सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु की दस ग़ज़लों पर ''मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा


    वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 5 व 6 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के युवा शायर मनोज वर्मा मनु 
की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले मनोज वर्मा मनु द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

(1)

खाक़ दिल की दवा करे कोई
जब न मरहम शिफा करे  कोई

कोई तो हो कि ग़म की बात करे
ज़ख्म दिल का हरा  करे  कोई

इश्क़ में क्या सुकूँ  मिला  हमको
काश ये  मशवरा   करे   कोई

आप  की  रहमतें  ही  इतनी  हैं
किस  तरह  हक़  अदा करे कोई

लाख कोशिश करें भुलाने की
फिर तेरा तज़किरा करे कोई

क़ौल पर मुस्तनद रहे अपने
और वादा  वफ़ा  करे  कोई

बुत-परस्त अब नहीं रहे हैं हम
अब न हमसे गिला  करे  कोई

(2)

खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल

हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल

कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी
कौन रोता है बज़ाहिर बात वाला आजकल

हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल

झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में
और सच्चाई का मुंह होता है काला आजकल

हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला  आजकल

(3)

कभी जो हक़ किसी का काटता है
जमीरो-ज़र्फ़ खुद का काटता है

सियासी अस्लियत में हो गया वो
जो अस्ली  है वो  मुद्दा  काटता है

बज़ाहिर जो हिमायत में खड़ा था
गला अब खुद हमारा काटता ह

दिले-हस्सास भी नादाँ है कितना
वफ़ा करता है ख़दशा काटता है

कभी जज़्बात की रौ में न बहना
गरम लोहे को ठंडा काटता है

नज़र का फेर है या फिर हक़ीक़त
बिकाऊ वक़्त अच्छा काटता है

ज़मीरो-ज़र्फ़ का तो ये है साहिब
जो रखता है वो घाटा काटता है

अदालत किस क़दर अंधी हुई है,
कि पैसा हक़ का क़िस्सा काटता है

(4)

हमारी क़ुव्वतों से भी सिवा हैरान रखता है
कि अपने फैसले से वो हमें अनजान रखता है

हज़ारों किस्म के दुनिया मे भरता रंग भी है वो
हज़ारों बार दुनिया भी वही  वीरान रखता है

जिन्हें हम सुन नहीं सकते जिन्हें छू भी नहीं सकते
उसी की दस्तरस में है वो सब में जान रखता है

अज़ीज़ों में नहीं कोई रक़ीबों  में  नहीं कोई
मगर वो रहमतों में रहम दिल  इंसान रखता है

मिरे रब शुक्रिया सद शुक्रिया सद शुक्रिया तेरा
तू ही दोनों जहां मेरे लिए आसान  रखता है

उसे जितने भी सजदे हों 'मनु' कम है इबादत में
हमारे वास्ते क्या ख़ूब वो मीज़ान  रखता है

(5)

चाह में उसकी न जाने क्या मुक़द्दर हो गया
मंजिलों का एक मुसाफिर एक पत्थर हो गया

दर्द जो लेकर किसी का बाँटता खुशियां रहा
एक दरिया से वही इंसाँ समंदर  हो गया

जीतने को सरहदें जीती सिकंदर ने मगर
जो दिलों को जीत पाया वह कलंदर हो गया

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का यह असर
दिल हमारी जान का खुद ही सितमगर हो गया

एक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की
मकतबे-रिश्वत यहां हर एक दफ्तर हो गया

मैं बज़ाहिर तो बहुत ही नर्मो - नाज़ुक था मगर
किस तरह टेढ़ा मेरे क़ातिल का खंजर हो गया

हौसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु'
आग में तापे गए कुंदन से  बेहतर  हो गया

(6)

ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे

अगर हो ग़ैर से तक़रार बात दीग़र है
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं
मगर गुनाह से तौबा गुनाह याद रहे

नवाज़ता है वही मत गुमान में डूबो
कि कर वो देगा कभी भी तबाह  याद रहे

रहम पसन्द बनो ये पसन्द है उसको
मुआफ़ियों में है रब की पनाह  याद रहे

हमेशा मनु रहे दिल में ख़्याल मालिक का
कभी बिगड़ने न देगा ये राह याद रहे

(7)

उसे खोने का ग़म ही उसको बतलाने नहीं देता
ये ख़दशा क्यों मेरे दिल से खुदा जाने नहीं देता

हमें अपनी तरक्की पर बशर्ते नाज़  हो कितना
मगर जो उसका रुतबा है वो  इतराने नहीं देता

उसे हक़ है कि मुझको आज़माए अपनी शर्तों पर
मुझे इतना यकीं है मुंह की वो  खाने नहीं देता

ये क़ुदरत है फकत उसकी कि हर जा सब्ज़ बिखरा है
वगराना ज़िन्दगी क्या गर वो अफ़साने नहीं देता

ग़ुरूर इतना है तुझको शम्म: अपने नूर पे लेकिन
ये जज़्बे जां निसारी गर वो परवाने नहीं देता?

ये ख़ुद मुख्तारियत उलझा रही है पर निज़ाम उसका
किसी शय को किसी पर भी सितम ढाने नहीं देता

(8)

हां न पैरहन जाए
और न ही कफ़न जाए

नेकियों बताओ तो
क्या किया जतन जाए

आ गया है दुनिया में
अब कहां हिरन जाए?

तू खुदा नहीं लेकिन
तू खुदा न बन जाए

है अदब शनासा जो
गंगा-ओ-जमन जाए

देर तक ख़ुशी फैले
दूर तक अमन जाए

अब  वही  ठिकाना है
जिस गली सजन जाए

रूह में बसा जब से
अब न बांकपन जाए

(9)

तेरे ख़याल में बैठे हुए हैं मुद्दत से,
हम अपने आप में उलझे हुए हैं मुद्दत से,

अना की ख़ैर हो, सूरत कोई निकल आए
कि इस हिसार में जकड़े हुए हैं मुद्दत से

बिखर न जाएं ये तस्वीरे-आरज़ू के सदफ़
बड़ी संभाल के रख्खे हुए हैं मुद्दत से

खुदा के वास्ते कोई समेट ले हमको
कि हम ज़मीन पे बिखरे हुए हैं मुद्दत से

खुदा बराए करम रास्ता दिखा उनको
ये राहबर ही जो भटके हुए हैं मुद्दत से

चले भी आओ कि फिर से बहार आ जाए
चमन निगाह के उजड़े हुए हैं मुद्दत से

तेरे ही नूर की सहबा में मस्त है यह नज़र
गिलास मेज़ पे रक्खे हुए हैं मुद्दत से

(10)

काश ऐसा कमाल हो जाता
वो मेरा हम ख्याल हो जाता

देख लेता निगाह भर के अगर
दिन मेरा बेमिसाल हो जाता

हाथ उठते ही बस दुआ के लिए
और पूरा सवाल हो जाता

छेड़ता मैं कभी शरारत से
उसका चेहरा गुलाल हो जाता

दूर रख कर किसे परखता मैं
मेरा जीना मुहाल हो जाता

आपकी बात टालता कैसे
चाहतों में न बाल हो जाता

कौन आता मुझे मनाने को
मैं अगर बद-ख्याल हो जाता

आंख में अक्स तैरता तेरा
आईना-ए-जमाल हो जाता
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात  नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मनोज मनु एक निष्कलुष मन के सीधे सच्चे इंसान हैं उनका यही अक्स उनकी शायरी ,गीतों दोहों में झलकता है।
एक अच्छा कवि या शायर बनने के लिए जो प्राथमिक शर्त है एक अच्छा इंसान होना ,वह गुण उनके व्यक्तित्व की पहचान में शामिल है। बाकी प्रतिभा, निपुणताऔर अभ्यास में भी प्रतिभा उनके पास है, निपुणता हासिल करनी है अभ्यास की निरंतरता से किसी हद उसे भी हासिल किया जा सकता है, बस उसके साथ आवश्यक है किसी उस्ताद या गुरु की वात्सल्य पूर्ण अशीषवती छाया। अधिक से अधिक साहित्य का अध्ययन। वे अभी वनफूल हैं। उनमें सुगंध भी है अपनी लेकिन उस सुगंध से शायद अभी वे स्वयं परिचित नहीं हैं।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि कोई शक नहीं कि मनोज मनु के अंदर आने वाले वक़्तों का एक होनहार शायर मौजूद है। मनोज के पास ये सलाहियत मौजूद है। उनके बहतरीन विवेक के रूप में पटल पर प्रस्तुत उनकी ग़ज़लों में पाठक का दामन थामने लायक शक्ति महसूस की जा सकती है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि मनोज 'मनु' अपने बड़ों के प्रति अत्यधिक विनयशील शायर और कवि है जो अपनी ग़ज़लों, गीतों और दोहों में परिपक्वता की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है। जहाँ तहाँ उर्दू शब्दों को अपनी रचनाओं में निस्संकोच प्रयोग करने वाला यह रचनाकार हिन्दी भाषा पर भी  सशक्त पकड़ रखता है। प्रेम या रोमांस की शायरी से हट कर रचनाकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक अाकर्षित है। जिसके दर्शन प्राय: सभी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मनोज मनु हमारे शहर के होनहार शायर हैं। उनकी शायरी परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं। वह चूंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी शायरी में भी व्यवहार की वही सादगी छिपी हुई है। अपनी शायरी के कैनवास पर वह ख़ुद भी हैं, समाज भी है, राजनीति भी है, घर परिवार भी हैं और वर्तमान हालात का चित्रण भी है। सामाजिक चिंतन की ड्योढ़ी पर मनु कहीं-कहीं शिक्षक की भूमिका में भी आ जाते हैं और समस्याओं के साथ-साथ निदान का रास्ता भी सुझाते हैं। वह अपनी शायरी के प्रारंभिक दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन उनका यह प्रारंभिक दौर भी बेहद ख़ूबसूरत है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु जी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं सराहनीय हैं । वह अपनी रचनाओं के माध्यम  से समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हैं ।भूमंडलीकरण के दौर में लुप्त होती जा रही सम्वेदनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हैं वहीं अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़े रहने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मनोज मनु जी की ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए हैं, इसलिए ग़ज़ल के मूल भाव श्रंगार की चहलकदमी उनके अश'आर में यहाँ-वहाँ स्वभाविक रूप से दिखाई दे ही जाती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ श्रंगार या प्रेम की प्रचुरता हो, उनकी शायरी में जीवन जगत के अनुभव संपन्न यथार्थ भी उपस्थित हैं। उनकी ग़ज़लों में कहीं कहीं सूफ़ियाना रंग भी अपनी एक अलग ही खुशबू लिए उपस्थित नज़र आता है।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मनु जी की शायरी का उजला पहलू उर्दू शब्दों का इस्तेमाल है जिसके लिए वह खूब कोशिश करते हैं, जो सराहनीय है। समय के साथ साथ इसमें और परिपक्वता आएगी और शब्दों के इस्तेमाल पर पकड़ मज़बूत होती जाएगी। मनु जी अपनी बात कहने में खूब सक्षम है। उनका कहन स्पष्ट है। उनके नज़दीक शायरी सिर्फ दिल लगी और वक्त गुजारी का साधन नहीं बल्कि समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि मनु जी की तहरीरें उर्दू की चाशनी में डूबी होती हैं और एक ख़ास रवानी रखती हैं। मनु जी समाज का अक्स अदब के आइने में देख कर उस से शायरी बर-आमद करते हैं। सब से अच्छी बात ये कि शेर जैसे उतरते हैं, वैसे ही तशकील पाते हैं। यानी ख़्याल से बे-ज़रूरत छेड़खानी नहीं दिखती। फ़िक्र नैचुरल रहती है, आर्टिफिशल नहीं लगती। यानी ख़्याल को शक्ल देने के लिए लफ़्ज़ों के इन्तेख़ाब और उन के प्लेसमेंट पर काम करने की गुंजाइश नज़र आती है। कई जगह मिसरे अपने ख़्याल को अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ भी अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते, यानी ख़्याल तो वज़्नी होता है, मगर मिसरा हल्का रह जाता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि महानगर मुरादाबाद की गौरवशाली ग़ज़ल परम्परा के सशक्त प्रतिनिधि, भाई मनोज 'मनु' जी ऐसे उत्कृष्ट रचनाकारों में से हैं, जिनकी लेखनी संवेदना के प्रत्येक स्वरूप को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति रखती है। भाई मनोज 'मनु' जी की ग़ज़लें व अन्य रचनाएं बोलती हैं तथा बोलते-बोलते कब अन्तस को स्पर्श कर जायें, श्रोताओं/पाठकों को पता ही नहीं चलता।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि ग़ज़ल का क्षेत्र मनु जी का अपनी रुचि के आधार पर है। आम तौर पर बातचीत में भी वह उर्दू के अल्फ़ाज़ का प्रयोग करते हैं। यही उनकी प्रस्तुत की गई ग़ज़लों में भी दिखाई देता है। उर्दू के थोड़े से मुश्किल शब्दों का प्रयोग हुआ है। कुछ ग़ज़लों की ज़मीन बहुत अच्छी है। मनु जी की हिंदी रचनाएँ भी गोष्ठियों में सुनी हैं। इसका अर्थ है कि वह भाषा के हर मैदान पर खेलते हैं।
युवा शायर  नूर उज्जमा ने कहा कि मनोज मनु साहिब के कलाम को पढ़ते हुए महसूस होता है कि उन्हें शाइरी से दिली मुहब्बत है। शायद ग़ज़ल में उन्होंने अपने सफ़र का आगाज़ हाल ही में किया है। एक ऐसे सफ़र का जो न सिर्फ तवील है बल्कि पुरख़ार भी है। ऐसे में एहतियात लाज़िमी है जिसकी और बुज़ुर्गों और दोस्तों ने इशारा भी किया है। मुझे लगता है कि छोटी बहरों में कहे गये उनके ज़्यादातर मिसरे ख़ूबसूरत हैं, या यूँ कहे काफ़ी आसानी से कहे गये मालूम होते है। हालांकि बड़ी बहरों में कहे गये अशआर में शायद उन्हें ये आसानी नहीं रही होगी। वहाँ मेहनत ज़्यादा दिखाई देती है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मनु की ग़ज़ल का लहजा इस्लाही है यानी वह ग़ज़ल में अपने साथ के लोगों और अपने बाद के लोगों की तरबियत करते हुए नज़र आते हैं। उनकी शायरी में इश्क लगभग न के बराबर है और अगर है तो अभी बहुत कम है। अभी यह हल्के से छूकर गुज़र गया है। इसके पीछे वज्ह शायद यह हो कि मनु शायरी को इश्क़ का इज़हार न मानते हों और उनके नज़दीक शायरी सिर्फ इस्लाह का ज़रिया हो। ज़माने को अपने अंदाज़ से देखने की ललक ज़रूर है मगर अपना नज़रिया दूसरों पर ज़ाहिर करने का एतमाद भी कम दिखाई देता है। अभी उनकी शायरी शुरुआती मरहलों में है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में उनकी शायरी में मज़बूती आएगी और यह शायरी अपनी तरफ खींचने की ताक़त रखेगी।

:::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289

हिंदी साहित्य संगम, मुरादाबाद द्वारा गूगल मीट पर 6 सितंबर 2020 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी



मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम द्वारा रविवार 6 सितंबर 2020 को गूगल मीट एप के माध्यम से एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया । राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ ग़ज़लकार श्री ओंकार सिंह 'ओंकार' ने की। मुख्य अतिथि डॉ० प्रेमवती उपाध्याय एवं विशिष्ट अतिथि श्रीमती सरिता लाल रहीं। संचालन जितेन्द्र कुमार 'जौली' ने किया।

काव्य-गोष्ठी में ओंकार सिंह 'ओंकार ' ने कहा -
मैं गीत में वो सुखद भावनाएँ भर जाऊँ ,
कि छंद- छंद में बनकर खु़शी उतर जाऊँ !!

शिशुपाल "मधुकर" ने कहा -
सौ में दस की खातिर ही अब  होते सभी उपाय।
बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय।

डाॅ० मीना कौल ने कहा -
वीरों को नमन करो
वीरों को नमन करो
संकट में साथ निभाते
वीरों को नमन करो

डॉ० मनोज रस्तोगी ने कहा-
उड़ रही गन्ध, ताजे खून की
बरसा रहा जहर,मानसून भी
घुटता है दम अब बारूदी झोंकों के बीच

जितेन्द्र कुमार जौली ने कहा -
गाड़ी में बैठा कर ले गए हमको
हथकड़ियों में जकड़ा गया
बिना लाइसेंस कविताएं सुनाता था
इसलिए पकड़ा गया

राजीव 'प्रखर' का कहना था-
किया तिरंगा ओढ़ कर, वीरों ने ऐलान।
क़तरा-क़तरा खून का, माटी पर क़ुर्बान।।

पीछे सारे रह गये, मज़हब-फ़िरके-ज़ात।
जब लोगों ने प्यार से, की हिंदी में बात।।

इन्दु रानी ने कहा -
सता कर के गरीबों को कहां फिर चैन पाओगे
जलन रखते हो साँसों मे थकन कैसे मिटाओगे

प्रशान्त मिश्र का कहना था -
जब अपना ही घर लूट लिया,
देश के ग़द्दारों ने
जनता खड़ी देखती रही,
सिमटी अपने किरदारों में..

अरविंद कुमार शर्मा "आनंद" ने कहा -
जिंदगी रंग हर पल बदलती रही।
साथ गम के ख़ुशी रोज़ चलती रही।।
शम्अ जो राह में तुम जला के गये।
आस में आपकी बुझती जलती रही।।

विकास मुरादाबादी का कहना था -
आओ मिलकर बात करें हम, स्वयं नेक बनाने की !
बात करें भारत समाज को , आओ एक बनाने की !!
इस अवसर पर डॉ प्रेमवती उपाध्याय, डॉ सरिता लाल, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने भी काव्य पाठ किया । जितेन्द्र कुमार 'जौली' द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम विश्राम पर पहुँचा।

::::::: प्रस्तुति::::::
राजीव प्रखर
मुरादाबाद

रविवार, 6 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बलवीर पाठक का एकांकी 'कर्फ्यू सख्त कर्फ्यू' । यह एकांकी उनकी इसी शीर्षक से सन् 1987 में सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित कृति में प्रकाशित हुआ है ।




















मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी की 21 ग़ज़लें । ये उनके ग़ज़ल संग्रह "सीपज" से ली गई हैं । इसका प्रकाशन बीस वर्ष पूर्व सन 2000 में हिंदी साहित्य सदन मुरादाबाद द्वारा किया गया था ।























मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश द्वारा रचित "रामपुर शतक" । इसमें उन्होंने रामपुर रियासत के अंतिम शासक नवाब रजा अली खाँ की भूमिका का काव्य में ऐतिहासिक मूल्यांकन किया है ।


                        (1)
सुनो अनूठी रजा अली खाँ की सुंदर यह गाथा
हुआ  रामपुर  का  इस गाथा से ही ऊँचा माथा
                        (2)
यह शासक थे ,नहीं सांप्रदायिकता जिनमें पाई
यह शासक थे ,नहीं क्षुद्रता जिनमें किंचित आई
                            (3)
सन  सैंतालिस  में  शासक  थे ,यह  दरबार लगाते
उसी समय युग पलट रहा था ,निर्णायक क्षण आते
                             (4)
यह भारत का सुखद भाग्य था रजा अली को पाया
इनके  हाथों  में  सत्ता  थी , यह  वरदान कहाया
                           (5)
अगर न होते रजा अली खाँ ,दूरदृष्टि कब आती
भारत की तब नौका फँस - फँस भँवर बीच में जाती
                           (6)
यह  उदार  थे  सर्वधर्म समभावी इनको पाया
लेश - मात्र भी कट्टरता का अंश न इनमें आया
                       (7)
यदि   होते  धर्मांध , विचारों  में  कट्टरता  पाते
पता नहीं फिर रक्त न जाने कितनों के बह जाते
                       (8)
वह था समय ,हिंद में लगता पाकिस्तानी नारा
मुट्ठी - भर  थे लोग , कह रहे पाकिस्तान हमारा
                           (9)
पाकिस्तान  बना  था ,उन्मादी प्रवृत्ति छाई थी
रजा  अली  ने नहीं मानसिकता ओछी पाई थी
                            (10)
यह शासक थे जिनमें हिंदू-मुस्लिम भेद न पाया
जिनके लिए एक ही मुस्लिम - हिंदू भले रिआया
                          (11)
सबसे ज्यादा कठिन दौर संक्रमण - काल कहलाता
इतिहासों  में  यही  दौर  है जो इतिहास बनाता
                          (12)
जैसे   होते   हैं  नवाब  वैसी  ही  रचना  करते
जैसी   होती   है   पसंद , रंगों  को  वैसे  भरते
                          (13)
इनके निर्णय युगों - युगों तक का आधार बनाते
छाप  निर्णयों  की इनकी  हम दूर - दूर तक पाते
                            (14)
यह  सरदार  पटेल  राष्ट्र - नवरचना के निर्माता
यह  सरदार  पटेल राष्ट्र में एक्य - भाव के ज्ञाता
                          (15)
यह सरदार पटेल रियासत विलय कराने वाले
यह सरदार पटेल  देश  की  नौका के रखवाले
                            (16)
यह सरदार पटेल  राष्ट्र  का एकीकरण सँभाले
यह सरदार पटेल  एक  भारत का सपना पाले
                             (17)
यह थे रजा अली खाँ जिनके सपने अलग न पाए
यह थे रजा अली खाँ क्षण में भारत के सँग आए
                             (18)
यह थे रजा अली खाँ भारत पर विश्वास जताया
यह थे रजा अली खाँ निर्णय देशभक्त कहलाया
                             (19)
यह थे रजा अली खाँ जिनकी रही पाक से दूरी
यह थे रजा अली खाँ  निष्ठा  रही  हिंद से पूरी
                           (20)
आओ  जरा और कुछ देखें इतिहासों में झाँकें
अच्छाई  क्या  और  बुराई  राजाओं  में  आँकें
                               (21)
वह युग था जब लोकतंत्र की कहीं न दिखती छाया
राजाओं की और नवाबों की दिखती बस माया
                            (22)
सुनो  रामपुर  एक  रियासत  यहाँ नवाबी पाई
यहाँ रहा मुस्लिम का शासन मुसलमान कहलाई
                                   (23)
किंतु यहाँ पर हिंदू भी थे मिलजुल कर जो रहते
मुसलमान  छोटा  भाई  हिंदू को अपना कहते
                          (24)
इतिहासों  में  शासकगण  केवल तलवारें पाते
तलवारों की टकराहट का यह इतिहास बनाते
                             (25)
युद्ध  किसी  ने  जीता ,अपनों ने ही कोई मारा
कोई  राग - रंग  में  डूबा  ऐसा ,सब  कुछ  हारा
                         (26)                     
यहाँ  नवाबी  शासक  ऐसे  भी ,जनता थर्राती
यहाँ बगावत क्या ,कोई आवाज न बाहर आती
                            (27)
यहाँ दौर था जब जंगल का शासन सब कहलाता
यहाँ न घर से बाहर कोई निकल शाम को पाता
                            (28)
यहाँ  छात्र  इंटर  करने  तक  चंदौसी  थे जाते
खेद ! नवाबों  से  इतने  भी काम नहीं हो पाते
                            (29)
कहाँ  शहर  चंदौसी छोटा ,सीमित साधन पाए
किंतु  कारनामे  नवाब  धनिकों से बढ़ दिखलाए
                           (30)
अंतिम शासक रजा अली खाँ मगर अलग कहलाते
दाग  नहीं  इनके दामन पर किंचित भी हैं पाते
                         (31)
यह उदार शासक सहिष्णुता सबसे ज्यादा पाई
भेद - नीति हिंदू - मुस्लिम में नहीं कहीं दिखलाई
                          (32)
इनके  कार्य महान ,याद यह सदा किए जाएँगे
इन्हें   धर्मनिरपेक्ष   शासकों   में   आगे  पाएँगे
                           (33)
यह ही थे जो नहीं झुके अनुचित माँगों के आगे
देश - विरोधी हार - हार कर इन के कारण भागे
                           ( 34)
जब था पाकिस्तान बना बँटवारे का क्षण आया
वातावरण   ठेठ  कट्टरवादी  था  गया  बनाया
                          (35)
उठती थी आवाज ,रियासत चलो पाक में लाओ
नहीं  तिरंगा  इस  इस्लामी  गढ़ में तुम फहराओ
                          (36)
किंतु दूरदर्शी नवाब थे ,तनिक न झुकना सीखा
देशभक्त उनका मानस ,उस अवसर पर था दीखा
                         (37)
आग लगी थी शहर जला ,सेना के हुआ हवाले
स्वप्न  धूसरित  हुए ,देशद्रोही  जो  मन में पाले
                         (38)
यह  सरदार पटेल बीच में रजा अली खाँ लाए
कहा पाक में मिलना अपने मन को तनिक न भाए
                         (39)
काबू   पाया   देशभक्त   ने   कट्टरपंथ   हराया
इतिहासों में कदम रजा का यह अनमोल कहाया
                         (40)
मानवतावादी - चिंतन  ने  निर्णय  और कराया
शरणार्थी  जो  हुए ,रामपुर  लाकर उन्हें बसाया
                        (41)
बिना धर्मनिरपेक्ष विचारों के कदापि कब होता
देखा  नहीं धर्म उसका ,जो था विपदा में रोता
                       (42)
बँटवारे  के  जो  शिकार हो गए ,पाक से भागे
पलक - पाँवडे लिए बिछाए ,आए उनके आगे
                         (43)
भवन  रियासत  के  थे ,उनमें ससम्मान ठहराए
शरणार्थी  इस  तरह हजारों संख्या में बस पाए
                         (44)
संरक्षण जब मिला पीड़ितों को तब सब ने जाना
सर्वधर्म  समभावी  चेहरा  सबने  ही  पहचाना
                       (45)
भरा  हुआ  इंसानी  भावों  से  नवाब था पाया
उसके भीतर छिपा महामानव ही बाहर आया
                      (46)
अगर न होते रजा अली ,क्या शरणार्थी बस पाते
कहाँ  इन्हें  घर मिलते ,कैसे बस्ती कहाँ बसाते
                     (47)
जिसका हृदय बड़ा होता है ,बस्ती वही बसाता
अपने  और  पराए से हट ,सबको गले लगाता
                     (48)
यहाँ  बसे  शरणार्थी  थे ,यह गाथा युग गाएगा
साधुवाद  इस  हेतु  रजा  के  खाते  में जाएगा
                     (49)
एक तरफ थे रजा अली मिलकर पटेल से आए
और   दूसरी   तरफ  हैदराबाद  रंग  दिखलाए
                    (50)
यह निजाम का शासन था ,कहलाता हिंद - विरोधी
यह लड़ने पर आमादा था ,भारत पर यह क्रोधी
                    (51)
देशभक्त यह रजा अली सुर में सुर नहीं मिलाए
संग  रामपुर  और  हैदराबाद  न  हर्गिज  आए
                     (52)
शाही  था  फरमान  हैदराबाद  न सँग में नाता
देशभक्ति की भाषा - बोली यह फरमान सुनाता
                       (53)
जुड़ा  रामपुर  राष्ट्रपिता  से  ,राष्ट्रवादिता  छाई
देशभक्ति  संपूर्ण  रियासत  में  दुगनी हो आई
                       (54)
गाँधी - समाधि का मतलब है भारत माँ का जयकारा
गाँधी - समाधि कह रही देश है हिंदुस्तान हमारा
                        (55)
गाँधी - समाधि का अर्थ ,रामपुर सदा हिंद में रहना
गाँधी समाधि का अर्थ ,हिंद को दिल से अपना कहना
                         (56)
गाँधी समाधि का अर्थ ,रियासत जुड़ी हिंद से गहरी
गाँधी समाधि का अर्थ ,रामपुर भारत माँ का प्रहरी
                        (57)
यह था ठोस कदम जिसने भारत को दिया सहारा
कहा रियासत ने इसका मतलब है  हिंद हमारा
                          (58)
रजा  अली  की  देशभक्ति यह दूरदर्शिता पाई
भस्म  रामपुर गाँधी जी की ससम्मान थी आई
                          (59)
रजा अली खाँ मुस्लिम थे ,कुछ एतराज थे आए
भस्म चिता की कैसे सौंपें ,प्रश्न क्षणिक  गहराए
                          (60)
पर  निष्ठा  देखी  नवाब की ,देशभक्ति को जाना
इस  नवाब का कार्य देश - हित में सब ने पहचाना
                         (61)
थी  स्पेशल - ट्रेन  रामपुर से दिल्ली तक आए
राष्ट्रपिता की छवि अपने मानस में रजा बसाए
                         (62)
भस्म चिता की जब गाँधी जी की नवाब ले आए
मूल्यवान सबसे ज्यादा निधि सचमुच ही थे लाए
                           (63)
नगर रामपुर धन्य रियासत ने नव - आभा पाई
गाँधी जी  की  बेशकीमती  भस्म रामपुर आई
                           (64)
भस्म  प्रवाहित की कोसी की धारा में सहलाई
नौका   में  बैठे  नवाब  थे  जनता  भारी  आई
                            (65)
मूल्यवान था धातु - कलश ,वह जो जमीन में गाड़ा
गाँधी जी की भस्म लिए अद्भुत था बड़ा नजारा
                           (66)
लिखा गया इस तरह रामपुर का गाँधी से नाता
नाता था इस तरह जोड़ना रजा अली को आता
                            (67)
राजतंत्र ने यह स्वर्णिम अंतिम इतिहास रचा था
इसके बाद खत्म था सब कुछ ,कुछ भी नहीं बचा था
                            (68)
समय - थपेड़ों ने सदियों का शाही - राज ढहाया
झटके से अब गिरा ,दाँव कोई भी काम न आया
                            (69)
चाह  रहे  थे  यह नवाब शायद सत्ता बच जाए
एक मुखौटा लोकतंत्र का शायद कुछ जँच जाए
                            (70)
गढ़कर एक विधानसभा ,नकली जनतंत्र रचाते
किंतु  जानते  सब पटेल थे ,झाँसे में कब आते
                           (71)
राजतंत्र  मिट  गया  राजशाही को सुनो गँवाया
एक दिवस फिर एक आम-जन जैसा खुद को पाया
                           (72)
यह भारत का नया उदय था ध्वस्त राजशाही थी
यह  पटेल  की  लौह - इरादों वाली अगुवाई थी
                            (73)
राजा  और  नवाब  मिटाए देश एक कर डाला
नहीं  रियासत  रही  ,राजतंत्रों पर डाला ताला
                            (74)
अगर  नहीं  होते  पटेल  तो  जाने क्या हो जाता
खत्म पाँच सौ से ज्यादा ,यह कहो कौन कर पाता
                            (75)
साम दाम से राजाओं को यथा - योग्य समझाया
नहीं समझ में जिनकी आई ,ताकत से मनवाया
                            (76)
यह  पटेल  की  थी  कठोरता ,सुलझे सारे झगड़े
समझ गए सब राजा ,ज्यादा नहीं और फिर अकड़े
                           (77)
किया  रामपुर  में भारत होने का कठिन इरादा
पूरा  हुआ  नियति  से शासक का था सुंदर वादा
                           (78)
यह पटेल की ,रजा अली की मिलकर नीति कहाई
"एक समस्या" कभी रामपुर तनिक न बनने पाई
                            (79)
अगर  धर्मनिरपेक्ष  इरादे  हों तो सब हो जाता
देशभक्त  के  लिए  न  कोई  बाधा है बन पाता
                             (80)
खोई   रजवाड़ों   की   गाथा , पूरी  हुई  कहानी
सिर्फ  सुनाएँगी  अब  इनको  बूढ़ी  दादी  नानी
                          (81)
खत्म  राज - दरबार  राज - दरबारों  की गाथाएँ
खत्म राज - सिंहासन राजाओं की मुख-मुद्राएँ
                          (82)
कहाँ  बचे  राजा - नवाब ,सब इतिहासों में खोते
उनके वैभव चकाचौंध सब धूल - धूसरित होते
                         (83)
जिन द्वारों पर कभी रोज बजती थी  शुभ शहनाई
वहाँ धूल की परतें देखो ,जीर्ण - शीर्ण गति पाई
                         (84)
नहीं रहे राजा - नवाब अब ,नहीं रियासत पाते
लोकतंत्र  में  जन ,समान अब सारे ही कहलाते
                         (85)
कुछ   टूटे ,कुछ   टूट  रहे  हैं ,कुछ  आगे  टूटेंगे
चिन्ह   राजसी   बचे   यहाँ , वे  सारे  ही  छूटेंगे
                          (86)
किस्से  और  कहानी  में राजा - रानी अब पाते
कुछ खट्टी कुछ मीठी उनकी ,गाथा सभी सुनाते
                           (87)
भूली - बिसरी  हुईं  समूची  राजतंत्र  की  बातें
आजादी  का  नया  सूर्य  ,अब  बीतीं  शाही रातें
                          (88)
नया दौर है यह जनता का ,जनप्रतिनिधि आएँगे
नया - रामपुर श्रेष्ठ नए वे जनप्रतिनिधि लाएँगे
                           (89)
कुछ  मूल्यों  की  हमें  हमेशा ही रक्षा करनी है
हमें  धर्मनिरपेक्ष  भावना  जन-जन  में भरनी है
                           (90)
अब यह मुस्लिम नहीं रियासत कब हिंदू कहलाती
भारतीय   इसमें   रहते   हैं   भारतीयता  पाती
                              (91)
नीति बनाएँ ऐसी जिसमें सबका हित आ जाए
दृष्टि  हमारी  हिंदू-मुस्लिम  भेदों  से  उठ पाए
                            (92)
सड़क बनेगी तो उस पर सारे ही जन चल पाते
विद्यालय से हिंदू - मुस्लिम सब शिक्षित बन जाते
                           (93)
रोजगार के साधन यदि हमने कुछ और बढ़ाए
जनता  का  हर  वर्ग  देखिए खुशहाली को पाए
                          (94)
अस्पताल में कब इलाज हिंदू-मुस्लिम कहलाता
इसका लाभ सभी वर्गों को सदा एक - सा जाता
                           (95)
सिद्ध फकीर सुभान शाह थे ,यहाँ भाग्य से पाए
इनके शिष्य गुल मियाँ ,बाबा लक्ष्मण दास कहाए
                           (96)
यह  परिपाटी  जहाँ  खुदा - ईश्वर का बैर न पाया
यह है दिव्य रामपुर ,जनमत ने खुद इसे बनाया
                           (97)
जब   तक   प्रेम   रहेगा ,भाईचारा  हम  पाएँगे
जब तक हम मानवतावादी खुद को कहलाएँगे
                          (98)
जब तक ज्ञात रहेगी हमको पुरखों की यह भाषा
जब तक बनी रहेगी हममें अपनेपन की आशा
                           (99)
जब तक हम गाँधी - सुभान शाह की गाथा गाएँगे
जब तक एक हमें बाबा - गुल मियाँ नजर आएँगे
                             (100)
तब  तक  नाम  रामपुर का सारे जग में फैलेगा
तब  तक  इसका नाम विश्व में आदर से हर लेगा
                           (101)
नए  प्रयोगों  से  नवयुग .का हम निर्माण करेंगे
नई   तूलिका   से   हम  इसमें  नूतन  रंग  भरेंगे

✍️रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

                      

शनिवार, 5 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ---- गुरु की तलाश


हमने एक
सड़क छाप ज्योतिषी को
अपनी जन्म कुण्डली दिखाई
उसने गम्भीरता पूर्वक
येे बात बताई
तुम्हारी कुण्डली में
गुरु का स्थान खाली है
लगता है गुरु तुमसे नाराज़ है
किसी गुरु के शरणागत हो जाओ
यही इसका एकमात्र इलाज है

हमने उसकी बात
दिल से लगा ली
गुरु की तलाश में
चारों ओर दृष्टि डाली
इंटरनेट पर उपलब्ध
सारी जानकारी खंगाली
किस गुरु की पोस्ट पर
कितने लाइक हैं
कितने हैं फॉलोअर
कितने और कैसे कमेंट्स हैं
समाज के किस वर्ग में है पॉपुलर
जो गुरु ज्यादा डिमांड मेेें थे
कुछ जेलों में बंद थे
कुछ रिमांड मेेें थे
कुछ गुरुओं के उपदेश
ऑनलाइन उपलब्ध थे
लेकिन उनके महंगे
और उलझाऊ अनुबंध थे
हमारी मध्यम वर्गीय मानसिकता ने
हम में भर दी हताशा
डिस्काउंट के चक्कर में
गुरुओं की सेल का समाचार
हमने हर जगह तलाशा
हमने सोचा
सस्ता मिल जाए तो
सेकेंड हैंड गुरु से भी
काम चला लेंगे
जैसे तैसे उसका खर्चा उठा लेंगे
लेकिन गारंटी देने को
कोर्इ नहीं था तैयार
सबने लिख कर लगा रखा था
फैशन के दौर में
गारंटी की बात करना है बेकार
हम इसी सोच मेेें थे डूबे
अचानक हमको मिल गए
पूंजीपति मित्र दूबे
बोले
हर तरह के गुरुओं को
अपनी जेब में रखता हूं
तुम चाहो तो एक दो को
तुम्हारी जेब में भर सकता हूं
हमको उनका प्रस्ताव
बिल्कुल नहीं जंचा
हमको लगा
अपनी कमजोर जेब में
भारी भरकम गुरुओं को
सम्भाल नहीं पाऊंगा
और बड़े मित्र का बड़ा अहसान
जिन्दगी भर उतार नहीं पाऊंगा
इसी ऊहापोह में
एकदिन अचानक
स्वप्न मेेें भगवान पधारे
बोले वत्स
बेकार की बातों में
खुद को मत उलझा रे
तू जिन्हें ढूंढ रहा है
वो गुरु नहीं गुरु घंटाल हैं
अपने शिष्यों के पैसों से
मालामाल हैं
तेरा गुरु,तेरे अंदर है
बस उसको मानना है,पहचानना है
उसे पाने का एकमात्र मार्ग
ध्यान है,धारणा है,साधना है
जिस दिन तुम्हारे अंदर का
गुरु जाग जायेगा
तुमको हर व्यक्ति में
गुरु नजर आएगा
प्रकृति का हर कण
तुमको कुछ ना कुछ सिखाएगा
पृथ्वी सहनशीलता सिखायेगी
फूल मुस्काना
फलों से लदे पेड़ सिखायेंगे
विनम्र होकर झुक जाना
सूरज और चन्दा
बिना किसी भेदभाव के
काम करना सिखायेंगे
नदी और समुंदर
शोषण के बजाय
पोषण का पाठ पढ़ाएंगे
समय सिखायेगा
हमेशा गतिमान रहना
क्या अब भी
किसी और गुरु की जरूरत है
हृदय पर हाथ रख
सच सच कहना,सच सच कहना।

✍️  डाॅ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600