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रविवार, 10 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राशिद मुरादाबादी की ग़ज़ल ------- दुनिया में हमको जीना सिखाती है माँ,


ममता और प्यार इस तरह दिखाती है माँ,
तड़प कर बच्चों को सीने से लगाती है माँ,

ख़ुद सोती है कांटों भरी सेज पर ख़ुशी से,
बच्चों को मख़मल के बिस्तर पे सुलाती है माँ,

गर्दिश-ए-ज़िन्दगी के सफ़र की तेज़ धूप में,
सब्र-ओ-सुकूँ का ठंडा साया बन जाती है माँ,

हमारे वजूद पर लिखके ज़िन्दगी के उसूल,
दुनिया में हमको जीना सिखाती है माँ,

आती हैं जब भी मुश्किलें उसके बच्चों पर,
चट्टान सी बनकर सामने खड़ी हो जाती है माँ,

पालती है नौ महीने अपनी कोख में हमें,
इसीलियें ईश्वर का रूप कहलाती है माँ

माँ की कमी का एहसास कोई पूँछे उनसे,
जिनकी दुनिया से जल्दी चली जाती है माँ,

*राशिद मुरादाबादी