माँ अष्ठ भुजा धारी,
करें शेरों की सवारी ।
श्रद्धा भक्ति और विश्वास
मेरी यही अरदास ।
बाकी सब बेकार,
करो माँ इसे स्वीकार।
दुनियां तुम पर बलिहारी,
माँ अष्ठ---------------।
करे मेहर की जो छाया,
कुंदन बन जाती काया।
भागे दूर सभी अंधियारा,
फैले चारों ओर उजियारा।
संकट कट जायें सब भारी,
माँ अष्ठ-----------------।
संसार की तुम चालक,
भक्तों की तुम पालक ।
जो भी तुम को पुकारे ,
होते उसके वारे न्यारे ।
होती जब कृपा तुम्हारी,
माँ अष्ठ------------------।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
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किसको चिंता, किस हालत में
कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गईं फर्ज पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन कागज का
वैसी है अब माँ
नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ
फर्ज निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ
✍️योगेंद्र वर्मा व्योम, मुरादाबाद
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लोरियां मुझको सुनाएगी तो नींद आएगी ।
मां तू सीने से लगाएगी तो नींद आएगी ।।
अपने हाथों में छुपा कर के मेरे चेहरे को ।
अपने पहलू में सुलाएगी तो नींद आएगी ।।
फिरसे परियों की कहानी भी सुनाना तू मुझे ।
मुझको चंदा तू दिखाएगी तो नींद आएगी ।।
मुझको बरसों से मयस्सर नहीं कोई चैनो सुकूं ।
अपने दामन में छुपाएगी तो नींद आएगी ।।
तेरी आवाज़ को सुनने को मैं तरसूं कब तक ।
जब कोई गीत सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
मैंने मुद्दत से कोई ख़्वाब नहीं देखा है ।
ख्वाब आंखों में सजाएगी तो नींद आएगी ।।
मैं हूं अनजान तू नाराज़ है आखिर क्यों कर ।
जब सज़ा कोई सुनाएगी तो नींद आएगी ।।
कैसे भूलेगा मुजाहिद वो मोहब्बत का सफ़र ।
फिर से सब याद दिलाएगी तो नींद आएगी ।
✍️ मुजाहिद चौधरी , हसनपुर अमरोहा
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हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगाई तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।
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दोहे
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सीपी बोली बूंद से, ओ कणिका नादान।
आकर मेरे अंक में, ले जा नव-उन्वान।।
पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।
इधर धरा पर हो रहा, बेटी का अपमान।
उधर गगन में गूंजता, माता का गुणगान।।
क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की प्यास।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
✍️- राजीव 'प्रखर',मुरादाबाद
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भव्या अभव्या भाव्या भवानी
भवमोचिनी हो तुम्हीं भाविनी ,
चितिः चिता और चित्तरूपा
सर्वास्त्रधारिणी सत् - स्वरूपा ।
काली कराली कौमारी कुमारी
क्रिया क्रूरा कात्यायनी कैशोरी ,
बुद्धिदा बहुला ब्राह्मी बहुलप्रेमा
अनेकशस्त्रहस्ता अमेयविक्रमा ।
युवती यतिः प्रौढ़ा अप्रौढ़ा
आद्या अनन्ता अनेकवर्णा ,
सती साध्वी सत्या सावित्री
मनः मातंगी मधुकैटभहन्त्री ।
सर्वविद्या सुता सर्वदानवघातिनी
महाबला तुम अनेकास्त्रधारिणी ,
पाटलावती पटांबरपरिधाना
सर्वशास्त्रमयी सर्ववाहनवाहना ।
तुम्हीं कालरात्रि तपस्विनी नारायणी
रूप अनेक हैं तुम्हारे जगतारिणी ,
ध्यान तुम्हारा हम करें कल्याणी
सदा पार लगाना हे दुखहारिणी ।
✍️डॉ. रीता सिंह, मुरादाबाद
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घर से जब भी निकलता हूँ तुम्हे ही याद करता हूँ,
सभी मुश्किल राहों को मैं आसान करता हूँ,
तुम्ही चाहत तुम्ही हिम्मत तुम्ही हो जिंदगी मेरी,
तुम्हे ही याद करता हूँ तुम्हारी बात करता हूँ,
✍️इशांत शर्मा ईशु, मुरादाबाद
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हाँ मैं एक औरत हूँ जो हमेशा औरों में ही रत हूँ।
सारे संसार का अस्तित्व मुझसे है ।
लेकिन मैं खुद के अस्तित्व से ही विरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।
मैं बेटी हूँ ,बहन हूँ ,पत्नी हूँ मैं माँ हूँ।
मैं सृस्टि कर्ता हूँ जन्मदात्री हूँ।
मैं हमेशा प्यार, वात्सल्य एवं ममता लुटाती हूँ।
हाँ मैं एक औरत हूँ।
मेरे बिना कल्पना भी नहीं इस संसार की।
मैं ही धुरी हूँ हर तरह के प्यार की।
मै त्याग और बलिदान की मूरत हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।
मैं औरों में रत हूँ सबके लिए जीती हूँ।
अपने हर आँसू को अमृत मानकर पीती हूँ।
कभी पिता का मान,
कभी पति का अभिमान।
कभी बेटे के सुख में निहित हूँ।
हाँ हाँ मैं एक औरत हूँ।।
क्या कोई समझ पायेगा औरत होने का सही अर्थ।
क्यों कर लेती है वह निज जीवन को व्यर्थ।
क्यों सदा वह बस औरों में रत है।
क्योंकि वह एक माँ हैं,
हाँ हाँ वह एक औरत है।।
✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।
✍️आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
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मैं मानू नौराते उस दिन,
जब नारी उत्पीड़न रुक जा।
करू मैं दीप प्रज्जवलित दिलसे,
जब दुष्टों का सर झुक जा।।
क्या ठोकू मैं ताल भजन की,
जब मैया मूँदें आँखे पड़ी।
करू भजन मैं उस दिन जब,
चीखों से सबका मन दुख जा।
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है बेटी अनमोल पर जो मोल न तुम समझोगे,
खो दोगे फिर मान घर की बरकत भी खो दोगे।
चूनर रख कर माथ रखती लाज सदा पगड़ी की,
जो न पूजो तुम पाँव तो लक्ष्मी भी धो दोगे।।
✍️इंदु, अमरोहा
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मानवता की सृजन जननी,
तुझ को मेरा नमन है ।
महिमा तेरी जनम-जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।
संस्कृति की ध्वजवाहक हो,
सृजन की पतवार हो,
परिवार का आधार हो,
मानव जीवन का सार हो ।।
स्नेह,प्रेम,साहस की मूरत,
वात्सल्य,ममता की सूरत,
महिमा तेरी जनम जनम है,
हे मां तुझे नमन है।।
✍🏻अमित कुमार सिंह
7C/61, बुद्धिविहार फेज 2
मुरादाबाद 244001
मोबाइल-9412523624
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