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शनिवार, 30 अप्रैल 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की रचना --करिया रंग


सिपाही पहुंचा ससुराल में, अपने साथी संग

करिया रंग को देखकर, साली  हो  गयी दंग


बात करने से  बच  रही, बदल  रही  थी ढंग

दीदी हमारी गोरी चिठ्ठी, तुम हो काले भुजंग


दिल टूटा दीवान का,  थाना पहुँचा   तत्काल

एसओ साहब भी आ गए, बढ़ता देख बबाल


गुस्सा मत  करो प्यारे, हो जाओ  कुछ  शांत

ठंडा पानी पीकर तुम, सब बतलाओ वृतान्त


लगा बताने दीवान भी, उनपर कर  विश्वास

पहुंचा था ससुराल में, मन में थी कुछ आस


पर मेरी ससुराल  में, मुझ पर कसे गए तंज

साली मुझसे कह गयी, तुम हो काले भुजंग


गर्मी ऐसी भयंकर ,कि सिन्धु दरिया हो गया

दिनभर ड्यूटी करके, मैं भी करिया हो गया


मुंशी तुरंत बोल पड़ा, हो जायेगी हवा टाइट 

दिन की ड्यूटी के बाद, यदि लगा दी  नाईट


कारखास भी बोल पड़ा, खुद में बना महान

राज्य प्रहरी की  नौकरी, होती नही आसान 


हेड मोहर्रिर को  समझो, हर थाने की  दाई

समझा रहा  दिवान को, जैसे हो  बूढ़ी ताई


करिया रंग को  देखकर, मत हो ज्यादा तंग

राधा उन्ही को मिली हैं, जिनके करिया रंग

✍️ दुष्यन्त 'बाबा'

पुलिस लाइन

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा का गीत --उन्हीं पिता के हम गुण गाएं उनको हम सब शीश झुकाएं


जो देकर अपनी ऊर्जा करता नवग्रह का संचार।

उसी सूर्य सम तात है सन्तान के सकल संसार।।


पिता सूर्य  हैं, पिता  है  बरगद

गम में दुखी हैं खुशी में गदगद

बच्चों में मिल बच्चे बन  जाएं

हर दुख को खुद ही सह जाएं

उन्हीं  पिता  के हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  हैं  पोषक, पिता सहारा

ये  संतति  के  हैं  सृजन  हारा

पूरे  कुल  का  जो भार उठाएं

कभी न इनके दिल को दुखाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  हैं  मेला,  पिता  है ठेला

पिता बिना लगे संसार अकेला

अपना  दुःख  न  कभी जताएं

जो बिना आंसुओं  के  रो पाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  क्रोध, पिता  पालनहारा

इनके  क्रोध  में  छिपा  सहारा

दुःख  में भी तो ये हंसते  जाएं

हम  रहस्य  को समझ न पाएं

उन्हीं  पिता  के हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता कठोर  हैं उतने ही मृदल

जो नित पिता का आशीष पाएं

वह कर्म  करें  न पाछे पछताएं

सारी  विपदा  से वह बच जाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता सृष्टि संतान की पिता ही जन आधार।

पिता की छाया  मात्र  से  हो  जाता उद्धार!।।

✍️ दुष्यन्त बाबा, पुलिस लाइन, मुरादाबाद

रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा का गीत -----धरा से कितने ही वृक्ष भी पाए प्राण वायु और फल भी पाए कितने ही काटे कितने जलाए अब कटने से भी इन्हें बचाओ


हे!  मानव तुम  धरा बचाओ

कुछ तो इसका कर्ज चुकाओ

 

बूंद-बूंद  जल संचित  करती

अपने स्वेद से प्यास बुझाती

फिर भी न कोई कीमत पाती

ऐसे न  इसको व्यर्थ  बहाओ

 

सुबह  सबेरे  सूरज उग आता

फिर  सारे जग  को चमकाता

नही  किसी  से  ये विल पाता

ध्यान रखो! इसके  गुण गाओ

 

धरा से कितने ही वृक्ष भी पाए

प्राण  वायु और फल भी पाए

कितने ही काटे कितने जलाए

अब कटने से भी इन्हें बचाओ

 

नदियां धरा  की आभूषण  हैं

रत्नगर्भा और  कृषि भूषण है

समृद्धि  की परिचायक भी  है

प्रदूषण से  तुम इन्हें  बचाओ

 

हे!  मानव तुम  धरा बचाओ

कुछ तो इसका कर्ज चुकाओ

✍️दुष्यंत बाबा, पुलिस लाइन, मुरादाबाद

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की रचना ----क्षमा याचना पूजा अर्चन करबद्ध यही वंदन है विपत्ति को हरो हरि मेरा यही करुण क्रंदन है


 *तेरा साधक*

जीवन देने वाले क्यों मौत बांटता घर-घर में

तेरे नाम ज्योति जलाते तेरी श्रद्धा हर घर में

अपनी सृष्टि को समझ खिलौना खेल रहा है

क्यों एक के दोष को सारा जगत झेल रहा है

तू रुलाए अपने मानव को ऐसा तेरा स्तर है?

यदि सच में ऐसा हो तो ईश नही तू पत्थर है

पुत्र गलतियां  करता, बनती थोड़ी डॉट सही

हर गलती की सजा में गले को देते काट नही

माना कि मैं पापी, नीच, प्रकृति  विनाशक हूँ

तेरी सत्ता का सौदाई बन बैठा यहाँ शासक हूँ

तू ही तो कहता कर्मयोग में अच्छा या बुरा कर

फिर क्यों भ्रम में डाल रहा फलयोग भुलाकर

तूने ही बनाई नियति जिस पर चलना सबको

फिर मेरा दोष कहाँ,जो आंख दिखाता मुझको

क्षमा याचना पूजा अर्चन करबद्ध यही वंदन है

विपत्ति को हरो हरि मेरा यही करुण क्रंदन है।

✍️ दुष्यन्त ‘बाबा’, पुलिस लाइन, मुरादाबाद

 मो0-9758000057

 

शनिवार, 13 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की लघुकथा ---महिला दिवस

   


मिस्टर तिवारी ने अपने कार्यालय में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मिस मेहता को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया था। मिस मेहता उस समय हतप्रभ रह गयीं जब कार्यक्रम में महिलाओं का सम्मान करते समय फोन आ जाने पर पत्नी को तिवारी जी खरी-खोटी सुनाने लगे । 

✍️दुष्यन्त 'बाबा' ,पुलिस लाइन, मुरादाबाद,मो0-9758000057

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कहानी -----साहब का कुत्ता


बात उन दिनों की है, जब भोला राम आरक्षी के रूप में बड़े साहब के कार्यालय में तैनात था पुराने साहब के ट्रान्सफर के बाद नये साहब की तैनाती हुई। नये साहबछोटे से कद थे परन्तु बडे चटपटे थे। साहब ने अपने थोड़े से सामान के साथ कार्यालय में आगमन किया चूंकि कार्यालय तथा आवास एक ही परिसर में था साहब के आते समस्त कार्यालय स्टाफ शिष्टाचार भेंट के लिए इकट्ठा हो गया सभी के परिचय के साथ भोला राम ने भी साहब को सलाम ठोंक दिया। साहब कभी ए.एस.पी. से सीधे आई.जी. बने थे बडे़ साहब में पूरी हनक थी बात-बात पर अपने कन्धे पर लगे स्टार और अन्य साज सज्जा की ओर देखते हुए स्टाफ को कहते थे कि "जमीनी अफसर रहा हूँ कभी कोई गड़बडी़ की तो छोडूंगा नही"समस्त स्टॉफ एक शब्द में “जी सर” कहकर साहब की तारीफ में कसीदे लगाने लग जाता।

          कुछ ही समय बीता था कि साहब की मैडम का मय सामान के बंगले पर आगमन हुआ। सभी कर्मचारियों ने बडे़ उत्साह के साथ सामान उतरवा दिया। कर्मचारियों का धन्यवाद करने साहब हाथ में जंजीर थामे एक कुत्ता साथ में लिए आ गये। साहब सभी को 'धन्यवाद' कहने वाले ही थे कि सभी ने चापलूसी भरे एक ही स्वर में कहा "साहब आपका कुत्ता बहुत अच्छा है कहा से मंगाया है" इतना सुनते ही साहब का पारा सातवें आसमान पर हो गया। समय की नजाकत को कोई भाप न सका, सभी मूकदर्शक बने साहब की खरी-खोटी सुन रहे थे। जब साहब का गुस्सा कुछ ठण्डा हुआ तब साहब ने कुत्ते के परिचय देते हुए बताया कि इसका नाम “बाबूजी” है कर्मचारियों द्वारा इस नाम के पीछे छिपे तथ्य को जानने की जिज्ञासा को भांपते हुए साहब ने बताया कि जब यह लगभग तीन माह का था तब हमारे ससुर जी की ससुराल से भेंट किया गया था ससुर के ससुर यानि कि बाबूजी की याद में इसका नाम ”बाबूजी“ रखा गया है तथा इन्हें परिवार के सदस्यों की तरह सम्मान दिया जाता है अगले ही दिन से एक कर्मचारी को विशेष रूप से उसकी देखभाल करने के लिए नियुक्त किया गया। जब भी कोई अपनी पत्रावलियां साइन कराने जाता तो बाबूजी की तारीफ में एक दो कसीदे पड़ देता इससे उसकी डाक समय से साइन हो जाती थी साथ ही साहब भी अच्छे मूड़ में दिखाई देते थे। परन्तु कभी-कभी टेलीफोन डयूटी के साथ एक विशेष समस्या आ जाती थी, कि जब भी साहब कहते थे कि 'बाबूजी को बुलाओ!' तो यह समझ नही आता था की कुत्ते को बुलाना है या लिपिक को क्यूंकि दोनों ही बाबूजी हैं इसी वजह से आये दिन टेलीफोन डयूटि की डांट पड़ जाती थी। चूंकि बडे साहब थे बडे़-बडे़ लोग उनसे मिलने आते थे परन्तु सभी "बाबूजी" का नाम बडे अदब से लिया करते थे “बाबूजी” के तारीफ करके ही बडे़-बड़े काम यूं ही निकाल लिया करते थे।

      एक दिन कर्मचारी जब बाबूजी को बाहर घुमाने ले गया था तभी आठ-दस बाहरी कुत्तों ने "बाबूजी" की जमकर नुचाई कर दी किन्तु देखभाल वाले कर्मचारी ने जैसे-तैसे बचाकर, बाहर ही नहला-धुलाकर ठीक कर दिया जिससे इस घटना का कानों-कान किसी को पता नही लगने दिया किन्तु कार्यालय के कुछ लोग इस दृश्य को देख चुके थे। भोला राम भी जिनमें से एक था। एक दिन जब साहब कार्यालय परिसर का भ्रमण कर रहे थे कि भोला राम साहब के सामने आते हुए उत्साह पूर्वक बताया कि “साहब अपने बाबूजी को तो बाहरी कुत्ता ने बहुत बुरी तरह धोया है” इतना सुनते ही साहब बौखला गये और तुरन्त हैड क्लर्क को बुलाया गया तथा भोला राम को सात दिन की फटीक/दलील के साथ सात दिवस अर्थदण्ड सजा बतौर दिया गया। "बाबूजी" से ईर्ष्या रखने वालों की कडी़ में एक नाम और जुड़ गया भोला राम का। 

       कुछ ही दिन बीते थे कि पुराने साहब कि मैडम शहर आई थीं सोचा जब शहर आये ही है तो बडे़ साहब से शिष्टाचार भेंट करते चलें। चूंकि उनके पति तो डी.आई.जी. रहे थे, सोचा बड़े साहब मिलकर अच्छा लगेगा। मैडम का आगमन हुआ तो कर्मचारियों द्वारा पुराने साहब की मैडम होने के नाते सीधे साहब के कार्यालय कक्ष में बैठा दिया गया तथा टेलीफोन द्वारा साहब को मैडम के आगमन की सूचना दे दी, चूंकि भोला राम भी मैडम से पुराना परिचित था इस नाते पता चलने वह भी वहां आ चुका था। भोला राम मैडम का अभिवादन कर कुशलक्षेम पूछ ही रहे थे कि “बाबूजी” का आगमन हो गया मैडम को पूर्व से ही साहब का "बाबूजी" के प्रति स्नेह का पता था अतः मैडम ने बाबूजी पुचकारते हुए जैसे ही हाथ बढ़ाया कि बाबूजी ने अनजान समझकर मैडम पर हमला कर दिया। जब तक भोला राम 

मैडम को बाबूजी से बचा पाते तब-तक बाबूजी दो दांत मैडम के बाजू में गड़ा चुके थे। जिससे मैडम का ब्लाउज बाजू से कुछ फट गया था जब तक साहब का आगमन 

हुआ तब तक भोला राम बाबूजी को भगा चुके थे।

        साहब आकर बैठे अभिवादन हुआ ही था कि मैडम ने "बाबूजी" की शिकायत न करते हुए उसकी तारीफ में कसीदे पढ़ दिये कि "साहब! अपने ये जो बाबूजी बहुत अच्छे है बहुत अच्छा काटते है मुझे भी काटा, बहुत अच्छा लगा और गुद-गुदी सी हुई" चिलमबाजी की परकाष्ठा को भोला राम हतप्रभ बना निर्जीव सा खड़ा देख रहा था। भोला राम मन ही मन सोच रहा था कि 'हे प्रभु! चिलम बाजी की भी हद होती है' थोडी देर खडे़ रहने के पश्चात चुप-चाप बाहर निकल आया। भेंटवार्ता खत्म हुई। बडे साहब भी शिष्टाचार दिखाते हुए मैडम को बाहर तक छोड़ने आये। भोला राम पुनः मैडम से मिला और एन्टी-रैबीज के इजैक्शन लगवाकर मैडम को गंतव्य तक छोड़ आया।

          जब यह बात कार्यालय में पता लगी तो साहब के गोपनीय सहायक (स्टैनो) ने नम्बर बनाने में बिल्कुल देरी नही की और तुरन्त साहब को बताया कि “साहब! अपने बाबूजी ने मैडम को दांत मार दिये है जिसके इन्फैक्शन का खतरा बाबूजी को भी बराबर है” साहब "बाबूजी" के प्रति सहायक जिम्मदारी और तत्परता का भाव देख बहुत खुश हुए। तथा कर्तव्य के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए तुरंत सहायक को रिवार्ड दिये जाने की घोषणा की गयी। सहायक की बात मानते हुए तत्काल “बाबूजी” को अस्पताल भेजने की तैयारियां की जाने लगी। जिप्सी कार मंगायी गयी उसमें रंगीन कालीन बिछाकर "बाबूजी" को बैठा दिया गया। देख-रेख करने वाले कर्मचारी को साथ बैठाकर अस्पताल जाने के लिए रवाना कर दिया गया। अन्य कोई स्टाफ इसलिए साथ नही भेजा गया था कि साहब के पी.आर.ओ. ने इस सम्बंध में पहले ही डॉक्टर को अवगत करा दिया गया था।

      जिप्सी कार कार्यालय से कुछ दूरी पर ही मुख्य मार्ग पर पहुंची ही थी कि "बाबूजी" को सड़क पर “बाबूजिन” (कुतिया) दिखाई पड़ गयी, "बाबूजिन" को देखकर वानप्रस्थ काट रहे "बाबूजी" अपने संयम को साध न सके, और चलती कार से ही छलांग दी। कर्मचारी कुछ प्रयास करता उससे पहले ही सामने से आ रहे एक ट्रक ने ”बाबूजी“ को सड़क पर चिपका दिया। बस अब क्या था! कर्मचारी और जिप्सी का ड्राईवर अवाक् खडे़ एक दूसरे का मुँह देख रहे थे, कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या करें! फिर भी उन्होने मार्ग पर चलते ट्रैफिक को रोककर "बाबूजी" के गले में बंधा पट्टा व जंजीर खोल ली और बापस आ गये।

       किसी तरह हिम्मत जुटाते कार्यालय पहुंचे वहाँ पहुँच कर दोनों ने पी.आर.ओ. तथा टेलीफोन डयूटी से बाबूजी की मृत्यु की सूचना साहब को देने का अनुरोध किया। परन्तु बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता। जब कोई उपाय न सूझा तो दोनों स्वयं ही सीधे हिम्मत जुटाते हुए साहब के सामने पहुँचे। साहब तभी मध्यान्ह भोजन कर कार्यालय में बैठे ही थे। दोनो ने हाथ जोड़कर जंजीर दिखाते हुए कहा कि “साहब! बाबूजी अब नही रहे” फिर क्या था साहब का आक्रोश देखते ही बनता था। तुरन्त साहब की गाड़ी लगवायी गयी और तत्काल घटनास्थल पर पहुंचे परन्तु तब तक देर हो चुकी थी राष्ट्रीय राजमार्ग होने के कारण न जाने कितने ही वाहन "बाबूजी" के ऊपर से गुजर चुके थे "बाबूजी" के रूप में अब केवल सड़क से चिपकी "बाबूजी" की खाल ही शेष बची थी। खाल को खुरपी मंगाकर खुर्चा गया। बाल्टी में रखकर कार्यालय लाया गया पूरे विधि-विधान से "बाबूजी" का अन्तिम संस्कार किया गया। साथ ही मोक्ष प्राप्ति के लिए ब्राह्मण भोज भी कराया गया।

        समस्त कार्यालय में आज "बाबूजी" की मौत की सुगबुगाहट थी। एक कुत्ते की मौत के रूप में प्रत्येक कर्मचारी की संवेदनाएं थी। परन्तु "बाबूजी" की मौत का सुखद अहसास प्रत्येक स्टाफ कर्मी के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ रहा था क्योंकि शायद ही कोई बचा हो जिसे "बाबूजी" की वजह से किसी न किसी रूप में डांट न पड़ी हो।

✍️दुष्यन्त 'बाबा', मुरादाबाद

मो0न0-9758000057

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा की कहानी --- विशुद्ध प्रेम


राजन का बचपन पीएसी के सरकारी क्वार्टरों में ही बीता था। राजन के पिता इसी विभाग में हवलदार थे। राजन अब धीरे-धीरे समय किशोरावस्था में प्रवेश कर रहा था। सामने के क्वार्टर में तीसरी मंजिल पर सुधा नाम की एक सुंदर कन्या रहती थी उसके पिता भी इसी विभाग में सिपाही थे। दोनों के पिता की ही ड्यूटियां कम्पनी के साथ अक्सर बाहर जाया करती थीं। इसलिए दोनों आपस में मित्र भी थे।

        सुधा और राजन दोनों ही पढ़ने में बहुत तेज थे किंतु दोनों का ही अंतर्मुखी स्वभाव था। घरेलू काम-काज में दोनों ही अपने परिवार का हाथ बटाते थे। आस पड़ोसी भी सोचते थे कि काश इन दोनों की जोड़ी होती तो कितना अच्छा होता। परंतु राजन और सुधा के बीच कभी कोई ऐसी बात न  सुनी थी। दोनों आपस में बात किये बिना भी एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। इसी बीच ड्यूटी के दौरान राजन के पिता शहीद हो गये थे। कुछ समय बाद पिता के स्थान पर राजन को उपनिरीक्षक की नौकरी हेतु संस्तुति हुई। राजन को 07 दिवस के बाद ट्रैनिंग के लिए जाना था। राजन के पिता की मृत्यु के बाद सुधा अक्सर राजन के घर आ जाती और मां की बहुत सेवा करती थी। राजन को यह बात मां से पता चली थी। 

        उसने सुधा को अपनी संगनी बनाने के उद्देश्य से एक प्रेम पत्र लिखा और एक किताब में रखकर सुधा तक पहुँचा दिया। राजन ने पत्र में लिखा कि "सुधा! तुम एक बहुत अच्छी लड़की हो मां अक्सर तुम्हारी चर्चा मुझसे करती है मेरी अनुपस्थिति में तुम घर आकर मां की सेवा करती हो। इससे मेरी नजर में तुम्हारा सम्मान और बढ़ जाता है। यदि तुम्हारा मेरी संगिनी बनना स्वीकार हो तो मेरे ट्रैनिंग को जाने से पूर्व उत्तर दे देना।....तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा...राजन!"। सुधा उस पत्र को पढ़कर बहुत खुश हुई। और खुद की सहमति देते हुए एक पत्र लिखा कि "राजन! मैं भी बचपन से तुम्हारा बहुत सम्मान करती हूँ मैं कभी भी अपनी बात तुमसे नही कह सकी। आज तुम्हारा प्रेम पत्र पाकर बहुत खुश हूँ मुझे तुम्हारे द्वारा इजहार का इंतजार था आज से... तुम्हारी और तुम्हारी अपनी....सुधा!" यह लिख ही रही थी की बिल्ली ने रसोई में दूध गिरा दिया। जल्दी-जल्दी में प्रेमपत्र राजन की किताब में न रख सुधा ने अपने स्टूडेंट प्रवीण की किताब में रख दिया। राजन, सुधा की असहमति समझ ट्रैनिंग को चला गया। इधर प्रवीण ने सारी कॉलोनी में सुधा और राजन की प्रेम कहानी के चर्चे कर दिये। आनन-फानन में माता-पिता ने सुधा की शादी एक वकील से कर दी। राजन को इसकी भनक तक न लगी।

            Part-2

"हेलो! हाँ कहा हो कौशल?" राजन ने गाड़ी में ही फोन लगते हुए मित्र से पूछा। " मैं तो मोदीनगर में हूँ और तू बता कहाँ है आज-कल" कौशल ने उत्तर देते हुए राजन से पूछा। "मैं लखनऊ हूँ आजकल एक जरूरी काम से नोयडा निकल रहा सोचा तुझसे मिलता चलूँ"  राजन ने प्रतिउत्तर दिया। "आ जा मेरे भाई! बहुत दिनों में मिलेंगे आज बैठते है सुनील भी लाल कुर्ती इंचार्ज है और नरेश भी कोतवाली सिटी देख रहा है।" कौशल ने राजन को बताया। चारों मित्रों ने कांफ्रेंस पर बात हुई और एक वार रेस्टोरेंट पर मिलना तय हुआ। सभी तय समय पर प्रस्तावित रेस्टोरेंट में पहुंच गए। ड्रिंक आर्डर किया गया और बहुत जल्दी ऑर्डर आ भी गया।

         सभी मित्र पीने लगे गप-शप चलने लगी कुछ ट्रेनिग की यादें कुछ साथ बचपन में बिताए पल। तभी एक पागल खाना माँगते हुए सामने से गुजरा। "अरे! सुन राजन वह सामने जो पागल दिखाई दे रहा है पता है कौन है?" सामने के फुटपाथ की तरफ इशारा करते हुए वार में बैठे कौशल ने कहा। "मुझे क्या पता" राजन ने लड़खड़ाती जुबान में कहा। कौशल ने फिर कहा कि तुम्हारे क्वाटर के सामने दूसरी मंजिल पर सुधा नाम की मैडम रहती थी जो छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी, उनका भाई विभोर है। इतना सुनते ही राजन का सारा नशा उतर गया। वह टेबल से उठा और ब्रेड-टोस्ट और लेकर उसके पास पहुँचा। किंतु उसे कुछ भी समझ न थी चाय और टोस्ट खाकर वह आगे बढ़ गया। राजन कुछ देर अवाक खड़े रहकर वापस आ गया। अब उसे कौशल से सुधा और विभोर के बारे में जानने की बहुत उत्सुकता थी। उसने कौशल के पास जाकर अपने मन की उत्सुकता बयाँ कर दी। राजन की उत्सुकता देख कौशल ने बताया की ये विभोर है सुधा का भाई! तुझे तो पता है ये पढ़ने में बहुत तेज था ही सिविल सेवा परीक्षा के इंटरव्यू में फैल होते ही इसका दिमाग चल गया और आजतक इसी हालत में है "और सुधा!" कौशल को बीच में रोकते हुए राजन ने कहा। तब कौशल ने कहा की प्रवीण को सुधा मैडम के बारे में पता होगा क्योंकि वही ट्यूशन में उनका प्रिय शिष्य था। हो सकता आज भी उनके सम्पर्क में हो। "क्या तेरे पास उसका नम्बर है?" राजन ने कौशल को पुनः बीच में टोकते हुए कहा। कौशल ने कॉलेज के जूनियर से प्रवीण का नम्बर लेकर राजन को दिया। राजन ने बिना देरी किये प्रवीण का नम्बर लगाया और कहा कि प्रवीण मैं 'राजन भैया' बोल रहा हूँ। सुधा मैडम के सामने बाले घर में रहता था। प्रवीण ने अभिवादन व्यक्त करते कुशलता पूछ ली। "प्रवीण! क्या तुम अभी मेरठ आ सकते हो।" राजन ने पूछा। "भैया! रात बहुत हो चुकी है यदि कोई साथ को मिल जाए तो आ सकता हूँ" प्रवीण ने कहा। "विकास लोनी में है मैं उससे कहता हूँ वह तुम्हें लेकर आएगा" इतना कहकर राजन ने फोन काट दिया। 

       राजन के कहने पर विकास अपने साथ प्रवीण को लेकर मित्रों के पास पहुँचा। "प्रवीण! ये बताओ की सुधा मैडम कैसी है और तुम्हारे पास उनका कोई सम्पर्क सूत्र है क्या?" उत्सुकता दिखाते हुए राजन ने प्रवीण से पूछा। प्रवीण ने बताया की मैडम की शादी बरेली में हुई थी.."क्या..क्या हुआ फिर" राजन ने बीच में टोकते हुआ पूछा। एक दुर्घटना में उनके पति गुजर गए और अपने 8 साल के बेटे को साथ लेकर एकांकी जीवन गुजार रही है। "प्रवीण!क्या तुम मुझे दिखा सकते हो?" पुनः राजन ने कहा। "वैसे तो अब वह किसी से मिलती नही है परन्तु प्रयास अवश्य करेंगे" प्रवीण में कहा। पार्टी खत्म हुई दोस्तों से मिलने की खुशी उत्सुकता ने छीन ली थी। 

       रात की योजना के अनुसार अगले दिन बरेली पहुँच गये बहुत देर तक राजेंद्र नगर की गलियों में घूमते रहे। कोई पूछता तो बता देते कि किराये पर मकान लेना है। अगली ही गली में कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। प्रवीण और राजन को समय बिताने की जगह न थी इसलिए इन्ही बच्चों के साथ क्रिकेट खेलने लगे। उन्ही बच्चों में एक बच्चा, जो कि सुधा का था। प्रवीण ने उसे पहचान लिया और राजन को बताया कि जो ऑफ़साइड पर फील्डिंग कर रहा है वही सुधा मैडम का बेटा है। उसे देखकर तो मानों राजन की आँखों में बत्सल्य उमड़ पड़ा हो। कभी एक टक तो कभी नजरें चुराकर राजन उसे देखे जा रहा था ताकि उसे किसी भी तरह का शक न हो। राजन उस बच्चे से दोस्ती बढ़ाने लगा क्योंकि सुधा तक पहुचने का एकमात्र साधन था। खेल खत्म हुआ सभी अपने-अपने घर जाने लगे। राजन और प्रवीण उस बच्चे के पीछे-पीछे चलने लगे और उसके घर तक पहुँच गये। बच्चे ने घंटी बजाई एक अधेड़ सी महिला बाहर आयी राजन ने तुरंत पूछा "मैम! आपके घर कमरा मिलेगा किराये पर"। इतना सुनते ही महिला ने बच्चे को गेट के अंदर लिया और बिना कुछ कहे तेजी से गेट बंद कर दिया। शायद वह राजन को पहचान गयी होगी।

        एक मोबाइल नम्बर जो सुधा के बेटे से राजन ने प्राप्त किया था अलग-अलग नम्बरों से मिलाया किंतु "हैलो" से अधिक कुछ सुन न सका। दस वर्षों से अधिक बीत गये मगर सुधा की अमिट छाप दिमाग से ओझल नही होती है इसी समयांतराल में पत्नी की बीमारी को देखते हुए दोनों बेटियों की शादी कर दी। बेटा नही होने के कारण दोनों को एक-एक मकान भी दे दिया था केंसर की बीमारी हो जाने के कारण राजन ने पत्नी को खो भी दिया था। इधर सुधा के बेटे ने लव लव मैरिज कर ली थी। उसकी पत्नी बहुत तेज निकली शादी होने के कुछ माह पश्चात ही उसने सुधा को घर से निकाल दिया था। 

        नवम्बर का महीना था राजन, प्रवीण को अपने साथ लेकर अपनी पत्नी की अस्थियां विसर्जित करने हरिद्वार आया था। अस्थियां विसर्जन के पश्चात घाट पर बैठे गरीबों को दान कर रहा था। उनमें से एक भिखारिन अन्य भिखारियों की तरह नही मांग रही थी और राजन से अपनी नजरें बचा रही थी। राजन को वह आंखे कुछ पहचानी सी लगी। वह प्रवीण से कुछ कह पाता तब तक प्रवीण खुद ही कह उठा "मैम! आप यहाँ! इस हालात में कैसे"  कहते ही प्रवीण की आंखों से आँसुओ के झरने फूट पड़े। वह सोच रहा था की सुधा मैम की ये हालत आज मेरी बजह से है। राजन ने सुधा को बिना कुछ कहे अपने बाजुओं में भर लिया मानों वर्षों के प्यासे पवित्र सरिता मिल गयी हो और उम्र भर उसी घाट पर सुधा के साथ रहने का प्रण कर लिया।

         राजन ने प्रवीण को यह कहते हुए घर की चाभियां थमा दी कि "अब मेरे पास खोने-पाने को कुछ नही है यही मेरी मंजिल थी जो मुझे अब मिल चुकी है।" आज भी सुधा और राजन आंनदमयी जीवन की चिलम पीते घाट पर देखे जा सकते है। 

✍️दुष्यंत 'बाबा', मुरादाबाद


गुरुवार, 3 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की कहानी----- मन का भूत

     


बसंतपुर गांव में राजन नाम का एक बहुत ही होनहार बच्चा रहता था। दिमाग से बहुत तेज परंतु पढ़ाई में उसकी निरंतरता न थी। उसे प्रायः गांव में होने बाले कार्यक्रमों जैसे-आल्हा, ढोला, निधना, रसिया, नौटंकी इत्यादि देखने का बहुत शौक  था। परिवार शांतिकुंज से जुड़ा होने के नाते अनुशासित और संस्कारी था इसलिए कभी भी रात्रि में घर से बाहर जाने की छूट न थी। 

        इसी घुटन से मुक्ति पाने के लिए उसने ट्यूबवेल का भार स्वयं के कन्धों पर ले लिया। अब खाना खाने के बाद घर से निकलना उसके लिए सहज हो गया था। रात्रि में बिजली आने के बाद ट्यूबवेल चला देना और खेत की बहुत सी क्यारियों में एक साथ पानी कर रात भर गांव में दोस्तों के साथ मस्ती करना उसके का कार्यक्रम में सम्मिलित हो गया था। 

         अक्टूबर की रात्रि गुरुवार का दिन था। गांव में एक बारात आयी थी। दोस्तों से दिन में ही इसकी सूचना मिलने पर बारात देखने का कार्यक्रम तय हो गया था। 9 बजते ही मोटर स्टार्ट कर गांव की तरफ प्रस्थान कर दिया, मोटर की कोई चिंता न थी क्योंकि फ़्यूजवार बांधकर स्टार्टर का हत्था बांध दिया था सो मोटर बिजली आने-जाने पर स्वचलित की भाँति कार्य करता था। गांव पहुँचने पर बारात में पूरी मस्ती की। कार्यक्रम समाप्त होते-होते रात्रि एक बजे का समय हो गया। 

        राजन जब गांव से ट्यूबवेल की ओर जा रहा था तब बहुत तेज हवा चल रही थी सिर पर लोही बंधी थी और हाथ में लगभग तीन फुट का डंडा था ट्यूबवेल से कुछ पहले ही उसे बहुत तेज सांय-सांय की आवाज सुनाई के साथ कोई आकृति हिलती नज़र पड़ी। वैसे तो राजन बहुत बहादुर था जंगल में रहकर हिम्मत कुछ और बढ़ गयी थी, किन्तु उस आवाज को सुनकर उसे कुछ पुरानी बातें याद आने लगी, क्योंकि तीन वर्ष पूर्व उसी स्थान के पास बुद्धा की चाची की मृत्यु हो जाने पर अंतिम क्रिया हुई थी जिसकी चिता की आग के सहारे राजन ने हाथ सेंककर ठंड से खुद को बचाया था। वैसे भी गुरुवार को भूतों के बारात निकलने की कहानियाँ बाबा से खूब सुनी थी अब उसके मन में बुद्धा की चाची का भूत दिखाई देने लगा।

         उसने पीछे मुड़ना उचित समझा, वह जैसे ही पीछे मुड़ा तो आवाज और भी ऐसे लगने लगी कि कोई पीछे-पीछे ही आ रहा हो। जैसे-तैसे हिम्मत जुटाकर पीछे मुड़ा, उसे कुछ भी दिखाई नही दिया। राजन का पसीना सिर से पैरो तक पहुँच चुका था। उसने अपनी मृत्यु को तय समझ, उससे मुकाबला करने की ठान ली और पुनः कदम-दर-कदम उस हिलती हुई आकृति और आवाज की ओर चलने लगा। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता आवाज तेज हो रही थी उसने आकृति के पास पहुंच हिम्मत जुटाकर आंखे बंद करके आवाज के स्थान पर दोंनो हाथों से डंडे का प्रहार किया। प्रहार के बाद उसे स्वयं पर हँसी आ रही थी और मन में खेद भी। क्योंकि वह भूत नही, चिता के स्थान पर उगा हुआ पतेल का झूंड था अब उसके मन का भूत निकल चुका था।

✍️ दुष्यंत 'बाबा' , पुलिस लाइन, मुरादाबाद

मो0-9758000057