सोमवार, 13 सितंबर 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 13 सितंबर 2021 को साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' को किया गया "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या सोमवार 13 सितंबर 2021 को सुप्रसिद्ध साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' को "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल एवं प्रतीक चिह्न भेंट किये गये। सम्मान-समारोह मिलन विहार स्थित मिलन धर्मशाला में आयोजित किया गया। राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि  बृजेश कुमार तिवारी एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री अशोक विश्नोई एवं बदायूं के रचनाकार राम कृपाल तिवारी मंचासीन हुए। कार्यक्रम का संचालन संयुक्त रूप से राजीव प्रखर एवं जितेन्द्र कुमार जौली द्वारा किया गया।

डाॅ. महेश 'दिवाकर'  के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं रचनाकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा साहित्य भूषण सम्मान सम्मानित डॉ. महेश ‘दिवाकर’  हिन्दी के उन्नयन एवं संवर्द्धन के लिए पूर्णतया समर्पित हैं।  उनकी कृतियों में दो शोध ग्रन्थ, दस समीक्षा-शोधपरक ग्रन्थ, दो साक्षात्कार ग्रंथ,दो नयी कविता संग्रह, दो गीत संग्रह,आठ मुक्तक एवं गीति-संग्रह, सात खण्ड काव्य, तेरह यात्रा-वृत्त, दो संस्मरण एवं रेखाचित्र संग्रह उल्लेखनीय हैं। आपका साहित्य लोकधारा नाम से ग्यारह खंडों में प्रकाशित हो रहा है इसके प्रथम पांच खंड प्रकाशित हो चुके हैं, शेष प्रकाशन प्रक्रिया में हैं । सम्मान-पत्र का वाचन जितेन्द्र कुमार जौली ने किया। 

 कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए सम्मानित साहित्यकार डाॅ. महेश 'दिवाकर' ने कहा-– 

"हिन्दी भाषा राष्ट्र की, करती युग सम्मान ।

सकल विश्व का भूल से, करें नहीं अपमान।।

मुख्य अतिथि  बृजेश कुमार तिवारी ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है| अतः हमें इसका सम्मान उसी भांति करना चाहिए जिस तरह हम अपनी मां का सम्मान करते हैं|

योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा कि अपनी मातृभाषा का सम्मान करके हमें प्रसन्नता तथा स्वाभिमान का अनुभव होना चाहिए|

अशोक विश्नोई ने कहा कि हिन्दी की गाथा गाते हैं परंतु हिन्दी के विषय में केवल 14 सितम्बर को ही हम अपनी भावना को व्यक्त करते हुए कहते हैं कि हम हिन्दी में कार्य करें| हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हमें इसके प्रति समर्पित रहना चाहिए|

कार्यक्रम में योगेन्द्र वर्मा व्योम, रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ, राम सिंह नि:शंक, राम कृपाल तिवारी, मनोज रस्तोगी, रामदत्त द्विवेदी, ओंकार सिंह ओंकार आदि उपस्थित रहे। संस्था के अध्यक्ष श्री रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।















::::::प्रस्तुति::::::

 जितेन्द्र कुमार जौली

महासचिव

हिन्दी साहित्य संगम, मुरादाबाद

मोबाइल-9358854322

रविवार, 12 सितंबर 2021

मुरादाबाद की संस्था आदर्श कला संगम ने रविवार 12 सितम्बर को किया कवि मयंक शर्मा को पंडित वाचस्पति शर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित, आयोजित हुई काव्य गोष्ठी

  मुरादाबाद की सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था आदर्श कला संगम की ओर से हिन्दी पखवाड़े पर एक काव्य-गोष्ठी एवं सम्मान समारोह का आयोजन दिव्य सरस्वती इंटर कॉलेज के सभागार में किया गया। वरिष्ठ कवयित्री डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी ने की। मुख्य अतिथि डाॅ. के. के. मिश्रा एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध रंगकर्मी श्री राजेश रस्तोगी व डाॅ. प्रदीप शर्मा मंचासीन रहे। संचालन सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। कार्यक्रम में महानगर के उभरते हुए रचनाकार मयंक शर्मा को पंडित वाचस्पति शर्मा स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह के पश्चात् एक शानदार काव्य-संध्या का भी आयोजन किया गया जिसमें महानगर के रचनाकारों ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी।

यश भारती माहेश्वर तिवारी की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी -
कभी-कभी मेरे भीतर,
जंगल उग आता है।
खरगोशों-सा मन,
घासों के संग बतियाता है।
सहसा नायक बन जाते हम,
परी कथाओं के।
सपनों के संग जुगनू
उड़ते हैं संग हवाओं के।

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कुछ इस प्रकार अन्तस को झिंझोड़ा -
वह सबको खुश रखती थी
खुश ही रहती थी,
एक नदी, बहती थी,
अब नहीं बहती।

वीरेन्द्र ब्रजवासी ने गीत की तान इस प्रकार छेड़ी -
तन वैरागी मन वैरागी, जीवन का हर क्षण वैरागी।
डाॅ. प्रेमवती उपाध्याय ने गीत की मिठास में इस प्रकार सभी को डुबोया - 
बिना ज्ञान के मोहपाश में जकड़ा जीता है।
भरा हुआ घर बार मगर अंतरघट रीता है।।

डाॅ. मनोज रस्तोगी के पैने व्यंग्य इस प्रकार थे -
सुन रहे यह साल आदमखोर है।
हर तरफ चीख, दहशत, शोर है।
मत कहो यह वायरस ज़हरीला बहुत, आदमी ही आजकल कमज़ोर है।

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने आम व्यक्ति की वेदना को इस प्रकार साकार किया - 
भूख मिली थी कल रस्ते में
बता रही थी हाल।
पतली-सी रस्सी पर
नट के करतब दिखा रही
पीठ-पेट को ज्यों रोटी का मतलब सिखा रही।
हैं उसकी आँखों में लेकिन,
ज़िन्दा कई सवाल।

राजीव 'प्रखर' ने हिन्दी को नमन करते हुए कहा -
चाहे जो भी धर्म हो, चाहे जो परिवेश।
हिन्दी से ही एक है, अपना भारत देश।। 
मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

मनोज वर्मा 'मनु' की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार रही -
हिन्दी के हित के लिये, पखवाड़ा पर्याप्त।
फिर दिन साढ़े तीन सौ, घुट अंधियारा व्याप्त।।

युवा कवि मयंक शर्मा ने गीत सुनाया- 
जन्म सार्थक हो धरा पर, स्वप्न हर साकार हो। 
हम चलें कर्तव्य पथ पर, और जय जयकार हो।
कार्यक्रम में डॉ. प्रदीप शर्मा, अनिल कुमार शर्मा, सतीश कुमार, राजदीप शर्मा, सुशील शर्मा, सुमित श्रीवास्तव, संजय स्वामी श्रीराम शर्मा, घनश्यामदास, अनिल शर्मा आदि उपस्थित रहे । 























::::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ. प्रदीप शर्मा
सचिव, आदर्श कला संगम
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के तहत 10 व 11सितंबर 2021 को मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर वाट्सएप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से 10 व 11 सितंबर 2021 को दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि वीरेन्द्र कुमार मिश्र का मुरादाबाद के नाट्य साहित्य में उल्लेखनीय योगदान रहा है । राष्ट्र के प्रति समर्पण और हिंदुत्व का भाव जगाने के साथ साथ उन्होंने अपने नाटकों के माध्यम से ऐतिहासिक चरित्रों और घटनाओं को भी प्रस्तुत किया । 
 मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने श्री मिश्र के जीवन एवं रचना संसार पर प्रकाश डालते हुए कहा कि  वर्ष 1958 में उनकी प्रथम नाट्य कृति छत्रपति शिवाजी प्रकाशित हुई। उनका कहानी संग्रह पुजारिन वर्ष 1959 में प्रकाशित हुआ। इसमें उनकी 14 कहानियां संकलित हैं। इसके अतिरिक्त उनकी नाट्य कृतियां गुरु गोविंद सिंह, सम्राट हर्ष और आचार्य चाणक्य प्रकाशित हुईं । उनकी अप्रकाशित नाट्यकृतियों में शेरशाह सूरी और विक्रमादित्य उल्लेखनीय हैं । नाटक छत्रपति शिवाजी के लिए शारदा विद्यापीठ द्वारा उन्हें साहित्य वाचस्पति उपाधि से सम्मानित किया गया। उनका निधन 28 अप्रैल 1999 को हुआ । उन्होंने बताया कि इससे पूर्व स्मृतिशेष साहित्यकारों दुर्गादत्त त्रिपाठी, कैलाश चन्द्र अग्रवाल, पंडित मदन मोहन व्यास, दयानन्द गुप्त, बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी,डॉ भूपति शर्मा जोशी, ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश जी पर कार्यक्रम आयोजित हो चुके हैं ।

   

चर्चा में भाग लेते हुए  महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा स्मृति शेष वीरेंद्र कुमार मिश्र पर आयोजन देखकर  वर्षों पुरानी स्मृतियां सजीव हो गईं। मैं रस्तोगी इंटर कॉलेज जो उस समय रस्तोगी मंदिर अमरोहा गेट में संचालित होता था, में हिंदी का अध्यापक था और गुलाल गली में रहता था। वीरेंद्र कुमार मिश्र  कुछ ही दूर रेती स्ट्रीट में रहते थे और मुस्लिम इंटर कॉलेज में शिक्षक थे।  शिक्षक, पड़ोसी मुहल्ले और साहित्यकार होने के नाते हम दोनों में प्रगाढ़ संबंध थे। हमारे साथ डॉ ज्ञान प्रकाश सोती भी थे जो दिनदारपुरा में रहते थे । उनकी रुचि नाटक मंचन में अत्यधिक थी। वीरेंद्र मिश्र नाटक एवं एकांकी लिखते थे और हम दोनों  उनका मंचन कराते थे।  डॉ ज्ञान प्रकाश सोती  के साथ हमने उनके कई नाटकों का मंचन अपने विद्यालय में कराया। वीरेंद्र कुमार मिश्र स्वभाव से एक सरल व्यक्ति थे। उनमें बनावट की कोई बू नहीं थी।शिक्षक आंदोलन में भी वे सदा सक्रिय रहे।भारतीय संस्कृति, हिंदुत्व और राष्ट्रीयता की भावना से वह ओतप्रोत थे। यही भावना उनके संपूर्ण लेखन का आधार थी। भारत के गौरवशाली ऐतिहासिक व्यक्तित्वों पर उन्होंने अनेक नाटकों की रचना कर न केवल इतिहास के पन्नों को प्रस्तुत किया बल्कि आक्रमणकारी मुगलों की संस्कृति से भी वर्तमान पीढ़ी को अवगत कराया।  
 दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त ने कहा कि मैंने स्मृतिशेष श्री वीरेन्द्र मिश्र जी की कविताएं व कहानियां एक पाठक की हैसियत से पढ़ीं । सहज और सरल ,अपने रचियता की भांति मुझ पाठक को अपने रस मेंं बहाती ले गयीं । ऐसे व्यक्तित्व को नमन । पटल संचालक श्री मनोज रस्तोगी जी को साधुवाद । उनका परिश्रम अतुलनीय है।

     

केजीकेमहाविद्यालय, मुरादाबाद की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप ने कहा मुरादाबाद के साहित्य की गौरवशाली परम्परा में वीरेंद्र मिश्र जी की कृतियों का अनुपम योगदान है, उन्होंने अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का अद्भुत प्रयास किया है। उनका नाटक" आचार्य चाणक्य" एक महत्वपूर्ण नाट्य कृति है  ,जिसमें ऐतिहासिक विषय वस्तु से एक पूरा कथानक तैयार कर हमारे समक्ष इतिहास को खंगालने का काम किया है।चाणक्य एक अत्यंत ही प्रभावशाली और राष्ट्रवाद से ओतप्रोत नाटक है ,इतिहास के गौरवपूर्ण परम्परा को नाटक रूप में ढालकर वीरेन्द्र मिश्र ने वर्तमान समस्याओं के समाधान के रूप में प्रस्तुत किया है । पांच अंको में लिखा गया यह नाटक अपने पूरे कलेवर में सम्पूर्ण घटनाओं को लेकर रोचक बन पड़ा है ,जो नाटक के तत्वों  के आधार पर पूरी तरह से खरा उतरता है । अतः वीरेन्द्र मिश्र के सभी नाटक ऐतिहासिक कथावस्तु को लेकर लिखे गए हैं, प्रस्तुत नाटक यह दर्शाता है कि लेखक किस प्रकार वर्तमान के समस्याओं के निदान के लिए अपने अतीत के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ज्वलंत मुद्दों के साथ समायोजन करता है ।अपने राष्ट्र की अक्षुण्णता बनाये रखने में वीरेन्द्र मिश्र के नाटकों का हिंदी नाट्य साहित्य एवम परम्परा में महत्वपूर्ण स्थान है ।
नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार दीपिका माहेश्वरी सुमन ने कहा कि वीरेंद्र कुमार मिश्र  की कहानियां सुंदर भावनाओं से ओतप्रोत, 'वेदना' पर आधारित हैं। वेदना का यह क्रम कहीं टूटा नजर नहीं आता। कहीं भक्ति में परिवर्तित होता है, कहीं देश भक्ति में तथा उस समय की सामाजिक संकीर्ण विचारधाराओं से होता हुआ, कभी आत्मदाह के दुखांत पर भी पहुंचता है, तो कहीं प्रणय वेदना को प्रबलता से दिखाया गया है। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने वीरेन्द्र मिश्र जी से सम्बंधित संस्मरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि वीरेन्द्र मिश्र जी ने जिससमय लेखन कार्य आरंभ किया उस समय राष्ट्रोत्थान की आहट हवा में थी । उसके लिए नैतिक भावना एवं संघर्ष पूर्ण जीवन की तैयारी का भाव जगाने वाले साहित्य की भी आवश्यकता थी। मुरादाबाद के साहित्य साधक भी अपनी शक्ति और सामर्थ्य भर सद्भाव से उसे पूरा करने के लिए कार्यरत थे। आज की पीढ़ी को उनके बारे में जानकारी हो या न हो किन्तु उनका स्मरण करना और कराना हमारा पुण्यकर्म है। हो सकता है कल कोई साहित्य-शोधक उनके रचे साहित्य को प्रकाश में लाने काम करने का साहस कर बैठे,आज की शिक्षा की दशा में यह कामना फलीभूत होने की संभावना कम ही प्रतीत होती है परन्तु अच्छे लोग और अच्छे काम हर काल खण्ड में होते ही हैं   
 रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि  वीरेंद्र कुमार मिश्र ऐसे  कलमकार रहे जिनमें राष्ट्रीयत्व का भाव प्रबल था तथा साथ ही साथ भारत की सनातन हिंदू संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा और आदर विद्यमान था । आपने हिंदी साहित्य को जो नाटक प्रदान किए ,उनके विषय हमारे पुरातन गौरव बोध से भरे हुए हैं। छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह और  आचार्य चाणक्य आदि महापुरुषों के स्वाभिमानी व्यक्तित्व को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाकर आपने नाटक रचे, यही यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आप की विचारधारा किस प्रकार से राष्ट्रीयत्व तथा हिंदुत्व से ओतप्रोत थी । आपका कहानी संग्रह पुजारिन की कुछ कहानियाँ मैंने पढ़ीं। तपस्विनी एक ऐसी ही कहानी थी जिसमें हिंदू राष्ट्र शब्द का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीयत्व के भाव के पतन पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया गया था। साथ ही एक ऐसी तपस्विनी का चरित्र कहानीकार ने उपस्थित किया जो आजादी की अलख जगाने के लिए स्वयं को समर्पित कर देती है। वीरेंद्र मिश्र जी भारत की हिंदू संस्कृति के आराधक हैं । इस आराधना को नतमस्तक होकर प्रणाम करने की आवश्यकता है । इसी के गर्भ से वह स्याही हमें मिल सकेगी ,जिससे कलम कुछ स्वाभिमान से रससिक्त रचना रच पाएगी। उन्होंने एक कुण्डलिया भी प्रस्तुत की----

कहना   सिखलाया    हमें ,  हिंदू  -  हिंदुस्तान

धन्य  मिश्र  वीरेंद्र  जी , धन्य - धन्य  अवदान

धन्य - धन्य  अवदान , राष्ट्र  के  जागृत  प्रहरी

समझ  देश - अभिमान , विलक्षण  पाई  गहरी

कहते  रवि  कविराय ,सजग होकर सब रहना

झुके न माँ का शीश ,कलम का यह ही कहना 

     

 दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार ने कहा मैने वीरेन्द्र मिश्र जी को उन दिनों लगभग प्रतिदिन शाम को अपने मित्र सक्सेना जी  के साथ स्टेशन रोड पर चाय की  दुकान पर माध्यमिक शिक्षक संघ की राजनीति की चर्चा मे मशगूल देखा है, लेकिन इस बात का मुझे पछतावा है कि उनकी साहित्यिक प्रतिभा से हम अपरिचित रहे और उनके राष्ट भक्ति की रचनाओं से वंचित। सम्राट हर्ष, आचार्य चाणक्य,छत्रपति शिवाजी,गुरु गोविन्द सिंह जैसे प्रतिष्ठित एतिहासिक चरित्रों पर नाटय रचना करना किसी सिद्धहस्त साहित्यकार के बस की ही बात है।
 वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि ऐतिहासिक पात्रों को केंद्र में रखकर नाटक की रचना अत्यधिक शोध और अध्ययन के बाद ही की जा सकती है। वीरेन्द्र कुमार मिश्र इसमें सफल हुए हैं। उनकी कहानियों का कथानक एवं शिल्प पाठक को अंत तक बांधे रखने में सक्षम है। सभी कहानियां स्वयं में विशिष्ट हैं और पढ़ते पढ़ते पाठक कहानी से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है, जो किसी भी लेखक के रचनाकर्म की उत्कृष्टता को दर्शाता है!उनके साहित्यिक योगदान का महत्व इसी बात से आंका जा सकता है कि साहित्य शारदा विद्या पीठ द्वारा उन्हें साहित्य वाचस्पति की उपाधि प्रदान की गयी!

     

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा कि स्मृति शेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र के कहानी संग्रह पुजारिन में संकलित कहानियों तपस्विनी, अनारकली, पुजारिन, अजय एवं तोरण दुर्ग का कथा शिल्प दुर्लभ एवं अद्भुत है। उनकी कहानियों में देश के प्रति त्याग देश प्रेम की उदात्त भावना के रूप में देखने को मिलता है। वहीं उनके नाटक छत्रपति शिवाजी ,सम्राट हर्षवर्धन, ,आचार्य चाणक्य, ,गुरु गोविंद सिंह उनके लेखन की उत्कृष्टता को चरम ऊंचाइयों पर ले जाता है। उनके लेखन को तप के रूप में देखा जाए तो अनुचित न होगा।  मुझे गर्व है साहित्यिक जगत की ऐसी महान विभूति पर कि मैं भी उसी नगर में निवास करता हूं जिसमें  स्मृति शेष वीरेंद्र कुमार मिश्र पले बढ़े हुए एवं कालजयी साहित्य की रचना की।
 युवा साहित्यकार राजीव प्रखर ने कहा कि उनका कहानी संग्रह पुजारिन मानवीय अन्तर्द्वंद्व की सशक्त शाब्दिक अभिव्यक्ति है। पुजारिन, तिरस्कृत, तोरण दुर्ग, अजय, तपस्विनी, चिताभस्म, अनारकली, आशा, सफल जीवन, ऐलान, सूखी हड्डियाँ, चलता रुपया, यह मानव हैं? तथा कागज़ के फूल, इन सभी कहानियों में छिपी सामाजिक व पारिवारिक उथल-पुथल, संघर्ष आज भी किसी न किसी रूप में हमारे चारों ओर व्याप्त है ।     
 साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि वीरेंद्र कुमार मिश्र की रचनाओं में जीवन के प्रति कर्मठता, निष्ठा व समर्पण की भावना विशेष रूप से परिलक्षित होती है ।उनकी कहानियों कागज के फूल ,चलता रुपया ,और ऐलान में वर्तमान जीवन की विसंगतियों को बड़े ही मन मोहक ढंग से प्रस्तुत किया गया है ।स्मृतिशेष श्री मिश्र जी की कहानियों के कथानकों की भाषा व भाव अत्यंत भावपूर्ण होने के साथ -साथ अपनत्व की भावना से ओतप्रोत रहते है ।  
सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा ने कहा श्री मिश्र जी द्वारा लिखित "पुजारिन" संग्रह से अवतरित कहानी,"तपस्विनी" अपनी सजीवता के लिए जानी जाती है, बहुत अच्छी लगी। "तोरण दुर्ग " में शाहजी भोंसले के पुत्र वीर शिवाजी और शिवाजी की माताजी के साथ ही, उनकी प्रेरणास्रोत जीजाबाई ,की वार्ता को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है, जो किसी भी बच्चे में, एक प्रेरणा और उत्साह भरने का काम करेगी। और वास्तव में कवि का यह धर्म होना चाहिए कि उसकी लेखनी से जो भी शब्द निकलें या लिखे जाएं वह समाज को किसी ना किसी रूप में ,लाभान्वित अवश्य करें । साहित्य के क्षेत्र में श्री मिश्र जी का योगदान अविस्मरणीय व अतुलनीय है। जितनी शालीनता, संकल्पना और सजीवता आपके साहित्य में देखने को मिलती है, सही अर्थों में तो यह अद्वितीय ही है।

       

गुरविंदर सिंह ने कहा कि आदरणीय मिश्रा जी बहुत बड़े साहित्यकार थे तथा उन्हें नाटकों में लेखन में विशेष महारत हासिल थी नाटकों के प्रति उनकी अभिरुचि की पराकाष्ठा यह है कि जब मैं छठी कक्षा में था तो सिख धर्म अनुयाई होने के नाते मेरे सिर पर काफी घने केश (बाल) थे तो आपने मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी भगवान् शंकर जी की स्तुति "शिव रुद्राष्टक" कंठ कराई और टाउन हॉल में उन दिनों चल रहे हरि विराट संकीर्तन सम्मेलन में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी की साज-सज्जा में धनुष बाण धारण कर उपरोक्त स्तुति पढ़ने के लिए चयनित किया और टाउन हॉल अपने साथ ले गए थे, जिसके कुछ अंश अभी भी मेरे मन मस्तिष्क में हैं। उन्होंने बहुत उच्च कोटि के नाटक लिखे जिनमें छत्रपति शिवाजी, सम्राट हर्ष विक्रमादित्य, गुरु गोबिन्द सिंह जी आदि महान व्यक्तित्वों पर नाटक लिखे, यहां एक बात स्पष्ट करना चाहता हूं हालांकि गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के व्यक्तित्व पर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से उपरोक्त रचना बहुत खोज परक एवं उनका जीवन परिचय कराने हेतु उच्च कोटि की है, "परंतु सिख पंथ में श्रद्धेय गुरु साहिबान, उनके परिजनों एवं उनके समकालीन गुरु सिखों के जीवन पर कोई नाटक मंचन, फिल्म या किसी प्रकार का कोई अभिनय नहीं किया जा सकता" अतः जीवन परिचय के रूप में स्वीकार है ।

गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि मुझे उनकी तपस्विनी कहानी बहुत ही अच्छी लगी। तोरण दुर्ग कहानी में वीर शिवाजी और जीजाबाई  की वार्ता का सजीव चित्रण किया गया है। इसके अतिरिक्त नाटयकृति गुरुगोविंद सिंह  भी अपने आप में अनूठी है। कुल मिलाकर मैं यह कह सकती हूं कि श्री मिश्र सरीखे साहित्यकार आज की पीढ़ी के नव रचनाकारों के लिए मार्गदर्शक के रुप में रहेंगे। 

मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद द्वारा मुरादाबाद के दिवंगत साहित्यकारों के संदर्भ में आयोजन किया जाना एक सराहनीय और ऐतिहासिक कार्य है । इसके लिए अनुज डॉ मनोज रस्तोगी जी की जितनी सराहना की जाए वह कम होगी ।   

नजीबाबाद( बिजनौर) की साहित्यकार रश्मि अग्रवाल ने कहा कि पटल पर मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में विशद जानकारी प्राप्त हुई । साहित्यिक मुरादाबाद इसके लिए बधाई का पात्र है ।

     

सुदेश आर्य ने कहा कि इसप्रकार के आयोजनों से हमें मुरादाबाद के गौरवशाली साहित्य और साहित्यकारों के विषय में जानकारी मिलती है । यह क्रम निरन्तर जारी रहे इसके लिए परमपिता परमेश्वर से मैं प्रार्थना करती हूं ।

बिजनौर की साहित्यकार रंजना हरित ने साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम की सराहना करते हुए शुभकामनाये व्यक्त कीं। उन्होंने कहा कि यह आयोजन सराहनीय है ।   

लखनऊ के रोहित मिश्र ने कहा कि स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी से दूर रह कर भी उनके काफी करीब था मैं । मेरा उनसे "मामा भांजे" का रिश्ता है, मैं कोई बहुत बड़ा साहित्यकार तो नहीं हूँ मगर साहित्य की थोड़ी समझ मुझमें जरूर है शायद इसी कारण वो मुझसे, (जब भी मेरा मुरादाबाद)जाना होता था तो चर्चा किया करते थे । अपने अंतिम समय से कुछ महीनों पहले उन्होंने मुझे मुरादाबाद बुलाया और अपनी लिखी चार किताबें मुझको दीं, तभी मुझे पता चला कि उनको वाचस्पति अवार्ड भी दिया गया था।     

स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी की सुपुत्री रीता शर्मा ने कहा कि मैं आप सबकी बहुत आभारी हूँ,आपने मुझे इस  समूह में सम्मिलित किया |  समूह द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आप सभी के द्वारा मेरे पिता जी की कृतियों की सराहना और उन्हें जन समुदाय के बीच साझा करने के लिए आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद । 
वीरेंद्र कुमार मिश्र जी की सबसे छोटी पुत्रवधू रचना मिश्र(इटौंजा ,लखनऊ) ने कहा कि मैं स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रही हूं कि ऐसे महान साहित्यकार के सान्निध्य में मुझे रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने उनके सम्पूर्ण साहित्य का अध्ययन किया है।उनकी व मेरी  साहित्यिक विचारधारा लगभग एक समान थी। इस कारण मेरा व उनका ज्ञानपूर्ण विषयों पर सदैव संवाद बना रहा।वे हिंदी ,अंग्रेजी, संस्कृत व अनेक विषयों के ज्ञाता थे।वे होम्योपैथी के भी विशेष जानकार थे जिसका लाभ जीवन में मैने बहुत उठाया।जीवन के अंतिम पड़ाव में भी उनमें असीम ऊर्जा व इच्छाशक्ति थी। इसी समय उन्होंने अपने सभी नाटक व कहानी संग्रह प्रकाशित करवाये। वे दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी व साहसी व्यक्तित्व के स्वामी थे। काश! उनके रहते उनके साहित्य को पहचान मिली होती।
  स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र की सुपौत्री  शिवानी मिश्रा (सुपुत्री मधुप मिश्र) ने कहा कि मेरे बाबा बहुत अच्छे साहित्यकार थे। वह होमियोपैथिक के अच्छे चिकित्सक भी थे। उनकी लगभग सभी पुस्तकों  का आवरण पृष्ठ का चित्रण करने का सौभाग्य मुझे मिला। उन्होंने हरिवंश राय बच्चन जी के साथ श्री मिश्र  जी का एक दुर्लभ चित्र भी पटल पर साझा किया।

       

लखनऊ के राजीव मिश्र ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित कार्यक्रम में मुझे आदरणीय वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी बारे में जानने का सुअवसर मिला । इसके लिए मैं डॉ मनोज रस्तोगी को बधाई देता हूँ । 

        कार्यक्रम में स्मृतिशेष मिश्र जी के सुपौत्र पंकज मिश्र, नीरज मिश्र, अर्जुन मिश्र, सुपुत्री रेखा मिश्र और सुपौत्री नेहा मिश्र ने भी हिस्सा लिया ।

अंत में स्मृतिशेष वीरेंद्र कुमार मिश्र के सुपुत्र  मधुप मिश्र और महेंद्र मिश्र जी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ की आठवीं कड़ी के रूप में हमारे पिता श्री स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर किये गए आयोजन के लिए हम सभी परिजन आप सभी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं ।


डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822