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शनिवार, 28 जनवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर बुधवार 25 जनवरी 2023 को साहित्यकार माहेश्वर तिवारी के आवास पर 'वासंती-स्वर' काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी की पूर्वसंध्या पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर बुधवार 25 जनवरी 2023 को  'वासंती-स्वर' (काव्य-गोष्ठी) का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित स्थानीय कवियों ने वसंत पर केन्द्रित काव्य पाठ किया।

      संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा व्योम के संचालन में कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा.आर सी शुक्ल ने सुनाया....

"भ्रमण करके विश्व का

एक माॅं की कोख से पैदा हुआ

आज बैठा वृद्ध सूखी-सी धरा पर

प्रश्न स्वयं से पूछता हूॅं।" 

 मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि डा. मक्खन मुरादाबादी का कहना था ....

"समर्थ पाँव

रेल,बस, विमानों में नहीं रहते

खुली छत के शौकीन

मकानों में

नहीं रहते।।"  

सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने वसंत-गीत प्रस्तुत किया-

"खत्म नहीं होगा बसंत का आना यह हर बार

खत्म नहीं होगा पलाश के फूलों वाला रंग

पतझरों को रौंद विहँसने-गाने का यह ढंग

खत्म नहीं होगा मनुष्य से फूलों का व्यवहार।" 

वरिष्ठ कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-

"पेड़ों को

नव पल्लवों से

सजाने वाले

मन में होरी-ठुमरी की मिठास

घोलने वाले

ऋतुराज

तुम कहाँ विलय हो गये।" 

वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी ने गीत प्रस्तुत किया-

 "पीढ़ियां दर पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीतीं/

पर गरीबी हो न पाई तनिक भी रीती।"

कवि शिशुपाल 'मधुकर' ने पढ़ा- 

"बुझे हुए शोले को मैं अंगार बनाने निकला हूँ

कुंद पड़ी कलमों की अब नई धार बनाने निकला हूँ

मानवता की रक्षा हेतु मैं अपना फ़र्ज़ निभाने को

काट दे हर बंधन को वो तलवार बनाने निकला हूँ।" 

     कवयित्री डा. पूनम बंसल ने रचना प्रस्तुत की-

"अभिनंदन है शुभ वंदन है,स्वागतम ऋतुराज तुम्हारा। 

प्रेमपाश में बंधी धरा अब महक उठा है ये जग सारा।

आनंदित है सारी सृष्टि बहती सात सुरों की धारा।"

     वरिष्ठ शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की-

"एक मछली जो मर्तबान में है

कोई दरिया भी उसके ध्यान में है

तेग़ जौहर दिखा के म्यान में है

जीत के जश्न की थकान में है

बादलों ने लिखी है नज़्म कोई

ये जो तस्वीर आसमान में है।" 

कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता ने रचना प्रस्तुत की- 

पुष्प महके हर तरफ उपवन बसंती हो गया

खुशबुओं में डूबकर ये मन बसंती हो गया

पात पीले झर गये/खिलने लगीं कोपल नयी

भूल सब  संताप ये  जीवन बसंती हो गया।"

      साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-

"बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां

आवेदन पत्र अब लगते 

तेज कटारों से" 

कवि समीर तिवारी ने मुक्तक प्रस्तुत किया-

"चाँदनी दीवार-सी ढहने लगी है

नींद सपनों की कथा कहने लगी है

एक चिड़िया पंख फैलाये हुए

आँख के भीतर कहीं रहने लगी है।" 

कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वासंती दोहे प्रस्तुत किए-

"खुश हो कहा वसंत ने, देख धरा का रूप

ठिठुरन के दिन जा चुके, जिओ गुनगुनी धूप

यत्र-तत्र-सर्वत्र ही, करते सब उल्लेख 

जब-जब लिखे वसंत ने, खुशबू के आलेख।" 

कवि राजीव 'प्रखर' ने दोहे पढ़े-

"गूंज उठा चहुॅं ओर है, वासंती मृदुगान

चल सर्दी अब बांध ले, तू अपना सामान

मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम

जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।" 

शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-

"है डरने वाली बात मगर डर नहीं रहे

बेघर ही हम रहेंगे अगर घर नहीं रहे

हैरत की बात यह नहीं ज़िंदा नहीं हैं हम

हैरत की बात यह है कि हम मर नहीं रहे।" 

कवि मनोज वर्मा मनु ने गीत प्रस्तुत किया- 

"आ गये ऋतुराज लो मौसम सुहाना आ गया, 

फूल, तरु, पल्लव, कली को मुस्कराना आ गया, 

खिल उठीं कलियां कि फिर भोरों ने की गुस्ताखियाँ,

 प्रेम-विहवल पंछियों को चहचहाना आ गया।" 

ग़ज़लकार राहुल शर्मा ने सुनाया-

 "नहीं मतलब अदब तहजीब ओ फन से

फकत फैशन में स्टाइल में गुम है

यतीमों सी  भटकती है विरासत

नई पीढ़ी तो मोबाइल में गुम है।" 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने रचना प्रस्तुत की- 

जल रहा है ढल रहा है और फिर उग आएगा। 

हौसला सूरज है मेरा दिन नये गढ़ जाएगा।। 

हटे विचारों से शिशिर,हो बसंत सी भोर। 

हेमा मन रवि यदि बढ़े,सम्यक पथ की ओर।। 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने सुनाया- 

"ऋतुओं के राजा से छीनी

किसने माला फ़ूलों की

गाँव शहर से हाथ मिलाकर

जंगल को लुटवा बैठे

खेतों की धानी चूनर को

टुकड़ो मे कटवा बैठे।" 

कवयित्री शशि  ने सुनाया-

"जीने कहाँ देते हैं, वो चार लोग

सुनने में अभी तक यही मिला है

 कि क्या कहेंगे चार लोग।" 

 आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।














































:::::प्रस्तुति:::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

शुक्रवार, 2 सितंबर 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में विख्यात ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की जयंती गुरुवार 1 सितम्बर 2022 को स्मरण संध्या का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में विख्यात ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार की जयंती पर गुरुवार 1 सितम्बर 2022 को कंपनी बाग मुरादाबाद स्थित प्रदर्शनी भवन में स्मरण संध्या का आयोजन किया गया जिसमें दुष्यंत कुमार की रचनाधर्मिता के विविध पक्षों पर चर्चा की गई। 

   कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि साहित्यिक इतिहास के पृष्ठों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल को उसके परंपरागत स्वर "महबूब से बात" और "इश्क-मोहब्बत" की चाहरदीवारी से बाहर निकाल कर आम आदमी की पीड़ा से ही नहीं जोड़ा बल्कि आम आदमी के व्यवस्था-विरोध का मुख्य स्वर बनाया। 

मुख्य अतिथि मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि दुष्यंत कुमार हिंदुस्तानी ज़ुबान के शायर होने के साथ ही जनकवि भी थे। उनकी शायरी आम जनता की तकलीफों का तर्जुमा ही है। 

 विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि दुष्यंत कुमार बिजनौर में जन्मे  और मुरादाबाद में अपने अध्ययन प्रवास के दौरान चौमुखा पुल स्थित रिश्तेदार के भवन में अक्सर ठहरा करते थे। इस भवन के पीछे का वह आँगन, आँगन में खड़ा विशाल पीपल का पेड़ और छोटा-सा मन्दिर अब भी उसी स्थिति में है जैसा दुष्यंत कुमार के समय था।

संचालन करते हुए योगेन्द्र वर्मा व्योम ने दुष्यंत कुमार पर केंद्रित नवगीत पढ़ा- बीत गया है अरसा, आते/अब दुष्यन्त नहीं/पीर वही है पर्वत जैसी/पिघली अभी नहीं/और हिमालय से गंगा भी/निकली अभी नहीं/भांग घुली वादों-नारों की/जिसका अंत नहीं। 

शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दुष्यंत जी का पूरा लेखन दूषित राजनीति, कुव्यवस्थाओं  और भृष्टाचार की परिणीति का परिणाम स्वरूप उपजी आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करता है। 

शायर डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा कि दुष्यंत ऐसे ग़ज़लकार हैं, जिन्होंने ग़ज़ल की परिभाषा को बदल दिया। सिर्फ़ 52 ग़ज़लों के इस शायर के शेर आज सबसे ज्यादा कोट किए जाते हैं।

डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि दुष्यंत कुमार एक ऐसे रचनाकार थे जिनका मकसद सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं था, वह पर्वत सी हो गई पीर को पिघलाना चाहते थे, हिमालय से गंगा निकालना चाहते थे। वे चाहते थे बुनियाद हिले और यह सूरत बदले। 

शायर मनोज मनु ने अपने भाव व्यक्त किए- ये सरकारें दबाकर हक़ अमन आवाद रक्खेंगी/मगर जब जुल्म  मजबूरियां फरियाद रक्खेंगी/जमाने को दिया जो ढंग अपनी बात रखने का/तुम्हें उसके  लिए  दुष्यंत, सदियां याद रक्खेंगी।

 शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि दुष्यंत हाथों में अंगारे लिए हुए हिन्दुस्तानी ज़बान और ज़मीन का शायर है। दुष्यंत ने साझा दुख बयान किया।

 ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने कहा कि दुष्यंत कुमार ने ग़ज़ल की परंपरागत भाषा, कहन, शैली से इतर अलग तरह की कहन और तेवर को ग़ज़ल के शिल्प में पूरी ग़ज़लियत के साथ प्रस्तुत करते हुए ग़ज़ल की नई परिभाषा, नया मुहावरा गढ़ा।

  शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि दुष्यंत कुमार किसी एक ख़ास मंच के शायर नहीं हैं। अगर ग़ौर किया तो गली-मुहल्ले, सड़क-चौराहे यानी जहाँ-जहाँ आम आदमी है, दुष्यंत खड़े मिलेंगे। सिर्फ़ एक ही मंच है जहाँ दुष्यंत खड़े नहीं मिलते, वो है सत्ता पक्ष का मंच। 

   कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध साहित्यकार  ओंकार सिंह ओंकार, राजीव प्रखर, नज़र बिजनौरी, अनुराग मेहता सुरूर आदि ने दुष्यंत कुमार के व्यक्तित्व व कृतित्व पर चर्चा की। आभार अभिव्यक्ति ग़ज़लकार राहुल कुमार शर्मा ने प्रस्तुत की।













:::::::::प्रस्तुति:::::::

 योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक-'अक्षरा'

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मोबाइल- 9412805981

रविवार, 28 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में रविवार 28 अगस्त 2022 को आयोजित कवयित्री डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" का लोकार्पण समारोह

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था अक्षरा के तत्वावधान में  कवयित्री डॉ. पूनम बंसल के गीत-संग्रह "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" का लोकार्पण रविवार 28 अगस्त 2022 को सिविल लाइंस मुरादाबाद स्थित दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने की, मुख्य अतिथि के रूप में गजरौला से विख्यात कवयित्री डॉ. मधु चतुर्वेदी तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में उच्च शिक्षा आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. हरवंश दीक्षित, इं० उमाकांत गुप्त, सिंभावली के साहित्यकार राम आसरे गोयल एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामानंद शर्मा उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा किया गया। कार्यक्रम का आरंभ युवा कवि मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना से हुआ। 

     इस अवसर पर लोकार्पित कृति "चाँद लगे कुछ खोया-खोया" से रचनापाठ करते हुए डॉ. पूनम बंसल ने गीत सुनाये- "दूर हो ये धरा का अँधेरा सभी/आज फिर इक नया अवतरण चाहिए/प्रेम के फूल ही हर तरफ़ हों खिले/हम लगा लें गले राह में जो मिले/हर जहाँ से हसीं हो हमारा जहाँ/चेतना का विमल जागरण चाहिए"। उनके एक और गीत की सबने तारीफ की- "भौतिकता ने पाँव पसारे, संस्कृति भी है भरमाई/मौन हुई है आज चेतना, देख धुंध पूरब छाई/नैतिकता जब हुई प्रदूषित, मूलें का भी ह्रास हुआ/मात-पिता का तिरस्कार तो मानवता का त्रास हुआ/पश्चिम की इस चकाचैंध में लाज-हया भी शरमाई"।

   लोकार्पित गीत संग्रह पर आयोजित चर्चा में प्रख्यात साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने कहा- "डॉ. पूनम बंसल शुद्ध अर्थों में  अंतरंग रागचेतना और बाह्य प्रकृति के समन्वय से निर्मित गीत कवयित्री हैं जिनकी काव्य-भाषा आम बोलचाल की भाषा है, जिसमें हिंदी के तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू का पुट भी मिलता है।"

        वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. कृष्णकुमार नाज़ ने कहा- "पूनम जी के गीत यूँ तो विविध रंगों में सजे हुए शब्दचित्र हैं, लेकिन उनके यहाँ श्रृंगार की प्रधानता पाई जाती है। उसमें भी वियोग श्रृंगार की प्रबलता है। आम बोलचाल की भाषा में लिखे गए गीत सबका मन मोह लेते हैं।"

     नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए कहा- "डाॅ. पूनम बंसल के गीतों में मन की रागात्मकता तथा संगीतात्मकता की मधुर ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है, ऐसा महसूस होता है कि ये सभी गीत गुनगुनाकर लिखे गए हैं। संग्रह के गीतों का विषय वैविध्य कवयित्री की सृजन-क्षमता को प्रतिबिंबित करता है। इन गीतों में जहाँ एक ओर प्रेम की सात्विक उपस्थिति है तो वहीं दूसरी ओर भक्तिभाव से ओतप्रोत अभिव्यक्तियाँ भी हैं।"

     कृति के संबंध में अपने विचार रखते हुए महानगर के रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा - कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने मात्र लिखने के लिए ही नहीं लिखा अपितु, अनुभूतियों के अथाह सागर में उतर कर उनसे साक्षात्कार भी किया है। यही कारण है कि वह संग्रह की प्रत्येक रचना में अपने मनोभावों को सशक्त रूप से स्पष्ट करने में सफल रही हैं।        कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पुस्तक के संबंध में अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हुए कहा  - डॉ पूनम बंसल जी के गीतों से गुजरते हुए हम सहजता से पीड़ा के घने जंगलों को पार कर मुस्कानों व उम्मीदों की डगर पर बढ़ते हुए प्रेम की सुन्दर नगरी में प्रवेश करते हैं जहाँ मन की चिड़िया फुर्र से उड़ती है।

डॉ. पूनम बंसल के रचनाकर्म के संबंध में अन्य वक्ताओं में डॉ सुधीर अरोरा, डॉ. आर. सी. शुक्ल, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. अजय अनुपम, देवकीनंदन जैन, हरिनंदन जैन, प्रदीप बंसल,  डॉ अंबरीश गर्ग, काव्य सौरभ रस्तोगी, बाल सुंदरी तिवारी आदि प्रमुख रहे। 

       कार्यक्रम में ओंकार सिंह ओंकार,  फक्कड़ मुरादाबादी, श्रीकृष्ण शुक्ल, डॉ. मनोज रस्तोगी, धवल दीक्षित, ज़िया ज़मीर, रामदत्त द्विवेदी, राकेश जैसवाल, मनोज मनु, वीरेन्द्र ब्रजवासी, ज़िया ज़मीर, नकुल त्यागी, शिव मिगलानी, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ पंकज दर्पण, शिव ओम वर्मा, नकुल त्यागी, संतोष गुप्ता, जितेन्द्र  जौली, रामसिंह निशंक, राजीव शर्मा, दुष्यंत बाबा, माधुरी सिंह, अभिव्यक्ति, अमर सक्सेना, मुस्कान आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति अंशिका बंसल ने व्यक्त की।