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सोमवार, 21 दिसंबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 दिसंबर 2020 को साहित्य समागम मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ मनोज रस्तोगी, अशोक विश्नोई, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, नृपेंद्र शर्मा सागर, अमित कुमार सिंह, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और प्रशांत मिश्र द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाएं


कुुुुुहरा धरता ही रहा, रोज़ भयंकर रूप ।

जीवन में तहज़ीब-सी, कहीं खो गई धूप ।।


कुहरा फिर करने लगा, सड़कों पर उत्पात ।

झोंपड़ियाँ डरने लगीं, सहम गए फुटपाथ ।।


ठिठुरन,कुहरा लिख रहे, रोज़ नया अध्याय ।

इनसे बचने के सभी, निष्फल हुए उपाय ।।


रोज़ कुहासा पढ़ रहा, सर्दी का अखबार ।

ठिठुर-ठिठुर कर मौत से, गई ग़रीबी हार ।।


कुहरे ने जब धूप पर, पाई फिर से जीत ।

सर्दी भी लिखने लगी, ठिठुरन वाले गीत ।।


रौद्ररूप दिखला रही, सर्दी अबकी बार ।

स्वस्थ,मस्त हैं कोठियाँ, झोंपड़ियाँ बीमार ।।


ठिठुरन भी धरने लगी, रोज़ भयंकर रूप ।

रिश्तों में अपनत्व-सी, कहीं खो गई धूप ।।


विजयी सूरज का हुआ, सभी जगह सत्कार ।

सुबह-सुबह जब गिर गई, कुहरे की सरकार ।।


छँटा कुहासा मौन का, निखरा मन का रूप ।

रिश्तों में जब खिल उठी, अपनेपन की धूप ।।


✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद. मोबाइल- 9412805981

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कृषक आज आंदोलनरत है, निज हित अनहित से अन्जान ।

जो खेतों में श्रम करता था, आज सड़क पर पड़ा किसान।


कृषि प्रधान है देश हमारा, रखे अन्नदाता का मान।

हरित क्रांति लाकर किसान भी, देता है अपना प्रतिदान।


खेतों में सोना उपजाता, अपने श्रम से सदा किसान।

किंतु न उचित मूल्य मिल पाता, इसका कोई करे निदान।


इसीलिए कृषि बिल आया है, कृषक मूल्य पाये भरपूर।

जहाँ मूल्य पूरा मिलता हो, विक्रय  करे वहीं खाद्यान्न।।


किंतु विपक्षी राजनीति ने, खूब भर दिये उसके कान।

और जरा सी नासमझी में, धरने पर है आज किसान ।।


बिल वापस लो अड़े हुए हैं, बंद किये सारे संवाद।

प्रभु इनको सद्बुद्धि आये, निकले इसका शीघ्र निदान।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

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सूरज की पहली किरण

   उतरी जब छज्जे पर

     आंगन का सूनापन उजलाया 


     गौरैया ने गुनगुन गा

            फैलाए अपने पर

 एक मीठा सपना याद दिलाया


       चंदन से महकी दिशाएं

             पूरवा ने ली अंगड़ाई 

        कुह कू कुह कू की ध्वनि 

                से गूंज उठी अमराई 

          

लान में खेले सतरंगी 

       फूलों के अधरों पर 

              गीतों का स्वर लहराया

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com

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आओ  कोई   गीत  लिखें ,

अपनी-अपनी प्रीत लिखें ।

      करें कल्पना

      हम स्वप्न बुनें ,

      कली खिलायें

      शूल चुनें ,

एक नई हम रीत लिखें ।

       दर्द सहें

       कुछ रंग रचें ,

       खुशियां बाटें 

       सजे -धजे ,

आज कही मनमीत लिखें ।

       सांझ ढल रही

       दीप जले ,

       शलभ उड़ रहे

       पंख जले ,

हार कहीँ , तो जीत लिखें ।

       शब्द जुटायें

       गीत गढ़े ,

       आराध्यों पर

       पुष्प चढ़ें ,

ग्रीष्म नहीं, हम शीत लिखें ।

आओ  कोई   गीत   लिखें ।।

 

✍️ अशोक विश्नोई

डी०12, अवन्तिका कॉलोनी

मुरादाबाद

मो० 9411809222

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चतुष्पदी 

फिर विटप से गीत कोई अब सुनाओ कोकिला।

आस जीने की जगा कर कूक जाओ कोकिला।

हों तुम्हारे शब्द कितने ही भले हमसे अलग,

पर हमारे भी सुरों में सुर मिलाओ कोकिला।


दोहे

रवि ने दिन भर खेल कर, जब छोड़ा मैदान।

सोम सुबह तक के लिये, बन बैठे कप्तान।।


दिनकर पर पहरा लगा, चौकस हुए अलाव।

उष्ण वसन देने लगे, फिर मूँछों पर ताव।।


अभी मिटाना शेष है, अन्तस से अँधियार।

जाते-जाते कह गया, दीपों का त्योहार।।


माँ प्राची के अंक से, झाँके जब आदित्य।

अठखेली करने लगे, अम्बर में लालित्य।।


कब तक मेरे भाग्य में, अपशिष्टों का जाल।

आज सभी से सुरधुनी, करती यही सवाल।।


✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद

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कम्बल अपने गात का,सुत को देती जाय।

माँ को ठिठुरन से भरी,सर्दी अगर सताय।1।


मूँगफली गरमागरम,थोड़ी लाया बाप।

सगरी दे दी लाल को,नहीं चबायी आप।2।


माँ खाने का देखती,बापू खेत विहार।।

बच्चे दर-दर ढूँढते,सर्दी का उपचार।3।


एक रजाई पास में,घर में हैं जन चार।

मात पिता बनके रहे,बच्चों की दीवार।4।


चिक्की,मेवे,रेवड़ी,सर्दी में मन भाय।

सूखी रोटी ही सही,झनकू को मिल जाय।5।


भेदभाव बरते बड़े,सर्दी नामाकूल।

कतरन को ठिठुरन दई,मखमल के अनुकूल।6।


सर्दी उसको भा रही,प्रियतम जिसका पास।

सर्दी सा चुभता रहा,पिय का हमें प्रवास।7।


✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

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जिनको अपनी मातृभूमि पर , रहा सदा ही है अभिमान ।

धीर वीर सुत वे जननी के , पाते हैं जग में सम्मान ।।


दुश्मन की फुंकारों से भी , झुका नहीं है जिनका शीश । 

भारत माँ के उन वीरों का , करते सभी सदा गुणगान  ।


खड़े हुए हैं भारत हित में , जो बर्फीली सीमाओं पर 

उनके ही साहस के बल से , अलग तिरंगे की पहचान ।


राष्ट्र ध्वज का मान बढ़ाते , अपने सुख का करके त्याग

रहें पताका सबसे ऊँची , उनका एक यही अरमान ।


सदा राष्ट्र हित सर्वोपरि है , सैनिक का है लक्ष्य महान

रहे चैन से सारी जनता , जिसके हित न्यौछावर जान ।


✍️ डॉ. रीता सिंह

चन्दौसी (सम्भल)

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राम के प्रभाव से ही बन रहा मंदिर है

कितने वर्षों में जानें, शुभ घड़ी आयी है

राम जी  पधारे सीता मैया व लखन संग

अवधपुरी में आज,बजी शहनाई है।


तंबू  को उखाड़ फेंका,महलों को जीत लाए,

भारती के लाल देखो,गा रहे बधाई हैं।


राम -राम ,सीता -राम ,सीता -राम ,राजा राम

राम लला ,राम जी की,छवि मन भायी है।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

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जोर का डंका बजा औ सब खिलाड़ी हो गए।

  लो जमूरे आज के शातिर मदारी हो गए।


क्या सही क्या है गलत परवाह ना इस बात की,

चमचमाता जो दिखे उसके पुजारी हो गए।


दल बदलना-दल पकड़ना, आम सी इक बात है,

एक थाली के वो सारे,हम भिखारी  हो गए।


वोट वालों की नहीं कीमत रही है आज कल

छल जो करना जानते हैं, सब पे भारी हो गए ।


मूल्य नैतिकता जिन्हें मालूम तो कुछ भी नहीं

मुल्क में सत्ता मिली तो , सब शिकारी हो गए।


✍️ इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश

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जनसंख्या बढ़ती जाती है,

   समस्याओं का मूल यही।

      अभी नहीं गर इसको रोका,

         होगी भारी भूल यही।।


क्यों गम्भीर नहीं अब होते,

    संसाधन की कमी को रोते।

       अभी जो दिखती तिनके जैसी।

            बढ़कर होगी शूल यही।।


अभी नियंत्रण बहुत जरूरी,

    बन ना जाये फिर मजबूरी।

       जनसंख्या पर नियम बने अब,

          है इसका निर्मूल यही।।


✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मोबाइल:- 9045548008

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रास्ते कुछ जो सिखाते,

तो मंजिल कितनी आसान होती।

राह में अगर तुम मिलते,

तो मंजिल कितनी हंसी होती।

हर परवाज पर अंजाम मिलते,

तो जिंदगी कितनी हसीन होती।

हर शाख पर अगर फूल लगते,

तो कायनात कितनी खूबसूरत होती।     

देख तो लेता मैं जमाने की रंजिश, 

इक तू जो मेरे साथ....मेरे साथ होती।


✍️ अमित कुमार सिंह(अक्स)

7C/61बुद्धिविहार फेज 2

मुरादाबाद

मोबाइल-9412523624

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देश जला है जलने दो

रोग पला है पलने दो

हम रोगों को पालेंगे

देश जला हम डालेंगे

हम गांधी के बंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है।

देश लुटा है लूटने दो

देश बटा है बटने दो

हम देशो को बाटेंगे

अपनो को ही डांटेंगे

हम ही बड़े कलंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है

सत्य घटा है घटने दो

झूठ डटा है डटने दो

जो खाई को  पाटेंगे

तलवो को भी चाटेंगे

वो ही बड़े धुरंदर है

सबसे बड़े सिकन्दर हैं।


✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद

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आइए! 

संकल्प सिद्ध करें

देश के गलियारों में,

छुआ-छूत से भरी

जातिवाद की ऊंची दीवारों मन,

जब अपना ही घर लूट लिया 

देश के ग़द्दारों ने...

जनता खड़ी देखती रही

सिमटी अपने किरदारों में ।

आइए ! 

संकल्प सिद्ध करें 

देश के गलियारों में...


✍️प्रशान्त मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद


 

बुधवार, 2 दिसंबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 29 नवंबर 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में शामिल साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, विभांशु दुबे विदीप्त, इंदु रानी, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इशांत शर्मा, नृपेन्द्र शर्मा सागर, एमपी बादल जायसी और संजीव आकांक्षी द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं -----

 


प्यार है भगवान से, इन्सान से भी प्यार कर

दिल ही दिल में मानता है, रूबरू इज़हार कर


राम में रहमान हैं, रहमान में भी राम है,

छोड़ सारे द्वंद , दोनों का ही तू  दीदार कर


मंदिरों में, मस्जिदों में खोजना बेकार है

खोज अपने ही ह्रदय में, बस वहीं श्रंगार कर


नफरतें क्यूँ बांटता भगवान के ही नाम पर

है खुदा, भगवान दोनों एक, ये स्वीकार कर


दीन दुखियों के लिए थोड़ी मदद तो कर जरा

हैं बसे भगवान इनमें, कृष्ण इनसे प्यार कर

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद

मोबाइल नंबर 9456641400

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उड़ रही रेत गंगा किनारे 

              महकी आकाश में  

                       चांदनी की गंध 

              अधरों की देहरी 

                       लांघ आए छंद 

गंगाजल से छलके 

नेह के पिटारे 

उड़ रही रेत गंगा किनारे 

          कौन खड़ा है नभ में   

               लेकर चांदी का थाल 

          देखो बुला रहा पास किसे    

              फैला कर किरणों का जाल 

किस के स्वागत में चमक रहे 

 नभ में अनगिन तारे

 उड़ रही रेत गंगा किनारे

✍️डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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अरे चीं-चीं यहाँ आकर, पुनः हमको जगा देना।

निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।

चला है काटने को जो, भवन का मोखला सूना,

उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना।


जगाये बाँकुरे निकले, नया आभास झाँसी में।

वतन के नाम पर छाया, बहुत उल्लास झाँसी में।

समर-भू पर पुनः पीकर, रुधिर वहशी दरिन्दों का,

रचा था मात चण्डी ने, अमिट इतिहास  झाँसी में।


कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।

तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।


अभी मिटाना शेष है, अन्तस से अँधियार।

जाते-जाते कह गया, दीपों का त्योहार।।


दिनकर पर पहरा लगा, चौकस हुए अलाव।

उष्ण वसन देने लगे, फिर मूँछों पर ताव।।


✍️ राजीव 'प्रखर' 

मुरादाबाद 244001

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निकल पड़े हैं सफर पर जब, तो घबराना कैसा

पांव निकल आये देहरी के पार

तो वापसी का ख्याल कैसा


परवाह कैसी इन तूफ़ानों की

कैसा ये डर और डगमगाना कैसा

जब निकल पड़े है सफ़र पर तो घबराना कैसा


तमाम रोड़े आयेंगे, बादल बरस कर जाएंगे

उन पत्थरों को तो तू ढाल बना

बारिश से हर मानना कैसा


ये जो तेरी मसखरी बनाते हैं, तेरे किए पर हँस जाते हैं

क्या करनी परवाह उनकी, इनसे हार जाना कैसा

जब निकल पड़े हैं सफर पर

तो वापसी का ख्याल कैसा


ख्याल कर मंजिल का, रास्तों की खबर छोड़

जो रोके कोई ताकत तुझे, दे उसका तू मुँह मोड़

ये जलजले तो आयेंगे अक्सर

इनसे रुक कर बैठ जाना कैसा

जब निकल पड़े हैं सफर पर

तो घबराना कैसा

जब पांव निकल आये देहरी के पार

तो वापसी का ख्याल कैसा ll

✍️   विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"

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तू ही बता मुझे कैसे हो गुजारा तन्हा

हिसाब इश्क का अधूरा हमारा तन्हा


बांस डोली के साथ तू ही लेने आया था

मांग को तूने ही तो मेरी संवारा तन्हा


किस गली किस नगर को अब हो ठिकाना मेरा

रह गया दिल मिरा ये अब तो बेचारा तन्हा


मरूं मैं दर पे तेरे अब तो यही हसरत है 

जाना वापस नही है मुझको गवारा तन्हा


कभी तो जीत मेरी होगी जब तू आएगा

फिरेगा कब तलक तू यूँ ही आवारा तन्हा


✍️ इंदु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश

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आओ मिलकर इस धरा 

को फिर से हरा हम करें

कोशिश  जरा  तुम करो 

मेहनत  जरा  हम  करें ।।1।।

वृक्ष लगाएं स्वयं और 

उसे पाले पोषित करें 

 उपभोगिता  को  छोड़कर

 विलासिता से मुख्य मोड़ कर

 फिर से इस प्रकृति के 

 साधक और आराधक बने 

आओ मिलकर इस धरा

को फिर से हरा हम  करें

 कोशिश जरा तुम  करो 

मेहनत  जरा  हम  करें ।।2।।

जीव क्या है स्वयं जल, गगन,

 भूमि, अग्नि वायु पंच तत्वों का मिलन

  इस मिलन को मिल

 पुनः व्यवस्थित करें

 आओ  मिलकर इस धरा

 को फिर से हरा हम करें 

 कोशिश जरा तुम  करो 

 मेहनत जरा  हम  करें ।।3।।

कोशिश जरा तुम  करो

 मेहनत जरा हम करें। 

 ✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ                                               निकट रामचंद्र शर्मा कन्या इंटर कॉलेज चंद्र नगर मुरादाबाद(उ०प्र०)-244001

मोबाइल नंबर:-  75 99 21 1176 

अणु डाक:- aavranagarwal0@gmail.com

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क्या दो वक्त भी कभी संग मिलते हैं,

क्या टूटे दिल भी कभी फिर जुड़ते हैं क्या।


सोचा था भूल ही जाऊंगा तुझे मैं,

जख्म बेबसी के यूं ही रिसते हैं क्या।


जुदाई की घड़ी क्यों खत्म नहीं होती,

बिछड़े प्रेमी फिर से मिलते हैं क्या।


क्यों भूल गए तुम अदा मुस्कुराने की,

बेकसी में भी कभी लोग हंसते हैं क्या।

✍️ ईशांत शर्मा , मुरादाबाद

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1.

दीपक एक जलाकर मन का,  दूर अंधेरा कर लेना। 

दुख की दूर हटाकर रातें, नया सवेरा कर लेना। 

देना जला निराशा मन की,  बारूदों की ढेरी पर। 

उम्मीदों की नई किरण का, दिल में डेरा कर लेना।।


2.

 मैं तो आशिक हूँ बस,

 मोहब्बत के गीत लिखता हूँ।


तुम्हारी मुस्कान को, 

अपने लिए मैं प्रीत लिखता हूँ।


तुम्ही हो स्वामिनी मेरे हृदय की, 

तुम्हें मनमीत लिखता हूँ।


मोहब्बत में सदा दूरी की, 

नई रीत लिखता हूँ।


तुम्ही हो धड़कन मेरी,

तुम्हे जीवन का संगीत लिखता हूँ।


तुम्हारे प्यार में जीवन का,

  नया गीत लिखता हूँ।।


✍️ नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

9045548008

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 तुम अगर साथ दो 

         हाथों में मेरे हाथ दो

  तेरी पलकों में मेरी

                 सुबह शाम हो

तेरी सूरत पे दिल ये

                 गिरफ्तार है

प्यार से तुम अगर

                इक नज़र देख लो

प्यार का नाम हर्गिज 

            न बदनाम हो

तुम अगर साथ ------

तेरी पलको में --------

           मस्त नज़रों का दिल ये

तलबगार है

        तुम से मिलने का

दिल में इक तुफ़ान है

        इक मुद्दत से 

दिल का ये अरमान है

        धड़कनो से मेरे

दिल का पैगाम है

       लव पे  "बादल " हमेशा

तेरा नाम है

✍️  डा . एम पी  बादल जायसी, मुरादाबाद

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क्यों अल्लाह की बंदगी में मौलाना हो।

पास मस्ज़िद के गर मयखाना हो।।


क्यों अल्लाह के बंदगी में मौलाना हो।

हुस्न की खिदमत में गर मौलाना हो।।


गर मस्ज़िद के पास मयखाना हो।

घर खुदा के अपना भी आना जाना हो।।


✍️ संजीव आकांक्षी , मुरादाबाद

रविवार, 18 अक्तूबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद महानगर के तत्वावधान में रविवार 18 अक्टूबर 2020 को मातृ शक्ति विषय पर संस्कार भारती साहित्य समागम का आयोजन किया गया । बाबा संजीव आकांक्षी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित इस कार्यक्रम में साहित्यकारों अशोक विश्नोई, योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद चौधरी, राजीव प्रखर, डॉ रीता सिंह, इशांत शर्मा ईशु, नृपेन्द्र शर्मा सागर, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंदु रानी और ठाकुर अमित कुमार सिंह की काव्य रचनाएं ------



          माँ अष्ठ भुजा धारी,
          करें शेरों की सवारी ।
          श्रद्धा भक्ति और विश्वास
          मेरी यही अरदास ।
          बाकी सब बेकार,
          करो माँ इसे स्वीकार।
          दुनियां तुम पर बलिहारी,
          माँ अष्ठ---------------।
          करे मेहर की जो छाया,
          कुंदन बन जाती काया।
          भागे दूर सभी अंधियारा,
          फैले चारों ओर उजियारा।
          संकट कट जायें सब भारी,
          माँ अष्ठ-----------------।
          संसार की तुम चालक,
          भक्तों की तुम पालक ।
          जो भी तुम को पुकारे ,
          होते उसके वारे न्यारे ।
          होती जब कृपा तुम्हारी,
          माँ अष्ठ------------------।
                             
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ

सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ

नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ

फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ

✍️योगेंद्र वर्मा व्योम, मुरादाबाद
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लोरियां मुझको सुनाएगी तो नींद आएगी ।
मां तू सीने से लगाएगी तो नींद आएगी ।।
अपने हाथों में छुपा कर के मेरे चेहरे को ।
अपने पहलू में सुलाएगी तो नींद आएगी ।।
फिरसे परियों की कहानी भी सुनाना तू मुझे ।
मुझको चंदा तू दिखाएगी तो नींद आएगी ।।
मुझको बरसों से मयस्सर नहीं कोई चैनो सुकूं ।
अपने दामन में छुपाएगी तो नींद आएगी ।।
तेरी आवाज़ को सुनने को मैं तरसूं कब तक ।
जब कोई गीत सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है ।
ख्वाब आंखों में सजाएगी तो नींद आएगी ।।
मैं हूं अनजान तू नाराज़ है आखिर क्यों कर ।
जब सज़ा कोई सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
कैसे भूलेगा मुजाहिद वो मोहब्बत का सफ़र ।
फिर से सब याद दिलाएगी तो नींद आएगी ।

✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर अमरोहा
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हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगाई तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।
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दोहे
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सीपी बोली बूंद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

इधर धरा पर हो रहा, बेटी का अपमान।
उधर गगन में गूंजता, माता का गुणगान।।

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से,  अम्मा मेरे पास।।

✍️- राजीव  'प्रखर',मुरादाबाद
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भव्या अभव्या भाव्या भवानी
भवमोचिनी हो तुम्हीं भाविनी ,
चितिः चिता और चित्तरूपा
सर्वास्त्रधारिणी सत् - स्वरूपा ।

काली कराली कौमारी कुमारी
क्रिया क्रूरा कात्यायनी कैशोरी ,
बुद्धिदा बहुला ब्राह्मी बहुलप्रेमा
अनेकशस्त्रहस्ता अमेयविक्रमा ।

युवती यतिः प्रौढ़ा अप्रौढ़ा
आद्या अनन्ता अनेकवर्णा ,
सती साध्वी सत्या सावित्री
मनः मातंगी मधुकैटभहन्त्री ।

सर्वविद्या सुता सर्वदानवघातिनी
महाबला तुम अनेकास्त्रधारिणी ,
पाटलावती पटांबरपरिधाना
सर्वशास्त्रमयी सर्ववाहनवाहना ।

तुम्हीं कालरात्रि तपस्विनी नारायणी
रूप अनेक हैं तुम्हारे जगतारिणी ,
ध्यान तुम्हारा हम करें कल्याणी
सदा पार लगाना हे दुखहारिणी ।

✍️डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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घर से जब भी निकलता हूँ तुम्हे ही याद करता हूँ,

सभी मुश्किल राहों को मैं आसान करता हूँ,

तुम्ही चाहत तुम्ही हिम्मत तुम्ही हो जिंदगी मेरी,

तुम्हे ही याद करता हूँ तुम्हारी बात करता हूँ,

✍️इशांत शर्मा ईशु, मुरादाबाद
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हाँ मैं एक औरत हूँ जो हमेशा औरों में ही रत हूँ।
सारे संसार का अस्तित्व मुझसे है ।
लेकिन मैं खुद के अस्तित्व से ही विरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं बेटी हूँ ,बहन हूँ  ,पत्नी हूँ  मैं माँ हूँ।
मैं सृस्टि कर्ता हूँ जन्मदात्री हूँ।
मैं हमेशा प्यार, वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ।
हाँ मैं एक औरत हूँ।

मेरे बिना कल्पना भी नहीं इस संसार की।
मैं ही धुरी हूँ हर तरह के प्यार की।
मै त्याग और बलिदान की मूरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

मैं औरों में रत हूँ सबके लिए जीती हूँ।
अपने हर आँसू को अमृत मानकर पीती हूँ।
कभी पिता का मान,
कभी पति का अभिमान।
कभी बेटे के सुख में निहित हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।

क्या कोई समझ पायेगा औरत होने का सही अर्थ।
क्यों कर लेती है वह निज जीवन को व्यर्थ।
क्यों सदा वह बस औरों में रत है।
क्योंकि वह एक माँ हैं,
हाँ हाँ वह एक औरत है।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।

✍️आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
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मैं मानू नौराते उस दिन,
जब नारी उत्पीड़न रुक जा।
करू मैं दीप प्रज्जवलित दिलसे,
जब दुष्टों का सर झुक जा।।

क्या ठोकू मैं ताल भजन की,
जब मैया मूँदें आँखे पड़ी।
करू भजन मैं उस दिन जब,
चीखों से सबका मन दुख जा।
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है बेटी अनमोल पर जो मोल न तुम समझोगे,

खो दोगे फिर मान घर की बरकत भी खो दोगे।

चूनर रख कर माथ रखती लाज सदा पगड़ी की,

जो न पूजो तुम पाँव तो लक्ष्मी भी धो दोगे।।

✍️इंदु, अमरोहा
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मानवता की सृजन जननी,
तुझ को मेरा नमन है ।
महिमा तेरी जनम-जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

संस्कृति की ध्वजवाहक हो,
सृजन की पतवार हो,
परिवार का आधार हो,
मानव जीवन का सार हो ।।

स्नेह,प्रेम,साहस की मूरत,
वात्सल्य,ममता की सूरत,
महिमा तेरी जनम जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।

✍🏻अमित कुमार सिंह
7C/61, बुद्धिविहार फेज 2
मुरादाबाद 244001
मोबाइल-9412523624

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 20 सितंबर 2020 को आयोजित हिन्दी साहित्य महोत्सव में प्रस्तुत विभांशु दुबे, इला सागर रस्तोगी, पिंकेश चौहान, अभिषेक रुहेला, प्रवीण राही, नृपेंद्र शर्मा सागर, रानी इंदु , प्रशांत मिश्र, ईशांत शर्मा ईशु, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , डॉ रीता सिंह, मयंक शर्मा , मीनाक्षी ठाकुर, रश्मि प्रभाकर, मोनिका मासूम , हेमा तिवारी भट्ट , डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, मुजाहिद चौधरी, कृष्ण शुक्ल , डॉ एमपी बादल जायसी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम , अशोक विद्रोही , डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल अशोक विश्नोई , अमित कुमार सिंह, डॉ सतीश वर्धन जी, बाबा कानपुरी जी और संजीव आकांक्षी की रचनाएं------


(1)
भारत  की  भाषा  हिन्दी  है
जन-जन की आशा हिन्दी है
यह नहीं मिटाये मिट सकती
यह जननि भाल की बिंदी है

(2)
आओ बात करें भारत में हिन्दी के सम्मान की
आओ मिलकर शपथ उठाएं हिन्दी के उत्थान की
देख के दुनिया की भाषाएं हमको ये ही लगता है-
सबसे सुंदर सबसे प्यारी हिन्दी हिदुस्तान की ।।

✍️ अशोक विश्नोई
      मुरादाबाद
     मो० 9411809222

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हिंदी का सम्मान करें हम, हिंदी अपनी शान है।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।।

सहज सरल है अनुपम है ये, शब्दों का गहरा सागर।
इसके अंग अंग से देखो, भावों की छलके गागर।
सम्प्रेषण का मधुर प्रसाधन, मीठी बहुत जुबान है।।

है वैज्ञानिक भाषा हिंदी, नियमों से अभिसार करें।
सजी हुई है अलंकार से, छंदों से श्रृंगार करें।
संस्कृति की बनती है पोषक, गीतों का प्रतिमान है।।

सबसे ज्यादा समझी जाती, दुनिया में बोली जाती।
फिर न जाने क्यूँ कर के यह, इंग्लिश से तोली जाती।
हिंदी को जो हीन समझता, वो तो बस नादान है।।

क्यूँ हो एक दिवस हिंदी का, इस पर भी कुछ ध्यान करें।
हर दिन हर पल हो हिंदी का, ऐसा अब अभियान करें।
मानवता को मिला हुआ यह, शारद का वरदान है।।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।

✍️डॉ पूनम बंसल
10, गोकुल विहार
कांठ रोड, मुरादाबाद
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जिंदगी आजकल
कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
अपने ही घर में
हमें असुरक्षित कर दिया।
आखिर कब तक
जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
आँखें कब तक
अपने सपनों को तरसेंगी।
कभी कभी लगता है
इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
महामारी छोड़ पीछे
मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
  ✍️ डाॅ मीना कौल
  मुरादाबाद
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अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान ।
कुछ राज्यों में होत यों,हिंदी का अपमान।।
हिन्दी का अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे ।
हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।
,विद्रोही,सच‌ होंय , राष्ट्र भाषा के सपने ।
यदि अपमानित न हो , हिन्दी घर मेंअपने।।

हिन्दी के हों दोहरे, छंद, बंध, श्रृंगार।
चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार ।।
रस की पड़े फुहार,भाव के घन उमड़े हों।
हिन्दी लो अपनाय, बंद सारे झगड़े हों ।।
,विद्रोही, मां के माथे,ज्यों सजती बिन्दी ।
भारत माता के माथे ,यों सजती हिन्दी ।।

✍️ अशोक विद्रोही
मुरादाबाद
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1:
हमारी अस्मिता है राष्ट्र का अभिमान है हिंदी।
परस्पर के सहज संवाद की पहचान है हिंदी ।
नहीं बस मात्र भाषा, ये हमारी मातृ भाषा है।
हमारा मान है हिंदी,  हमारी शान है हिंदी ।।

2:
है अँधेरा घना फिर भी, दीप जल जल कर लड़ा है।
सूर्य सा तो नहीं है पर, हौसला इसमें बड़ा है।।
मुश्किलों में डटे रहना, दीप से ही सीख लो तुम।
जीत उसकी ही हुई है, जो अडिग होकर खड़ा है।।

3:
अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफाजत ।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,  मुरादाबाद
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रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
        लक्ष्य प्राप्ति के लिए
        हम भटकते  रहे
        अर्थ लाभ के लिए
        बर्फ सा गलते रहे
सुख की कामना में
जर्जर हो गया तन
       स्वाभिमान भी गिरवी
       रख नागों के हाथ
       भेड़ियों के सम्मुख
       टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा
अपना चीरहरन
रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

तभी सफल होगा सखे, हिन्दी का अभियान।
मिले इसे व्यवहार में, जब पूरा सम्मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगह से त्रास।
जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

बुरे ग्रहों ने साथियो, ज्यों ही सूँघे नोट।
पल में पावन हो गये, रहा न कोई खोट।।

-✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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मैं जब भी अपने पुरखों से मिला हूं ये लगा मुझको ।
मैं उनके ख्वाब जैसा हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।
मेरे गांव के रस्ते,सूने घर,वीरान चौपालें ।
मेरे ही मुंतज़िर हैं वो हमेशा ये लगा मुझको ।।
कभी भूला नहीं बचपन के यारों को,बुजु़र्गों को ।
मैं जब भी घर गया उनसे मिला हूं ये लगा मुझको ।।
अजब मायूसी है,वहशत का आलम है जमाने में ।
नहीं गांव में कुछ खौ़फो़ ख़तर बस ये लगा मुझको ।।
ये हिंदू और मुस्लिम के जो झगड़े हैं शहर में हैं ।
मेरे गांव में हैं सब भाई भाई ये लगा मुझको ।।
ये दरिया धूप बादल और सितारे भी सभी के हैं ।
मेरा घर मेरा आंगन है सभी का ये लगा मुझको ।।
मुजाहिद एक इंसां है उसे इंसां से रग़बत है ।
मैं तन्हा हो के सबका हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।

✍️मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
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अहसास उमड़ते जब मन में, भावों में बांधा जाता है,
भावों को बना लेखनी जब शब्दों में साधा जाता है,
आँखों में उमड़े सपनों की जब हृदय तंत्र से ठनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब आँसू बिना ही आँखों में आती है नमी विचारों की,
जब कलम उगलती अंगारे, और लिखती ग़ज़ल बहारों की,
संयोग वियोग भावना जब कवि हृदय रक्त में सनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब धरती से अम्बर तक का एक अद्भुत रूप निखरता है,
जब सागर से अम्बुद बनकर, वापस उस ओर बिखरता है,
उन्मुक्त कल्पनाओं की जब इक सुंदर नदी उफ़नती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब उमस भरी लंबी रातें, तम की चादर फहराती हैं,
जब जुगनू की टिम टिम किरणें अंधियारे को गहराती हैं,
जब सुखद सवेरा करने को, उषा परिधान पहनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब मस्तक रूपी कागज़ पर अनुबंध उकेरे जाते हैं,
जब उर के श्वेत पटल पर अद्भुत रंग बिखेरे जाते हैं,
जब श्रोताओं की वाह वाह कवि हृदय प्रेरणा बनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।।

✍️रश्मि प्रभाकर
मुरादाबाद
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ज़िंदगी तुझसे मिलन जिस वक़्त दोबारा हुआ
आँसुओं का ये समंदर और भी खारा हुआ

बट गये ग़म और खुशी दीवारो दर की आड़ में
शर्म आँखों की गई जब घर का बटवारा हुआ

जी रहा है आदमी अब आदमीयत छोड़कर
हर बशर मक़तूल  हर एक शख़्स हत्यारा हुआ

जिसपे क़ुदरत  मेह्रबाँ थी उसको मंज़िल मिल गई
दर बदर फिरता रहा तक़दीर का मारा हुआ

तीर नफ़रत के मुहब्बत की कमां से जब चले
और भी घायल दिले -"मासूम" बेचारा हुआ

✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद
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आओ सिपाही हिन्दी के,
हिन्दी के लिए बलिदान करें।
हिन्दी है भाल तिलक जैसी,
हिन्दी का वही सम्मान करें।

निज भाषा के लिए अगर,
हमने नहीं कोई काम किया।
तो निरर्थक ही जीवन को,
इन साँसों का दाम दिया।
जीवन समर्पित हिन्दी हित,
साँसे हिन्दी को दान करें।
आओ सिपाही......

हिन्दी ओढ़े,हिन्दी पहने,
हिन्दी ही गहना हो अपना
हिन्दी सोचे,हिन्दी बाँचे
हिन्दी ही सपना हो अपना
हिन्दी का जाप करें निशदिन,
हिन्दी का ही गुणगान करें
आओ सिपाही......

जन गण मन के कानों में
हिन्दी हिन्दी हिन्दी गूँजे
हर घर हर जन तक देखो
हिन्दी हिन्दी हिन्दी पहुँचे।
"हिन्दी वालों हिन्दी बोलो"
हिन्दी हित यह आह्वान करें
आओ सिपाही......

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
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हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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सूरज की किरणें जब आयीं
अंग अंग धरती मुस्कायी
हुए मुदित सब सुमन मनोहर.
पाती तरुवर ने लहरायी ।

सरिता ने धुन मधुर सुनायी
खिली हुईं कलियाँ हर्षायी
उठे विहग, सब राग छेड़ते
निंदिया रानी किसे सुहायी ।

लगे जीव सब ,नित कर्मों में
रोजी - रोटी सबको भायी
कर्मशील लख कोना कोना
सकल सृष्टि में खुशी समायी ।

✍️ डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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लघुकथा-----  क़सूर

कपड़ों की दुकान बंद होते ही, उस दुकान में टँगी सभी पोशाकें वाचाल हो गयीं। "स्कर्ट "ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि सड़कों पर सब  लोग उसे गंदी नज़रों से घूरते हैं।
यह सुनकर, "साड़ी" ने कहा,"नहीं बहन!सिर्फ तुम्हें ही नहीं ,मुझे भी घूरते हैं।
"नकाब "ने कहा,"पर मैं तो दब ढक कर निकलता हूँ,  फिर भी मेरे बदन को भी लोगों की निगाहें खंज़र जैसी निगाहें चुभती रहती हैं।"
"दुपट्टे वाली ड्रेस"ने एक लंबी साँस ली और कहा,"....मेरा आँचल भी लोगों की कुदृष्टि से यत्र- तत्र मैला होता रहता है।"
यह सुनकर  मौन दर्पण  बोल उठा,
" ....सब तुम्हारे यौवन का "क़सूर"है!!लोगों की निगाहों का नहीं।"
"यौवन का "क़सूर."..???पर मुझे भी तो लोगों की गंदी.....!!"बात पूरी करने से पहले ही दुकान के कोने में टँगी "छुटकी" फ्राक सुबक -सुबक कर रोने लगी ।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
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हिंदी संस्कार की भाषा
हिंदी प्रेम प्यार की भाषा
हिंदी राम कृष्ण की भाषा
हिंदी है तो हम हिंदुस्तानी,
हिंदुस्तानी  कहलाते  है
इस हिंदी ने दी पहचान
इसे नमन है सौ सौ बार
  ये हिंदी अपनी भाषा है
   इससे  अपना नाता है
  यह अपनी मिट्टी से जोड़ें
यह अपने दिल कभी ना तोड़े
जख्मों पर मरहम सी हिंदी
दर्द हुआ तो दवा है हिंदी
टूटे रिश्ते जोड़ते हिंदी
कभी न रिश्ते तोड़ती हिंदी
दुनिया को दिखलाती हिंदी
विश्व बंधुत्व सिखलाती हिंदी
प्रेम प्यार की भाषा हिंदी
संस्कार की भाषा हिंदी
हिंदी है तो तुम हम हैं
इस हिंदी की जय बोलो
सब हिंदी की जय बोलो

✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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हिंदी अब उड़ने लगी निज पंखों को खोल,
सात समंदर पार भी लोग रहे हैं बोल।

अपना हो या ग़ैर का रखती नहीं विचार,
हिंदी ने हर शब्द को खोल दिये हैं द्वार।

साइलेंट कुछ भी नहीं सबकी है आवाज़,
हिंदी उर पट खोलती रखे न कोई राज़।
✍️मयंक शर्मा
मुरादाबाद
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लघुकथा ---- असंतुलन

"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न। बच्चा गोद लेने की कितनी कोशिश की फिर भी निराशा ही हाथ लगी।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार एक नृशंस मानव ने नवजात जुड़वां बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए छोड़ दिया।  ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना देकर चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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भटक रहा संसार में, इधर-उधर  इंसान।
चले अगर सदमार्ग पर,मिल जाये भगवान।।

प्रेम साँचा उसे मिले, जो नर हो निष्काम।
मीरा खातिर प्रेम के, कर बैठी विषपान।।

पर नारी के  रूप ने , भेदा है हर चित्त,
कामातुर  देवेश भी, बन बैठा हैवान ।।

धारण कर भगवा वसन,बनें न दुर्जन संत।
इंद्रासन पर बैठकर, हुए न असुर महान।।

सेवा कर माँ बाप की,मिल जाएं सब धाम।
जग में तेरा नाम हो, पावन संतति जान।।
                     
✍️ पिंकेश चौहान ' तपन '
मुरादाबाद
-----------------------------------------



1.......
शब्द से मोतियों को पिरोते हैं हम,
लोग बेचैन हैं कैसे सोते हैं हम।
है नहीं काम आसान सुन लो सभी,
पृष्ठ को आँसुओं से भिगोते हैं हम।

2.......
ग़मों की वादियों में भी हमेशा मुस्कुराते हैं,
नहीं ज़ख्मी परिन्दे की तरह हम छटपटाते हैं।
ज़रूरत आपको होगी भले ही चाँद की हम तो,
लिये आज़ाद इक चेहरा सदा ही जगमगाते हैं।

✍️ अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फतेहपुर विश्नोई, मुरादाबाद
(उ०प्र०)- 244504
-------------------------–



अध जले आंचल
भुरभुरे काग़ज़
जैसी हूं
उसपे अब भी कुछ लिख सकती हूं
कुछ तो अब भी रंग भर सकती हूं
आईना तू क्या  रूठा है मुझसे ?
अब तो मैं भी तुझसे रूठी हूं
जरा देख
तेरे सामने ही बैठी हूं
जितना बचा है मेरे चेहरे पे चेहरा
बिंदिया कहीं भी अब लगा लूंगी
ठेढ़े मेढ़े अधरो को भी
लिपिस्टिक से सजा दूंगी
आईना तुझे कोई किरदार
निभाने कहां आता है?
तू हर चेहरे से बिक जाता है
फिर मुझे देखे क्यों नज़रे चुराता है?
मेरी नजरों में आज भी
मैं उतनी ही खूबसूरत हूं
पापा की लाडली
मां की लक्ष्मी
घर की इज्जत की मूरत हूं
सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा
वक्त के साथ घाव भर भर जाएगा
मैं हिमालय सी अडिग
प्रशांत महासागर सी गहरी
सियाचिन की बर्फ सी जमी पड़ी हूं
पर जीने की आस में
खुद के सामने खड़ी हूं
संकीर्ण गली सी सोच वालों
तुमसे आज भी मैं बड़ी हूं
बस ठीक है सब
केवल रसायन शास्त्र को अब
पसंद नहीं  करती हूं
जब  भी इसे मैं पढ़ती हूं
अंदर से रो रो पड़ती हूं
उस तेजाबी हादसे से 
बारम्बार जल पड़ती हूं
बारम्बार जल पड़ती हूं

✍️ प्रवीण राही
8860213526
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ख़ातिर औलाद की एक घोंसले को बुनते हुए
नही है देखता कोई बाप को उधड़ते हुए

बने थे फूल जिस चमन के हम थे जानो जहां
कैसे कोई देख ले चमन को यूँ उजडते हुए

वो जो औलाद की ही खाल मे दुश्मन है छुपा
कैसे कोई रोके ले औलाद को बिगड़ते हुए

चोरी करते सभी पर चोर वो जो पकड़ा गया
नामी बदमाश हमने देखे खूब चलते हुए

हैं गिरी हरकतें किसकी नही बूझो तो जरा
बड़े बड़े नाम वाले देखे हमने गिरते हुए

✍️इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
-----------------------------------



सियासत की राह में,
इंसानियत मैली हो गई,
अब तक नदी का जल पीते थे,
अब फिल्टर गोमुख हो गई,

गंगा की कालिख़ में,
दाग तुम्हारा भी है,

इतनी फ़िक्र थी,
खुद ही गंदगी रोक लेते,
ऐसा सुनकर बात हमारी टाल गए,
नदी साफ करने चले थे
खुद गन्दगी डाल गए,

✍️प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
---------––--------------------



छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो ।
जो चेहरा पास न हो उसकी आवाज़ में खुश रहो ।
कोई रूठा हो आपसे उसके अंदाज़ मे खुश रहो ।
जो लौट कर नहीं आने वाले उसकी याद में खुश रहो ।
कल किसने देखा है अपने आज में खुश रहो ।
छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो।

✍️ईशांत शर्मा
------------------------------------–--



हम पढे और पढाये
         कुछ करके दिखाये
हम कम नही किसी से
         दुनिया को ये बताये
हम पढे ----
कुछ करके----
         हिन्दू हो या मुस्लमान
सिख हो या इसाई
         इक साथ मिल सभी ने
अवाज ये उठाई
        हम पढे और----
        कुछ करके------
अनपढ़ न रहे कोई
       हमने है सौगन्ध खाइ
मजदूर हो या किसान
       बुढा हो या जवान
हम पढे और-----
कुछ करके------
      बटे और बेटी को
शिक्षा मिले समान
      अज्ञानता का दाग
माथे से हम मिटायें
       हम पढे और -----
       कुछ करके ------
गर मंजिलों को है पाना
       खुद का है पहचान बनाना
पढ़ लिख शिक्षित हो के
       आगे ही बढ़ते जाना है
अशिक्षित पायें शिक्षा
      और शिक्षित उन्हें पढ़ायें
हम पढे़ -------
कुछ करके ----
      
✍️ डा एम पी बादल जायसी
  9319318919
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आईने के सामने
आब ऐ आईना हो जाऊं मैं,
तेरा अक्श देखूँ
तो तुझ सा ही हो जाऊं मैं।
दिल में दबी एक
ख्वाहिश सा मचल जाऊं मैं,
सिमट के तुझ में
खुद ही संभल जाऊं में ।।
दिल रोज ही तेरी चाहत करे
बस तेरी ही रिवायत करे,
अब ये यूँही बिगड़ जाए
तो कोई क्या करे ।
चाहकर भी तुझको
चाहत न हो पूरी,
रास्ते सभी जहां के
लगते हैं क्यों अधूरे,
ये दूरियां मिटाना
लगता है अब जरूरी ।।
तू सामने जो आये तो
तुझमें ही खो जाऊँ में,
तू बेरूखी दिखा दे
अमित कुमार सिंह,मुरादाबाद
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वह दिल भी क्या दिल है यारों,  जिस दिल में किसी का प्यार ना हो।
कोई लक्ष्य ना हो कोई चाह ना हो, किसी चाहत की परवाह ना हो।

है लक्ष्य बिना जीवन सूना, कोई पथ ही नही गर चलने को।
ऐसे जीवन को क्या कहिये, कोई चाह नहीं हो पाने को।।

जिस मिट्टी से तन का नाता,  उस मातृभूमि से प्रेम करो।
निज देश धर्म की रक्षा में,कोई नया मार्ग सृजन कर लो।।

अपने इस नश्वर जीवन को, निज देश के हित कुर्बान करो।
जो मानवता के शत्रु हैं, उनमें मानवता का ज्ञान भरो।।

कुछ पथिक भटकते हैं पथ से, कुछ को भटकाया जाता है।
वे सत्य भुला यह देते हैं, मानव का उनसे नाता है।।

कुछ मासूमों की राह सत्य के, मार्ग में प्रशस्त करो।
जिस मिटी से तन का नाता, उस मातृभूमि से प्रेम करो।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद
mobile:-+919045548008
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न जिद मे न किसी गुस्से में किया था
कुछ कर दिखाने के लिए उसने ये कदम लिया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
अपनी मेहनत की कश्ती को एक समंदर में छोड़ा था
एक लड़के ने खुद के करियर के लिए घर छोड़ा था
छोड़कर घर की मोह माया को
हास्टल की दुनिया से नाता जोड़ा था
चंद सपनों की खातिर खुद को अपनों से दूर किया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
उम्मीदों की दौड़ में वो मां के आंचल से दूर निकला था
पिता के साये से दूर अब बाहर की दुनिया में पहुंचा था
हाँ, एक लड़के ने भी अपना घर छोड़ा था
किताबों की दुनिया से उसने अपना नाता जोड़ा था
कुछ कर दिखाने के जुनून में खुद को झोंका था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
रख परे शौक को अपने
अपनी मेहनत के साहिल पर उसने
अपनी किस्मत की कश्ती को छोड़ा था
अपने माता पिता के गर्व को ऊंचा रखने के लिए
खुद को त्याग की आग में झोंका था
एक लड़के ने कुछ कर दिखाने को घर छोड़ा था
वक्त से भी उसकी मशक्कत का सिला उसको मिला था
उस लड़के के कारनामे से
उसके पिता का सीना गर्व फूला था
आखिरकार उसने उस सच को पत्थर पर लिख छोड़ा था
अब लोग कहते थे उसके गांव के B
वाकई कुछ कर दिखाने को
एक लड़के ने घर छोड़ा था ll

✍️विभांशु दुबे विदीप्त ,मुरादाबाद
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जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

ताड़का और सुबाहु तारे पत्थर बनी अहिल्या तारी ।
जयंत और खर-दूषण तारे केवट के संग नौका तारी ।।
मात्र बेर खाने से जग में अमर हो गया शबरी नाम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।

मायावी मारीच तर गया बाली का उद्धार हो गया ।
सुग्रीव और अंगद जैसों का राम नाम आधार हो गया ।।
वानर सेना सारी तर गयी बोल बोल कर जय श्रीराम।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

विभीषण भी गले लगाया ,हनुमान को भक्त बनाया ।
क्रोध राम का देखा तो फिर दम्भी सागर शरण मे आया ।।
पत्थर तक भी तर गये देखो जिन पर लिखा गया था राम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जयश्री राम ।।

कुम्भकर्ण जैसा बलशाली ,रावण के जैसा महाज्ञानी ।
परख न पाये थाह राम की मद में होकर के अभिमानी ।।
अंत समय पर जोर जोर से बोले दोनों जय श्रीराम  ।।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

धरा गगन भी हर्षित हो गये मन सबके भी पुलकित हो गये ।
कलियुग में बनवास भोगकर राम अवध में वापस आ गये ।।
धाम अवध सबको चलना है बोल बोल कर जय श्रीराम ।

जय श्रीराम बोलो जयश्रीराम ,जय श्री राम बोलो जय श्रीराम।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम -------------------

  ✍️ डॉ सतीश वर्द्धन ,पिलखुवा
9927197480
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जितनी विषम परिस्थितियां हैं, उतने ही दृढ़ मोदी जी,
भरते हैं हुंकार दुश्मनों की छाती चढ़ मोदी जी।

जब भी घोर देश में संकट या विपपदाएं आती हैं,
देते हैं इमदाद सभी को खुद आगे बढ़ मोदी जी।

उग्रवादियों देशद्रोहियों के घुसकर ताहखानों में,
ध्वस्त किए उनकी साजिश के बड़े-बड़े गढ़ मोदी जी।

पाक-चीन से कम,खतरा ज्यादा घर के जयचंदों से,
उनसे मिले निजात, युक्तियां वही रहे गढ़ मोदी जी।

मीठा मीठा गप्प और कड़वा कड़वा जो थूक रहे,
उनको सबक सिखाने का भी रहे पाठ पढ़ मोदी जी।

✍️बाबा कानपुरी

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कुछ नए और
कुछ पुराने मिले
हुए सब अपने
जो भी बेगाने मिलेl
कुछ इस तरह से
मालामाल किया
गया मुझे
गम के गहने,
तकलीफों के ताज़,
धोखे की दौलत
फरेबी जज़्बात
ये बेशुमार दौलत
ज़िंदगी भर की कमाई
से अब भी
कहीं ज्यादा है
और दो, और दो,
ये खज़ाना और दो मुझे
मैं थकूंगा नहीं.
ये मेरा वादा हैl
क्योंकि
मैं पिता हूँ, पति हूँ,
आम नागरिक हूँ,
एक व्यवसायी हूँ,
कुछ कहते हैं
बड़ा हरजाई हूँ,
सामाजिक सरोकारों से
जोड़ा गया हूँ,
बेवज़ह, बेवक्त,
बेमकसद तोडा गया हूँl
जो भी कुछ

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद