[1] दादी-दादा घर में होना
दादी-दादा घर में होना
सुख जैसे है दूना होना ,
बातें करता कल भी आँगन
बोले घर का कोना-कोना ।।
सूनेपन को पड़ता सोना
आलस को है आये रोना ,
खेल-खेल में सब कुछ सीखे
मुन्ने का मन बनता सोना ।
कथा कविता गिनती पहाड़े
वन में कैसे सिंह दहाड़े ,
अनगिन किस्से और कहानी
मुन्नी सुनती रोज जुबानी ।
नानी - नाना कहते मोना
बीज प्रेम के ही तुम बोना
सिर पर उनका हाथ रहे जब
नहीं पड़ेगा कुछ भी खोना ।
[2] चिड़िया आँगन आकर बोले
चिड़िया आँगन आकर बोले
रस की गोली मुंह में घोले ।
आओ राजू तुम भी खेलो
मोबाइल से छुट्टी ले लो ।
सारे साथी बाहर आओ
मिलजुल कर है रेल बनाओ ।
खेल-खेल में दाना खाओ
दाना खाकर सेहत पाओ ।
फुदक-फुदक है मस्ती कर लो
चहक-चहक दुख सब के हर लो ।
साथी से है मन की कह लो
बचपन को है खुलकर जी लो ।।
धूप भोर की मन को भाये
खेल-कूद सेहत बन जाये ।
अपनी एक टोली बन जाये
पड़े जरूरत साथ निभाये ।
✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत