उंंगी जो पढ़ना चाहती हैं।"

सभी लड़कियां खड़ी हो गयींं और तालियां बजाते हुए बोलींं,"आंटी इस कक्षा मे आपका स्वागत है" वह मुस्कुरा रही थी।

✍️ डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

बुधवार, 21 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---बदलता रिश्ता


नन्दिता ने अपनी दोनों बेटियों का पालन पोषण अच्छी तरह किया।अनेक बार पति की डाँट खाकर भी उनकी इच्छाओं को पूरा किया।बडी बेटी दीपशिखा को इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करवायी हर बात मे उसका मान रखा।छोटी बेटी विदिशा पढाई मे औसत थी मगर फिर भी बी एड कर एक स्थानीय स्कूल मे शिक्षिका का कार्य करने लगी।मगर दोनो के वेतन मे बहुत अतंर था। दीपशिखा का विवाह हुआ।सब बहुत खुश थे।मगर ये खुशियाँ ज्यादा देर न रही।शादी की पहली वर्षगांठ के कुछ दिनों बाद गर्भवती दीपशिखा को उसका पति मायके छोड गया।बच्ची एक वर्ष की होगयी।मगर वह न लौटा आया तो तलाक का नोटिस।नन्दिताका रो रो कर बुरा हाल हो गया और उसके पति को हार्टअटैक आ गया।

जैसे तैसे मुकदमा निपटा। 

आज कोरोना की मंदी के कारण जब घर मे आमदनी का जरिया न रह तो नन्दिता ने भारी मन से कहा ,"आजतक हमने कुछ नहीं कहा।मगर अब तुम्हारे पापा की तबीयत भी खराब हैऔर आमदनी बंद है।अब तुम दोनों कुछ सहयोग करो"।विदिशा ने कहा,"ठीक है मां आप जैसा कहे।"मगर दीपशिखा बोली,"मां मै कैसे करूँ, मुझे तो अपनी बेटी केलिए भी सोचना है।उसका कल मुझे ही संवारना है।" अपनी बेटी के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर नन्दिता स्तब्ध रह गयी।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----किराएदार

     


शरद की आयु पैतीस साल हो चुकी है।उसका जन्म इसीघर मे हुआ था।बचपन से वह उसेही अपना घर समझता था।मगर जब मालिक मकान आकर किराए का तकादा करता तब उसे समझ आया कि वह किराए दार है ।वह घर उनका नहीं।मामूली से किराए के घर मे वह लगभग 50साल से  दादा के समय से रह रहे थे।मकान मालिक की मृत्यु के बाद उसके बेटो ने जब मकान खाली करने को कहा तो वह साफ मुकर गया।मुकदमा भी किया।दो वर्ष निकल गये।थककर मकान मालिक के बेटो ने समझौता करना उचित समझा। 5लाख मेंं सौदा पट गया।आज वह घर छोडकर जा रहा था। उसने अपना मकान बनाने का इरादा छोड दिया।उसे समझ में आ गया कि किराएदार बने रहने मे ही फायदा है।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----दोषी कौन


घर में चल रहे भाइयों के बीच सम्पत्ति विवाद में कविता ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिश की।मगर बात बहुत बिगड़ गयी कचहरी मेंं मुकदमे हुए।सालों के बाद अब समझौता हो गया। भाई तो मिल गये मगर वह सब से दूर हो गयी क्योंकि दोनो ने झगडे़ का दोषी उसे बना दिया।


✍️श्वेता पूठिया,मुरादाबाद

बुधवार, 30 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ----चाबुक


अजब सिंह को रिश्वत लेने के आरोप में एक साल की सजा हुई।उसके बच्चों की देखभाल उसके बडे़ भाई एवं भाभी की जिम्मेदारी बन गयी क्योंकि पत्नी की मृत्यु के बाद वह अपने बच्चों को विमाता का दुख नहीं देना चाहता था इसलिए स्वयं ही बच्चों का पालनपोषण कर रहा था।अपने वेतन से उसकी सारी जरूरत पूरी हो जाती थी।मगर साथी मित्र के लिए आया लिफाफा उसके कहने पर उसने बिना देखे रख लिया अगले पल ही एन्टी करप्शन टीम ने उसे पकड़ लिया।उसकी किसी ने एक न सुनीऔर सजा हो गयी।ताई ताऊ का व्यवहार थोडे़ दिन तो सही रहा मगर अब ताई से घर का काम न होता। सुबह से शाम तक मोनी को घर के काम करने पडते और मुन्ना के पैर बाहर भागते भागते थक जाते।रात को दोनो भाईबहन गले लगकर आसूँ बहाते।एक दिन पास की काकी कह रही थी ,"कितना सीधा दिखता था,अरे जब रिश्वत लेता था तो दे देता तो छूट न जाता।आजकल तो जज पैसा और लड़की देखकर डाकू को भी छोड़ देते हैंं"। ताई  ने भी उसकी हाँ मे हाँ मिलाई।रात को दोनोंं बच्चों ने आपस मे बात की।सुबह उठने पर दोनों को घर मे न पाकर गांव भर मे शोर हो गया।उधर मोनी और मून्नू दोनो जज साहब की कोठी पर पहुंचे।दरबान ने रोक लिया।बोला "साहब नहीं मिलते किसी से,भागो। बच्चों की रोनी सूरत देखकर बोला, "रुको पता करके बताता हूं"।

आज जज साहब का मूड अच्छा था, बोले ,"बच्चे, उनको क्या काम है? चलो बुला दो।"दोनों बच्चे अंदर आये।अपनी जेब से 50 रुपये-निकालकर हाथपर रखे और बोले,"आप ये  ले लीजिए, हमारे पापा को छोड़ दीजिए।काकी कहती है कि आप पैसे लेकर डाकू को भी छोड़  देते हैंं। मेरी बहन बहुत सुन्दर है आप इसे भी रख लीजिए आपका काम कर देगी,ताई कहती है सुन्दर लडकी देखकर सब काम कर देते है।देखिए मेरी बहन सुन्दर है ना"।"बस हमारे पापा को छोड दीजिए।पापा बिना कुछ अच्छा नही लगता।ताई बहुत काम करवाती हैं, खाना कम देतीहै"।

बच्चों की बाते सुनकर जज साब को लगा किसी ने उनपर चाबुक बरसा दिये।अपनी पत्नी की ओर नजर न उठा सके।

✍️डा.श्वेता पूठिया,मुरादाबाद

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- एक सच


मानसी एक प्राइवेट विद्यालय मे शिक्षिका है।वेतन भी ठीक है।पूरा परिवार पढालिखा है।पति भी सरकारी इंजीनियर है।मगर आज मानसी को समझने वाला कोई नहीं।थककर उसने नारी शक्ति केन्द्र को फोनकर मिलने का समय लिया।अध्यक्षा महोदया बोली,"अपनी समस्या बताओ"?मानसी बोली,"मै मां बनने वाली हूँ।मेरी एक बेटी है ।उसके बाद दो बार मेरा मातृत्व छीना जा चुका है।पुत्र की चाह मे मेरे अंश का कत्ल किया जा चुका है।बहुत सी महिला डा. आज भी इस कार्य मे संलग्न है।पर इसबार मै नहीं चाहती कि मेरा मातृत्व मुझ से छीना जाये।अभी वह भ्रूण मात्र है फिर भी मै उससे बहुत प्यार करती हूँ।मन ही मन उसे लोरियाँ सुनाती हूँ।,काजल का टीका लगाती हूँ, मै उसके कोमल स्पर्श कोमहसूस करती हूँ।मैउसे खोना नहीं चाहती।"

अध्यक्षा महोदया बोली,"परिवार से बात की?पति को समझाया?"

मानसी बोली,"जी सब करके थक चुकी हूँ।विरोध पर तलाक देने की धमकी देते है।विधवा मां के अतिरिक्त कोई नहीं है।अब इस उम्र मे इस दुख से वो टूट जायेगी।मेरा भी वेतन इतना नहीं कि सबका काम अच्छे से चल जायेगा।इसीलिए कुछ ऐसा करिए कि परिवार भी बचा रहे और बच्चा भी"।

अध्यक्षा की चुप्पी उसे परेशान कर रही थी।यह सोचकर वह परेशान थी कि पढे लिखे लोगो की सोच ऐसी है तो अनपढों को क्या समझाये मगर फिर  बोली,"डाक्टर के यहाँ कब जाना है"?मुझे फोन कर देना मै वहां मिलूगी।"

मानसी के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- सीख

आज भरत पुत्र के साथ हुई बहस के बाद थका हुआ बैठा था।जिस पुत्र वैभव के पालन केलिए उसने क्या नहीं किया।उसकी इच्छाओं को पूरा करनै केलिए गलत ढ़ंग सै पैसा कमाया।उसकी हर ख्वाहिश पूरी की आज वही वैभव "तुमने मेरे लिए किया ही क्या है,"?कहकर उसे छोड गया।
आज उसे अपने पिता की बहुत याद आ रही थी ।एक साधारण मास्टर होते हुए भी  उपके पिता ने उपकी शिक्षा का पूरा ध्यान रखा।मगर साथ के अमीर बच्चों की चीजें देखकर उसकी फरमाइश पर समझाया "बेटा, हमे अपनी आमदनी के अनुसार ही खर्च करना है।तुम पढो जब इतना कमाओ तब खरीदना।इन दिखावटी वस्तुओं पर अनावश्यक व्यय कर हम अपना कल नहीं बिगाडेगे।साथ अपने मन को वश मे रखना सीखो।दुनिया मे अपनी इच्छानुसार सब.कुछ नही मिलता"।उस दिन वह बहुत रोया कि वह इस घर मे क्यों पैदा हुआ।शादी के बाद जब वैभव उसके जीवन मे आया उसने प्रण किया कि वह अपने बेटे की हर इच्छा पूरी करेगा । मगर संयम और धन की उपयोगिता न सिखा पाया।इसीकारण आज और अधिक सुख सुविधाओं को पाने के चक्कर मे वह अपने से अधिक धनवान पत्नी के साथ उसके घर रहने चला गया ।
आज  अपने पिता के प्रति नाराजगी उसकी आँखों से आँसू बनकर बह रही थी।


 ✍️  डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------ रोटियां


स्वाति विश्वविद्यालय मेंं समाजशास्त्र की प्रवक्ता थी।समाज मेंं होने वाले परिवर्तन पर उसके लेख पत्र पत्रिकाओं मेंं छपते थे।सभी उसके प्रशंसक थे।घर लौटकर कपडे़ बदल वह रसोई मेंं लग जाती।एक रोटी हल्की सी जल गयीं, तभी सास की आवाज सुनायी दी,"बडी़ बडी़ ड्रिग्रियों से रोटी गोल नहीं बनती बल्कि जल जाती है"।पति की जलती हुई आँखे देखकर स्वाति की आँख मे आँसू भर आये और वह कुछ न कह सकी।

 ✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

बुधवार, 2 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की कहानी ---प्रमोशन



मध्यमवर्गीय परिवार मे जन्मी लतिका सामान्य कदकाठी की बालिका का थी।हँसना,पढ़ना, खेलना यही खुशियां थी उसकी।उसकी दुनिया उसकी मां असमय भगवान के पास चली गयीं।घर मे भाभियो ने पराया कर दिया।पिता से शिकायत की तो व्यर्थ।अब कमजोर शरीर और कम आमदनी वाले उसके पिता से अधिक भाई कमाई करते थे तो।वह बोले,"अब बेटे घर चलाते हैं,पहले वाली स्थिति नहीं रही, तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो।पढलिख कर कुछ काम कर लेना।मुझ से कुछ उम्मीद न रखना"।वह मायूस हो जीवन जीने लगी।
धीरे धीरे कई वर्ष गुजर गये। एकदिन आलिंगन वद्ध भईया भाभी को देखकर उसे अपनी जिंदगी नीरस लगने लगी।तभी धीरज उसकी जिन्दगी मे आया।और एकदिन उसने माँ ने उसकी शादी के लिए जो गहने बनवाये थे लेकर घर छोड दिया।दोनो मेरठ आ गये।एक कमरे मे रहने लगे।जिस सुखद जीवन की कल्पना लेकर आयी थी तार तार होने लगी।माँ के दिये गहने एक एक कर बिकने लगे।एक अँगूठी बची थीबस।तभी धीरज ने बताया कि उसे नौकरी मिल गई।उसे लगा खुशियां लौट रही है।एक दिन शाम को फैक्टरी से वापस आकर धीरज बोला"सेठानी बाहर गयी है ,तुम सेठ के यहां जाकर खाना बना आना"।वह सेठ के घर पहुंच गयी।काम पूरा होने ही वाला था कि सेठजी बोले,"जाने से पहले मेरे कमरे मे पानी रख जाना"।जब वह कमरे मे गयी तो मेज पर शराब की बोतल खुली थी,जैसे ही पानी का जग रखा सेठ ने उसका हाथ पकड बिस्तर पर गिरा लिया।बहुत प्रयास किया छुडाने का मगर सफल न हो सकी।
थके कदमों से  घर पहुंची।धीरज सो चुका था।किवाड़ खुलीथी वह कटेवृक्ष सी बिस्तर पर गिर पडी।सुबह तबियत खराब का बहाना बनाकर पडी रही।शाम तक हिम्मत जुटायी कि धीरज को सब बता देगी।शाम को धीरज मिठाई के डिब्बे केसाथ आया और चहकता हुआ बोला,"लो मुँह मीठा करो,मेरा प्रमोशन हो गया,अब मै फैक्टरी में मैनेजर हो गया हूँ।"
लतिका  धीरज की  प्रमोशन की खुशी देखकर कुछ न कह सकी।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
12/08/2020

शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- समाज सेवा


सोनू दीदी ने समाज सेवा के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया। कई संस्थाओं ने उनके कार्यों की फोटो देखकर उन्हें सम्मानित भी किया। आज सोलह साल की एक लड़की फरीदा उनसे मदद माँगने आयी ।बोली,"दीदी मेरे माँबाप मेरी शादी एक 40 साल के व्यक्ति के साथ कर रहे है।प्लीज़ आप मुझे बचा लीजिए।मुझे पढ़ना है।अभी शादी नहीं करनी"।"अपने माँ पिता को समझाओ ", दीदी बोली।"मैने बहुत कहा मगर वो मान नहीं रहे,वो मेरे पिता का कर्ज भी चुकायेगा। ये तो मेरा सौदा हुआ न दीदी।मेरे घर से निकलने पर भी पाबंदी है। बड़ी मुश्किल से आयी हूँ।दीदी मुझे अपने घर में रख लीजिए"। सोनू दीदी बोली"अरे नहीं ऐसा नहीं कर पायेंगे, तुम तो मुस्लिम हो और कहींं हिन्दू मुस्लिम विवाद न हो जाये।तुम अपने घर जाओ।हम पुलिस भेज देंंगे"।फरीदा आँखों मे आँसू लिए खड़ी रह गयी।दीदी  गाड़ी मेंं बैठ अगले कार्यक्रम मेंं सम्मानित होने चली गयीं।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा --- भविष्य


मालती का पति उसे छोड़ कर शहर चला गया।उसकी ससुराल वालोंं ने उससे सब नाते तोड़ दिये।कुछ गांव वालोंं की दया से बनी झोपडी़ मेंं वह दोनोंं बच्चों के साथ रहकर जीवन गुजार रही थी।आसपास के पुरुषों की नजरों से खुद को बचाने के लिए उसने अपनी जुबान पर कड़वाहट का ऐसा मुल्लमा चढ़ा लिया था कि बडे़ बडे़ उसे देखकर रास्ता छोड़ देते थे।सुबह उठकर भट्टे पर काम पर जाना उसकी आवश्यकता थी। सात साल की सोना और 4साल के रघु को झोपडी मे बंद करके जाती।शाम को सागसब्जी के साथ दरवाजा खोलती। बच्चे खाने की आशा मे उसकी हर आज्ञा मानते।
पास के रतन लाल नेकहा " क्यो बच्चों को बन्द करती है? अपनी बेटी का नाम स्कूल मे लिखवा दे और मुन्ना का नाम आँगनवाड़ी मे लिखवा दे वहाँऔर बच्चों के साथ कुछ सीखेगे"।इसी बात पर वह घन्टों चीखी चिल्लाई। रतनलाल हार कर चुप हो गये।मगर धीरे धीरे उसने साग लाना कम किया।एक समय ही खाना शुरू किया एक दिन काम से वापस आते वह बेहोश होकर गिर पडी.पडोस की स्त्रियां ने उठाया।बुड्ढी दादी के कहने पर जब उसकी कुर्ती ढीली की तो उसमे से दो पर्ची गिरी।दादी बोली लगता है"कई दिनो से कुछ खाया नहीं है"।स्कूल जाते मास्टर जी से पर्ची पढवायी तो देखा एक पर्ची   सोना के स्कूल की फीस की थी और दूसरी रघु के आँगनवाड़ी मे भर्ती की।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

बुधवार, 5 अगस्त 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा-----दान


बडी उम्मीद के साथ शैफाली ने पति की मृत्यु के बाद परिवार वालो का विरोध सह कर एक बेटे की  अच्छी परवरिश की उँचे स्कूल मे पढाया।आज वही बेटाउसके  सेवानिवृत्त होने के बाद बार बार उससे उसकी सम्पति अपने नाम लिखने को कह रहाथा  ।काफी सोच विचार के बाद आज उसने निश्चय कर लिया कि वह वसीयत करेगी।।बेटा खुश था कि वसीयत हो गयी।उसकी मृत्यु के बाद जब वसीयत पढी गयी तो बेटे को गश आ गया।शैफाली अपने निवास को छोडकर सारी सम्पत्ति वृद्ध महिला आश्रम के नाम कर गयी जहाँ वह अक्सर सेवा करने जाती थी।

डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद