मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से वसंतपंचमी की पूर्वसंध्या पर सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर बुधवार 25 जनवरी 2023 को 'वासंती-स्वर' (काव्य-गोष्ठी) का आयोजन किया गया जिसमें उपस्थित स्थानीय कवियों ने वसंत पर केन्द्रित काव्य पाठ किया।
संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा व्योम के संचालन में कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डा.आर सी शुक्ल ने सुनाया....
"भ्रमण करके विश्व का
एक माॅं की कोख से पैदा हुआ
आज बैठा वृद्ध सूखी-सी धरा पर
प्रश्न स्वयं से पूछता हूॅं।"
मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध हास्य व्यंग्य कवि डा. मक्खन मुरादाबादी का कहना था ....
"समर्थ पाँव
रेल,बस, विमानों में नहीं रहते
खुली छत के शौकीन
मकानों में
नहीं रहते।।"
सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने वसंत-गीत प्रस्तुत किया-
"खत्म नहीं होगा बसंत का आना यह हर बार
खत्म नहीं होगा पलाश के फूलों वाला रंग
पतझरों को रौंद विहँसने-गाने का यह ढंग
खत्म नहीं होगा मनुष्य से फूलों का व्यवहार।"
वरिष्ठ कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता पढ़ी-
"पेड़ों को
नव पल्लवों से
सजाने वाले
मन में होरी-ठुमरी की मिठास
घोलने वाले
ऋतुराज
तुम कहाँ विलय हो गये।"
वरिष्ठ कवि रामदत्त द्विवेदी ने गीत प्रस्तुत किया-
"पीढ़ियां दर पीढ़ियां दर पीढ़ियां बीतीं/
पर गरीबी हो न पाई तनिक भी रीती।"
कवि शिशुपाल 'मधुकर' ने पढ़ा-
"बुझे हुए शोले को मैं अंगार बनाने निकला हूँ
कुंद पड़ी कलमों की अब नई धार बनाने निकला हूँ
मानवता की रक्षा हेतु मैं अपना फ़र्ज़ निभाने को
काट दे हर बंधन को वो तलवार बनाने निकला हूँ।"
कवयित्री डा. पूनम बंसल ने रचना प्रस्तुत की-
"अभिनंदन है शुभ वंदन है,स्वागतम ऋतुराज तुम्हारा।
प्रेमपाश में बंधी धरा अब महक उठा है ये जग सारा।
आनंदित है सारी सृष्टि बहती सात सुरों की धारा।"
वरिष्ठ शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने ग़ज़ल पेश की-
"एक मछली जो मर्तबान में है
कोई दरिया भी उसके ध्यान में है
तेग़ जौहर दिखा के म्यान में है
जीत के जश्न की थकान में है
बादलों ने लिखी है नज़्म कोई
ये जो तस्वीर आसमान में है।"
कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता ने रचना प्रस्तुत की-
पुष्प महके हर तरफ उपवन बसंती हो गया
खुशबुओं में डूबकर ये मन बसंती हो गया
पात पीले झर गये/खिलने लगीं कोपल नयी
भूल सब संताप ये जीवन बसंती हो गया।"
साहित्यकार डॉ. मनोज रस्तोगी ने रचना प्रस्तुत की-
"बीत गए कितने ही वर्ष ,
हाथों में लिए डिग्रियां
कितनी ही बार जलीं
आशाओं की अर्थियां
आवेदन पत्र अब लगते
तेज कटारों से"
कवि समीर तिवारी ने मुक्तक प्रस्तुत किया-
"चाँदनी दीवार-सी ढहने लगी है
नींद सपनों की कथा कहने लगी है
एक चिड़िया पंख फैलाये हुए
आँख के भीतर कहीं रहने लगी है।"
कवि योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने वासंती दोहे प्रस्तुत किए-
"खुश हो कहा वसंत ने, देख धरा का रूप
ठिठुरन के दिन जा चुके, जिओ गुनगुनी धूप
यत्र-तत्र-सर्वत्र ही, करते सब उल्लेख
जब-जब लिखे वसंत ने, खुशबू के आलेख।"
कवि राजीव 'प्रखर' ने दोहे पढ़े-
"गूंज उठा चहुॅं ओर है, वासंती मृदुगान
चल सर्दी अब बांध ले, तू अपना सामान
मानुष-मन है अश्व सा, इच्छा एक लगाम
जिसने पकड़ी ठीक से, जीत लिया संग्राम।"
शायर ज़िया ज़मीर ने ग़ज़ल पेश की-
"है डरने वाली बात मगर डर नहीं रहे
बेघर ही हम रहेंगे अगर घर नहीं रहे
हैरत की बात यह नहीं ज़िंदा नहीं हैं हम
हैरत की बात यह है कि हम मर नहीं रहे।"
कवि मनोज वर्मा मनु ने गीत प्रस्तुत किया-
"आ गये ऋतुराज लो मौसम सुहाना आ गया,
फूल, तरु, पल्लव, कली को मुस्कराना आ गया,
खिल उठीं कलियां कि फिर भोरों ने की गुस्ताखियाँ,
प्रेम-विहवल पंछियों को चहचहाना आ गया।"
ग़ज़लकार राहुल शर्मा ने सुनाया-
"नहीं मतलब अदब तहजीब ओ फन से
फकत फैशन में स्टाइल में गुम है
यतीमों सी भटकती है विरासत
नई पीढ़ी तो मोबाइल में गुम है।"
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने रचना प्रस्तुत की-
जल रहा है ढल रहा है और फिर उग आएगा।
हौसला सूरज है मेरा दिन नये गढ़ जाएगा।।
हटे विचारों से शिशिर,हो बसंत सी भोर।
हेमा मन रवि यदि बढ़े,सम्यक पथ की ओर।।
कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने सुनाया-
"ऋतुओं के राजा से छीनी
किसने माला फ़ूलों की
गाँव शहर से हाथ मिलाकर
जंगल को लुटवा बैठे
खेतों की धानी चूनर को
टुकड़ो मे कटवा बैठे।"
कवयित्री शशि ने सुनाया-
"जीने कहाँ देते हैं, वो चार लोग
सुनने में अभी तक यही मिला है
कि क्या कहेंगे चार लोग।"
आभार अभिव्यक्ति आशा तिवारी ने प्रस्तुत की।
:::::प्रस्तुति:::::
योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
संयोजक
साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल- 9412805981
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