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सोमवार, 1 अप्रैल 2024

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में साहित्यकार अशोक विश्नोई के सम्मान में शुक्रवार 29 मार्च 2024 को साहित्यकार मिलन गोष्ठी का आयोजन

साहित्यकार अशोक विश्नोई के सम्मान में 8, जीलाल स्ट्रीट स्थित साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय में शुक्रवार 29 मार्च 2024 को साहित्यकार मिलन गोष्ठी का आयोजन किया गया। साहित्यकारों ने शोधालय में संरक्षित मुरादाबाद के दुर्लभ साहित्य, पांडुलिपियों, प्राचीन पत्र–पत्रिकाओं और स्मारिकाओं का अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि मुरादाबाद की साहित्यिक विरासत को संजोने में यह न केवल एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर रहा है बल्कि शोधार्थियों के लिए उपयोगी केंद्र सिद्ध हो रहा है।

      इस अवसर पर हेमा तिवारी भट्ट द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कई गीत प्रस्तुत कर मंत्र मुग्ध कर दिया । उन्होंने कहा ....

होली का हर रंग मुबारक, इक दूजे के संग मुबारक, 

जीवन भर हँसने-गाने का, ऐसा सुंदर ढंग मुबारक

रंगों की बौछार मुबारक, सदा बरसता प्यार मुबारक, 

रंग, अबीर, गुलाल महकता, सबको यह त्यौहार मुबारक।

   मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई ने गीत के माध्यम से जीवन संघर्षों को कुछ इस तरह उकेरा ...

थका- थका सा जीवन अपना,

बोझ बहुत है भारी।

चलते- चलते पाँव थके हैं,

आधी मिली न सारी।

पल - पल मरता- जीता रहता,

दिल मे चुभती पिन ।।

    संचालन करते हुए शोधालय के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने चुनावी माहौल पर कहा ...

जैसे तैसे बीत गए पांच साल रे भैया

फिर लगा बिछने वादों का जाल रे भैया

सोच समझकर इस बार करना तुम मतदान

बाद में न करना पड़ जाए मलाल रे भैया

  हास्य व्यंग्य के चर्चित कवि फक्कड़ मुरादाबादी ने कहा .... 

आदमी में किस तरह विष भर गया है

विषधरों का वंश भी अब डर गया है

कल सुनोगे आदमी के काटने से

कोई सांप रास्ते में मर गया है

  योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने चुनावी दोहे प्रस्तुत किए.….

आज़ादी के बाद का, बता रहा इतिहास।

सिर्फ चुनावों के समय, वोटर होता खास।।

    युवा साहित्यकार राजीव प्रखर का कहना था ......

थोड़ी सी हमको हिचक हुई, थोड़ा सा वो भी शर्माए। 

दोनों के तपते अन्तस में, उल्लास भरे घन घिर आये। 

छेड़ी कोयल ने स्वर-लहरी, पाया लेखन ने नवजीवन, 

भावों के पुष्पों पर जब से, शब्दों के मधुकर मॅंडराए।

     हेमा तिवारी भट्ट ने दोहे के माध्यम से संदेश दिया ....

हंसी ठिठौली नेह की,भरती सारे घाव। 

हास और परिहास का, बना रहें सद्भाव।।

लौट शिशिर घर को चला,माघ समेटे ठाट।

फागुन के हत्थे लगी,फिर वासंती हाट।।

    युवा शायर फरहत अली खां का कहना था ....

चलो झगड़े पुराने ख़त्म कर लें

नए पौधे पनपना चाहते हैं

पुराने दोस्त मिल बैठे हैं 'फ़रहत'

कोई क़िस्सा पुराना चाहते हैं

दुष्यंत बाबा ने हास्य की फुलझड़ी छोड़ते हुए कहा ...

गुजिया  खाकर  मेढकी मले  पेट  पर हींग

गधे आंदोलन कर रहे हम लेकर रहेंगे सींग

 राशिद हुसैन ने आह्वान किया ....

बहुत जरूरी एक काम करें हम चलो मतदान करें।

लोकतंत्र की मजबूती के लिए अपना भी योगदान करें।। 

गोष्ठी में ओम प्रकाश रस्तोगी, मालती रस्तोगी, गिरीश चंद्र भट्ट उपस्थित रहे । आभार शिखा रस्तोगी ने व्यक्त किया। 

























































सोमवार, 25 मार्च 2024

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से 23 मार्च 2024 शनिवार को योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' का लोकार्पण एवं काव्य गोष्ठी आयोजित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी के गौर ग्रीशियस स्थित आवास 'हरसिंगार' में शनिवार 23 मार्च 2024 को आयोजित गोष्ठी में साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' का लोकार्पण किया गया। कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट द्वारा प्रस्तुत माॅं शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम में डॉ.अजय 'अनुपम'  द्वारा लोकार्पित कृति पर समीक्षा प्रस्तुत की गई तथा लोकप्रिय शायर ज़िया ज़मीर द्वारा लिखित समीक्षा आलेख का वाचन राजीव प्रखर ने किया। 

      लोकार्पण के पश्चात् एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता करते हुए  माहेश्वर तिवारी ने अपने भावों को शब्द दिये- 

गीतों भरी सुबह लगती है, रंगों डूबी शाम।

याद बहुत आते हैं कल के रिश्ते और प्रणाम। 

मुख्य अतिथि डॉ.अजय अनुपम ने कहा- 

जिस पल से होने लगा, नेता का धन दून। 

लगे तभी से सूखने, छप्पर पर कानून।। 

जैसे बच्चे खेलते, कुर्ता पकड़े रेल।‌ 

कुनबेदारी ले गई, नेताजी को जेल।।  

विशिष्ट अतिथि विशाखा तिवारी ने होली का सुंदर चित्रण करते हुए कहा -

पैंया पड़ूं कर जोरी, 

श्याम मो से न खेलो होरी। 

संचालन करते हुए योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा- 

मनके सारे त्याग कर, कष्ट और अवसाद। 

पिचकारी करने लगी, रंगो से संवाद।। 

गुझिया से कचरी लड़े, होगी किसकी जीत। 

एक कह रही है ग़ज़ल, एक लिख रही गीत।। 

  कवयित्री डॉ.पूनम बंसल के होली गीत ने सभी को वाह करने पर विवश कर दिया- 

फागुन का है मस्त महीना पिचकारी की धार लिए। 

रूठों को हम चलो मनाएं,रंगों का उपहार लिए।। 

जीवन में मस्ती की सरगम लेकर आई है होली। 

रंगों में यूं भीगा तन मन सजनी साजन की हो ली।। 

  डॉ.कृष्ण कुमार नाज़ के अशआर सभी को झूमने पर विवश कर गये - 

बादलों की सुरमई छतरी यहाँ तानी गई, 

तब कहीं तपते हुए सूरज की मनमानी गई। 

शुक्रिया तेरा, मेरी ख़ानाबदोशी शुक्रिया, 

तू मिली तो गर्दिशों की ज़ात पहचानी गई। 

डॉ. मनोज रस्तोगी का कहना था - 

घर-घर में करना आह्वान है।

मत का करना सही दान है।।

परिवार सहित चलें बूथ पर।

बाद में करना जलपान है।।

राजीव प्रखर ने अपने दोहों के रंग इस प्रकार छोड़े - 

बदल गई संवेदना, बदल गए सब ढंग। 

पहले जैसे अब कहाॅं, होली के हुड़दंग।। 

गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर। 

चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।। 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट का कहना था - 

टेसू शाखों पर खिले, घुली प्रेम की भंग। 

साजन ने जब आ सखी,मुझ को डाला रंग ।। 

हंसी ठिठौली नेह की,भरती सारे घाव। 

हास और परिहास का, बना रहें सद्भाव।। 

मीनाक्षी ठाकुर ने वर्तमान परिस्थितियों पर तीखा व्यंग्य किया - 

पुते चुनावी रंगों में फिर गिरगिटिया अय्यार।  

उल्लू और गधे आपस में, जमकर हिस्सेदार बने। 

दीन धर्म के ही सौदे को, जगह- जगह बाज़ार तने। 

लेकर लच्छे वाले भाषण  दल -बदलू तैयार।। 

मनोज मनु भी अपने गीत से सभी के हृदय को जीतते हुए चहके - 

होली पर हुरियारों देखो, कसर न दमभर रखना, 

रंगों का त्योहार है सबके तन संग मन भी रंगना। 

ठिठुरन भुला बसंत घोलता मन मादकता हल्की,

करती है किस तरह प्रकृति, रचना हर एक पल की, 

फिर मन भावन फागुन खूब खिलाता टेसू अंगना। 

      इस अवसर पर विशेष रूप से दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त, संतोष रानी गुप्त, अक्षरा तिवारी, आशा तिवारी उपस्थित रहे। समीर तिवारी द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।





































:::::प्रस्तुति:::::::

राजीव प्रखर

सह संयोजक- हस्ताक्षर, मुरादाबाद। 

मोबाइल- 9368011960