शुक्रवार, 18 दिसंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी को राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य साधक सम्मान से किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था "हिन्दी साहित्य संगम" के तत्वावधान में संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष साहित्यकार राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग' की सप्तम् पुण्यतिथि पर 13 दिसम्बर 2020 को 'सम्मान-अर्पण' का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें संस्था की ओर से सुप्रसिद्ध नवगीतकार  माहेश्वर तिवारी को "राजेन्द्र मोहन शर्मा श्रृंग स्मृति साहित्य-साधक सम्मान" से सम्मानित किया गया।‌ कोरोना संक्रमण काल में सुरक्षा संबंधी सभी आवश्यक दिशा-निर्देशों का पूर्णतया पालन करते हुए नवीन नगर स्थित डॉ. माहेश्वर तिवारी जी के आवास पर आयोजित एक संक्षिप्त समारोह में उन्हें यह सम्मान अर्पित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, सम्मान राशि एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। 
    इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन कर रहे नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने  माहेश्वर तिवारी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला, साथ ही संस्था के संस्थापक कीर्तिशेष राजेन्द्र मोहन शर्मा 'श्रृंग'  के साहित्यिक योगदान पर भी विस्तार पूर्वक अभिव्यक्ति  की। संस्था के कार्यकारी महासचिव राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना  से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने की। मुख्य अतिथि कवयित्री श्रीमती विशाखा तिवारी एवं विशिष्ट अतिथि के रुप में सुप्रसिद्ध शायर डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' उपस्थित रहे। प्रशस्ति-पत्र का वाचन संस्था के महासचिव जितेन्द्र 'जौली' द्वारा किया गया।
सम्मान-अर्पण कार्यक्रम के पश्चात एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें सम्मानित साहित्यकार माहेश्वर तिवारी ने नवगीत प्रस्तुत किया-
"कितने दुःख सिरहाने आकर बैठ गए
चेहरे कुछ अनजाने आकर बैठ गए
ओला मारी फसलें ब्याज चुकाती रीढ़ें
आगे पीछे बस रोती चिल्लाती भीड़ें
ढूँढ नये कुछ ठौर-ठिकाने बैठ गए"

डॉ. मक्खन मुरादाबादी ने रचना प्रस्तुत की-
"जीना मरना राम हवाले अस्पताल में जाकर
पहाड़ सरीखे भुगतानों की सभी खुराकें खाकर
जिनमें सांसें अटकी हैं उन पर्चों के पास चलें
मिले न कल तो घर पर शायद परसों के पास चलें"

डॉ. कृष्ण कुमार 'नाज़' ने ग़ज़ल पेश की-
"जेहन की आवारगी को इस कदर प्यारा हूँ मैं
साथ चलती है मेरे इक ऐसा बंजारा हूँ मैं
राख ने मेरी ही ढक रखा है मुझको आजकल
वरना तो खुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं"

कवयित्री विशाखा तिवारी ने कविता प्रस्तुत की-
"इंसानियत का मतलब है
गाँव समाज और, देश के लिए
समर्पित हो जाने की ललक
सम्पूर्ण जीव जगत से प्यार
सर्वे भवंतु सुखिनः की तरह"

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने नवगीत प्रस्तुत किया-
"आज सुबह फिर लिखा भूख ने ख़त रोटी के नाम
एक महामारी ने आकर सब कुछ छीन लिया
जीवन की थाली से सुख का कण-कण बीन लिया
रोज़ स्वयं के लिए स्वयं से पल-पल है संग्राम"

राजीव 'प्रखर' ने मुक्तक प्रस्तुत किया-
"जगाये बाँकुरे निकले नया आभास झाँसी में
वतन के नाम पर छाया बहुत उल्लास झाँसी में
समर-भू पर पुनः पीकर रुधिर वहशी दरिंदों का
रचा था मात चण्डी ने अमिट इतिहास झाँसी में"

जितेन्द्र 'जौली' ने दोहा प्रस्तुत किया-
"हम लोगों के साथ में,होता है नित खेल
जो हक की खातिर लड़े, वही गए हैं जेल"

संस्था के महासचिव जितेन्द्र कुमार जौली ने आभार अभिव्यक्त किया।












::::::::प्रस्तुति::::::
राजीव प्रखर
डिप्टी गंज, मुरादाबाद

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