रविवार, 31 जुलाई 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा के पांच दोहे ....


श्रावण शुक्ला तीज को, देख अनोखे रंग।

झूलें झूला झूम के, सब सखियन के संग।।


सज-धज कर तैयार हो,चलीं मायके बाग।

हर शाखा झूला पड़े, गावें न‌ए-न‌ए राग।।


गौरी का पूजन किया, और पकाई खीर।

मन खुश इतना तीज पर, बची कोई न पीर।


महावर एड़ी धरी, पहनीं चूड़ी हाथ।

मेला देखन वो चली, बटुआ लेकर साथ।।


हर हाथ मेंहदी रची, खा मीठे पकवान।

और खुशी से झूमते, बड़े-बड़े धनवान।।


✍️ अतुल कुमार शर्मा

सम्भल

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मण्डल के जनपद अमरोहा निवासी मुजाहिद चौधरी की रचना -----


मेरे घर के बाहर सावन  है । 

मेरे मन के अंदर सावन है ।। 

उस नील गगन पर सावन है । 

इस धरा पै छाया सावन है ।।

कुछ प्रसन्न मेरा चित्त है ।

कुछ आनंदित मेरा मन है ।।

है आंखों से नदिया जारी ।

मेरी आंखों में भी सावन है ।।

रिमझिम रिमझिम सी बूंदे हैं ।

मनमोहक है मनभावन है ।।

है अमृत बारिश का पानी । 

ये पानी बहुत ही पावन है ।। 

हर ओर है हरियाली छाई ।

पौधों पर छाया यौवन है ।।

फूलों ने खुशबू छोड़ी है ।

हर ओर सुगंधित उपवन है ।।

लेकिन यह मेरा दुश्मन है । 

मुझे मां की याद दिलाता है ।

मेरा माज़ी याद दिलाता है ।।

बचपन की याद दिलाता है । 

वह कच्चे घर सच्चे रिश्ते ।

छप्पर की याद दिलाता है ।।

वह घर गिरने की आवाजें । 

उस शोर की याद दिलाता है ।।

कोई हिंदू था ना मुस्लिम था । 

उस दौर की याद दिलाता है।। 

सब हाथ मदद को उठते थे । 

सारे दुख मिल कर सहते थे ।।

ना कोई किसी का दुश्मन था । 

ऐसे मिलजुल कर रहते थे ।।

यह सावन बहुत ही ज़ालिम है।

मुझे यौवन याद दिलाता है ।।

जब गांव की गोरी पनघट पर ।

पानी लेने को जाती थी ।। 

हम घंटों तकते रहते थे ।

एक आस में जीते रहते थे ।। 

मन में कोई विद्वेष नहीं । 

अब स्मृति कुछ शेष नहीं ।

मुझ में भी कोई अवशेष नहीं ।।

मैं तो बस एक सूखा तिनका हूं । 

क्या जानू कब उड़ जाऊंगा ।

कब पवन उड़ा ले जाएगी ।। 

कब सबसे जुदा हो जाऊंगा ।

कब मिट्टी में मिल जाऊंगा ।। 

लेकिन निश्चिंत मेरा मन है ।

जब जब भी सावन आएगा ।

तुम्हें मेरी याद दिलाएगा ।।

मैं याद बहुत फिर आऊंगा ।

मैं आंखों में बस जाऊंगा ।।

सावन में बहुत रुलाऊंगा ।

जीना मुश्किल कर जाऊंगा ।। 

है आज मुजाहिद का वादा । 

अपने पद चिन्ह बनाऊंगा ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी

हसनपुर, अमरोहा

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार का गीत ---


जब-जब बादल जल बरसाए 

जीवन में नव रस भर जाए 


पेड़ों से लिपटी लतिकाएँ ,

आलिंगन कर प्रेम बढ़ाएँ ।

दीखे नहीं खेत तब खाली ,

चहुँ-दिसि ही दीखे हरियाली ।

हरियाली हर मन को भाए,।।


रंग-बिरंगी चिड़ियाँ बोलें ,

कानों में मिश्री -सी घोलें।

आँखें हिरनी का शिशु खोले,

और हवा पुरवैया डोले।

नाचे मोर पपीहा गाए।।


खुश हो ज्वार-बाजरा झूमें,

बढ़कर आसमान को चूमें।

जब पीती है जी भर पानी ,

खड़ी ईख को मिले जवानी ,

हरा धान भीगे मुस्काए।।


शुभ होता बादल का आना ,

रिम-झिम जल बरसाना,

पके आम पक जाए निबोरी,

तब झूले पर झूले गोरी ,

हर मन ख़ुशियों से भर जाए।।


✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'

1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला,

मुरादाबाद  244103

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यन्त बाबा के पांच दोहे ....…



मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल, डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ पूनम चौहान, कृष्ण कुमार पाठक, डॉ भूपेंद्र कुमार, दीपिका महेश्वरी सुमन, प्रो ममता सिंह, प्रीति चौधरी और अशोक विश्नोई की हरियाली तीज पर रचनाएं। ये सभी रचनाएं धामपुर (जनपद बिजनौर) से डॉ अनिल कुमार शर्मा अनिल के संपादन में प्रकाशित ई पत्रिका ’अनिल अभिव्यक्ति’ के हरियाली तीज विशेषांक (अंक 113) में प्रकाशित हुई है











शनिवार, 30 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह के पांच दोहे


सारंगों का साथ ले ,आया सावन मास

झूम उठे तरुवर हरे, करते पल्लव रास ।


हरी भरी धरती सजी, नीर बना उपहार

बूंदें रिमझिम गा रही ,मनहु राग मल्हार ।


दादर धुन में हैं कहें, करो न घन विश्राम ।

जब तक भरें न पोखरे, बरसो तुम अविराम ।


सखी सब हैं झूल रहीं , भाभी गायें गीत ।

मोहे मन बूँदें बड़ी,आ जाओ मनमीत ।


अमुआ डाली पर सजी, सुन्दर रेशम डोर 

झूला झूलें बेटियाँ , लुभा रहीं मन मोर ।


✍️ डा. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी के पांच दोहे .....


देखो ये धरती-गगन, मना रहे हैं तीज।

 बढ़ा रहे हैं प्रीति को , इस सावन में भीज।।

   

  झूला झूलें सब सखी , गायें सावन गीत ।

   बदरा अपने संग तू  ,   ले आ मेरा मीत ।।


  खनके चूडी हाथ में , हिना हुई है लाल।

  मिल जायेंगे मीत भी ,  सखी मुझे इस साल ।।


   कूके कोयल आम पर , गाये मीठे गान।

   झूले अब दिखते नहीं , नयी सदी की आन ।।


  बिन्दी ,काजल ,चूडियांँ , लाओ सब सिंगार ।

  दर्पण झाँकूँ मैं सजूँ ,तीजों के रविवार ।।


✍️  प्रीति चौधरी

  गजरौला,अमरोहा

 उत्तर प्रदेश, भारत



मुरादाबाद मंडल के कुराकावली (जनपद संभल ) निवासी साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के ग्यारह दोहे .....


तपते सूरज दूर हट, बन मत रिश्तेदार।

सावन आया द्वार पर, ठंडी लिए फुहार।। 1।।


सावन बाबू साल भर, कहाँ रहे दिन रात।

लुटे-पिटे से लग रहे, साथ नहीं बरसात।। 2।।


पागल बदली खूब रह, इसके-उसके साथ।

थक जाए तब थामना, मुझ सावन का हाथ।। 3।।


सावन तू तो आलसी, करे सिर्फ आराम।

मुझ बदली को कर दिया, बेमतलब बदनाम।। 4।।


सुन ले बादल काम की, एक हमारी बात।

अगर बरसना, तो बरस, मत कर काली रात।। 5।।


पोखर में पानी नहीं,गुम दादुर के गान।

सावन अब तू ही बता, क्या तेरी पहचान।। 6।।


सुनरी बदली बावली,जा कर अपना काम।

बिन सावन किस काम की,उससे तेरा नाम।। 7।।


चोली चूनर झूलकर,मना रही है तीज।

खुश हो झोंटे दे रहे,तहमद और कमीज।। 8।।


सावन के रंग में रंगी,भीगी मस्त बहार।

बनी ठनी पुरवा दुल्हन,गाती गीत मल्हार।। 9।।


झोंटे खाती झूल के,यादें थामें हाथ।

पटरी पर बैठी मगर,मन साजन के साथ।। 10।।


प्यार भरी हर बात में,तानों की बौछार।

रूठे सावन के लिए,तीजो का श्रृंगार।।11 ।।


✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्

कुरकावली, संभल 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह का नवगीत -----कठिन बहुत तुरपाई


उलझ न पाएं 'मैं' या 'तुम' में 

सम्बन्धों के तार।।


अपनेपन की चादर ताने,

बैठे कुछ अनजाने।

ऐसे में मुश्किल है कैसे

उनको फिर पहचाने।

बैठ बगल में छुप‌ कर करते,

जो मौके से वार।।


उधड़े रिश्तों की होती है,

कठिन बहुत तुरपाई।

जिसको अब तक समझा अपना

सनम वही हरजाई।

चंदन में लिपटे विषधर से

संभव कैसे प्यार।।


जिस माली ने पाला पोसा

उसने ही है तोड़ा।

साथ सदा देने वालों ने

बीच भंवर में छोड़ा।

ऐसे में निश्चित है अपनी

अपनों से ही हार।।


✍️ प्रो ममता सिंह

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत


शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष हुल्लड़ मुरादाबादी जी के 43 दोहे


आत्म मार्ग ही श्रेष्ठ है, सहज मार्ग हर्षाय 

भक्ति दिखाता रास्ता, भक्ति पार लगाय ।


समय करे सो ठीक है, सहले देर अबेर 

साधो साधो समय को, समय समय का फेर ।


काल चक्र तो चल रहा, कछुए वाली चाल 

तू बुद्ध था बुद्ध बन, तोड़ जाल जंजाल ।


राजकमल संसार में, कर ले खुद से युद्ध 

शर्त एक ही है मेरी, रहे आत्मा शुद्ध ।


सिर्फ सत्य ही सत्य है, सत्य ओम का सार 

जीवन एक सराय है, रहना है दिन चार ।


बहुत सफलता बुरी है, भेजा करे खराब 

जो कांटों में खिला है, असली वही गुलाव |


देरी कर दो क्रोध में, टल जाता है क्रोध 

खुद अपनी ही आग में, जल जाता है क्रोध ।


बात बात में बात से, जग जाता है क्रोध 

मन बैरागी मौन हो, भग जाता है क्रोध ।


राम राज स्वीकार है, सत्य राज मंजूर 

कर्म किये जा कृष्ण सा, बन अशोक सा शूर ।


शब्द स्वर्ण है शब्द ही, हीरा पन्ना लाल

शब्द कोयला खान है, और शब्द है काल । 


शतरंजी चौपड़ नहीं, खेल जान का खेल

जीत गये तो विक्रमी, हार गये तो खेल ।


सौ बातों की बात सुन, एक अरब की ऐक 

आनंदित मन पा गया, जिसने रखा विवेक ।


शक संशय को पालकर, व्यर्थ जलाये हाड़ 

भ्रम के मृत चूहे मिले, खोदे बहुत पहाड़


मिटते संशय आत्मा, फलदायक, विश्वाश 

कैसी भी हो स्थिति, होना नहीं निराश ।


जो रावण है मरेगा, राम हृदय पुलकाय 

हिरणाकश्यप शकुनि मामा, अपनी करनी पाय ।


तुलना मत कर किसी से, तुलना करना पाप 

संस्कार सबके अलग अलग सत्य का जाप ।


अति कल्पना रोग है, कह लो इसे बुखार 

अति भावुकता साथ हो. पागल पन साकार ।


कवि संवेदन शील है, कवि में दया अपार 

कवियों ने ही किया है, अश्रु कणों से प्यार |


जब तक मन में अहम है, गायब है भगवान 

जिसने जाना स्वयं को वह खुद है भगवान ।


दोष तो होगा किसी का, कौन यहाँ निरदोष

 जगा रहा था जगत को, खुद ग़म से बेहोश ।


घुटन, दुःख वा वेदना, आँसू के त्यौहार 

गंगा, जमना के बिना आंखें हैं बेकार ।


वर्तमान में जी मना, सच है केवल आज 

जो जीते हैं आज में, उनके सर पर ताज ।


बिना पीड़ा के छन्द क्यों, लिखते हो बेकार 

पहले भोगो फिर लिखो, काव्य कर्म साकार ।


हर मानव अर्जुन यहाँ, और आत्मा कृष्ण 

आत्म ज्ञान से हल हुए मन के सारे प्रश्न ।


मुख्य चीज है आत्मा, उसके बाद शरीर 

केवल सुख पर मर मिटे, वो नर बड़े शरीर ।


भाई भी भंगी भये, साफ किया आकाश

 ऐसी झाड़ू मार दी. मुझको मिला प्रकाश ।


दानवता के नयन ने, अश्रु किये आबाद 

मां आंचल से पोंछकर, देती आशिरवाद ।


बिना नाम ओ अर्थ के, रचना भी है व्यर्थ 

यश आदर बिन धन स्वयं, खो देता है अर्थ ।


जनम-जनम से चल रही, लीला तेरी अनन्त 

तू ही बनता इन्दिरा, तू ही है बेअन्त ।


छली प्रपंची कौन था, कौन राम का दास 

समय स्वयं निर्णय करे, तू क्यों होत उदास ।


ज्योतिष भी विद्या बड़ी, मत कहना बकवास 

जो अच्छा है ग्रहण कर मत करना विश्वास ।


शनि का नीलम रत्न हैं, माणिक सूरज रत्न 

मूंगा मंगल के लिये, पन्ना है बुध रत्न |


जिसको जो सुखकर लगे, और संवारे काज 

रत्नों में सबसे बड़ा, रत्न कहो पुखराज़ |


रत्नों में पुखराज ही, नहीं करे नुकसान 

कम हो चाहे अधिक हो, निश्चित है कल्यान ।


हीरे में भी गुण बहुत, अगर रहे अनुकूल 

रत्न परख कर पहनिये, ना हो उसमें भूल ।


रत्न पहनने से अगर, बढ़ता दुख का भार 

तुरत उतारो रत्न को, छोड़ो सोच विचार ।


कलाकार हो जायेगा, बली शुक्र के साथ

 ले ले करुणा शनि से बने हृदय का नाथ ।


उच्च गुरू हो, शुक्र भी, और केन्द्र में बुद्ध

 विश्व प्रसिद्धि के लिये, सूर्य उच्च का शुद्ध


कुजवत केतू जान ले, शनि राहू हैं ऐक

 सूर्य मेष का लग्न में, करवाता अभिषेक |


वृहस्पति भी मुख्य है, सूर्य बुद्ध भी खास 

अगर कलंकित भावना, फिर क्या रहता पास ।


यदि उच्च का गुरू हो, मंगल चंदर साथ

 बुध दसवें हो मेष का, बने विश्व का नाथ ।


राहू केतू पूँछ हैं, मंगल है सरदार 

कर छाया से दोस्ती, होगा बेड़ा पार ।


सूर्य मेष में उच्च का, शुक्र कुम्भ में होय 

यदि कन्या का बुद्ध हो, कवि रवि, चिन्तक होय |


::::::प्रस्तुति:::::;;

 

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट 

 मुरादाबाद 244001 

 उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ.मक्खन मुरादाबादी के आठ दोहे ....


सत्ता में जब तक रहे,लगा सभी कुछ ठीक।

अब सत्ता को कोसते,स्वयं भटककर लीक।। 1।।


सत्ता जब-जब पास थी,जिनके भी थे ठाठ।

खिसकी तो भाए उन्हें, मन्दिर पूजा पाठ।। 2।।


लंका जैसे जो हुए,कवि चिंतक विद्वान।

लंका होता दीखता,उनको हिन्दुस्तान।। 3।।


खेलों और चुनाव में,जीत मिले या हार।

नहीं हारना चाहिए,खेल भाव संसार।। 4।।


रह सत्ता में यदि किया,लूटपाट का भोग।

मन में उठता देखिए,रोज़ नया फिर सोग।। 5।


पान फूल जो भी चढ़े,जब थे सत्ताधीश।

बच्चों को भी थे मिले,कहाँ गए आशीष।। 6।।


कुर्सी जब थी पास में,बने बहुत तब फैंस।

चश्में का पर आपके,धुंधल गया था लैंस।। 7।


पहले तो लगता रहा,पानी है सब रेत।

मन मसोसना व्यर्थ है,बचा नहीं जब खेत।। 8।।


✍️ डॉ.मक्खन मुरादाबादी

      झ-28, नवीन नगर

      काँठ रोड, मुरादाबाद -244001

      उत्तर प्रदेश, भारत

      मोबाइल:9319086769

गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का एकांकी .... शहीदे आजम भगत सिंह । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहा ।


पात्र परिचय


1.भगतसिंह -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र  23 वर्ष

2.सुखदेव -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 24 वर्ष

3.राजगुरु -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 23 वर्ष

4.जेलर

5.अंग्रेज अफसर

6.छतरसिंह-कारिंदा

7.सरदार किशन सिंह-भगत सिंह के पिता

8.विद्यावती कौर-भगत सिंह की मां

9.कुलतार-भगत सिंह का छोटा भाई

सूत्रधार - सांडर्स की हत्या एवं असेंबली में बम विस्फोट के अपराध में दफा 121,दफा 302 के तहत फांसी की सजा! सजायाफ्ता कैदी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु लाहौर की जेल में बंद हैं । पूरे देश में इन को दी जाने वाली फांसी की सज़ा के विरोध में कोहराम मचा हुआ है जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ी हुई है।

             दृश्य-1-

(लाहौर जेल का गेट जहां पर भगत सिंह के माता-पिता और छोटा भाई मिलाई करने आते हैं)

कुलतार सिंह- सतश्रीअकाल! प्राह जी

(भगत सिंह कुलतार सिंह के सर पर हाथ फेरता है)

भगत सिंह- बाबूजी आपकी बहुत याद आ रही थी!

सरदार किशन सिंह- क्यों? क्या हुआ पुत्तर?

भगत सिंह-मैंने जो ढेर सारी चिट्टियां आपको लिखीं उनमें से कुछ ने आपका दिल दुखाया होगा!मुझे माफ़ कर देना!

सरदार किशन सिंह- ओए ऐसा मत कह पुत्तर तेरे जाने के बाद वो चिट्ठियां तो मेरे पास कीमती खजाने की तरह हैं तेरे जाने के बाद उन्हीं के सहारे तो जिऊंगा मैं ।

(यह सुनकर छोटा भाई कुलतार रोने लगता है!)

भगत सिंह- ओए कुलतार तू रो रहा है देख मैं तो बेटे का  फर्ज निभा नहीं पाया ,मेरे जाने के बाद तूने ही तो बेटे का फर्ज निभाना है मां बाबूजी की सेवा करनी है तुझे हौसला रखना है। मुसीबतों से घबराना मत!

कुलतार सिंह- जी प्राह जी।

भगत सिंह- मां नहीं आई?

सरदार किशन सिंह- वह बाहर खड़ी है मैं जाऊंगा तो आएगी पर अभी तो मेरा ही मन नहीं भरा...

(दोनों चले जाते हैं मां मिलाई करने आती है)

विद्यावती कौर -क्या हुआ बेटा ?आज तू बड़ा उदास लग रहा है ?.

भगत सिंह- कुलतार की आंखों में आसूं देख कर बड़ा दुख हुआ मां एक कसक रह गयी!

विद्यावती कौर -छोटा है समझता नहीं कि उसका वीर जी कितने ऊंचे मकसद के लिए कुर्बानी दे रहा है!(निस्वास छोड़कर )बेटा मरना तो एक दिन हम सबको ही है लेकिन मौत ऐसी हो जिसे सब याद  रखें!

भगत सिंह- लेकिन मां, एक कसक रह गयी! दिल में जो जज्वात थे उसका हजारवां हिस्सा भी मैं देश और इंसानियत के लिए पूरा नहीं कर पाया!

विद्यावती कौर -सब कह रहें कि ये हमारी आखिरी मुलाकात है, ...पर आज तो ३ मार्चं ही है अभी तो बहुत दिन पड़े हैं।....आज के बाद मैं तुझे कभी नहीं देखूंगी?

भगत सिंह- मैं दुबारा जनम लूंगा मां! अंग्रेजों के बाद जो उनकी कुर्सियों पर बैठेंगे वह भी  हमारे मुल्क को बहुत तकलीफ़ पहुंचायेंगे मैं दुबारा जन्म लूंगा  मां ! मैं वापस आऊंगा! 

विद्यावती कौर- लेकिन, मैं तुझे  पहचांनुगी कैसे?

भगत सिंह- तेरे बेटे के गले पर एक निशान होगा मां तू पहचान लेगी!

विद्यावती कौर -जाने से पहले मैं कुछ सुनना चाहती हूं! ... भगत सिंह : इंकलाब जिंदाबाद! इंकलाब जिंदाबाद!!... इंकलाब जिंदाबाद!!!

(भगतसिंह की मां चली जाती है

             दृश्य-2

     (लाहौर जेल की  कालकोठरी, जहां भगत सिंह,सुखदेव, और राजगुरु एक साथ बैठे हुए हैं।)

राजगुरु-यार भगत ! मां मिलकर गई थी बहुत रो रही थी मैंने कहा शहीद की मां को रोना नहीं चाहिए पर मां का कलेजा कब मानता है!....

भगत सिंह-

दीदार करने को,

 ये दिल बेकरार है"

"ऐ मौत जल्दी आ! ,

हमें तेरा इन्तजार है।

हमारा निर्णय सही है हमें अंग्रजों से फांसी से माफी नहीं चाहिए हमारा देश तभी  जागेगा जब हम हंसते हंसते फांसी पर झूल जाएंगे!

सुखदेव--सही कहा भाई फांसी से स्वतंत्रता के लिए देश में बड़ा संग्राम छिड़ जाएगा और इस प्रकार हमारी भारत माता को इन फिरंगियों  से आजादी मिल जाएगी।

(तीनों मिलकर गाते हैं--)

"वक्त आने दे बता देंगे ,

तुझे ए आसमां ! 

हम अभी से क्या बताएं 

क्या हमारे दिल में है! 

सरफ़रोशी की तमन्ना ,

अब हमारे दिल में है।......"

दृश्य 3

 23 मार्च शाम का समय

(तभी छतर सिंह आता है और गीता का गुटका भगत सिंह को देता है )

छतर सिंह--लो सरदार जी इसे पढ़ लो! परमात्मा को याद करो!

भगत सिंह---अरे छतरसिंह जी परमात्मा तो हमारे दिल में है अब इसे लेकर क्या करेंगे  जब वह हमारे अंदर है तो उसे क्या याद करना"? "आज क्या तारीख है?"

छतर सिंह--"23 मार्च!"

भगत सिंह--"कल क्या तारीख है?"

छतर सिंह-"अरे बेटा ! कल तो  बहुत दूर है,पर तू घबरा मत सब ठीक हो जायेगा,।

भगत सिंह -फिर छतर सिंह जी आप तो इतने सालों से जेल में हो आपने तो न जाने कितने लोगों को फांसी चढ़ते हुए देखा है, आप क्यों घबरा रहे हो ? आपके सामने मेरे जैसे जाने कितने आए कितने गए?

छतर सिंह - "नहीं बेटा ! तेरे जैसा न कोई आया न कोई आएगा !"

(तभी जेल में अंग्रेज ऑफिसर का प्रवेश होता है...)

अंग्रेज अफसर -(जेलर से) "भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की आज ही फांसी होनी है। फांसी की तैयारी करो! अंग्रेजी सरकार का हुक्म है!"

जेलर--"मगर सर फांसी तो कल 24 मार्च को होनी थी ऐसा क्यों किया जा रहा है?"

अंग्रेज अफसर-"आज पूरे देश के लोग रात को सोएंगे नहीं सुबह होते होते जेल के फाटक के बाहर इकट्ठे हो जाएंगे आन्दोलन करेंगे और भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव की अर्थी के साथ जुलूस निकालेंगे  अंग्रेजी गोरमेंट इस बात के लिए तैयार नहीं है! इससे सिक्योरिटी को बहुत बड़ा खतरा हो सकता है! इसलिए फांसी आज ही दी जानी है!"

जेलर-"सर क्या मतलब ? भगत सिंह मरने के बाद भी सिक्योरिटी के लिए खतरा हो सकता है!परंतु यह तो सरासर अन्याय है सर! ऐसा नहीं होना चाहिए सर यह तो गैरकानूनी होगा..! हिस्ट्री में कभी ऐसा नहीं हुआ!"

 आपको पता है गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हुए समझौते के अनुसार तो भगत सिंह को रिहा कर देना चाहिए था परंतु ऐसा हुआ नहीं..... यह अन्याय है आप लोगों ने कभी चाहा ही नहीं कि भगत सिंह को रिहा कर दिया जाए नहीं तो आप लोग भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु को बचा सकते थे!

अंग्रेज अफसर- "यह हमारा कानून है जब चाहे तोड़ मरोड़ सकते हैं तुम कौन होते हो? तुम अंग्रेजी सरकार के नौकर हो जो कहा जाए वही करो!"

जेलर- "बिल्कुल सही कहा सर आपने ठीक है सर  मैं नौकर हूं!" "छतर सिंह ! भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव के अंतिम स्नान की तैयारी करो! उनको आज ही फांसी होनी है!"

छतर सिंह- "अरे सरकार क्या? क्या कह रहे हो? फांसी 24 मार्च की शाम को दी जानी थी !एक दिन पहले 23 मार्च को ही आखरी दिन तो मां-बाप का दिन होता रिश्तेदारों के मिलने दिन होता है!"

..... मिलने के लिए, कल वो लोग मिलने आएंगे तो क्या अपने अपने लोगों को आखिरी बार देख भी नहीं सकेंगे? क्या लाशों से मिलेंगे? ऐसा मत करो सरकार यह अन्याय है ऊपर वाले से डरो!.."..

अंग्रेज अफसर -"अरेस्ट हिम!"

(पुलिस वाले उसे पकड़ने लगते हैं)

छतरसिंह- (चीखता है... चिल्लाता है..... गालियां बकता है) तुम अंग्रेजो का सत्यानाश हो!.... फिरंगी गोरों तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा !.... सालो तुमने बहुत अन्याय किया है कमीनों तुम्हें हमारा भारत छोड़कर जाना होगा!.... कहीं ऐसा होता है जैसा तुमने किया?

(पुलिस वाले छतर सिंह को घसीटते हुए ले जाते हैं।)

जेलर- ( भगत सिंह से)- "तैयार हो जाओ फांसी का हुक्म हो गया है !"

भगत सिंह-(किताब के पन्ने पलटते हुए) एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो लेने दो! वह लेनिन की पुस्तक पढ़ रहे थे.... दो पन्ने शेष रह गए हैं पढ़ लूं...अच्छा चलो ! छोड़ो फिर कभी सही!...."

(भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तैयार होकर निकलते हैं !

 फांसी के लिए गीत गाते झूमते हुए चलते हैं---)

अर्थी जब उठेगी शहीदों की ....ओ.....ओ

ऐ वतन वालों तुम सब्र खोना नहीं....

हंसते हंसते विदा हमको कर देना

आंसुओ से आंखें भिगोना नहीं....!

इतना वादा करो जब आजादी मिले

उस समय तुम हमें भूल जाना नहीं...

पार्श्व में रुदन का संगीत गूंजने लगता है...

नाचते गाते हुए फांसी के फंदे तक चले जाते हैं

" मेरा रंग दे बसंती चोला माय ए रंग दे बसंती चोला.... आगे बढ़ते हैं !...

आजादी को चली बिहाने,

हम मस्तों  की टोलियां!....

( पुलिस वाले उनको आगे ले जाते हैं फांसी के फंदे तक जाते हुए गाने गाते चले जाते हैं अंत में गाते हैं सर सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!....)

जेलर- "भगत सिंह कोई आखिरी ख्वाहिश?"

भगत सिंह-  "हमारी आखिरी ख्वाहिश तो आप पूरी कर नहीं सकते हमारे हाथ खोल दीजिए जिससे हम आपस में एक दूसरे से आखरी बार मिल सकें! फिर जाने कब मिलना हो!"

जेलर- "इनके हाथ खोल दो"!

(तीनों के हाथ खोल दिए जाते हैं, तीनों एक-दूसरे से गले मिलकर खूब लिपट लिपट चिपट कर मिलते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं....)

 "इंकलाब जिंदाबाद!"

 "इंकलाब जिंदाबाद!!" 

  "इंकलाब जिंदाबाद !!!"

"भारत माता की जय !"

"वंदे मातरम!"

 (फिर उनको पकड़ कर पुलिस वाले बलपूर्वक अलग कर देते हैं। तीनों फांसी से पहले  फांसी के फंदे  को चूमते हैं।सभी के मुंह पर काला नकाब चढ़ा दिया जाता है ,वे ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं)

 "इंकलाब जिंदाबाद !"

" इंकलाब जिंदाबाद !! "

( तीनों को फांसी का फंदा लगा दिया जाता है और जेलर के आदेश पर जल्लाद फांसी के तख्ते का खटका खींच देता है 7 बज कर 33 मिनट पर फांसी दे दी जाती है। तीनों की गर्दनें लटक जाती हैं।

नेपथ्य के पीछे से लोगों के चीखने, चिल्लाने रोने की आवाज़ें आने लगती हैं। रुदन का संगीत गूंजने लगता है.... उनका यह बलिदान पूरे देश में हाहाकार बनकर जन-जन को आंदोलित कर देता है।)

विद्यावती कौर:  मेरा भगत चला गया... पर तुम ही में से मेरा भगत है कोई ? कौन है ? वह कौन है ? कौन है ?

✍️ अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 18825 541

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....क्रांतिवीर हेडगेवार । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में तृतीय स्थान पर रहा ।



 पात्र परिचय 

डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार

अंग्रेज न्यायाधीश श्री स्मेली 

डा० हेडगेवार के वकील श्री बोबड़े

पुलिस इन्स्पेक्टर श्री गंगाधर राव आबा जी ,

कुछ अन्य वकील, 

दर्शक,

पुलिसकर्मी 

 काल: 1921 ईसवी

 स्थान : न्यायालय, नागपुर।

 दृश्य 1

[ न्यायाधीश के आसन पर श्री स्मैली बैठे हुए हैं। वह काफी परेशान दीख रहे हैं। माथे पर त्यौरियाँ हैं। वह अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियाँ भौहों के मध्य रखकर चिंता में डूब जाते हैं। अदालत में काफी शोर हो रहा है। स्मैली हथौड़ा खटखटाते हैं। ] 


 स्मैली: आर्डर-आर्डर ! केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राजद्रोह का अपराध किया है। उसका भाषण हिन्दुस्तान के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ भड़काने का था।

 बोबड़े: योर ऑनर ! यह अभी साबित नहीं हो सका है कि डॉक्टर हेडगेवार राजद्रोह के दोषी हैं। अपने देश की आजादी की इच्छा राजद्रोह नहीं कही जा सकती।

 स्मेली : जो कानून और गवाह कहेंगे, अदालत तो उसी पर चलेगी (व्यंगात्मक शैली में हाथ और सिर हिलाते हुए आँखें मटकाता हुआ वह कहता है।) 

 बोबडे:: मैं पुलिस इन्स्पेक्टर आबाजी से कुछ जिरह करना चाहता हूँ। कृपया इजाजत दें ।

 स्मैली: इजाजत है।

[पुलिस इन्स्पेक्टर आबा जी गवाह के कटघरे में आते हैं।] 

बोबड़े : इंस्पैक्टर ! क्या आप समझते हैं कि डॉक्टर हेडगेवार अंग्रेजों के खिलाफ व्यक्तिगत द्वेष और हिंसा के लिए जनता को उकसा रहे थे ?

 स्मैली : (तेजी से): यह प्रश्न अभियोग से मेल नहीं खाता ।

 बोबड़े : (इन्स्पैक्टर से ) खैर ! यह बताइये ,डॉक्टर हेडगेवार ने कोई ऐसी बात की जिससे लूटमार, आगजनी होने या संविधान और न्याय व्यवस्था समाप्त होने का खतरा हो ? 

 स्मैलो: यह प्रश्न असंबद्ध है।

 बोबड़े: इन्स्पेक्टर ! हेडगेवार ने इसके अलावा तो अपने भाषणों में कुछ नहीं कहा कि उन्हें देश की आजादी चाहिए।

 स्मैली : आप नही पूछ सकते ।

 बोबड़े : ( गुस्से में ) इन्स्पेक्टर साहब ! डॉक्टर हेडगेवार सिर्फ इतना ही तो जनता से कह रहे थे कि हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान के लोगों का है ?

 स्मैली: मैं आपको यह सवाल नहीं पूछने दे सकता। आप गवाह से बेकार के सवाल पूछे जा रहे हैं। 

 बोबड़े : (गुस्से में भरे हुए) न्यायाधीश मुझे गवाह से जिरह ही नहीं करने दे रहे हैं। यह अदालत ही नहीं, कानून का मजाक है । [पैर पटकते हुए बोबड़े कचहरी से बाहर चले जाते हैं

दृश्य 2

[ डा० हेडगेवार और श्री बोबड़े एक निजी कक्ष में बैठे हुए बातें कर रहे हैं। बोबड़े वकीलों का-सा काला चोगा पहने हैं। हेडगेवार सफेद धोती-कुर्ता पहने हैं। उनकी बड़ी काली मूँछें हैं तथा बलिष्ठ शरीर है। आयु लगभग 32 वर्ष है।]

 बोबड़े : जैसी भाषा में आपने यह मुकदमा दूसरी अदालत में भेजे जाने का आवेदन-पत्र दिया है, उससे लगता नहीं कि काम बनेगा । 

डॉक्टर हेडगेवार : अंग्रेजों से हम भारतीयों को न्याय की आशा करना व्यर्थ है।

 बोबड़े : तो फिर आप अपना बचाव क्यों कर रहे हैं ? 

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं बचाव नहीं कर रहा। स्वराज्य-संघर्ष में जेल जाना मेरे लिए गौरव की बात होगी । 

 बोबड़े : फिर ?

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं तो अदालत को एक जनसभा में बदलना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि अदालत के मंच से हम अंग्रेज सरकार की अपवित्रता और असहयोग आंदोलन के उद्देश्य धूमधाम से गुंजित कर दें। 

 बोबड़े : बड़े धन्य है आप डाक्टर जी ! (हाथ जोड़ते हुए) राष्ट्र आपकी तेजस्वी प्रवृत्ति और त्यागमय जीवन-साधना को सदा स्मरण करेगा । आप सचमुच क्रांतिवीर हैं। 

 डॉक्टर हेडगेवार : यह प्रताप भारत की धरती का है। हम सब उसी भारत माता को प्रणाम करते हैं। (वह दोनों हाथ जोड़कर धरती को प्रणाम करते हैं।)

 दृश्य 3

[ अदालत में स्मैली न्यायाधीश के आसन पर उपस्थित है। ]

 स्मैली: मिस्टर हेडगेवार ! आपके मुकदमे को मैं ही सुनुँगा । दूसरी अदालत में मुकदमा भेजने की आपकी अर्जी कलेक्टर साहब के यहाँ से खारिज हो गयी है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं पहले से जानता था कि अंग्रेजों के राज में नियम और न्याय के अनुसार भारतीयों से बर्ताव कभी नहीं हो सकता। 

 स्मैली (दाँतों को पीसता हुआ) : अंग्रेजों के न्याय पर शक करते हो ?

 डॉक्टर हेडगेवार(व्यंग्यात्मक लहजे में) जो पराये देश में मनमाने ढंग से कब्जा करके बैठ जायें, उनके न्याय कर सकने पर भला कौन शक कर सकता है ? 

[ हेडगेवार के कहने का तात्पर्य था कि अंग्रेज न्याय कर ही नहीं सकते। मगर स्मैली को समझ में स्पष्ट नहीं हो पाया, सो वह उलझा-सा रह गया और अपने बाल सहलाने लगा।]

 स्मैली : (थोडी देर बाद) आपका वकील क्या अब कोई नहीं होगा ? मिस्टर बोबड़े भी नहीं दीख रहे हैं।

 डॉक्टर हेडगेवार: सही बात कहने के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ। भारत में अंग्रेजी राज से जूझने के लिए मेरी भुजाओं में अभी काफी दम है। 

 स्मैली: मुकदमे के बारे में आप कुछ कहना या पूछना चाहेंगे ?

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ ! मैं इन्स्पेक्टर गंगाधर राव आबाजी से जिरह करना चाहूँगा।

[ इन्स्पेक्टर आबाजी गवाहों के कठघरे में लाये जाते हैं ]

 डॉक्टर हेडगेवार : क्यों जी ! बिना टार्च के अंधेरे में आपने मेरे भाषण की रिपोर्ट कैसे लिख ली ? 

 आबाजी : मेरे पास टॉर्च थी !

 डॉक्टर हेडगेवारः (कड़ककर, आँखों में आँखें डाल कर ) जरा फिर से तो कहो!

 आबाजी : (मुँह लटकाकर)  आप एक मिनट में करीब बीस-पच्चीस शब्द बोलते थे, मैं वह आधे-अधूरे लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार: (स्मैली की ओर मुड़कर) मेरे भाषण में प्रति मिनट औसतन दो सौ शब्द रहते हैं। ऐसे नौसिखिए रिपोर्टर केवल कल्पना से ही मेरे भाषण को लिख सकते हैं।

 आबा जी : (हड़बड़ाकर) जो मेरी समझ में नहीं आया, दूसरों से पूछ कर लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार : (स्मैली से) मेरे भाषण की रिपोर्ट लिख सकने में इन्स्पेक्टर साहब की परीक्षा की अनुमति दी जाए । ताकि जाना जा सके कि यह कितने शब्द लिख सकते हैं। 

 स्मैली: (घबराकर) नहीं-नहीं-नहीं। यह जरूरी नहीं है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने तो अपने भाषणों में सारे हिन्दुस्तान को यही बताया कि जागो देशवासियों ! मातृभूमि को दासता के बंधनों से मुक्त कराओ ।

 स्मैली : आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं ?

 डॉक्टर हेडगेवार: मैंने यही कहा कि हिन्दुस्तान हम हिन्दुस्तानवासियों का है और स्वराज्य हमारा ध्येय है।

 स्मैली : आप जो कुछ कह रहे हैं, उसके मुकदमे पर नतीजे बुरे होंगे ।

 डॉक्टर हेडगेवार: जज साहब ! एक भारतीय के किए की जाँच के लिए एक विदेशी सरकार न्याय के आसन पर बैठे, इसे मैं अपना और अपने महान देश का अपमान समझता हूँ ।

 स्मैली : मिस्टर हेडगेवार ! आप न्याय का मजाक उड़ा रहे हैं । 

 डॉक्टर हेडगेवार; हिन्दुस्तान में कोई न्याय पर टिका शासन है, ऐसा मुझे नहीं लगता ।

 स्मैली : (आँखें फाड़कर) क्या ?

 डॉक्टर हेडगेवार : शासन वही होता है जो जनता का हो, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो। बाकी सारे शासन धूर्त लोगों द्वारा दूसरे देशों को लूटने के लिए चलाए गए धोखेबाजों के नमूने हैं।

 स्मैली : (हथौड़ा बजाकर गुस्से में चीखकर) मिस्टर हेडगेवार !

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ जज साहब ! मैंने हिन्दुस्तान में यही अलख जगाई कि भारत, भारतवासियों का है और अगर यह कहना राजद्रोह है, तो हाँ ! मैंने राजद्रोह किया है । गर्व से राजद्रोह किया है।

 स्मैली: बस - बस ! और कुछ न कहना !

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने इतना और कहा था जज साहब ! कि अब अंग्रेजों को सम्मान सहित भारत छोड़कर घर वापस लौट जाना चाहिए।

(दर्शक-वर्ग की ओर से तालियों की आवाज आती है) 

 स्मैली : (चीखकर) आर्डर - आर्डर । अदालत में दिया जा रहा  हेडगेवार का यह बचाव-भाषण तो इनके मूल-भाषण से भी ज्यादा राजद्रोहपूर्ण है।

 डॉक्टर हेडगेवार : (केवल हँस देते हैं । )

 स्मैली : (जल-भुनकर) हेडगेवार के भाषण राजद्रोहपूर्ण रहे है। इसलिए अदालत के हुक्म से इन्हें एक साल तक भाषण करने से मना किया जाता है और एक-एक हजार की दो जमानतें और एक हजार रुपये का मुचलका माँगा जा रहा है।

 डॉक्टर हेडगेवार : आपके फैसले कुछ भी हों, मेरी आत्मा मुझे बता रही है कि मैं निर्दोष हूँ । विदेशी राजसत्ता हिन्दुस्तान को ज्यादा दिन गुलाम नहीं रख पाएगी। पूर्ण स्वतंत्रता का आन्दोलन शुरू हो गया है। हम स्वराज्य लेकर रहेंगे। आपकी माँगी जमानत देना मुझे स्वीकार नहीं है ।

 स्मैली: अच्छा ! अगर ऐसा है, तो अदालत  हेडगेवार को एक वर्ष का परिश्रम सहित कारावास का दण्ड देती है।

 डॉक्टर हेडगेवार : ( हाथ उठाकर नारा लगाते हैं) वन्दे मातरम ! वन्दे मातरम !

(अदालत में उपस्थित दर्शक-वर्ग भी वंदे-मातरम कहना आरम्भ कर देता है। डॉक्टर हेडगेवार दो पुलिस वालों के साथ हँसते हुए कारावास जाने के लिए अदालत से बाहर आते हैं। अपार भीड़ उन्हें फूलमालाओं से लाद देती है ]

 डॉक्टर हेडगेवार : (भीड़ को संबोधित करते हुए) पूर्ण स्वातंत्र्य हमारा परम ध्येय है। देशकार्य करते हुए जेल तो क्या कालेपानी जाने अथवा फाँसी के तख्त पर लटकने को भी हमें तैयार रहना चाहिए। हम अब गुलाम नहीं रहेंगे । भारत माता जंजीरों में जकड़ी नहीं रहेगी। आजादी मिलेगी, जरूर मिलेगी, हम उसे लेकर रहेंगे।

 [नारे गूँज उठते हैं : भारत माता की जय !

 डॉक्टर हेडगेवार की जय ! ]


✍️ रवि प्रकाश  

बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) 

रामपुर  244901

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451 

 

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर का एकांकी ....मुखबिर । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के कनिष्ठ वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहा ।


पात्र
-

1-सुरेश उम्र 16/17 वर्ष

2-महेश उम्र 15 वर्ष

3-गणेश उम्र 14/15 वर्ष

4-शंकर  उम्र 14 वर्ष

5- भोला उम्र 12 वर्ष

6- मुरारी गौशाला का सेवक उम्र 40/45 साल


दृश्य 1

( शाम का समय है गाँव से बाहर गोशाला का दृश्य है।शाम के झुकमुके में कुछ बच्चे गौशाला के अंदर आते दिखाई देते हैं। अंदर चार लोग आकर ईंट और पत्थर के टुकड़ों पर बैठे हुए हैं इनकी उम्र 12 से 16 वर्ष के बीच है। इनके बदन पर हाथ के सिले चाक वाले बनियान और कमर में फ़टी पुरानी आधी धोती बंधी हुई है। एक लड़का जो उम्र में 16/17 वर्ष का दिखाई दे रहा है पतला दुबला इकहरा बदन। चेहरे पर बहुत गम्भीरता। चाक का कुर्ता और धोती पहने हुए एक ऊँचे मिट्टी के ढेर पर बोरी बिछा कर उनके मुखिया की तरह बैठा हुआ है। उसके सामने चार लड़के बैठे बहुत गम्भीरता से उसके कुछ बोलने का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी की भावभंगिमा इतनी दृढ़ है कि ये सभी बहुत परिपक्व नज़र आ रहे हैं।)

 सुरेश- साथियों, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि नेता जी आजकल हमारे देश को इन गोरों से आज़ाद करवाने के लिए एक सेना बना रहे हैं और उन्होंने उसका नाम रखा है 'आज़ाद हिंद फौज'।कल शाम को मैंने रेडियो पर उनका संदेश सुना जिसमें वे कह रहे थे 'प्यारे देशवासियों आज़ादी दी नहीं जाती बल्कि ली जाती है। कोई भी अपने गुलाम को स्वेच्छा से कभी मुक्त नहीं करना चाहता। किन्तु परिस्थितियों का निर्माण करके उसे मुक्त करने पर विवश किया जा सकता है। आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।

" तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा" 

मेरे प्यारे युवाओं, ये आज़ादी एक महायज्ञ है और इसमें सभी को यथासंभव आहूति देनी ही होगी। तो आओ, आगे बढ़ो और हमारे साथ इस महायज्ञ में जुड़ों।

भोला- लेकिन हम तो अभी बच्चे हैं! हमारे अंदर कितना खून होगा? क्यों महेश होगा मेरे अंदर एक सेर खून? हाँ इतना तो ज़रूर होगा…! तो तय रहा सुरेश भैया मैं अपना पाव सेर खून देने के लिए तैयार हूँ। लो निकाल लो (मुट्ठी बाँध कर हाथ आगे बढ़ाते हुए) लेकिन सुई आराम से घुसाना, वैसे  तो मैं बहुत बहादुर हूँ। बस, इस दवा वाली सुई से डर लगता है।

 (उसकी बात सुनकर सारे जोर से हँसते हैं और भोला और ज्यादा भोला चेहरा बनाकर उनको देखता है।)

 महेश- बुद्धू, ये खून निकालकर देने की बात नहीं हो रही। तूने वह कहावत नहीं सुनी 'खून पसीने की कमाई' बस ऐसे ही ये आज़ादी भी हमें खून पसीने से कमानी होगी। इसका अर्थ ये है कि हमें मरने मारने के लिए तैयार रहना होगा। तभी तो ये गोरे लोग डरकर हमारे देश से भागेंगे।

शंकर - हाँ, यही बात है और पसीना तो गांधी जी और उनके साथी कांग्रेसी बहा ही रहे हैं। हमें तो क्रांतिकारियों की राह पर चलकर अपने प्राण रूपी लहू की आहुति देनी है।

(भोला पूरी गम्भीरता से उनकी बात सुनता है और समझ जाने के अंदाज़ में सिर हिलाता है।)

गणेश- हमारे गाँव और आसपास के क्षेत्र में भी कुछ लोग हैं जो नेताजी के विचारों से सहमत हैं और अपनी-अपनी तरह से अंग्रेजों को नुकसान पहुंचा रहे  हैं। हम लोगों को उनसे संपर्क करके उनके दिशानिर्देशों में काम करना चाहिए या फिर किसी तरह सम्पर्क जुटाकर आज़ाद हिन्द फौज से जुड़ना चाहिए तभी हमारा आज़ादी की लड़ाई का संकल्प साकार रूप ले पायेगा और लोग हमें जानेंगे।

भोला- बात ठीक है गणेश भाई की, ऐसे भी हम तो बच्चे हैं। हमें अपने साथ एक मार्गदर्शन करने वाला बड़ा आदमी भी चाहिए जो हमें सही और गलत की सलाह दे सके।

सुरेश- लोग हमें जाने या ना जाने गणेश किन्तु हमने अब आज़ादी के ये अपनी आहुति देने का संकल्प ले लिया है। अब हमने अपने तरीके से काम करना शुरू भी कर दिया है। और जहाँ तक किसी बड़े का सवाल है तो मुरारी काका तो हैं ही हमारे साथ। उनके कुछ क्रांतिकारियों से भी सम्पर्क हैं। वे बता रहे थे की कई बार क्रांतिकारी लोग अंग्रेजों से छिपने के लिए इस गौशाला का सहारा लेते हैं। मुरारी काका अपनी सेवा इसी रूप में दे रहे हैं कि वे क्रांतिकारियों को यहाँ सुरक्षित शरण देते हैं और उनके भोजनादि की व्यवस्था करते हैं। उन्होंने मुझे कहा था कि आज कुछ क्रांतिकारी लोग यहाँ आने वाले हैं। मैंने आज तुम सभी को इसीलिए यहाँ बुलाया है ताकि तुम लोग भी उनसे मिल सको और आज मैं उनसे हम लोगों को भी उनके साथ शामिल करने की प्रार्थना करने वाला हूँ। तुम लोग भी इसमें मेरा साथ देना, उन्हें पूरा भरोसा होना चाहिए कि हम लोग पूरे मन से इसके लिए तैयार हैं।

 (सभी एक स्वर में बोलते हैं।)" हम सभी तैयार हैं, हम देश की आज़ादी के महायज्ञ में अपने खून की आखिरी बून्द तक की आहुति देने को तत्पर रहेंगे।" 

(तभी किसी के कदमों की तेज आवाज आती है मानो कोई तेज़ी से दौड़कर आ रहा हो। सभी बच्चे झपटकर चारा पानी और सफाई में लग जाते हैं मानो सभी गौशाला में काम करने वाले सेवक हों। मुरारी बदहवास दौड़ता हुआ इनके पास पहुँचता है।मुरारी एक कमज़ोर शरीर वाला छोटे कद का काला से व्यक्ति है उसने आधी धोती को कमर में बांध रखा है, ऊपर नङ्गे बदन है। उसके सिर पर एक अंगोछा बंधा हुआ है और हाथ में लाठी पकड़ी हुई है।)

सुरेश- क्या हुआ काका आप इतने परेशान क्यों दिख रहे हो? सब ठीक तो है?

मुरारी- गज़ब हो गया बच्चो, हमारे क्रांतिकारियों की किसी ने मुखबिरी कर दी। तीन लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया और अब बाकियों की तलाश में जगह-जगह छापेमारी हो रही है।

महेश- क्या, मुखबिर का पता लगा?

मुरारी- पता तो नहीं लेकिन लोगों को सुबहा है कि रायबहादुर ही इस मुखबिरी के लिए जिम्मेदार है। पर किसी के पास भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रायबहादुर ही मुखबिर है।

गणेश- बात ठीक ही है सुरेश भाई, क्योंकि रायबहादुर अंग्रेजों का खास आदमी है। वह उनका नमक खाता है तो उनकी वफादारी तो ज़रूर निभाता होगा।

सुरेश-  ठीक है काका आप जाओ और आसपास नज़र रखो, अगर कुछ भी असुरक्षित लगे तो कोयल की आवाज करके हमें सचेत कर देना।

मुरारी-  ठीक है बच्चों लेकिन जो भी करना पूरी सावधानी से करना क्योंकि अब अंग्रेजों की सतर्कता इस क्षेत्र में बढ़ गयी है।

महेश - आप चिंता ना करें काका जी हम सावधान रहेंगे।

(मुरारी धीरे-धीरे चला जाता है। बच्चे फिर अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं।)

शंकर-  भाई सुरेश, अगर ये मुखबिर ना होते तो हम लोग कबके इन गोरों का मुँह काला करके भारत से बाहर भगा चुके होते। लेकिन, क्या करें इस मुखबिरी के चक्कर में कितने ही क्रांतिकारी पकड़े जाते हैं और फाँसी चढ़ा दिए जाते हैं। ये मुखबिरी करने वाले बिके हुए लोग चन्द सिक्कों के बदले अपनी माँ का आँचल बेचने में भी परहेज नहीं करेंगे। उसपर ये दुःख की लोग केवल इनपर सन्देह ही करते हैं। कोई भी पक्के विश्वास से किसी भी मुखबिर को पकड़कर कभी उसे सजा नहीं देता।

भोला (जो बहुत देर से शान्त बैठा सारी बात सुन रहा था-) ये मुखबिर कौन होता है भाई?

महेश-  मुखबिर वो मुआ होता है जो किसी की चुगली करके उसकी खबर उसके दुश्मनों को देता है। जैसे कि किसी मुखबिर ने हमारे छिपे हुए क्रांतिकारी साथियों की खबर हमारे शत्रु अंग्रेजों को दे दी और अब अंग्रेज हमारे देश के उन सेवकों को पकड़कर ले गए। अब उनपर मुकदमा होगा और उन्हें फाँसी पर लटकाकर मार दिया जाएगा।

भोला- भाई सुरेश अभी आप बता रहे थे ना कि आजादी के लिए हमें खून देना होगा? 

सुरेश- हाँ कहा था।

भोला- तो क्यों ना हम मुखबिर का खून आज़ादी की देवी को चढ़ा दें? क्यों न हम कोई ऐसा उपाय करें जिससे सही-सही पता लग जाये कि कौन मुखबिर है जिसने हमारे आज़ादी के सिपाहियों को अंग्रेजों के हाथ पकड़ा दिया। और फिर हम उसका खून चढाकर आज़ादी के सिपाहियों के रास्ता साफ कर दें?

(सुरेश, महेश, गणेश और शंकर एक स्वर में, "वाह भोला तेरे छोटे दिमाग ने तो बड़ी बात कर दी आज।)

सुरेश-  साथियों, अब हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। अब हम एक युक्ति लगाएंगे और मुखबिर को पहचान कर उसे सजा देकर आज़ादी की इस लड़ाई में अपना योगदान सुनिश्चित करेंगे।

(बाकी लोग एक स्वर में) "ज़रूर करेंगे हम मां भारती की शपथ लेते हैं।

शंकर- लेकिन सुरेश भाई इसके लिए कोई सटीक योजना है आपके पास?

सुरेश- हाँ है, आओ बताता हूँ।

(सभी लोग सिर जोड़कर कुछ देर बात करते हैं और फिर मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिलाकर चले जाते हैं।)

दृश्य-2 समय दोपहर का

स्थान जँगल के बीच एक बड़े बरगद से कुछ दूर एक झाड़ी के झुरमुट में।

(सुरेश और महेश बरगद की ओर टकटकी लगाए बैठे हुए हैं तभी चार अंग्रेजी सिपाही कुदाल लिए आते दिखाई देते हैं और बरगद की ओर बढ़ रहे हैं।)


सुरेश- वो देखो गोरे, और हाथ में खोदने के औजार भी। इसका मतलब मुखबिर का संदेह सही था। रायबहादुर ही मुखबिर है। लेकिन, हम लोगों के जाल में पहले इन्हें फँसने दो।

महेश-  सही कहते हो भाई, इस स्थान पर क्रांतिकारियों के गोला बारूद छिपे हैं इसकी खबर हम लोगों ने केवल रायबहादुर के ही कान तक पहुंचाई थी और ये गोरे उसे निकालने भी आ गए।

(अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे कि अंग्रेजी सिपाहियों की चीख गूंज उठी और वे चारों लहराते हुए घास-फूंस से ढके एक पुराने कुएं में गिर गए।)

सुरेश-  इनकी बलि तो चढ़ गई, अब चलो रायबहादुर का इलाज सोचा जाए।


  दृश्य-3 

शाम का समय 

स्थान गौशाला

(सारे बच्चे अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए हैं।)

गणेश- सुरेश भाई क्या ये स्पष्ट हो गया कि रायबहादुर ही मुखबिर है?

सुरेश- हाँ दोस्तों ये बात सच है कि रायबहादुर ही वह मुखबिर है जिसकी वजह से हमारे देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी पकड़े गए।हमने जँगल में बारूद छिपी होने की बात और जगह की खबर केवल रायबहादुर के कानों तक ही पहुँचायी थी और आज अंग्रेजों के सिपाही उसे खोजने भी पहुंच गए। इस बात से साफ हो गया कि वही इस मुखबिरी का एकमात्र अपराधी है।

महेश-( हँसते हुए) बेचारे अंग्रेजों के सिपाही…! चले थे बारूद खोजने लेकिन हमारे बिछाए जाल में फँसकर मौत के कुँए कर कैद हो गए हैं।

शंकर- लेकिन अब उस रायबहादुर का क्या करना है साथियों ?

सुरेश- (मुस्कुराते  हुए) वही जो उसने किया था, उसने क्रांतिकारियों की खबर अंग्रेजों को दी थी और हमने उसकी खबर क्रांतिकारियों को दे दी। मुरारी काका बस आते ही होंगे।

(तभी कदमों की आवाज़ आती है, सभी लोग उठकर काम की और दौड़ने का उपक्रम करते हैं लेकिन सुरेश उन्हें हाथ से इशारा करके रोक लेता है।अभी ये लोग सुरेश की ओर देख ही रहे  होते हैं तभी सामने से मुरारी और उनके पीछे 4 आदमी आते दिखाई देते हैं।)

आगन्तुक1-  मुझे गर्व है भारत के बच्चों पर। आज आप लोगों ने सिद्ध कर दिया कि भारत का भविष्य सशक्त और बुद्धिमान है। चारों अंग्रेजी सिपाही अपने अंजाम तक पहुँच चुके हैं और आज ही की रात मुखबिर का खून भी आज़ादी पर चढ़ जाएगा।

सभी लोग एक साथ जयघोष करते हैं, "भारत माता की जय। आज़ादी लेकर रहेंगे।

वन्देमातरम।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा सागर

ठाकुरद्वारा 

जिला मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 9045548008

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की कहानी ....एक रात की कहानी

     


 कभी नहीं सोचा था कि मैं कुछ लिखुंगा। एक दिन मुझे अपनी मौसी के घर रुकना पडा। वहां मुझे बिल्कुल भी नींद नहीं आ रही थी। बेहतरीन सुसज्जित कमरा । साफ सुथरा बिस्तर। अर्दली, काम करने वाले सरकारी और निजि नौकर -चाकर। मौसा जी पुलिस में सी०ओ०थे । सब सुविधाऐं थीं। लेकिन मुझे एक दिन - एक रात काटने में ही परेशानी हो रही थी।

      नहाने-धोने व खाने-पीने से लेकर पूरा दिन औपचारिकता में बीता । मौसा-मौसी से थोडी बात ड्राईंग रुम में बैठ कर और थोडा खाने की टेबिल पर हुई। मौसी खुद तो किसी काम में ब्यस्त नहीं थी प्ररन्तु पूरा दिन नौकरों को काम बताने ,उनसे मन-माफिक काम कराने में लगीं रहतीं।घर की चमचमाती साफ सफाई से ही लग रहा था कि वह साफ-सफाई के प्रति कितनी गंभीर व चिंतित रहती हैं। यह सब देख मेरी मनोदशा ही बदल गई। यहां तो चुपचाप पडे रहना ही बेहतर है। पानी का गिलास ,चाय का कप आदि उठाने से लेकर मुंह लगाने और फिर सम्हाल कर रखने तक बडे सलीके व जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड रहा था। 

      एक तो पुलिस वालों का घर फिर तेजतर्रार मौसी जी बस यह समझो कि उस कोठी की दीवालें,छतें,फर्श,आंगन व गार्डन के फूल-पौधे, घास आदि सब सख्त अनुशासन में थे। अगर थोड़ा बहुत अनुशासनहीन कोई था तो वह 'डिबलू' था। 'डिबलू' मौसा मौसी का प्यारा डोगी था।आदतन भोंकना,लिपटना,चिपटना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था। मौसी शाकाहारी थी प्ररन्तु डिबलू के लिए हर दूसरे दिन नान वेज दिया जाता था।  

      

     रात बहुत हो गई थी। अर्ध रात्री में मौसा जी की गाड़ी आती है। मौसा जी घर में प्रवेश करते ही अभी उन्होंने अपनी बर्दी उतारी ही थी कि बाहर से सिपाही  हेण्ड सेट लेकर आता है और मौसा जी की बात कराता है। किसी थाने के इंस्पेक्टर का संदेश था । कार और बस में आमने सामने टक्कर में कार सवार सभी चार सवारियों की मृत्यु हो चुकी थी। बस क्या था फिर तो तुरंत उतरी हुई वर्दी मौसा जी के बदन पर आ गई और आनन-फानन में गाडी में बैठ चले गये।

      पुलिस के लिए आकस्मिक दुर्घटनाऐं ही उनकी सेवा काल की परीक्षा होती है। अपनी सरकारी सेवा की जिम्मेदारियों को निभाने मैं अपनी दिन-रात की नींद,आराम व चैन को तिलांजली दे देना, यह सब मेंने आज अपनी आंखों से देखा है। भला ऐसे में किसी को नींद कैसे आ सकती है । मैं पहले ही बिस्तर पर पडे पडे  करवटें ले रहा था । अब नींद भी  गायब हो चुकी थी । मैं अब मेज कुर्सी पर आ धमका था । इस घर में मुझे अनायास मिली बैचेनी व मानसिक उथल पुथल के चलते  कागज व पैन लेकर लिखने लगा था। करीब तीन घंटे बाद प्रात: लगभग 3 बजे मौसा जी आ गये। मौसी ने बाहर ही मौसा जी कोअग्नि छूने को दी और उन पर गंगाजल की छींटें डाली  क्यों कि वह मृतकों के शवों के पास से आये थे। उन्हें सीधे बाथरुम में नहाने भेज दिया था। नहा-धोकर वह अपने कमरे में लेट गये। 

      आज अपने एक दिन के प्रवास में अनुशासन और जिम्मेदारियों के बीच पारिवारिक व धार्मिक परम्परा के निर्वाह ने मुझे झकझोर कर रख दिया।

     मैं इस एक रात में टुकडों में जिया। किसी के लिये सो रहा था। अपने लिये जाग रहा था। मैं पूरी रात जाग कर  यहां ' एक रात की कहानी ' पूरी कर चुका था।

     

 ✍️ धनसिंह  'धनेन्द्र'

   चन्द्र नगर 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ...हर घर तिरंगा


सावन का महीना था आसमान में चांद बेचारा बार - बार कोशिश कर रहा था कि काश मैं अपना चेहरा धरती को दिखा सकूं लेकिन ज़िद बादलों को भी थी कि चांद को किसी भी हाल में जीतने नहीं देना है यह सब बेचारी नंदिनी देख रही थी और खोज रही थी अपने चांद को जो अभी दो महीने पहले ही देश की सरहद से तिरंगे में लिपटकर घर पहुंचा था ऐसा लिपटा तिरंगे में कि बस फिर दिखाई न दिया ...........तभी स्कूल के ग्रुप पर मैसेज आया कि .........आज़ादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में इस बार सरकार द्वारा हर घर तिरंगा घर- घर तिरंगा कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास एवं वृहद स्तर पर मनाया जाना है, सुबह प्रभात फेरी निकाली जाएगी, उसके लिए....  " विजयी विश्व तिरंगा प्यारा* गीत याद कर लेना क्योंकि आपकी आवाज़ में वो जोश है जो देखते ही बनता है ।" 

हो भी क्यों न आख़िर शहीद की पत्नी जो हूं ।....यादों में आए आंसुओं को गर्व से सहेजते हुए नंदिनी सुबह के कार्यक्रम की तैयारी में जुट गई।

✍ रेखा रानी

विजय नगर गजरौला ,

जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 26 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में नोएडा निवासी) सपना सक्सेना दत्ता सुहासिनी की पांच बाल कविताएं । इन्हीं कविताओं पर उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया था


(1) आम के आम गुठलियों के दाम

एक गांव में आया सेठ।

दिखने में लगता था ठेठ ।।

बीच गांव में रहने आया।

सुंदर सा एक सदन बनाया।।

नाम सेठ का था घनश्याम।

उसको अच्छे लगते आम ।।

काश आम के बाग लगाऊं।

मीठे मीठे आम उगाऊं।।

सेठानी को बात बताई।

सेठानी ने जुगत लगाई।

उत्तम आमों को मंगवाओ।

आप सहित सबको खिलवाओ।।

फिर सबसे बढ़िया आमों की।

गुठली ले लो कुछ दामों की।।

उन गुठली से पेड़ लगाओ।

सदन के चारों ओर सजाओ।।

युक्ति भली थी सेठ सुहाई।

सेठानी भी थी मुस्काई।।

दूर-दूर से आम मंगाए ।

मीठी खुशबू मन को भाए।।

जर्दालू वनराज मंगाया।

केशर किशन भोग भी आया।।

लंगड़ा चौसा फ़जली देखो ।

दशहरी भी असली देखो ।।

बैगनपल्ली नीलम लाए।

हिमसागर की खुशबू भाए।।

भांति भांति के आम मंगाए ।

गांव वासी सभी बुलाए ।।

सब खाएंगे बारी-बारी।

आमों की थी किस्में सारी ।।

जिसके जितने मीठे आम ।

उसे मिलेंगे उतने दाम ।।

सही आम की गुठली देना।

रजत मुहर मुंशी से लेना।।

जी भर के आमों को खाया।

गुठली का भी पैसा पाया।।

तब से चली कहावत आम।

आम के आम, गुठली के दाम।।

     

(2) सौ सुनार की एक लुहार की

बात बताती बहुत पुरानी ।
जिसे सुनाती मेरी नानी।।
दो दोस्त थे सोनू राजू ।
दोनों ही खाते थे काजू।।
धमा चौकड़ी करते मस्ती।
धूम धड़ाका पूरी बस्ती।
थे सुनार राजू के भैया।
घर में थी एक सुंदर गैया।।
टुक टुक टुक टुक वो करते थे।
सोने के गहने गढ़ते थे।।
थे लुहार सोनू के पापा।
लोहे सा रखते थे आपा।।
धाड़ धाड़ जब चले हथौड़ा।
लगता था ज्यों पड़ता कोड़ा।।
एक बार की बात बताऊं।
उनका किस्सा तुम्हें सुनाऊं।।
घर में खेल रहे ताले से।
असली वो चाबी वाले से।।
गौशाला के दरवाजे पर।
ताला ठोंका भिड़ा भिड़ा सर।।
तभी अचानक चाबी फिसली।
गौशाले के अंदर निकली।।
बिन ताली के कैसे ताला।
खोल सकेगा खोलने वाला।।
राजू भागा भाई को लाने।
सोनू पापा को गया लिवाने।।
भाई छोटी हथौड़ी लाए।
टुक टुक टुक टुक चोट लगाए।।
लेकिन कोइल* का वो ताला।
मजबूती में बड़ा निराला।।
आंच नहीं ताले पर आई।
तब तक थक गया था भाई।।
सोनू के पापा भी आए।
साथ हथौड़ा भारी लाए।।
एक वार में टूटा ताला।
मोटा मोटा कोइल* वाला।।
बच्चे लगे बजाने ताली।
जय काली कलकत्ते वाली।।
चली कहावत अंगीकार की।
सौ सुनार की एक लुहार की।

*कोइल अलीगढ़ का पुराना नाम 

          

(3) जागो गुड़िया रानी

देखो आई, भोर सुहानी।

 जागो मेरी, गुड़िया रानी।।


चीं चीं करती, चिड़िया आई।

मीठा गाना, दिया सुनाई।।


कहती है अब, उठो सयानी। 

जागो मेरी, गुड़िया रानी।


नभ में लाली, प्यारी छाई।

पवन ले रही, है अँगड़ाई।।


बहती कहती, सुन लो बानी।

जागो मेरी ,गुड़िया रानी।


मुख पर मीठी, सी स्मित छाई। 

देती मुझको, खूब दिखाई।


उठकर पी लो, कोसा* पानी। 

जागो मेरी, गुड़िया रानी।।


 सोती जल्दी, मेरी गुड़िया।

अच्छी प्यारी, मेरी गुड़िया। 


जल्दी उठकर, बनो सयानी।

 जागो मेरी, गुड़िया रानी।।

*कोसा= गुनगुना


(4) जाड़ा आया

ठंडा ठंडा मौसम आया।

कम्बल गर्म रजाई लाया।।

सुख भरता है जम कर सोना।

नर्म नर्म सा मिले बिछौना।।


गाजर खोया पापा लाये

मम्मी से हलुवा बनवाये।।

बबलू गुड्डू मिलने आये।

तिल, मेवों के लड्डू लाये।।


हमने लड्डू जम कर खाये।

बबलू गुड्डू हलवा पाए।।

मूंगफली दादा जी देते।

दादी से हम गज्जक लेते।।


स्वेटर मफलर टोपी मोजा।

नानी के घर जाऊँ रोजा।।

बाजरे के लड्डू खाऊँ।

पापड़ी बेसन की पाऊँ।।


सब बच्चों सँग धूम मचाऊँ।

छुट्टी में मस्ती कर गाऊँ।।

लूडो कैरम जी भर खेलूँ।

भैया की भी बाजी ले लूँ।।


 (5) किसकी कैसी बोली

म्याऊं म्याऊं बिल्ली की बोली,

कुत्ता बोले भौं भौं भौं।

कांव-कांव कहता है कौआ, 

चिड़िया चीं चीं चूं चूं चौं।


ऊँट  करे है बलबल बलबल, 

ढेंचू ढेंचू गधा करे।

टर्र टर्र मेढ़क की बोली,

बंदर बोले खौं खौं खौं।


मैं मैं मैं मैं करती बकरी,

क्वैंक क्वैंक बत्तख बोले।

कुहू कुहू कोयल की बोली,

भैंस बोलती जैसे औं।


टें टें टें टें तोता बोले,

लेकिन हम सब उआं उआं ।

पूछ रही गुड़िया दादी से

हम बचपन में रोते क्यों?

✍ सपना सक्सेना दत्ता 'सुहासिनी'

 सी ८०४ , अजनारा डैफोडिल सेक्टर १३७,

 नोएडा  २०१३०५

उत्तर प्रदेश,भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो. ममता सिंह की पांच बाल कविताएं । इन्हीं कविताओं पर उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से 16 जुलाई 2022 को आयोजित भव्य समारोह में बाल साहित्यकार सम्मान 2022 प्रदान किया गया था


(1) सूट बूट में बंदर मामा 

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह, 

खुद से ही शर्माते हैं।। 


काला चश्मा रखे नाक पर, 

देखो जी इतराते हैं। 

समझ रहे  वह खुद को हीरो, 

खों-खों कर के गाते हैं।। 


सेण्ट लगाकर खुशबू वाला, 

रोज घूमने जाते हैं। 

बंदरिया की ओर निहारें,

मन ही मन मुस्काते हैं।।


फिट रहने वाले ही उनको, 

बच्चों मेरे भाते हैं। 

इसीलिए तो बंदर मामा, 

केला चना चबाते हैं।। 


(2)  चिड़िया रानी 

दाना चुगने चिड़िया रानी, 

फुदक फुदक जब आती है। 

मेरी प्यारी छोटी गुड़िया, 

फूली नहीं समाती है।। 


थोड़ा सा ही दाना चुग कर, 

झट से वह उड़ जाती है।

फिट रखती है सदा स्वयं को, 

दवा कहाँ वह खाती है।। 


पढ़ने जाती कहीं नहीं है, 

फिर भी जल्दी उठती है। 

सर्दी बारिश या हो गर्मी, 

श्रम से कभी न ड़रती है।। 


तिनका तिनका जोड़ जोड़ कर, 

घर वह एक बनाती है। 

छोटी सी है पर बच्चों को, 

जीना ख़ूब सिखाती है।। 


(3)   मेरी पतंग ---

रंग बिरंगा काग़ज लाकर, 

एक पतंग बनाऊँगी। 

हिंदुस्तानी माँझे से माँ, 

उसको आज उड़ाऊँगी। 


तेज हवा के झोंके भी फिर, 

उसको रोक न पायेंगे। 

देख उड़ान गगन से ऊँची, 

दंग सभी रह जायेंगे।


धरती से पतंग अम्बर तक,

मेरी अब लहरायेगी। 

बात करेगी आसमान से, 

बार-बार इठलायेगी।


छू कर नील गगन को जब वह, 

लौट जमीं पर आयेगी  

उठना-गिरना ही जीवन है, 

सबक यही दे जायेगी। 


 ( 4)  तितली रानी - 

तितली रानी ज़रा बताओ, 

कौन देश से आती हो। 

रस पी कर फूलों का सारा, 

भला कहाँ छिप जाती हो। 


इधर उधर उड़ती रहती तुम, 

मन को बड़ा लुभाती हो। 

अपने सुन्दर पंखों पर तुम, 

लगता है इठलाती हो। 


सब फूलों पर बैठ बैठ कर,

अपनी कला दिखाती हो। 

पास मगर आने में सबके, 

तुम थोड़ा सकुचाती हो। 


पीले काले लाल बैंगनी, 

कितने रंग सजाती हो। 

मुझको तो लगता है ऐसा, 

होली रोज़ मनाती हो। 


(5)  बचपन की याद 

कहाँ खो गया प्यारा बचपन, 

मिल जाए यदि कहीं बताना। 

भूले बैठे हैं जो इसको, 

फिर से उनको याद दिलाना। 


गुड़िया गुड्ड़ों की शादी में, 

माँ का वह पकवान बनाना। 

और दोस्तों के संग मिल कर, 

सबका दावत खूब उड़ाना। 


बारिश के मौसम में अक्सर, 

कागज़ वाली नाव चलाना। 

सर्दी ज्वर हो जाने पर फिर, 

पापा जी का डाँट लगाना। 


कन्धों पर पापा के अपने, 

चढ़कर रोज सैर को जाना ।

नींद नहीं आने पर माँ का, 

लोरी फिर इक मीठी गाना। 


छोटी छोटी बातों पर भी, 

गुस्सा अपना बहुत दिखाना। 

बहुत प्यार से माँ का मेरी, 

आ कर फिर वह मुझे मनाना। 


रहीं नहीं पर अब वह बातें, 

देखो आया नया ज़माना। 

पर कितना मुश्किल है ’ममता’,

उस बचपन की याद भुलाना। 


✍️ प्रो. ममता सिंह 

गौर ग्रेशियस

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल नम्बर - 9759636060, 7818968577