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सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की पांच बाल कविताएं

 



1- उठो लाल अब हुआ सवेरा

उठो लाल अब हुआ सवेरा

चिड़ियों ने डाला है डेरा,

किरणें भी द्वारे तक आयींं

लगा रहीं धरती पर फेरा । 


चमक रही सूरज की लाली 

कोयल कूक रही है डाली,

सरर सरर पातों की धुन पर 

झूम रही हवा बनी आली । 


कलियाँ मुस्कायीं उपवन में

उछल रहे शावक वन - वन में ,

देख भोर का समय सुहाना

घूमे खग दल दूर गगन में । 


2 - बादल आये बादल आये....

बादल आये , बादल आये

कितना सारा पानी लाये,

छत ,सड़क और सब खेतों में

रिमझिम-रिमझिम कर मुस्काये । 


मस्त पवन तरुवर लहराये

मानों मधुरिम गीत सुनाये,

मोती सी गिरती बूँदों ने

जिया सभी के बड़े लुभाये । 


पर फैली कीचड़ गलियों में

फंस गया कचरा नलियों में

कूड़ा फेंके जो सड़कों पर

अपनी करनी पर पछताये । 


3-बोले कागा काँव - काँव ...

बोले कागा काँव - काँव

चली भोर है पाँव - पाँव 

नदी ,शिखर और खेत से

पहुँच गयी है गाँव - गाँव । 


घर की छत आकर बैठे 

करे कबूतर गूटर - गूँ

देख - देख मुन्नी चहकी

बोली माँ से दाना दूँ । 


कहता मुरगा कुकड़ूँ - कूँ

अब तक मुन्ना सोया क्यूँ 

उठ मुंडेरी पर तेरी

गाती चिड़िया चूँ चूँ चूँ । 


जपता मिट्ठू राम - राम

भजता वही प्रभु का नाम

कोयल गीत सुरीले गा 

चली गयी है अपने ठाम । 


4-आओ चलें वनों की ओर....

आओ चलें वनों की ओर 

जहाँ सुरीली होती भोर ,

खग समूह मिल सुर लगाते

खोल पंख उमंग दिखाते,

नाचे मस्ती में है मोर ।।


भानु किरण पहुँची हर कोर

नरम धूप की पकड़े डोर,

पात चमक उठे ज्यों झालर

उछल रहे तरुवर वानर,

एक छोर से दूजे छोर ।

आओ चलें वनों की ओर ।।। 


दिन दहाड़े गज चिंघाड़े

भालू बजा रहे नगाड़े,

मृग नाचते ता - ता थैया

मनहु सब हैं भैया - भैया,

चारों ओर खुशी का शोर ।।


घूम रहे सिंह गरजते 

जान जीव दल सब बचाते,

कहीं शिकार, कहीं शिकारी

सोच एक से एक भारी,

लगी जीतने की है होर ।

आओ चलें वनों की ओर ।। 


5 -कोरोना ने पैर पसारे...

कोरोना ने पैर पसारे

घर में रहना मुन्ना प्यारे ,

दादी - दादा संग खेलना

खेल नये - पुराने सारे ।


योग ध्यान से जीवन जीना

हल्दी डाल दूध है पीना,

तुलसी ,अदरक और मुनक्का

काढ़ा इनका लेना मीना ।

स्याह ,मिर्च और दाल चीनी

रोग डरेंगे इनसे न्यारे ।।


सब जीवों की सुध है लेना

चिड़िया को है दाना देना,

देना गैया को भी चारा

जब तक उसका पेट भरे ना ।

कौआ कूकर माँगें रोटी

घूम रहे भूखे बेचारे ।।


पढ़ना पुस्तक सभी पुरानी

पूर्वजों की सत्य कहानी,

चलना आदर्शों पर उनके

जीवन जिनका अमिट निशानी ।

सूरज सम जो राह दिखाते

तम से कभी नहीं वे हारे ।

कोरोना ने पैर पसारे...... 

✍️ डॉ रीता सिंह

  आशियाना 1, कांठ रोड 

मुरादाबाद 244001

मोबाइल नंबर - 8279774842 



शनिवार, 30 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह के पांच दोहे


सारंगों का साथ ले ,आया सावन मास

झूम उठे तरुवर हरे, करते पल्लव रास ।


हरी भरी धरती सजी, नीर बना उपहार

बूंदें रिमझिम गा रही ,मनहु राग मल्हार ।


दादर धुन में हैं कहें, करो न घन विश्राम ।

जब तक भरें न पोखरे, बरसो तुम अविराम ।


सखी सब हैं झूल रहीं , भाभी गायें गीत ।

मोहे मन बूँदें बड़ी,आ जाओ मनमीत ।


अमुआ डाली पर सजी, सुन्दर रेशम डोर 

झूला झूलें बेटियाँ , लुभा रहीं मन मोर ।


✍️ डा. रीता सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 21 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----नित लिखता नयी इबारत हूँ , मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ .....


मैं युग युग खड़ी इमारत हूँ

मै भारत हूँ मैं भारत हूँ । 


मैं वेद पुराणों की गाथा

मैं भू का उन्नत सा माथा

मैं गंगा सतलज की धारा

मैं जग की आँखों का तारा

मैं राम कृष्ण की धरती की

नित लिखता नयी इबारत हूँ ।

मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ ..... 


मैं महायुद्ध का हूँ साक्षी

मैं विश्व शांति का आकांक्षी 

मैं योग विधाओं का दाता

मैं गीत प्रेम के ही गाता

ऋषियों के तप की ग्रन्थों में

मैं करता रोज इबादत हूँ ।

मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ..... 


मैं सारंगी के तारों में

मैं वीणा की झंकारों में

मैं मुरली की मधु तानों में

मैं गाता मीठे गानों में

कण कण गूँजते गीत मेरे 

मैं सँगीत भरी महारत हूँ ।

मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ .... 


मैं खेलूँ ग्वाले गोपी में

मैं सजता अहमद टोपी में

मैं सिक्खों के बलिदानों में

मैं हरा खेत खलिहानों मे

वीरों के साहस से देखो

मैं सदियों रहा हिफाज़त हूँ ।

मैं भारत हूँ , मैं भारत हूँ..... 

✍️ डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत 

रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----कारज अपने सभी निभाते बनें नहीं अधिनायक पापा -

 


हर बेटी के नायक पापा

करते हैं सब लायक पापा

कारज अपने सभी निभाते

बनें नहीं अधिनायक पापा ।


जग में सबसे न्यारे होते

जनक सिया के प्यारे होते

अपनी राजकुमारी पर हैं

सारे सपने वारे पापा ।


वर्ष हजार जियें दुनिया में

यही कामना करूँ दुआ में

रोग शोक से रहें दूर वो 

महके उनकी महक हवा में ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

रविवार, 6 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----वृक्ष रोपण और जल संरक्षण फ़र्ज़ ये निभाने ही होंगे , चूक यदि हो गयी इनमें तो मंजर बहुत भयावह होंगे


सर सर बहती हवा कह रही

मत काटो मनुज पँख हमारे ,

स्वस्थ साँस का स्रोत यही हैं

समझो सच जीवन का प्यारे ।


नहीं रहेंगे विपिन अगर तो

कैसे बदरा मोहित होंगे ,

बरखा रानी के दर्शन को

तरस रहे भू अंबर होंगे ।


तेज ताप का होगा नर्तन

बवंडर मृदंग बजायेंगे

तृप्त न होंगे कंठ जीव के

सब हा हा कार मचायेंगे।


विज्ञान लाचार सा दिखेगा

सुख सँसाधन मुँह चिड़ायेंगे ,

मनमाने कोप प्रकृति के

सब मिलकर बहुत रुलायेंगे ।


जागो मानव अब भी जागो

नहीं भोग के पीछे भागो ,

श्वास महकती यदि लेनी है

लोभ ऊँचे भवन का त्यागो ।


वृक्ष रोपण और जल संरक्षण

 फ़र्ज़ ये निभाने ही होंगे ,

चूक यदि हो गयी इनमें तो 

मंजर बहुत भयावह होंगे ।


✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद


शनिवार, 8 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की कविता ----जीवन नगरी

मैं नहीं कहती कि 

मेरे सपनों के राजकुमार है वे

लेकिन मेरी जीवन नगरी में 

आज एक राजा सी 

अहमियत है उनकी ,

मुझे अच्छा लगता है

उनका मेरी नगरी पर राज करना 

मेरे लिये चिंतित होना ,

मीलों दूर होने पर भी

अपनी व्यस्तताओं से समय चुराकर

दिन भर में एक बार 

दूरभाष पर ही सही बात ज़रूर कर लेना 

हमारी संतान के वर्तमान व भविष्य

को सुरक्षा देने का

प्रयास करना आदि आदि ...।

मेरी छोटी सी नगरी का 

मेरा यह राजा 

निज प्रजा के प्रति 

अपने सभी दायित्व

बिना किसी दिखावे के 

कुशलतापूर्वक निभाना 

और मेरी जीवन राहों को 

आसां बनाने में मेरा साथ

कदम कदम पर देना चाहता है ।

उसका यह कर्म निर्वहन

मुझे उसकी ओर 

सदा आकर्षित करता है ।

मैं यह भी नहीं कहती कि

मैं उनके सपनों की राजकुमारी हूँ

पर उनके विशाल हृदय़ महल में

रानी बन हुकुम चलाने का हक

उन्होंने ही मुझे दिया है ।

मैं नहीं जानती कि

वह मेरा जन्म जन्मांतर का

 साथी है या नहीं 

पर इस ज़िन्दगी की राह में 

वह मेरे साथ है 

यह मेरे लिये कई जन्मों के 

उपहार के समान है 

जिसे जी भर के मैं माँग में 

सजाना चाहती हूँ ।


✍️ डॉ. रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----- पड़ी कोरोना की मार मैया कर दो बेड़ा पार हुई जनता अब लाचार मैया कर दो बेड़ा पार ।


पड़ी कोरोना की मार मैया कर दो बेड़ा पार

हुई जनता अब लाचार मैया कर दो बेड़ा पार ।


घर-घर असुर बन खड़ा कोरोना करता है मनमानी 

कोई अस्त्र नहीं हाथ किसी के मुश्किल जान बचानी

अछूत हुए सभी रिश्ते नाते चली हवा बेगानी

छूटे कैसे इससे जान मैया कर दो बेड़ा पार ।

पड़ी कोरोना की मार मैया.......


गांव नगर मचा हाहाकार है बिगड़ी आज कहानी

बाल - वृद्ध सब डरे - डरे हैं कुछ कहते नहीं जुबानी 

विद्या मंदिर बंद हुए हैं अब कैसे सीख सिखानी

आकर खड़े तुम्हारे द्वार मैया कर दो बेड़ा पार ।

पड़ी कोरोना की मार मैया.......


जड़ी बूटी और औषधि सारी मानो हुई पुरानी 

दवा कोई न असर दिखाये फिरा है सभी पर पानी

सांस सांस को तरसाने की कोरोना ने ठानी

दिखे न कोई उपाय मैया कर दो बेड़ा पार 

पड़ी कोरोना की मार मैया ........

✍️ डाॅ रीता सिंह, मुरादाबाद

शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----थामी बीस ने सर्दी में इक्कीस की पक्की डोर

 


थामी बीस ने सर्दी में

इक्कीस की पक्की डोर 

जा बैठा है अब किनारे

कर कोरोना का शोर ।

टीका आने की राह है

देख रही अब प्रजा सारी

कैसे देगी सब जनों को

सोच रही सरकार हमारी ।

भूख गरीबी और बेकारी

जनसंख्या भी कितनी भारी

जल संकट धूल धुआँ धुंध

फैली अनगिन हैं बीमारी ।

बिसर गयीं सारी ही बातें

महामारी के फैलावे में

कैसे स्वस्थ हो देश हमारा

रह न जाये बहकावे में ।

✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

शनिवार, 31 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना -----बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर , झूमें राधा नंदकिशोर


बिखरी शरद चाँदनी चहुँ ओर

झूमें राधा नंदकिशोर

आनंदित है सकल ब्रजमंडल

रास रचायें सब चित्तचोर ।

गोपी ग्वाले रस रंग डूबें

धुन वंशी की करे विभोर 

सुर छिड़े हैं जब प्रेम राग के

नाचे सबके ही मन मोर ।

चन्द्र किरणें खेल जल थल में 

लुभा रही हैं वे बहु जोर 

श्वेत रूप में सजी वसुंधरा

मनहु चाँद से मिली चकोर ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह का वर्णमाला गीत


 अ से अनार आ से आम , आओ सीखें अच्छे काम ।

इ इमली ई से ईख , माँगो कभी न बच्चों भीख ।

उ उल्लू ऊ से ऊन , कितना सुंदर  देहरादून ।

ऋ से ऋषि बडे तपस्वी , देखो वे हैं बड़े मनस्वी ।

ए से एड़ी ऐ से ऐनक , मेले में है कितनी रौनक ।

ओ से ओम औ से औजार , आओ सीखें अक्षर चार ।

अं से अंगूर अः खाली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली । आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

क से कमल ख से खत , किसी को गाली देना मत ।

ग से गमला घ से घर , अपना काम आप ही कर ।

ड़ खाली ड़ खाली , झूल पड़ी है डाली डाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

च से चम्मच छ से छतरी , लोहे की होती रेल पटरी ।

ज से जग झ से झरना , दुख देश के सदा हैं हरना ।

ञ खाली ञ खाली , गुड़िया ने पहनी सुंदर बाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली, आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

ट से टमाटर ठ से ठेला , सुंदर होती प्रातः बेला ।

ड से डलिया ढ से ढक्कन , दही बिलोकर निकले मक्खन ।

ण खाली ण खाली , रखो न गंदी कोई नाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली  ।

त से तकली थ से थपकी , मिट्टी से बनती है मटकी ।

द से दूध ध से धूप , राजा को कहते हैं भूप ।

न से नल न से नाली , गोल हमारी खाने की थाली ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

प से पतंग फ से फल , बड़ा पवित्र है गंगाजल ।

ब से बाघ भ से भालू , मोटा करता सबको आलू ।

म से मछली म से मोर , चलो सड़क पर बाँयी ओर ।

य से यज्ञ र से रस्सी , पियो लूओं में ठंडी लस्सी ।

ल से लड्डू व से वन , स्वच्छ रखो सब तन और मन ।

श से शेर ष से षट्कोण , अंको का मिलना होता जोड़ ।

स से सड़क ह से हल , अच्छा खाना देता बल ।

क्ष से क्षमा त्र से त्रिशूल , कड़वी बातें देती शूल ।

ज्ञ से ज्ञान देता ज्ञानी , हमें देश की शान बढ़ानी ।

आओ बजाएँ मिलकर ताली , आओ बजाएँ मिलकर ताली ।

✍️  डॉ रीता सिंह

चन्दौसी (सम्भल)