बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

देश-विदेश में नाम रोशन किया हुल्लड़ मुरादाबादी ने

हास्य व्यंग्य कवि हुल्लड़ मुरादाबादी एक ऐसे रचनाकार रहे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल श्रोताओं को गुदगुदाते हुए हास्य की फुलझड़ियां छोड़ीं बल्कि रसातल में जा रही राजनीतिक व्यवस्था पर पैने कटाक्ष भी किए। सामाजिक विसंगतियों को उजागर किया तो आम आदमी की जिंदगी को समस्याओं को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाया।  पदम् श्री गोपालदास नीरज के शब्दों में कहा जाए तो  हुल्लड़ मुरादाबादी की ख्याति हास्य व्यंग विधा के एक श्रेष्ठ कवि के रूप में है लेकिन उन्होंने जो दोहे और गजलें कहीं हैं वे उन्हें एक दार्शनिक कवि के रूप में भी स्थापित करने के लिए पर्याप्त हैं। हास्य के लहजे में कुछ शेर तो उन्होंने ऐसे कहे हैं जो बेजोड़ हैं और जो हजार हजार लोगों की जुबान पर हैं। हिंदी में तो कोई भी हास्य का ऐसा कवि नहीं है जो उनकी ग़ज़लों के सामने सिर ऊंचा करके खड़ा हो सके।

हिंदी के हास्य कवियों की जब कभी चर्चा होती है तो उसमें हुल्लड़ मुरादाबादी का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है । जी हां , एक समय तो ऐसा था जब
 हुल्लड़ मुरादाबादी  अपनी हास्य कविताओं से पूरे देश मे हुल्लड़ मचाते फिरते थे। कवि सम्मेलन हो या किसी पत्रिका का हास्य विशेषांक छपना हो तो हुल्लड़ मुरादाबादी का होना जरूरी समझा जाता था । रिकॉर्ड प्लेयर पर अक्सर उनकी रचनाएं बजती हुई सुनने को मिलती थीं ।दूरदर्शन का कोई हास्य कवि सम्मेलन भी हुल्लड़ जी के बिना अधूरा समझा जाता था। इस तरह अपनी रचनाओं के माध्यम से हुल्लड़ मुरादाबादी ने पूरे देश में अपनी एक विशिष्ट पहचान कायम की ।

आजादी से पहले मुरादाबाद आकर बसा था परिवार
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हुल्लड़ मुरादाबादी का जन्म 29 मई 1942 को गुजरांवाला (जो अब पाकिस्तान में है )हुआ था।  उनके पिता श्री सरदारी लाल चड्डा बर्तनों का व्यवसाय करते थे। यह संभवतः कम लोगों को ही मालूम होगा कि आप का वास्तविक नाम सुशील कुमार चड्डा था।  भारत के आजाद होने से पहले ही आपका पूरा परिवार मुरादाबाद आकर बस गया था। शिक्षा दीक्षा मुरादाबाद में ही हुई। सन 1958 में आपने पारकर इंटर कॉलेज से हाईस्कूल तथा वर्ष 1960 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की थी।बीएससी सन 1965 में तथा सन 1971 में हिंदी विषय से स्नातकोत्तर की परीक्षा स्थानीय हिंदू डिग्री कॉलेज से  उत्तीर्ण की । इसी बीच 1969 में आपका विवाह हो गया। वर्ष 1970-71 में आपने एस एस इंटर कॉलेज तथा 1971-72 में आरएन इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य किया ।

पहली बार लाल किले पर 1962 में पढ़ी कविता
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पारकर इंटर कॉलेज में जब वह पढ़ते थे तो वहां हिंदी के एक अध्यापक पंडित मदन मोहन व्यास थे जो  एक चर्चित साहित्यकार व संगीतकार भी थे उन्हीं की प्रेरणा व निर्देशन में हुल्लड़ मुरादाबादी का साहित्यिक जीवन प्रारंभ हुआ।  वह दिवाकर उपनाम से वीर  रस की कविताएं लिखने लगे।  2 दिसम्बर 1962 में आपने पहली बार किसी स्तरीय मंच से काव्य पाठ किया । भारत चीन महायुद्ध के संदर्भ में उस वर्ष राष्ट्रीय रक्षा कोष सहायतार्थ एक अखिल भारतीय वीर रस कवि सम्मेलन लालकिला दिल्ली में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता महाकवि रामधारी सिंह दिनकर कर रहे थे । उक्त कवि सम्मेलन में एक श्रोता के रूप में हुल्लड़ जी भी मौजूद थे । कविसम्मेलन के दौरान राष्ट्र की रक्षा के लिए कुछ देने का प्रश्न आया तो उन्होंने अपनी एक सोने की अंगूठी उतार कर दे दी तथा देशभक्ति से ओतप्रोत एक वीर रस की रचना भी पढ़ी, जिसकी पंक्तियां थी -
तुम वीर शिवा के वंशज हो, फिर रोष तुम्हारा कहां गया
। बोलो राणा की संतानों, वह जोश तुम्हारा कहां गया।। जाकर देखो सीमाओं पर, जो आज कुठाराघात हुआ । जाकर देखो भारत मां के, माथे पर जो आघात हुआ।।  गर अब भी खून नहीं ख़ौला, गर अब तक जाग न पाए हो ।। मुझको विश्वास नहीं आता, तुम भारत मां के जाए हो ।।इसके बाद तो न जाने कितने कवि सम्मेलनों में रचना पाठ किया और एक तरह से वे हास्य के पर्याय बन गए । आपने मुरादाबाद के कुछ बुद्धिजीवियों व रचनाकारों को साथ लेकर हास परिहास नामक संस्था का भी गठन किया। वर्ष 1971 में यहीं से हास परिहास नामक एक मासिक पत्रिका भी संपादित की जो वर्ष 1975 तक प्रकाशित होती रही।

फिल्मों में भी किया अभिनय
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आपकी रचनाओं की ख्याति को देखते हुए वर्ष 1977 में मशहूर हास्य अभिनेता व निर्माता निर्देशक आई एस जौहर ने उन्हें फिल्मों में लिखने का ऑफर भी दिया। उस समय वह नसबंदी फिल्म का निर्माण कर रहे थे।  उन्होंने हुल्लड़ जी का उसमें एक गीत क्या मिल गया सरकार तुझे इमरजेंसी लगा कर लिया जिसे संगीतबद्ध कल्याणजी-आनंदजी ने किया तथा महेंद्र कपूर व मन्ना डे ने गाया। इस तरह धीरे-धीरे उनका फिल्मों की ओर झुकाव होने लगा और वर्ष 1979 में वह मुरादाबाद छोड़कर मुंबई जाकर स्थाई रूप से रहने लगे। वहां प्रसिद्ध अभिनेता निर्देशक निर्माता मनोज कुमार को अपना गुरु बनाया तथा उन्हीं की प्रेरणा से आगे बढ़ते गए । फिल्म सन्तोष में भी उन्होंने एक अच्छी भूमिका निभाई । इससे पूर्व शिवानी की कहानी पर आधारित फिल्म बंधन बांहों का में भी उन्होंने अभिनय किया। दरअसल अभिनय करने के अंकुर भी उनमें छात्र जीवन में ही फूटे । वर्ष 1960-61 में हिंदू डिग्री कॉलेज की हिंदी साहित्य परिषद द्वारा आयोजित एकांकी नाटक प्रतियोगिता में उन्हें सर्वोत्तम अभिनय करने पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था । इसके अतिरिक्त भगवतीचरण वर्मा के एकांकी नाटक दो कलाकार , ऋषि भटनागर रचित सफर के साथी, डॉ शंकर शेष रचित एक और द्रोणाचार्य में भी  उन्होंने प्रमुख भूमिकाएं अभिनीत की।

सन 1989 में सपरिवार लौटे मुरादाबाद
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परिवार के साथ मुंबई चले जाने के बाद भी मुरादाबाद से उनका जुड़ाव बना रहा। यही कारण रहा कि वर्ष 1989 में  गर्दिश के दिनों में वह पुन: सपरिवार यहां वापस लौट आए। मुंबई से जब वह वापस मुरादाबाद आए तो साहित्य के प्रति उनका मन उचट सा गया था। उनका साहित्य से पुन: रिश्ता कायम हुआ दैनिक स्वतंत्र भारत के माध्यम से।  अपने मित्र चुन्नी लाल अरोड़ा के बहुत आग्रह के बाद उन्होंने स्वतंत्र भारत के लिए लिखना शुरू किया। उसके बाद फिर उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा।  वर्ष 2000 में  वह फिर मुरादाबाद की पंचशील कालोनी छोड़कर पूरी तरह मुम्बई में बस गए।  12 जुलाई 2014 को उन्होंने मुंबई के  गोरेगांव स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली।

प्रकाशित साहित्य एवं सम्मान
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हुल्लड़ मुरादाबादी की  प्रमुख कृतियों में इतनी ऊंची मत छोड़ो, मैं भी सोचूं तू भी सोच, अच्छा है पर कभी कभी, तथाकथित भगवानों के नाम,सत्य की साधना, त्रिवेणी , हज्जाम की हजामत, सब के सब पागल हैं , हुल्लड़ के कहकहे ,हुल्लड़ का हंगामा,   हुल्लड़ की श्रेष्ठ हास्य व्यंग रचनाएं ,हुल्लड़ सतसई, हुल्लड़ हजारा, क्या करेगी  चांदनी, यह अंदर की बात है  मुख्य हैं । एचएमबी द्वारा आपकी हास्य रचनाओं के अनेक रिकॉर्ड्स एवं कैसेट्स रिलीज हो चुके हैं जिनमें प्रमुख रूप से हंसी का खजाना , हुल्लड़ का हंगामा , हुल्लड़ के कहकहे, हुल्लड़ मुरादाबादी से मिलिए बेहद पसंद की गई हैं । आपको विभिन्न पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया जिनमें प्रमुख रूप से काका हाथरसी पुरस्कार, महाकवि निराला सम्मान, हास्य रत्न अवार्ड, कलाश्री पुरस्कार, ठिठोली पुरस्कार, इंडियन जेसीज का टी ओ वाई पी अवार्ड  मुख्य हैं।
 :::::;;;; प्रस्तुति :::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822











मुरादाबाद के संगीतकार अमितोष शर्मा के स्वर में सुनिये उन्हीं की रचना - मेरी जिंदगी तेरी बंदगी मेरी सांस सांस में है तू ही तू


मुरादाबाद की साहित्यकार निवेदिता सक्सेना की सुनिये यह गजल - हर पहर खालीपन है तुम्हारे बिना ...


मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

सुनिये शायर मुजाहिद चौधरी की गजल --शर्मोहया के साथ में मर्दों की गैरत जल गई


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज का कहना है - दुनिया की हर रौनक उसको फीकी लगने लगती है ...


मुरादाबाद के मशहूर शायर गगन भारती की सुनिये यह गजल -- जब मिलाया हाथ इनसे हाथ नीला हो गया ...


मुरादाबाद के युवा शायर सुल्तान अजहर मुरादाबादी कहते हैं -जब मुकद्दर ही बिछड़ना था तो क्या गम करते ...


सोमवार, 10 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का कहना है --नैन तुमसे मिले फिर सजल हो गए


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रेमवती उपाध्याय का सुनिये यह गीत -सूर्य की वंदना सूर्य उपासना नित्य प्रातः करें ...


मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट का सुनिये यह गीत - गर्जन ये खोखली है या जुबान बंद है


सुनिये मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत


मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज कुमार मनु का कहना है --आ गए ऋतुराज लो मौसम सुहाना आ गया


मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का सुनिये गीत --आ रही हों आंधियां तो मित्र घबराना नहीं .....


मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का सुनिये यह गीत -तरुवर छीने धरती से गायब कर दी हरियाली


रविवार, 9 फ़रवरी 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम कहती हैं - जब नाम लिखा तुमने अपना अहसास के सूखे पत्तों पर ...


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी का कहना है- महात्मा गांधी जैसा फिर से, कोई रहनुमा चुन लें


संस्कार भारती की ओर से 19 जनवरी 2020 को आयोजित साहित्य समागम में साहित्यकारों द्वारा प्रस्तुत काव्य पाठ


शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020

सुनिये मयंक शर्मा का गीत


रविवार दो फरवरी 2020 को आयोजित 187 वें वाट्स ऍप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में 14 रचनाकारों ने लिया हिस्सा
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साथियों ,
 मेरे द्वारा वाट्स ऍप पर संचालित साहित्यिक मुरादाबाद समूह में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार सादे कागज पर  स्वरचित काव्य रचना अपनी हस्तलिपि में लिखते हैं । रचना के अंत में हस्ताक्षर करते हैं । अपना नाम, पता और मोबाइल फोन नंबर लिखते हैं । कागज के एक कोने में अपना पासपोर्ट साइज का फ़ोटो भी चिपकाते हैं और इसका चित्र लेकर उसे साहित्यिक मुरादाबाद समूह में  साझा कर देते हैं ।
रविवार दो फरवरी 2020 को 187 वां आयोजन हुआ । इस आयोजन में  14 रचनाकारों सर्वश्री रवि प्रकाश जी, राजीव प्रखर जी, डॉ अर्चना गुप्ता जी, अभिषेक रुहेला जी, राशिद मुरादाबादी जी, प्रीति हुंकार जी, मीनाक्षी ठाकुर जी, श्री कृष्ण शुक्ल जी ,अशोक विश्नोई जी, नृपेंद्र शर्मा सागर जी, संतोष कुमार शुक्ल जी, मुजाहिद चौधरी जी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी जी और मैंने अपनी रचनाएं साझा कीं ।

🙏डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम का कहना है --कलम की नोंक तक आने लगीं तलवार की बातें...

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

हिन्दी साहित्य संगम, मुरादाबाद की ओर से 2 फरवरी 2020 को काव्य गोष्ठी का हुआ आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी  साहित्य संगम द्वारा मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार दो फरवरी 2020 को आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज, मिलन विहार मुरादाबाद  पर किया गया।अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़लकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की। मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई एवं विशिष्ट अतिथि डॉ मनोज रस्तोगी रहे। माँ शारदे की वंदना श्री रामेश्वर वशिष्ठ ने प्रस्तुत की । संचालन राजीव 'प्रखर' ने किया।
गोष्ठी में युवा शायर राशिद 'मुरादाबादी' ने कहा - "चंद रोज़ की ज़िन्दगी में, क्या क्या करने लगे हैं लोग।
बेच कर खुद ही अपना ईमां, जेबें भरने लगे हैं लोग।"

 राजीव 'प्रखर' ने पर्यावरण संरक्षण का आह्वान करते हुए कहा -
"अपने अन्त को मानव ने, खुद ही दावत दे डाली।
तरुवर छीने धरती से, ग़ायब कर दी हरियाली।"

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई का कहना था---
"आओ कोई गीत लिखें।
अपनी-अपनी प्रीत लिखें।"
 राम दत्त द्विवेदी ने सुनाया-
"मैं हूँ हिन्दू, तू मुसलमां, दोनों का खूँ एक है।
एक है अपनी ज़मीं, सारा जहाँ भी एक है।"

 के० पी० सिंह सरल की रचना थी-
"आँख बन्द कर देखिये, घना स्याह अंधियार।
फिर उसमें ही खोजिए, स्वत्व तेज़ उजियार।"

 डॉ मनोज रस्तोगी ने नवगीत सुनाते हुए कहा -
"कौन खड़ा है नभ में, लेकर चाँदी का थाल।
देखो बुला रहा पास किसे, फैलाकर किरणों का जाल।"

 मनोज वर्मा 'मनु' का कहना था -
"करता चल जो कर सके, जितना पर उपकार।
सुख देने से सुख मिले, यह जीवन का सार।"

 शायर मुरादाबादी ने कहा- 
"प्रेम की बातें प्यार की बातें करते हैं।
आओ, कि कुछ बेकार की बातें करते हैं।"

 शिशुपाल 'मधुकर' ने गीत प्रस्तुत किया-
"जितने झूठ तुम्हारे मन में, उतने ही मन के बाहर हैं।
सच दफ़नाकर झूठ उगाना, कितना मुश्किल होता होगा

 रामेश्वर वशिष्ठ ने कहा -
"माँ सरस्वती वंदन का, राग बसंती गुनगुनाने का।
माधुरिम संदेश लेकर, आज बसंत फिर आया है‌।
"
 ओंकार सिंह 'ओंकार'  ने गजल सुनाई -
"फूल खिलते हैं हसीं हम को रिझाने के लिए
ये बहारों का है मौसम गुनगुनाने के लिए।"

 रामदत्त द्विवेदी ने आभार अभिव्यक्त किया।
   

















:::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

मन का वृन्दावन हो जाना, कितना अच्छा है =========================== (उ०प्र०राज्य स्तरीय खादी एवं ग्रामोद्योग प्रदर्शनी के अंतर्गत भव्य कवि-सम्मेलन का आयोजन) मुरादाबाद, 01 फरवरी। पारकर इंटर कॉलेज मुरादाबाद में चल रही राज्य खादी प्रदर्शनी में आज एक भव्य कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें मुरादाबाद के कई लब्ध प्रतिष्ठित कविगणों ने अपनी सुंदर प्रस्तुति दी‌। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्रद्धेय डॉ० माहेश्वर तिवारी जी ने की। मुख्य अतिथि श्री अनिल सिंह एवं विशिष्ट अतिथि श्री मनोज कुमार गुप्ता (जिला ग्रामोद्योग अधिकारी, मुरादाबाद) रहे। माँ शारदे की वंदना युवा कवि श्री मयंक शर्मा ने प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का संचालन सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित रचनाकारों ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर आधारित रचना पाठ किया। रचनाकारों की अभिव्यक्ति निम्न प्रकार रही - १) राजीव 'प्रखर' - ---------------------- "लगे छेड़ने बैठ कर, हरियाली के तार। माँ वसुधा की गोद में, ऋतुओं के सरदार। बैर-भाव विद्वेष का, कर भी डालो अंत। पीली चूनर ओढ़ कर, कहता यही वसन्त। २) डॉ० मनोज रस्तोगी - ------------------------------ "यह रोज-रोज बिस्कुट डालने का ही प्रताप है। ये मुझे अकेला नहीं रहने देते। फालतू लोगों को मुझसे अपनी बात नहीं कहने देते।" ३) फक्कड़ 'मुरादाबादी' - ----------------------------- "आदमी में किस तरह विश भर गया है। विषधरों का वंश भी अब डर गया है। कल सुनोगे आदमी के काटने से, कोई सांप रास्ते में मर गया है।" ४) मक्खन 'मुरादाबादी' - ------------------------------ "थाने के पास पड़ी हुई एक लाश, अपने हाल पर रो रही थी पत्रकार ने थानेदार से पूछा, यह लाश किसकी है। मैंने कहा, थानेदार साहब खामोश क्यों हो, कह दो, यह लाश पूरे हिन्दुस्तान की है।" ५) विवेक 'निर्मल' - ------------------------- "जिसके काँधे बैठ छुटा लाया, सब नभ के तारे मैं। क्या कहूँ पिता के बारे में।" ६) योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' - -------------------------- "बिखरे खुशबू धूप सी, यत्र-तत्र-सर्वत्र। बहुत दिनों के बाद जब, मिले किसी का पत्र। छँटा कुहासा मौन का, निखरा मन का रूप। रिश्तो में जब खिल उठी, अपनेपन की धूप।" ७) डॉ० अजय 'अनुपम' - ----------------------------- "कड़वाहट बोते रहे, दुनियां में हथियार। शान्ति चाहता है मगर, यह सारा संसार। ताना-बाना देश का, प्यार और सद्भाव। है केवल कपड़ा नहीं, खादी एक विचार।" ८) अशोक विश्नोई - ----------------------- "करे मोहित अदाओं से, अदाकारी इसी में है। जताये मित्रता हरदम, वफ़ादारी इसी में है।" ९) शिशुपाल 'मधुकर' - -------------------------- "तुम कुछ भी कहो, हम कुछ ना कहें, यह कैसे तुमने सोच लिया। तुम जुल्म करो, हम उसको सहें, यह कैसे तुमने सोच लिया।" १०) डॉ० माहेश्वर तिवारी - ------------------------------- "मन का वृन्दावन हो जाना, कितना अच्छा है। चारों तरफ धुन्ध की काली, चादर फैली है। पूरनमासी खिली, चांदनी मैली-मैली है। वन्शी बनकर तुम्हें बुलाया, कितना अच्छा है।" इसके अतिरिक्त श्री रघुराज सिंह 'निश्चल' जी ने भी काव्य पाठ किया। कार्यक्रम में श्री गोपाल अंजान (दर्जा राज्यमंत्री एवं उपाध्यक्ष राज्य खादी ग्रामोद्योग),डॉ०प्रदीप शर्मा, श्री लक्ष्मण प्रसाद खन्ना, श्रीमती मधु सक्सेना, श्री रघुराज सिंह 'निश्चल', हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा 'मासूम', ज़िया ज़मीर, पंकज दर्पण, मनोज 'मनु', राशिद 'मुरादाबादी', अभिषेक रुहेला, प्रदीप शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर, आवरण अग्रवाल 'श्रेष्ठ', ईशांत शर्मा 'ईशू', रवि चतुर्वेदी आदि उपस्थित रहे।

आइये सुनते हैं मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर को ....


मुरादाबाद के प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी की सुनिये कविताएं