रविवार, 12 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डा. मक्खन मुरादाबादी की व्यंग्यकाव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का 11 जनवरी 2020 को लोकार्पण- समारोह एवं कृति चर्चा का आयोजन .....

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा', 'सवेरा', 'अंतरा' एवं 'हिन्दी साहित्य सदन' के संयुक्त तत्वावधान में  शनिवार 11 जनवरी 2020 को नवीन नगर मुरादाबाद स्थित डा. मक्खन मुरादाबादी के आवास पर लोकार्पण समारोह एवं कृति चर्चा का कार्यक्रम संपन्न हुआ, जिसमें हिन्दी व्यंग्यकविता के महत्वपूर्ण तथा विख्यात हस्ताक्षर डा. मक्खन मुरादाबादी की काव्य-कृति 'कड़वाहट मीठी सी' का लोकार्पण किया गया। 

कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ने कहा, "मक्खन मुरादाबादी रूढ़ अर्थों में छांदस कवि नहीं हैं लेकिन वह अपनी ध्वन्यात्मकता का प्रयोग करते हुए अपनी कविता का वितान मुक्त छंद में बुनते हैं।उनकी कविताएँ सामाजिक विसंगतियों पर करारी चोट करती हैं।मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. आर. सी. शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा, "पुस्तक 'कड़वाहट मीठी सी' की कविताओं में व्यंग्य को विसंगति के विरुद्ध शस्त्र की तरह इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि मक्खन जी की कविताओं में व्यंग्य स्वयं शस्त्र बन जाता है। उनकी कविताओं के कथ्य में व्यंग्य की ऐसी अंतर्धारा प्रवाहित होती है जो बाह्य प्रदर्शन से परे है।"

विशिष्ट अतिथि श्री मंसूर 'उस्मानी' ने कहा, "मक्खन जी 1970 से कवि सम्मेलन के मंचों पर अपनी कविताओं के माध्यम से लोकप्रिय हैं। 50 वर्ष की कविता साधना के बाद आई उनकी कृति हिन्दी साहित्य में निश्चित रूप से अपना अलग स्थान बनाएगी और सराही जाएगी।" कार्यक्रम का संचालन कर रहे संस्था-अक्षरा के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा, ''मक्खनजी की कविताओं में समाज और देश में व्याप्त अव्यवस्थाओं, विद्रूपताओं, विषमताओं के विरुद्ध एक तिलमिलाहट, एक कटाक्ष, एक चेतावनी दिखाई देती है, यही कारण है कि उनकी कविताओं में विषयों, संदर्भों का वैविध्य पाठक को पुस्तक के आरंभ से अंत तक जोड़े रखता है। नि:संदेह इस कृति की कविताएं संग्रहणीय हैं।" डॉ. अजय 'अनुपम' ने इस अवसर पर कहा, "मक्खन जी की कविताएँ समाज में, देश में व्याप्त विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए बिसंगतियों के लिए जिम्मेदार चेहरों को बेनकाब भी करती हैं और आईना भी दिखाती हैं।" श्री गगन भारती ने कहा, "मक्खन जी की कविताएं व्यंग्य की श्रेष्ठ कविताएं हैं जो उनके व्यक्तित्व की तरह सहज व सरल भाषा में कही गई हैं और पाठक के मन को छूती हैं।" इसके अतिरिक्त डॉ. आसिफ हुसैन, शायर ज़िया ज़मीर, डॉ. मनोज रस्तोगी, डॉ. महेश दिवाकर, विशाखा तिवारी, डॉ.प्रेमवती उपाध्याय, अशोक विश्नोई, डॉ. अर्चना गुप्ता, कशिश वारसी, भोलाशंकर शर्मा, फक्कड़ मुरादाबादी, अक्षिमा त्यागी, अखिलेश शर्मा, आदि ने भी कृति के संदर्भ में विस्तारपूर्वक विचार व्यक्त किए तथा सर्वश्री काव्यसौरभ रस्तोगी, मयंक शर्मा, राजीव 'प्रखर', कौशल शलभ, धन सिंह, प्रशांत मिश्र, एम. पी. बादल जायसी, शैलेश भारतीय, खुशबू त्यागी आदि उपस्थित रहे। अंत में कृति के कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने एकल कविता-पाठ भी किया।









बुधवार, 1 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष आनन्द स्वरूप मिश्रा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख








स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में मुरादाबाद के कथाकार आनन्द स्वरूप मिश्रा ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है । आपने  शताधिक  कहानियों और उपन्यासों की रचना कर हिन्दी कथा सहित्य में एक उल्लेखनीय योगदान दिया है।

     श्री मिश्रा का जन्म 14 अगस्त 1943 को मुरादाबाद के लाईनपार क्षेत्र में हुआ । आपके पिताश्री ब्रज बिहारी लाल मिश्रा रेलवे विभाग में विद्युत इंजीनियर के पद पर थे। आपके पितामह श्री गुलजारी लाल मिश्रा भी रेलवे विभाग में थे। चार भाइयों एवं तीन बहनों में उनका स्थान छठा था । उनके तीनों भाइयों के नाम आत्म स्वरूप  

मिश्रा, ब्रह्म स्वरूप मिश्रा और ज्योति स्वरूप मिश्रा थे।

    आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा बरेली और देहरादून में हुई। वर्ष 1955 में मुरादाबाद नगर के केजीके इण्टर कालेज से हाईस्कूल एवं हिन्दू इण्टर कालेज से वर्ष 1957 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु बी एससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1961 में हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने विधि कक्षा में  प्रवेश ले लिया। प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही वर्ष 1962 में उनकी नियुक्ति डिफेन्स विभाग में हो गयी लेकिन उनका मन वहां नहीं रमा और वर्ष 1963 में त्यागपत्र देकर पुनः मुरादाबाद आ गये। वर्ष 1964 में उन्होंने बीटी परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उनकी नियुक्ति सरस्वती इण्टर कालेज नजीबाबाद में अध्यापक के रूप में हो गयी। 

  वर्ष 1966 से 1968 तक केजीके इंटर कॉलेज मुरादाबाद, वर्ष 1968 से 69 तक सनातन धर्म इण्टर कालेज, रामपुर में उन्होंने अध्यापन कार्य किया । वर्ष 1969 में उनकी नियुक्ति मुरादाबाद के महाराजा अग्रसेन इण्टर कालेज में हो गयी ।

   वर्ष 1963 में जब वह डिफेन्स विभाग में सेवारत थे। तब उनका विवाह शाहजहाँपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक की पुत्री सरोज मिश्रा के साथ 15 जून 1963 को सम्पन्न हो गया । आपके तीन पुत्र विपिन मिश्रा, अमित मिश्रा और डॉ अजय मिश्रा हैं ।एक पुत्री  नीलम मिश्रा की मृत्यु वर्ष 2009 में हो चुकी है।

    विद्यार्थी जीवन में देवकीनन्दन खत्री की चंद्रकांता संतति, बंगला कथाकार रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा बंकिम चन्द्र की कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते उनकी रुचि भी कहानी लेखन हेतु जागृत हो गयी और उन्होंने कहानी लिखना आरम्भ कर दिया। मेरठ में शिक्षाध्ययन के दौरान वह वीरेन्द्र कुमार गौड़ के सम्पर्क में आये तथा उनके साथ ही सूरज कुण्ड पर एकान्त में बैठकर कहानियों के प्लाट सोचकर लेखन करते थे ।

  इसके अतिरिक्त ओम प्रकाश शर्मा, कैलाश मिश्र, बनफूल सिंह, शिव अवतार सरस, मनोहर लाल वर्मा, दयानन्द गुप्त, शांतिप्रसाद दीक्षित, रमेश चन्द्र शर्मा विकट तथा आनन्द प्रकाश जैन उनकी मित्र मण्डली में रहे ।

  उनकी पहली कहानी का प्रकाशन नगर से प्रकाशित होने वाले पत्र में वर्ष 1956 में 'मुरझाया पुष्प' शीर्षक से हुआ । तत्पश्चात् चित्रकार साप्ताहिक (दिल्ली), छात्र संगम, मासिक (मेरठ), प्रगति मासिक (मेरठ), लोकधाता साप्ताहिक (रामपुर), देशवाणी दैनिक (मुरादाबाद), भारत दर्पण साहित्यिक (मेरठ), साथी मासिक (मुरादाबाद), अरुण मासिक (मुरादाबाद), आदर्श कौमुदी (चंदक, बिजनौर), सरिता (दिल्ली) तथा हरिश्चन्द्र बन्धु (मेरठ) आदि विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ प्रकाशित हुईं। 

मुरादाबाद से प्रकाशित मासिक पत्र 'अरुण' में प्रकाशित ' बराबर बाजी', 'टूटती  कड़ियां (अगस्त, 1974), एक सुलगती हुई बाती (सितम्बर, 1975), कालिख (नवम्बर 1974), मेरठ की पत्रिका में 'अनाथालय (1960), यात्रा के पन्ने (1961), चित्रकार में प्रकाशित विद्रोह की चिंगारी (दिसम्बर 1956) भारत-दर्पण में प्रकाशित 'मृत्यु की घड़ी ( सितम्बर 1958), जलती चिंगारी (सितंबर 1960) छात्र संगम में अभिनय ( नवम्बर 1960), चुनाव की चाय, ज्योत्सना में प्रकाशित क्या उसने कारण पूछा था (1970), उलझन (1971), जीवन की दौड़ (1972), एक बलिदान और (1991), उसका अधिकार (1976), साथी में प्रकाशित पासा पलट गया, उम्मीद के सितारे, देवता, हरिश्चन्द्र बन्धु में प्रकाशित त्रिभुज का नया बिन्दु, उलझता सुलझता जीवन ( अप्रैल 1988), शाप का अंत (1990), खोटा सिक्का, एक नया सीरियल आदि उल्लेखनीय है।

   स्वतंत्र रूप से  उनकी पहली कृति उपन्यास के रूप में 'अलग अलग राहें (1962) पाठकों के समक्ष आई। दूसरा उपन्यास प्रीत की रीत (1969), तीसरा उपन्यास अंधेरे उजाले प्रकाशित हुआ।  चौथा उपन्यास कर्मयोगिनी(1992), पांचवा उपन्यास चिरंजीव(1994) तथा छठा उपन्यास रजनी (2002) प्रकाशित हुआ। आपके तीन

कहानी संग्रह टूटती कड़ियाँ(1993), झरोखा(1996) तथा इंतजार (2003) प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त एक कविता संग्रह विस्मृतियांं (1997) प्रकाशित हुआ ।

    आपको अनेक संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित भी किया गया। अभी बीती 8 सितंबर 2023 को रोटरी क्लब धामपुर इंडस्ट्रियल एरिया द्वारा आपको शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मरणोपरांत सम्मान से विभूषित किया गया ।

    आपका निधन तीन अप्रैल 2005 को मुरादाबाद में सिविल लाइंस स्थित अपने आवास मिश्रा भवन में हुआ ।



✍️  डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822