बुधवार, 2 दिसंबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 29 नवंबर 2020 को मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। आयोजन में शामिल साहित्यकारों श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, विभांशु दुबे विदीप्त, इंदु रानी, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इशांत शर्मा, नृपेन्द्र शर्मा सागर, एमपी बादल जायसी और संजीव आकांक्षी द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं -----

 


प्यार है भगवान से, इन्सान से भी प्यार कर

दिल ही दिल में मानता है, रूबरू इज़हार कर


राम में रहमान हैं, रहमान में भी राम है,

छोड़ सारे द्वंद , दोनों का ही तू  दीदार कर


मंदिरों में, मस्जिदों में खोजना बेकार है

खोज अपने ही ह्रदय में, बस वहीं श्रंगार कर


नफरतें क्यूँ बांटता भगवान के ही नाम पर

है खुदा, भगवान दोनों एक, ये स्वीकार कर


दीन दुखियों के लिए थोड़ी मदद तो कर जरा

हैं बसे भगवान इनमें, कृष्ण इनसे प्यार कर

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG-69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद

मोबाइल नंबर 9456641400

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उड़ रही रेत गंगा किनारे 

              महकी आकाश में  

                       चांदनी की गंध 

              अधरों की देहरी 

                       लांघ आए छंद 

गंगाजल से छलके 

नेह के पिटारे 

उड़ रही रेत गंगा किनारे 

          कौन खड़ा है नभ में   

               लेकर चांदी का थाल 

          देखो बुला रहा पास किसे    

              फैला कर किरणों का जाल 

किस के स्वागत में चमक रहे 

 नभ में अनगिन तारे

 उड़ रही रेत गंगा किनारे

✍️डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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अरे चीं-चीं यहाँ आकर, पुनः हमको जगा देना।

निराशा दूर अन्तस से, सभी के फिर भगा देना।

चला है काटने को जो, भवन का मोखला सूना,

उसी में नीड़ अपना तुम, मनोहारी लगा देना।


जगाये बाँकुरे निकले, नया आभास झाँसी में।

वतन के नाम पर छाया, बहुत उल्लास झाँसी में।

समर-भू पर पुनः पीकर, रुधिर वहशी दरिन्दों का,

रचा था मात चण्डी ने, अमिट इतिहास  झाँसी में।


कहें कलाई चूम कर, राखी के ये तार।

तुच्छ हमारे सामने, मज़हब की दीवार।।


अभी मिटाना शेष है, अन्तस से अँधियार।

जाते-जाते कह गया, दीपों का त्योहार।।


दिनकर पर पहरा लगा, चौकस हुए अलाव।

उष्ण वसन देने लगे, फिर मूँछों पर ताव।।


✍️ राजीव 'प्रखर' 

मुरादाबाद 244001

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निकल पड़े हैं सफर पर जब, तो घबराना कैसा

पांव निकल आये देहरी के पार

तो वापसी का ख्याल कैसा


परवाह कैसी इन तूफ़ानों की

कैसा ये डर और डगमगाना कैसा

जब निकल पड़े है सफ़र पर तो घबराना कैसा


तमाम रोड़े आयेंगे, बादल बरस कर जाएंगे

उन पत्थरों को तो तू ढाल बना

बारिश से हर मानना कैसा


ये जो तेरी मसखरी बनाते हैं, तेरे किए पर हँस जाते हैं

क्या करनी परवाह उनकी, इनसे हार जाना कैसा

जब निकल पड़े हैं सफर पर

तो वापसी का ख्याल कैसा


ख्याल कर मंजिल का, रास्तों की खबर छोड़

जो रोके कोई ताकत तुझे, दे उसका तू मुँह मोड़

ये जलजले तो आयेंगे अक्सर

इनसे रुक कर बैठ जाना कैसा

जब निकल पड़े हैं सफर पर

तो घबराना कैसा

जब पांव निकल आये देहरी के पार

तो वापसी का ख्याल कैसा ll

✍️   विभांशु दुबे विदीप्त "मनमौजी"

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तू ही बता मुझे कैसे हो गुजारा तन्हा

हिसाब इश्क का अधूरा हमारा तन्हा


बांस डोली के साथ तू ही लेने आया था

मांग को तूने ही तो मेरी संवारा तन्हा


किस गली किस नगर को अब हो ठिकाना मेरा

रह गया दिल मिरा ये अब तो बेचारा तन्हा


मरूं मैं दर पे तेरे अब तो यही हसरत है 

जाना वापस नही है मुझको गवारा तन्हा


कभी तो जीत मेरी होगी जब तू आएगा

फिरेगा कब तलक तू यूँ ही आवारा तन्हा


✍️ इंदु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश

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आओ मिलकर इस धरा 

को फिर से हरा हम करें

कोशिश  जरा  तुम करो 

मेहनत  जरा  हम  करें ।।1।।

वृक्ष लगाएं स्वयं और 

उसे पाले पोषित करें 

 उपभोगिता  को  छोड़कर

 विलासिता से मुख्य मोड़ कर

 फिर से इस प्रकृति के 

 साधक और आराधक बने 

आओ मिलकर इस धरा

को फिर से हरा हम  करें

 कोशिश जरा तुम  करो 

मेहनत  जरा  हम  करें ।।2।।

जीव क्या है स्वयं जल, गगन,

 भूमि, अग्नि वायु पंच तत्वों का मिलन

  इस मिलन को मिल

 पुनः व्यवस्थित करें

 आओ  मिलकर इस धरा

 को फिर से हरा हम करें 

 कोशिश जरा तुम  करो 

 मेहनत जरा  हम  करें ।।3।।

कोशिश जरा तुम  करो

 मेहनत जरा हम करें। 

 ✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ                                               निकट रामचंद्र शर्मा कन्या इंटर कॉलेज चंद्र नगर मुरादाबाद(उ०प्र०)-244001

मोबाइल नंबर:-  75 99 21 1176 

अणु डाक:- aavranagarwal0@gmail.com

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क्या दो वक्त भी कभी संग मिलते हैं,

क्या टूटे दिल भी कभी फिर जुड़ते हैं क्या।


सोचा था भूल ही जाऊंगा तुझे मैं,

जख्म बेबसी के यूं ही रिसते हैं क्या।


जुदाई की घड़ी क्यों खत्म नहीं होती,

बिछड़े प्रेमी फिर से मिलते हैं क्या।


क्यों भूल गए तुम अदा मुस्कुराने की,

बेकसी में भी कभी लोग हंसते हैं क्या।

✍️ ईशांत शर्मा , मुरादाबाद

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1.

दीपक एक जलाकर मन का,  दूर अंधेरा कर लेना। 

दुख की दूर हटाकर रातें, नया सवेरा कर लेना। 

देना जला निराशा मन की,  बारूदों की ढेरी पर। 

उम्मीदों की नई किरण का, दिल में डेरा कर लेना।।


2.

 मैं तो आशिक हूँ बस,

 मोहब्बत के गीत लिखता हूँ।


तुम्हारी मुस्कान को, 

अपने लिए मैं प्रीत लिखता हूँ।


तुम्ही हो स्वामिनी मेरे हृदय की, 

तुम्हें मनमीत लिखता हूँ।


मोहब्बत में सदा दूरी की, 

नई रीत लिखता हूँ।


तुम्ही हो धड़कन मेरी,

तुम्हे जीवन का संगीत लिखता हूँ।


तुम्हारे प्यार में जीवन का,

  नया गीत लिखता हूँ।।


✍️ नृपेन्द्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

9045548008

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 तुम अगर साथ दो 

         हाथों में मेरे हाथ दो

  तेरी पलकों में मेरी

                 सुबह शाम हो

तेरी सूरत पे दिल ये

                 गिरफ्तार है

प्यार से तुम अगर

                इक नज़र देख लो

प्यार का नाम हर्गिज 

            न बदनाम हो

तुम अगर साथ ------

तेरी पलको में --------

           मस्त नज़रों का दिल ये

तलबगार है

        तुम से मिलने का

दिल में इक तुफ़ान है

        इक मुद्दत से 

दिल का ये अरमान है

        धड़कनो से मेरे

दिल का पैगाम है

       लव पे  "बादल " हमेशा

तेरा नाम है

✍️  डा . एम पी  बादल जायसी, मुरादाबाद

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क्यों अल्लाह की बंदगी में मौलाना हो।

पास मस्ज़िद के गर मयखाना हो।।


क्यों अल्लाह के बंदगी में मौलाना हो।

हुस्न की खिदमत में गर मौलाना हो।।


गर मस्ज़िद के पास मयखाना हो।

घर खुदा के अपना भी आना जाना हो।।


✍️ संजीव आकांक्षी , मुरादाबाद

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