सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु की दस ग़ज़लों पर ''मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा


    वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 5 व 6 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के युवा शायर मनोज वर्मा मनु 
की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले मनोज वर्मा मनु द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

(1)

खाक़ दिल की दवा करे कोई
जब न मरहम शिफा करे  कोई

कोई तो हो कि ग़म की बात करे
ज़ख्म दिल का हरा  करे  कोई

इश्क़ में क्या सुकूँ  मिला  हमको
काश ये  मशवरा   करे   कोई

आप  की  रहमतें  ही  इतनी  हैं
किस  तरह  हक़  अदा करे कोई

लाख कोशिश करें भुलाने की
फिर तेरा तज़किरा करे कोई

क़ौल पर मुस्तनद रहे अपने
और वादा  वफ़ा  करे  कोई

बुत-परस्त अब नहीं रहे हैं हम
अब न हमसे गिला  करे  कोई

(2)

खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल

हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल

कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी
कौन रोता है बज़ाहिर बात वाला आजकल

हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल

झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में
और सच्चाई का मुंह होता है काला आजकल

हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला  आजकल

(3)

कभी जो हक़ किसी का काटता है
जमीरो-ज़र्फ़ खुद का काटता है

सियासी अस्लियत में हो गया वो
जो अस्ली  है वो  मुद्दा  काटता है

बज़ाहिर जो हिमायत में खड़ा था
गला अब खुद हमारा काटता ह

दिले-हस्सास भी नादाँ है कितना
वफ़ा करता है ख़दशा काटता है

कभी जज़्बात की रौ में न बहना
गरम लोहे को ठंडा काटता है

नज़र का फेर है या फिर हक़ीक़त
बिकाऊ वक़्त अच्छा काटता है

ज़मीरो-ज़र्फ़ का तो ये है साहिब
जो रखता है वो घाटा काटता है

अदालत किस क़दर अंधी हुई है,
कि पैसा हक़ का क़िस्सा काटता है

(4)

हमारी क़ुव्वतों से भी सिवा हैरान रखता है
कि अपने फैसले से वो हमें अनजान रखता है

हज़ारों किस्म के दुनिया मे भरता रंग भी है वो
हज़ारों बार दुनिया भी वही  वीरान रखता है

जिन्हें हम सुन नहीं सकते जिन्हें छू भी नहीं सकते
उसी की दस्तरस में है वो सब में जान रखता है

अज़ीज़ों में नहीं कोई रक़ीबों  में  नहीं कोई
मगर वो रहमतों में रहम दिल  इंसान रखता है

मिरे रब शुक्रिया सद शुक्रिया सद शुक्रिया तेरा
तू ही दोनों जहां मेरे लिए आसान  रखता है

उसे जितने भी सजदे हों 'मनु' कम है इबादत में
हमारे वास्ते क्या ख़ूब वो मीज़ान  रखता है

(5)

चाह में उसकी न जाने क्या मुक़द्दर हो गया
मंजिलों का एक मुसाफिर एक पत्थर हो गया

दर्द जो लेकर किसी का बाँटता खुशियां रहा
एक दरिया से वही इंसाँ समंदर  हो गया

जीतने को सरहदें जीती सिकंदर ने मगर
जो दिलों को जीत पाया वह कलंदर हो गया

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का यह असर
दिल हमारी जान का खुद ही सितमगर हो गया

एक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की
मकतबे-रिश्वत यहां हर एक दफ्तर हो गया

मैं बज़ाहिर तो बहुत ही नर्मो - नाज़ुक था मगर
किस तरह टेढ़ा मेरे क़ातिल का खंजर हो गया

हौसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु'
आग में तापे गए कुंदन से  बेहतर  हो गया

(6)

ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे

अगर हो ग़ैर से तक़रार बात दीग़र है
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं
मगर गुनाह से तौबा गुनाह याद रहे

नवाज़ता है वही मत गुमान में डूबो
कि कर वो देगा कभी भी तबाह  याद रहे

रहम पसन्द बनो ये पसन्द है उसको
मुआफ़ियों में है रब की पनाह  याद रहे

हमेशा मनु रहे दिल में ख़्याल मालिक का
कभी बिगड़ने न देगा ये राह याद रहे

(7)

उसे खोने का ग़म ही उसको बतलाने नहीं देता
ये ख़दशा क्यों मेरे दिल से खुदा जाने नहीं देता

हमें अपनी तरक्की पर बशर्ते नाज़  हो कितना
मगर जो उसका रुतबा है वो  इतराने नहीं देता

उसे हक़ है कि मुझको आज़माए अपनी शर्तों पर
मुझे इतना यकीं है मुंह की वो  खाने नहीं देता

ये क़ुदरत है फकत उसकी कि हर जा सब्ज़ बिखरा है
वगराना ज़िन्दगी क्या गर वो अफ़साने नहीं देता

ग़ुरूर इतना है तुझको शम्म: अपने नूर पे लेकिन
ये जज़्बे जां निसारी गर वो परवाने नहीं देता?

ये ख़ुद मुख्तारियत उलझा रही है पर निज़ाम उसका
किसी शय को किसी पर भी सितम ढाने नहीं देता

(8)

हां न पैरहन जाए
और न ही कफ़न जाए

नेकियों बताओ तो
क्या किया जतन जाए

आ गया है दुनिया में
अब कहां हिरन जाए?

तू खुदा नहीं लेकिन
तू खुदा न बन जाए

है अदब शनासा जो
गंगा-ओ-जमन जाए

देर तक ख़ुशी फैले
दूर तक अमन जाए

अब  वही  ठिकाना है
जिस गली सजन जाए

रूह में बसा जब से
अब न बांकपन जाए

(9)

तेरे ख़याल में बैठे हुए हैं मुद्दत से,
हम अपने आप में उलझे हुए हैं मुद्दत से,

अना की ख़ैर हो, सूरत कोई निकल आए
कि इस हिसार में जकड़े हुए हैं मुद्दत से

बिखर न जाएं ये तस्वीरे-आरज़ू के सदफ़
बड़ी संभाल के रख्खे हुए हैं मुद्दत से

खुदा के वास्ते कोई समेट ले हमको
कि हम ज़मीन पे बिखरे हुए हैं मुद्दत से

खुदा बराए करम रास्ता दिखा उनको
ये राहबर ही जो भटके हुए हैं मुद्दत से

चले भी आओ कि फिर से बहार आ जाए
चमन निगाह के उजड़े हुए हैं मुद्दत से

तेरे ही नूर की सहबा में मस्त है यह नज़र
गिलास मेज़ पे रक्खे हुए हैं मुद्दत से

(10)

काश ऐसा कमाल हो जाता
वो मेरा हम ख्याल हो जाता

देख लेता निगाह भर के अगर
दिन मेरा बेमिसाल हो जाता

हाथ उठते ही बस दुआ के लिए
और पूरा सवाल हो जाता

छेड़ता मैं कभी शरारत से
उसका चेहरा गुलाल हो जाता

दूर रख कर किसे परखता मैं
मेरा जीना मुहाल हो जाता

आपकी बात टालता कैसे
चाहतों में न बाल हो जाता

कौन आता मुझे मनाने को
मैं अगर बद-ख्याल हो जाता

आंख में अक्स तैरता तेरा
आईना-ए-जमाल हो जाता
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात  नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मनोज मनु एक निष्कलुष मन के सीधे सच्चे इंसान हैं उनका यही अक्स उनकी शायरी ,गीतों दोहों में झलकता है।
एक अच्छा कवि या शायर बनने के लिए जो प्राथमिक शर्त है एक अच्छा इंसान होना ,वह गुण उनके व्यक्तित्व की पहचान में शामिल है। बाकी प्रतिभा, निपुणताऔर अभ्यास में भी प्रतिभा उनके पास है, निपुणता हासिल करनी है अभ्यास की निरंतरता से किसी हद उसे भी हासिल किया जा सकता है, बस उसके साथ आवश्यक है किसी उस्ताद या गुरु की वात्सल्य पूर्ण अशीषवती छाया। अधिक से अधिक साहित्य का अध्ययन। वे अभी वनफूल हैं। उनमें सुगंध भी है अपनी लेकिन उस सुगंध से शायद अभी वे स्वयं परिचित नहीं हैं।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि कोई शक नहीं कि मनोज मनु के अंदर आने वाले वक़्तों का एक होनहार शायर मौजूद है। मनोज के पास ये सलाहियत मौजूद है। उनके बहतरीन विवेक के रूप में पटल पर प्रस्तुत उनकी ग़ज़लों में पाठक का दामन थामने लायक शक्ति महसूस की जा सकती है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि मनोज 'मनु' अपने बड़ों के प्रति अत्यधिक विनयशील शायर और कवि है जो अपनी ग़ज़लों, गीतों और दोहों में परिपक्वता की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है। जहाँ तहाँ उर्दू शब्दों को अपनी रचनाओं में निस्संकोच प्रयोग करने वाला यह रचनाकार हिन्दी भाषा पर भी  सशक्त पकड़ रखता है। प्रेम या रोमांस की शायरी से हट कर रचनाकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक अाकर्षित है। जिसके दर्शन प्राय: सभी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मनोज मनु हमारे शहर के होनहार शायर हैं। उनकी शायरी परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं। वह चूंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी शायरी में भी व्यवहार की वही सादगी छिपी हुई है। अपनी शायरी के कैनवास पर वह ख़ुद भी हैं, समाज भी है, राजनीति भी है, घर परिवार भी हैं और वर्तमान हालात का चित्रण भी है। सामाजिक चिंतन की ड्योढ़ी पर मनु कहीं-कहीं शिक्षक की भूमिका में भी आ जाते हैं और समस्याओं के साथ-साथ निदान का रास्ता भी सुझाते हैं। वह अपनी शायरी के प्रारंभिक दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन उनका यह प्रारंभिक दौर भी बेहद ख़ूबसूरत है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु जी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं सराहनीय हैं । वह अपनी रचनाओं के माध्यम  से समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हैं ।भूमंडलीकरण के दौर में लुप्त होती जा रही सम्वेदनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हैं वहीं अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़े रहने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मनोज मनु जी की ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए हैं, इसलिए ग़ज़ल के मूल भाव श्रंगार की चहलकदमी उनके अश'आर में यहाँ-वहाँ स्वभाविक रूप से दिखाई दे ही जाती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ श्रंगार या प्रेम की प्रचुरता हो, उनकी शायरी में जीवन जगत के अनुभव संपन्न यथार्थ भी उपस्थित हैं। उनकी ग़ज़लों में कहीं कहीं सूफ़ियाना रंग भी अपनी एक अलग ही खुशबू लिए उपस्थित नज़र आता है।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मनु जी की शायरी का उजला पहलू उर्दू शब्दों का इस्तेमाल है जिसके लिए वह खूब कोशिश करते हैं, जो सराहनीय है। समय के साथ साथ इसमें और परिपक्वता आएगी और शब्दों के इस्तेमाल पर पकड़ मज़बूत होती जाएगी। मनु जी अपनी बात कहने में खूब सक्षम है। उनका कहन स्पष्ट है। उनके नज़दीक शायरी सिर्फ दिल लगी और वक्त गुजारी का साधन नहीं बल्कि समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि मनु जी की तहरीरें उर्दू की चाशनी में डूबी होती हैं और एक ख़ास रवानी रखती हैं। मनु जी समाज का अक्स अदब के आइने में देख कर उस से शायरी बर-आमद करते हैं। सब से अच्छी बात ये कि शेर जैसे उतरते हैं, वैसे ही तशकील पाते हैं। यानी ख़्याल से बे-ज़रूरत छेड़खानी नहीं दिखती। फ़िक्र नैचुरल रहती है, आर्टिफिशल नहीं लगती। यानी ख़्याल को शक्ल देने के लिए लफ़्ज़ों के इन्तेख़ाब और उन के प्लेसमेंट पर काम करने की गुंजाइश नज़र आती है। कई जगह मिसरे अपने ख़्याल को अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ भी अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते, यानी ख़्याल तो वज़्नी होता है, मगर मिसरा हल्का रह जाता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि महानगर मुरादाबाद की गौरवशाली ग़ज़ल परम्परा के सशक्त प्रतिनिधि, भाई मनोज 'मनु' जी ऐसे उत्कृष्ट रचनाकारों में से हैं, जिनकी लेखनी संवेदना के प्रत्येक स्वरूप को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति रखती है। भाई मनोज 'मनु' जी की ग़ज़लें व अन्य रचनाएं बोलती हैं तथा बोलते-बोलते कब अन्तस को स्पर्श कर जायें, श्रोताओं/पाठकों को पता ही नहीं चलता।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि ग़ज़ल का क्षेत्र मनु जी का अपनी रुचि के आधार पर है। आम तौर पर बातचीत में भी वह उर्दू के अल्फ़ाज़ का प्रयोग करते हैं। यही उनकी प्रस्तुत की गई ग़ज़लों में भी दिखाई देता है। उर्दू के थोड़े से मुश्किल शब्दों का प्रयोग हुआ है। कुछ ग़ज़लों की ज़मीन बहुत अच्छी है। मनु जी की हिंदी रचनाएँ भी गोष्ठियों में सुनी हैं। इसका अर्थ है कि वह भाषा के हर मैदान पर खेलते हैं।
युवा शायर  नूर उज्जमा ने कहा कि मनोज मनु साहिब के कलाम को पढ़ते हुए महसूस होता है कि उन्हें शाइरी से दिली मुहब्बत है। शायद ग़ज़ल में उन्होंने अपने सफ़र का आगाज़ हाल ही में किया है। एक ऐसे सफ़र का जो न सिर्फ तवील है बल्कि पुरख़ार भी है। ऐसे में एहतियात लाज़िमी है जिसकी और बुज़ुर्गों और दोस्तों ने इशारा भी किया है। मुझे लगता है कि छोटी बहरों में कहे गये उनके ज़्यादातर मिसरे ख़ूबसूरत हैं, या यूँ कहे काफ़ी आसानी से कहे गये मालूम होते है। हालांकि बड़ी बहरों में कहे गये अशआर में शायद उन्हें ये आसानी नहीं रही होगी। वहाँ मेहनत ज़्यादा दिखाई देती है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मनु की ग़ज़ल का लहजा इस्लाही है यानी वह ग़ज़ल में अपने साथ के लोगों और अपने बाद के लोगों की तरबियत करते हुए नज़र आते हैं। उनकी शायरी में इश्क लगभग न के बराबर है और अगर है तो अभी बहुत कम है। अभी यह हल्के से छूकर गुज़र गया है। इसके पीछे वज्ह शायद यह हो कि मनु शायरी को इश्क़ का इज़हार न मानते हों और उनके नज़दीक शायरी सिर्फ इस्लाह का ज़रिया हो। ज़माने को अपने अंदाज़ से देखने की ललक ज़रूर है मगर अपना नज़रिया दूसरों पर ज़ाहिर करने का एतमाद भी कम दिखाई देता है। अभी उनकी शायरी शुरुआती मरहलों में है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में उनकी शायरी में मज़बूती आएगी और यह शायरी अपनी तरफ खींचने की ताक़त रखेगी।

:::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289

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