सोमवार, 21 दिसंबर 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 दिसंबर 2020 को साहित्य समागम मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों योगेंद्र वर्मा व्योम, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ मनोज रस्तोगी, अशोक विश्नोई, राजीव प्रखर, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, इंदु रानी, नृपेंद्र शर्मा सागर, अमित कुमार सिंह, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ और प्रशांत मिश्र द्वारा प्रस्तुत की गई रचनाएं


कुुुुुहरा धरता ही रहा, रोज़ भयंकर रूप ।

जीवन में तहज़ीब-सी, कहीं खो गई धूप ।।


कुहरा फिर करने लगा, सड़कों पर उत्पात ।

झोंपड़ियाँ डरने लगीं, सहम गए फुटपाथ ।।


ठिठुरन,कुहरा लिख रहे, रोज़ नया अध्याय ।

इनसे बचने के सभी, निष्फल हुए उपाय ।।


रोज़ कुहासा पढ़ रहा, सर्दी का अखबार ।

ठिठुर-ठिठुर कर मौत से, गई ग़रीबी हार ।।


कुहरे ने जब धूप पर, पाई फिर से जीत ।

सर्दी भी लिखने लगी, ठिठुरन वाले गीत ।।


रौद्ररूप दिखला रही, सर्दी अबकी बार ।

स्वस्थ,मस्त हैं कोठियाँ, झोंपड़ियाँ बीमार ।।


ठिठुरन भी धरने लगी, रोज़ भयंकर रूप ।

रिश्तों में अपनत्व-सी, कहीं खो गई धूप ।।


विजयी सूरज का हुआ, सभी जगह सत्कार ।

सुबह-सुबह जब गिर गई, कुहरे की सरकार ।।


छँटा कुहासा मौन का, निखरा मन का रूप ।

रिश्तों में जब खिल उठी, अपनेपन की धूप ।।


✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

मुरादाबाद. मोबाइल- 9412805981

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कृषक आज आंदोलनरत है, निज हित अनहित से अन्जान ।

जो खेतों में श्रम करता था, आज सड़क पर पड़ा किसान।


कृषि प्रधान है देश हमारा, रखे अन्नदाता का मान।

हरित क्रांति लाकर किसान भी, देता है अपना प्रतिदान।


खेतों में सोना उपजाता, अपने श्रम से सदा किसान।

किंतु न उचित मूल्य मिल पाता, इसका कोई करे निदान।


इसीलिए कृषि बिल आया है, कृषक मूल्य पाये भरपूर।

जहाँ मूल्य पूरा मिलता हो, विक्रय  करे वहीं खाद्यान्न।।


किंतु विपक्षी राजनीति ने, खूब भर दिये उसके कान।

और जरा सी नासमझी में, धरने पर है आज किसान ।।


बिल वापस लो अड़े हुए हैं, बंद किये सारे संवाद।

प्रभु इनको सद्बुद्धि आये, निकले इसका शीघ्र निदान।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

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सूरज की पहली किरण

   उतरी जब छज्जे पर

     आंगन का सूनापन उजलाया 


     गौरैया ने गुनगुन गा

            फैलाए अपने पर

 एक मीठा सपना याद दिलाया


       चंदन से महकी दिशाएं

             पूरवा ने ली अंगड़ाई 

        कुह कू कुह कू की ध्वनि 

                से गूंज उठी अमराई 

          

लान में खेले सतरंगी 

       फूलों के अधरों पर 

              गीतों का स्वर लहराया

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com

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आओ  कोई   गीत  लिखें ,

अपनी-अपनी प्रीत लिखें ।

      करें कल्पना

      हम स्वप्न बुनें ,

      कली खिलायें

      शूल चुनें ,

एक नई हम रीत लिखें ।

       दर्द सहें

       कुछ रंग रचें ,

       खुशियां बाटें 

       सजे -धजे ,

आज कही मनमीत लिखें ।

       सांझ ढल रही

       दीप जले ,

       शलभ उड़ रहे

       पंख जले ,

हार कहीँ , तो जीत लिखें ।

       शब्द जुटायें

       गीत गढ़े ,

       आराध्यों पर

       पुष्प चढ़ें ,

ग्रीष्म नहीं, हम शीत लिखें ।

आओ  कोई   गीत   लिखें ।।

 

✍️ अशोक विश्नोई

डी०12, अवन्तिका कॉलोनी

मुरादाबाद

मो० 9411809222

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चतुष्पदी 

फिर विटप से गीत कोई अब सुनाओ कोकिला।

आस जीने की जगा कर कूक जाओ कोकिला।

हों तुम्हारे शब्द कितने ही भले हमसे अलग,

पर हमारे भी सुरों में सुर मिलाओ कोकिला।


दोहे

रवि ने दिन भर खेल कर, जब छोड़ा मैदान।

सोम सुबह तक के लिये, बन बैठे कप्तान।।


दिनकर पर पहरा लगा, चौकस हुए अलाव।

उष्ण वसन देने लगे, फिर मूँछों पर ताव।।


अभी मिटाना शेष है, अन्तस से अँधियार।

जाते-जाते कह गया, दीपों का त्योहार।।


माँ प्राची के अंक से, झाँके जब आदित्य।

अठखेली करने लगे, अम्बर में लालित्य।।


कब तक मेरे भाग्य में, अपशिष्टों का जाल।

आज सभी से सुरधुनी, करती यही सवाल।।


✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद

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कम्बल अपने गात का,सुत को देती जाय।

माँ को ठिठुरन से भरी,सर्दी अगर सताय।1।


मूँगफली गरमागरम,थोड़ी लाया बाप।

सगरी दे दी लाल को,नहीं चबायी आप।2।


माँ खाने का देखती,बापू खेत विहार।।

बच्चे दर-दर ढूँढते,सर्दी का उपचार।3।


एक रजाई पास में,घर में हैं जन चार।

मात पिता बनके रहे,बच्चों की दीवार।4।


चिक्की,मेवे,रेवड़ी,सर्दी में मन भाय।

सूखी रोटी ही सही,झनकू को मिल जाय।5।


भेदभाव बरते बड़े,सर्दी नामाकूल।

कतरन को ठिठुरन दई,मखमल के अनुकूल।6।


सर्दी उसको भा रही,प्रियतम जिसका पास।

सर्दी सा चुभता रहा,पिय का हमें प्रवास।7।


✍️ हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

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जिनको अपनी मातृभूमि पर , रहा सदा ही है अभिमान ।

धीर वीर सुत वे जननी के , पाते हैं जग में सम्मान ।।


दुश्मन की फुंकारों से भी , झुका नहीं है जिनका शीश । 

भारत माँ के उन वीरों का , करते सभी सदा गुणगान  ।


खड़े हुए हैं भारत हित में , जो बर्फीली सीमाओं पर 

उनके ही साहस के बल से , अलग तिरंगे की पहचान ।


राष्ट्र ध्वज का मान बढ़ाते , अपने सुख का करके त्याग

रहें पताका सबसे ऊँची , उनका एक यही अरमान ।


सदा राष्ट्र हित सर्वोपरि है , सैनिक का है लक्ष्य महान

रहे चैन से सारी जनता , जिसके हित न्यौछावर जान ।


✍️ डॉ. रीता सिंह

चन्दौसी (सम्भल)

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राम के प्रभाव से ही बन रहा मंदिर है

कितने वर्षों में जानें, शुभ घड़ी आयी है

राम जी  पधारे सीता मैया व लखन संग

अवधपुरी में आज,बजी शहनाई है।


तंबू  को उखाड़ फेंका,महलों को जीत लाए,

भारती के लाल देखो,गा रहे बधाई हैं।


राम -राम ,सीता -राम ,सीता -राम ,राजा राम

राम लला ,राम जी की,छवि मन भायी है।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

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जोर का डंका बजा औ सब खिलाड़ी हो गए।

  लो जमूरे आज के शातिर मदारी हो गए।


क्या सही क्या है गलत परवाह ना इस बात की,

चमचमाता जो दिखे उसके पुजारी हो गए।


दल बदलना-दल पकड़ना, आम सी इक बात है,

एक थाली के वो सारे,हम भिखारी  हो गए।


वोट वालों की नहीं कीमत रही है आज कल

छल जो करना जानते हैं, सब पे भारी हो गए ।


मूल्य नैतिकता जिन्हें मालूम तो कुछ भी नहीं

मुल्क में सत्ता मिली तो , सब शिकारी हो गए।


✍️ इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश

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जनसंख्या बढ़ती जाती है,

   समस्याओं का मूल यही।

      अभी नहीं गर इसको रोका,

         होगी भारी भूल यही।।


क्यों गम्भीर नहीं अब होते,

    संसाधन की कमी को रोते।

       अभी जो दिखती तिनके जैसी।

            बढ़कर होगी शूल यही।।


अभी नियंत्रण बहुत जरूरी,

    बन ना जाये फिर मजबूरी।

       जनसंख्या पर नियम बने अब,

          है इसका निर्मूल यही।।


✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मोबाइल:- 9045548008

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रास्ते कुछ जो सिखाते,

तो मंजिल कितनी आसान होती।

राह में अगर तुम मिलते,

तो मंजिल कितनी हंसी होती।

हर परवाज पर अंजाम मिलते,

तो जिंदगी कितनी हसीन होती।

हर शाख पर अगर फूल लगते,

तो कायनात कितनी खूबसूरत होती।     

देख तो लेता मैं जमाने की रंजिश, 

इक तू जो मेरे साथ....मेरे साथ होती।


✍️ अमित कुमार सिंह(अक्स)

7C/61बुद्धिविहार फेज 2

मुरादाबाद

मोबाइल-9412523624

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देश जला है जलने दो

रोग पला है पलने दो

हम रोगों को पालेंगे

देश जला हम डालेंगे

हम गांधी के बंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है।

देश लुटा है लूटने दो

देश बटा है बटने दो

हम देशो को बाटेंगे

अपनो को ही डांटेंगे

हम ही बड़े कलंदर है

सबसे बड़े सिकंदर है

सत्य घटा है घटने दो

झूठ डटा है डटने दो

जो खाई को  पाटेंगे

तलवो को भी चाटेंगे

वो ही बड़े धुरंदर है

सबसे बड़े सिकन्दर हैं।


✍️ आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद

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आइए! 

संकल्प सिद्ध करें

देश के गलियारों में,

छुआ-छूत से भरी

जातिवाद की ऊंची दीवारों मन,

जब अपना ही घर लूट लिया 

देश के ग़द्दारों ने...

जनता खड़ी देखती रही

सिमटी अपने किरदारों में ।

आइए ! 

संकल्प सिद्ध करें 

देश के गलियारों में...


✍️प्रशान्त मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद


 

रविवार, 20 दिसंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं। रविवार 6 दिसंबर 2020 को आयोजित 231वें वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों रेखा रानी, रवि प्रकाश, वैशाली रस्तोगी, नवल किशोर शर्मा, राजीव प्रखर, मीनाक्षी ठाकुर, अनुराग रोहिला, संतोष कुमार शुक्ल सन्त, मनोरमा शर्मा, नजीब सुल्ताना, डॉ शोभना कौशिक, डॉ ममता सिंह, दीपा पांडे, अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, डॉ पुनीत कुमार, रामकिशोर वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ल ,सूर्यकांत द्विवेदी और डॉ मनोज रस्तोगी द्वारा प्रस्तुत काव्य रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में -------





















 

शनिवार, 19 दिसंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र द्वारा किया गया श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय तेरह का काव्यानुवाद --------


अर्जुन ने श्रीकृष्ण भगवान से पूछा--
क्या है प्रकृति मनुष्य प्रभु,ज्ञेय और क्या ज्ञान?
क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ क्या,बोलो कृपानिधान।। 1

श्रीकृष्ण भगवान ने अर्जुन को प्रकृति, पुरुष, चेतना के बारे में इस तरह ज्ञान दिया-----
हे अर्जुन मेरी सुनो,कर्मक्षेत्र यह देह।
यह जानेगा जो मनुज, करे न इससे नेह।।2

ज्ञाता हूँ सबका सखे,मेरे सभी शरीर।
ज्ञाता को जो जान ले, वही भक्त मतिधीर।। 3

कर्मक्षेत्र का सार सुन,प्रियवर जगत हिताय।
परिवर्तन-उत्पत्ति का, कारण सहित उपाय।। 4

वेद ग्रंथ ऋषि-मुनि कहें, क्या हैं कार्यकलाप?
क्षेत्र ज्ञान ज्ञाता सभी, कहते वेद प्रताप।। 5

मर्म समझ अन्तः क्रिया, यही कर्म का क्षेत्र।
मनोबुद्धि, इंद्रिय सभी, लख अव्यक्ता नेत्र।। 6

पंचमहाभूतादि सुख, दुख इच्छा विद्वेष।
अहंकार या धीरता, यही कर्म परिवेश।। 7

दम्भहीनता,नम्रता,दया अहिंसा मान।
प्रामाणिक गुरु पास जा, और सरलता जान।। 8

स्थिरता और पवित्रता, आत्मसंयमी ज्ञान।
विषयादिक परित्याग से, हो स्वधर्म- पहचान।। 9

अहंकार से रिक्त मन, जन्म-मरण सब जान।
रोग दोष अनुभूतियाँ,वृद्धावस्था भान।। 10

स्त्री, संतति, संपदा, घर, ममता परित्यक्त।
सुख-दुख में जो सम रहे, वह मेरा प्रिय भक्त।। 11

वास ठाँव एकांत में, करते इच्छा ध्यान।
जो अनन्य उर भक्ति से,उनको ज्ञानी मान।। 12

जनसमूह से दूर रह, करे आत्म का ज्ञान।
श्रेष्ठ ज्ञान वह सत्य है, बाकी धूलि समान।। 12

अर्जुन समझो ज्ञेय को, तत्व यही है ब्रह्म।
ब्रह्मा , आत्म, अनादि हैं, वही सनातन धर्म।। 13

परमात्मा सर्वज्ञ है, उसके सिर, मुख, आँख।
कण-कण में परिव्याप्त हैं, हाथ, कान औ' नाक।। 14

मूल स्रोत इन्द्रियों का, फिर भी वह है दूर।
लिप्त नहीं ,पालन करे, सबका स्वामी शूर।। 15

जड़-जंगम हर जीव से, निकट कभी है दूर।।
ईश्वर तो सर्वत्र है, दे ऊर्जा भरपूर।। 16

अविभाजित परमात्मा, सबका पालनहार।
सबको देता जन्म है, सबका मारनहार।। 17

सबका वही प्रकाश है, ज्ञेय, अगोचर ज्ञान।
भौतिक तम से है परे, सबके उर में जान।। 18

कर्म, ज्ञान औ' ज्ञेय मैं, सार और संक्षेप।
भक्त सभी समझें मुझे, नहीं करें विक्षेप।। 19

गुणातीत है यह प्रकृति ,जीव अनादि  अजेय।
प्रकृति जन्य होते सभी, समझो प्रिय कौन्तेय।। 20

प्रकृति सकारण भौतिकी, कार्यों का परिणाम।
सुख-दुख का कारण जगत,वही जीव-आयाम।। 21

तीन रूप गुण-प्रकृति के,करें भोग- उपयोग।
जो जैसी करनी करें, मिलें जन्म औ' रोग।। 22

दिव्य भोक्ता आत्मा, ईश्वर परमाधीश।
साक्षी, अनुमति दे सदा, सबका न्यायाधीश।। 23

प्रकृति-गुणों को जान ले, प्रकृति और क्या जीव?
मुक्ति-मार्ग निश्चित मिले, ना हो जन्म अतीव।। 24

कोई जाने ज्ञान से, कोई करता ध्यान।
कर्म करें निष्काम कुछ, कोई भक्ति विधान।। 25

श्रवण करें मुझको भजें, संतो से कुछ सीख।
जनम-मरण से छूटते, जीवन बनता नीक।। 26

भरत वंशी श्रेष्ठ जो, चर-अचरा अस्तित्व।
ईश्वर का संयोग बस, कर्मक्षेत्र सब तत्व।। 27

आत्म तत्व जो देखता, नश्वर मध्य शरीर।
ईश अमर और आत्मा,वे ही संत कबीर।। 28

ईश्वर तो सर्वत्र है, जो भी समझें लोग।
दिव्यधाम पाएँ सदा, ये ही सच्चा योग।। 29

कर्म करें जो हम यहाँ, सब हैं प्रकृति जन्य।
सदा विलग है आत्मा, सन्त करें अनुमन्य।। 30

दृष्टा है यह आत्मा, बसती सभी शरीर।
जो सबमें प्रभु देखता, वही दिव्य सुधीर।। 31

अविनाशी यह आत्मा, है यह शाश्वत  दिव्य।
दृष्टा बनकर देखती, मानव के कर्तव्य।। 32

सर्वव्याप आकाश है, नहीं किसी में लिप्त।
तन में जैसे आत्मा, रहती है निर्लिप्त।। 33

सूर्य प्रकाशित कर रहा, पूरा ही ब्रह्मांड।
उसी तरह यह आत्मा, चेतन और प्रकांड।। 34

ज्ञान चक्षु से जान लें, तन, ईश्वर का भेद।
विधि जानें वे मुक्ति की, जीवन बने सुवेद।। 35

✍️डॉ राकेश चक्र
90 बी, शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उ.प्र . भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com


शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी को राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य साधक सम्मान से किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" के तत्वावधान में संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष साहित्यकार राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' की सप्तम् पुण्यतिथि पर 13 दिसम्बर 2020 को 'सम्मान-अर्पण' का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें संस्था की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी को "राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य-साधक सम्मान" से सम्मानित किया गया।‌ कोरोना संक्रमण काल में सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक दिशा-निर्देशों का पूर्णतया पालन करते हुए नवीन नगर स्थित डॉ. माहेश्वर तिवारी जी के आवास पर आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में उन्हें यह सम्मान अर्पित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, सम्मान राशि एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। 
    इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन कर रहे नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने  माहेश्वर तिवारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला, साथ ही संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग'  के साहित्यिक योगदान पर भी विस्तार पूर्वक अभिव्यक्ति  की। संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना  से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने की। मुख्य अतिथि कवयित्री श्रीमती विशाखा तिवारी एवं विशिष्ट अतिथि के रुप में सुप्रसिद्ध शायर डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' उपस्थित रहे। प्रशस्ति-पत्र का वाचन संस्था के महासचिव जितेन्द्र 'जौली' द्वारा किया गया।
सम्मान-अर्पण कार्यक्रम के पश्चात एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें सम्मानित साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने नवगीत प्रस्तुत किया-
"कितने दुःख सिरहाने आकर बैठ गए
चेहरे कुछ अनजाने आकर बैठ गए
ओला मारी फसलें ब्याज चुकाती रीढ़ें
आगे पीछे बस रोती चिल्लाती भीड़ें
ढूँढ नये कुछ ठौर-ठिकाने बैठ गए"

डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने रचना प्रस्तुत की-
"जीना मरना राम हवाले अस्पताल में जाकर
पहाड़ सरीखे भुगतानों की सभी खुराकें खाकर
जिनमें सांसें अटकी हैं उन पर्चों के पास चलें
मिले न कल तो घर पर शायद परसों के पास चलें"

डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' ने ग़ज़ल पेश की-
"जेहन की आवारगी को इस कदर प्यारा हूँ मैं
साथ चलती है मेरे इक ऐसा बंजारा हूँ मैं
राख ने मेरी ही ढक रखा है मुझको आजकल
वरना तो खुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं"

कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता प्रस्तुत की-
"इंसानियत का मतलब है
गाँव समाज और, देश के लिए
समर्पित हो जाने की ललक
सम्पूर्ण जीव जगत से प्यार
सर्वे भवंतु सुखिनः की तरह"

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने नवगीत प्रस्तुत किया-
"आज सुबह फिर लिखा भूख ने ख़त रोटी के नाम
एक महामारी ने आकर सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से पल-पल है संग्राम"

राजीव 'प्रखर' ने मुक्तक प्रस्तुत किया-
"जगाये बाँकुरे निकले नया आभास झाँसी में
वतन के नाम पर छाया बहुत उल्लास झाँसी में
समर-भू पर पुनः पीकर रुधिर वहशी दरिंदों का
रचा था मात चण्डी ने अमिट इतिहास झाँसी में"

जितेन्द्र 'जौली' ने दोहा प्रस्तुत किया-
"हम लोगों के साथ में,होता है नित खेल
जो हक की खातिर लड़े, वही गए हैं जेल"

संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने आभार अभिव्यक्त किया।












::::::::प्रस्तुति::::::
राजीव प्रखर
डिप्टी गंज, मुरादाबाद

गुरुवार, 17 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट का गीत ---पंखों को जंग लगी है हर उड़ान बंद है .....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना ---अगर मां साथ होती है सभी गम दूर होते हैं ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ निवासी )के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के दोहे ----


 

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की ग़ज़ल ----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ---- झूठ के अनूठे संस्कार


 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दो मुक्तक -----


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत --- टिक टिक टिक घड़ी चल रही जीवन की ....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना --तू ही बता कैसे हो गुजारा तन्हा ....-

 


मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की किसान आंदोलन पर रचना ----


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार सन्तोष कुमार शुक्ल का गीत ----- कौन किसको पूछता है स्वार्थ के सम्बंध सारे ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल --- दिल ओ नजर से मगर दूर कर दिया तूने


 

बुधवार, 16 दिसंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार राम किशोर वर्मा की रचना -- शिक्षा पर है जोर,


 

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी की कविता ---कोरोना बनाम क्यों रोना


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना ----रिश्ते

 


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कुण्डलिया ---


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी की कविता -----


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कुंडलियां .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा की कविता ----हर शख्स बेचैन है .....


 

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" के तत्वावधान में 14 दिसम्बर 2020 को आयोजित मासिक काव्य गोष्ठी

मुरादाबाद  की साहित्यिक संस्था "राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति" की मासिक काव्य गोष्ठी जंभेश्वर धर्मशाला लाइन पार मुरादाबाद में सोमवार 14 दिसम्बर 2020 को संपन्न हुई । काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता महाराजा हरिश्चंद्र महाविद्यालय की प्राचार्य  डॉ मीना कौल ने की। सरस्वती वंदना रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने प्रस्तुत की तथा मंच संचालन अशोक विद्रोही ने किया। 


कार्यक्रम में योगेंद्र पाल  विश्नोई ने कहा-

अरे पीर मन की किसी से ना कहना

पड़े चाहे पीड़ा में दिन रात गहन


अशोक विद्रोही ने कहा -

उठो राम भक्तों सब मिलकर 

              राम सिया गुणगान करो।

खत्म हुआ बनवास राम का

                 मंदिर का निर्माण करो।


डॉ . मीना कौल ने कहा -

धरती में आकाश बसा दो

धरती झूम जाएगी

नदिया में सागर बसा दो 

नदियां झूम जाएगी


रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने पढ़ा-

वीरों हिम  त्रिशूल उठाओ 

गाओ वीरो  की वाणी गाओ


रघुराज सिंह निश्चल ने कहा ---

बात का जख्म भरता नहीं है कभी 

बात जब भी करो तो करो प्यार से


राजीव प्रखर का कहना था ---

लगा जो ध्यान गिरधर में, तजा घर-द्वार मीरा ने।

धर फिर रूप जोगन का, लिया इकतार मीरा ने।


प्रशांत मिश्र ने कहा ---

मेरे विरोधी ही मेरे अच्छे मित्र हैं

और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं


मनोज मनु ने कहा -

पाप विनाशनी  शुभ हर हर गंगे

हर हर गंगे,हर हर गंगे,हर हर गंगे!!

 योगेंद्र पाल विश्नोई ने आभार व्यक्त किया ।











         

::::::::प्रस्तुति:::::::


अशोक विद्रोही 

उपाध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद