रविवार, 19 जून 2022

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से रविवार 19 जून 2022 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । प्रस्तुत हैं गोष्ठी के अध्यक्ष संजीव आकांक्षी, मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई , विशिष्ट अतिथि डॉ पूनम बंसल, विशिष्ट अतिथि त्यागी अशोका कृष्णम् एवं साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुजाहिद चौधरी, मनोज'मनु', राजीव 'प्रखर',अतुल कुमार शर्मा, दुष्यंत 'बाबा', डॉ रीता सिंह, इन्दु रानी,नृपेंद्र शर्मा, प्रशान्त मिश्र और शुभम कश्यप 'शुभम' द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं ...…

 


ज़हालत इस क़दर भर दी गई इन नामाकूलों में।।           हर एक के साथ ग़द्दारी सीखा  दी है उसूलों में।।

न अपनी कौम के ही हो सके न देश दुनिया के।
खुद ही दीमक लगाते घूमते मज़हब की चूलों में।।

******
पत्थर पूजने वाले ही पत्थर खाएँ, आखिर क्यों?
जहरीले सापों से रिश्ता हम निभाएँ, आखिर क्यों?
फनों से ज़हर की थैली निकालो तोड़ डालो दाँत।
तुम्हारे पाले सांपों को हम गिनाएँ, आखिर क्यों?

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

- ------------------------



आप जानते हैं ,
मैं, गीत नहीं लिखता ।
       सुख कब आते हैं ;
       पीड़ा के आंगन में ।
       रहा अकेला मैं ,
       अपनों के कानन में ।
मेरा पका घाव ,
फिर भी नहीं रिसता ।।
        छोटे से घर में ,
        ईर्ष्या की दीवारें ।
        बाहर से अच्छा ,
        दिलों में दरारें ।
भोला मन है ये,
सदा रहा दबता ।।
         विश्वासों पर ही तो,
         दिन कम हो जाता ।
         निजी आस्थाओं में ,
         मन कहीं खो जाता।
भोर से भी अपना,
भ्रम नहीं मिटता ।।
         पक्षी करते कलरव,
         अच्छा सा लगता है।
         सांझ ढले जब-जब,
         भीतर डर लगता है।
करे क्या मानव,
ईमान यहां बिकता ।।
आप जानते हैं,
मैं, गीत नहीं लिखता ।।

✍️ अशोक विश्नोई
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

-------------------------



आँसू में डूबा हुआ है जिसका संगीत
कैसे मैं  पूरा करूँ जीवन का यह गीत

छोटी सी यह बाँसुरी राधा की है प्रान
प्रभु अधरों से लग गई भूली अपनी तान
मिट जाने से ही मिली सात  सुरों  की जीत

दुख बचपन से साथ है सुख तो है मेहमान
मोल न जाने हंसी का दुख से जो अनजान
अपनी तो है दर्द से जनम जनम की प्रीत

कदम कदम पर ठोकरें खाता  है इंसान
गिरके भी संभले न जो वो मूरख नादान
शोलों को देता हवा यह जग की है रीत

क़िस्मत  से लड़ना नहीं  होता है आसान
आसमान छू लें कदम बस इतना अरमान
सपनों में  ही हो गई लो सपनों की जीत

✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

---------------------------



हाथों में हैं आरियाँ,बातें हैं रसदार।
पीपल बोला आम से,देख मनुज व्यवहार।।

सच की गठरी बांध कर,उठे गिरे सौं बार।
कुछ कागज की नांव भी,पहुंच गईं उस पार।।

तुलना का प्रारंभ है,अपनेपन का अंत।
खो जाता आनंद तब,पीड़ा मिले अनंत।।

रिश्ते अपने हो गए,इसीलिए दो फाड़।
सच था मेरे साथ में,उनके पास जुगाड़।।

गिरगिट के रंग देखकर,कैसे हों हम दंग।
रंग बदलते मिल गए,हमको कई भुजंग।।

देख-देखकर रात दिन,फँसी गले में जान।
हिन्दुस्तानी सूरतें,मन हैं पाकिस्तान।।

पापी रावण कंस या,दुर्योधन बदमाश।
अहंकार की एक गति,होती मात्र विनाश।।

किस दुश्मन ने हैं भरे,यार तुम्हारे कान।
ऐसा क्यों लगने लगा,नहीं जान पहचान।।

चित्रकार ने भाग्य से,ऐसे हारी जंग।
सुंदर बनते चित्र पर,बिखर गए सब रंग।।

✍️ त्यागी अशोका कृष्णम्
कुरकावली , सम्भल
  उत्तर प्रदेश, भारत
मो.+91 97190 59703

-----------------------------



लेकर फिर हाथ में वो मशालें निकल पड़े हैं
बेकुसूरों  के  घर  वो जलाने निकल पड़े हैं
यह सोच कर उदास हैं चौराहों पर लगे बुत
हमारे शहर में  वो लहू बहाने निकल पड़े हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com
------------------------------



बहुत दूर हैं पिता
किन्तु फिर भी हैं
मन के पास

पथरीले पथ पर चलना
मन्ज़िल को पा लेना
कैसे मुमकिन होता
क़द को ऊँचाई देना
याद पिता की
जगा रही है
सपनों में विश्वास

नया हौंसला हर पल हर दिन
देती रहती हैं
जीवन की हर मुश्किल का हल
देती रहती हैं
उनकी सीखें
क़दम-क़दम पर
भरतीं नया उजास

कभी मुँडेरों पर, छत पर
आँगन में आती थी
सखा सरीखी गौरैया
सँग-सँग बतियाती थी
जब तक पिता रहे
तब तक ही
घर में रही मिठास

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9412805981

-------------------------



तुमने नहीं किया तो किसी ने नहीं किया ।
कुछ दोस्तों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
इस हाथ ले के उसने उसी हाथ दे दिया ।
जब भी दुआएं मांगीं वो मक़बूल हो गई ।
मेरे खुदा ने मुझसे किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन से मिल गए जब मोहब्बत के साथ हम ।
फिर दुश्मनों ने हमसे किनारा नहीं किया ।।
जब दोस्तों ने फर्ज निभाया तो रो पड़े ।
उन दोस्तों से हमने किनारा नहीं किया ।।
खुशबू की तरह गुल का निभाते रहे हैं साथ ।
साए से उनके हमने किनारा नहीं किया ।।
दुश्मन सा जब सुलूक किया हमसफर ने फिर ।
हमने भी दुश्मनी से किनारा नहीं किया ।।
गमगीन हैं चमन के मैं हालात देखकर ।
फिर भी चमन से हमने किनारा नहीं किया ।।
मुजाहिद ने फिर जहां को वफा की दिलायी याद ।
उसके अहद से हमने किनारा नहीं किया ।।

✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

-------------------------------



सिर पर
छांव पिता की,
कच्ची दीवारों पर छप्पर..

आंधी-बारिश
खुद  पर   झेले
हवा  थपेड़े  रोके ,
जर्जर तन
भी ढाल बने
कितने मौके-बेमौके ,
रहते समय
जान नहीं पाते
क्यों हम सब ये अक्सर,..
सर पर छांव पिता की ,,...

जितनी
दुनियादारी जो भी
नजर  समझ   पाती  है,
वही दृष्टि
अनमोल पिता के
साए  संग  आती  है ,
जिससे, दुष्कर
जीवन  पथ  पर
नहीं  बैठते थककर....
  सिर पर छांव पिता की...

माँ का आंचल
संस्कार       भर
प्यार  दुलार लुटाता,
पिता
परिस्थिति की
विसात पर
चलना हमें सिखाता,
करता सतत प्रयास
कि बेटा होवे उस से बढ़कर,..
सिर पर
छांव पिता की
कच्ची दीवारों पर छप्पर...
                      
✍️ मनोज'मनु'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

----------------------------



ॲंधियारे अब ऐंठना, है बिल्कुल बेकार।
झिलमिल दीपक फिर गया, तेरी मूॅंछ उतार।।

मन की ऑंखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो रच रहा, कर्मों के अभिलेख।।

कर लेने को हैं बहुत, बातें मेरे पास।
ओ दीवारो तुम कभी, होना नहीं उदास।।

बेबस भीखू को मिली, कैसी यह सौग़ात।
दीवारों से कर रहा, अपने मन की बात।।

चन्दा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार।
रजनी करके आ गयी, फिर झिलमिल शृंगार।।

छुरी सियासत से कहे, चिन्ता का क्या काम।
मुझे दबाकर काॅंख में, जपती जा हरिनाम।

गुमसुम बैठी रह गयी, बरखा-गीत बहार।
मेघा गप्पें मार कर, फिर से हुए फ़रार।।

आये जब अवसान पर, श्वासों का यह साथ।
तब भी लेखनरत मिलें, हे प्रभु मेरे हाथ।।

की पंछी ने प्रेम से, जब जगने की बात।
बोले मेंढक कूप के, अभी बहुत है रात‌‌।।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

-------------------------



धरने पर बैठे किसानों के तंबुओं की तरह,
नहीं होती हैं कविताएं,
कि सरकार की सख्ती और हठधर्मिता के सामने,
यूं ही उखड़ जाएं।
या फिर तूफानों में उजड़ जाएं,
जंगलों की तरह,
या जल जाएं,
घास-फूस के छप्परों सी,
घुल जाएं जहरीली हवा में,
या दब जाएं ऑफिस की फाइलों सी।
मिल जाए जैसे दूध में पानी,
और कोहरे में छिप जाए,
सूरज की तरह,
कविता कविता है,
जो कभी नहीं मरती,
दिलों पर करती है राज,
एक रानी की तरह।
कविता की कीमत,
कीमती आदमी ही जानता है,
उस की आन-बान-शान को पहचानता है,
संस्कृति से इसका अटूट नाता है,
कविता किसी सभ्य समाज की निर्माता है।
कविता को विचारों का भूखंड चाहिए,
भाव रूपी ईटों की मजबूती चाहिए,
हो समस्या की सरियों का जाल,
कुंठा को तोड़ने वाली,
ऐसी रेती चाहिए।
फिर लगाकर सहानुभूति का सीमेंट,
मिटाया जाता है,
खुरदुरेपन का एहसास,
डाल दी जाती है, संस्कारों की छत,
और पहना दिया जाता है प्यारा-सा लिबास।
करके दुनिया का श्रंगार फिर,
दीनता का समाधान बन जाती है कविता,
और पहन संस्कृति का परिधान,
हर समस्या का निदान बन जाती है कविता।

✍️ अतुल कुमार शर्मा
सम्भल, उत्तर प्रदेश, भारत

-----------------------------------



राधा! मुरली श्याम की, कितनी  हुई बड़भागी।
देख विभोर श्याम को, बोली ललिता अनुरागी।।
तुम तो राधा पुरइन पात, कियो कृष्ण रस गात।
अधरन पे वो रहत सदा, हरि छिटकें नही हाथ।।
तब ललिता से राधा कहें,दृग कंचन नीर बहाय।
ये माटी की गगरिया, अधजल  छलकत जाय।।
हम अबला भोरी थोरी, सो सहज श्याम सुहाय।
जब हरि की दृष्टि पड़े,तो बंशी सौतन छुट जाय।।

✍️ दुष्यंत 'बाबा'
पुलिस लाइन, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

---------------------------------



मेघा आओ मेघा आओ
झोली में पानी भर लाओ
सूख रहे सब ताल तलैया
रौनक उनमें फिर दे जाओ ।

सड़क किनारे धूल उड़ी है
अाँगन में भी तपन बढ़ी है
हुआ दूभर बाहर निकलना
गरमी की बस मार पड़ी है ।

आकर अब तुम जल बरसाओ
धरती माँ को मत तरसाओ
बूँद बूँद भरकर कण कण में
रिमझिम रिमझिम मन हरसाओ ।

✍️ डॉ रीता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

--------------------------



हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, इस भारत की आन।
आया ऐसा दौर अब, भूल गए पहचान।।

गए भूल पहचान हैं ,हम भारत की शान।
आया ऐसा दौर है, युद्ध लिया है ठान।।

बात धर्म की छेड़ कर, व्यर्थ करे अभिमान ।
आया ऐसा दौर क्यों, करते हैं अपमान।

मिल जुल कर सब एक हो ,बने हिन्द की जान।
आया ऐसा दौर क्यों,टकराओं की ठान।।

आया ऐसा दौर क्यों,बिखर रहे सब भ्रात।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख सब, रखते एक बिसात।।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
---------------------------------



नफरत दिलों के बीच बढाती हैं सरहदें।
इंसान को हैवान बनाती हैं सरहदें।।

मालिक ने तो बख्शी थी कितनी हसीं दुनिया।
सीने पर इसके दाग लगाती हैं सरहदें।।

मालिक के बन्दों में नहीं है फ़र्क़ जरा सा।
है एक सा लहू और है एक सी काया।।

बंदों से खून बन्दों का कराती हैं सरहदें।
इन्सान को शैतान बनाती हैं सरहदें। ।

मालिक ने न बाँटा हवा पानी और बसेरा।
दी एक सी ही रात बख्शा एक ही सवेरा।।

हर रात में एक ख़ौफ़ बढ़ाती हैं सरहदें।
इंसान को शैतान बनाती हैं सरहदें।।

लेकिन भला क्या सरहदें कर देंगी दिल जुदा।
उसका बुरा क्या होगा जिसके दिल है प्यार का।।

कैसे जुदा करेंगी उनके दिल को सरहदें।
जो मानते नही हैं क्या होती हैं सरहदें।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

-------------------------------



मेरे विरोधी ही,
मेरे अच्छे “मित्र” हैं..
और मुझसे सच्चा प्यार करते हैं,
जब अपने साथ छोड़ जाते हैं
जब अपने हमसे रूठ जाते हैं
उस समय की वेदना में,
शान्त जीव चेतना में
हंसकर अपने होने का इजहार करते हैं
मेरे विरोधी ही मेरे अपने हैं
और मुझे सदैव याद करते हैं

जब हार होती है,
और मैं टूट जाता हूँ
अकेला तन्हा, अपनी “किस्मत’ से रूठ जाता हूँ
तब मेरे विरोधी मुझे चिढ़ाते हैं
तब मेरे विरोधी मुझे उकसाते हैं
और मेरे बिखरे हुए
“अरमान” को पुनः जगाते हैं
मेरे विरोधी ही मेरी प्रेरणा हैं
और मुझ पर पक्का एतबार करते हैं 

“अपनों” का आना, सिर्फ हवा का झोंका है..
“चिता” पर छोड़ आते समय
कितनों ने रोका है,
जो मेरे सुख में कम
और दुःख में ज्यादा याद करते हैं..
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरी हर पल बात करते हैं
मेरे विरोधी ही हैं
जो मेरे शरीर में , तेज रक्त प्रवाह कर
आसीम शक्ति का संचार करते हैं

✍️ प्रशान्त मिश्र
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

-------------------------



क्यों फ़र्ज़-ओ-वाजीबात का मतलब नही पता ।
छोटों से इल्तिफ़ात का मतलब नही पता ।
सबका लहू सफेद है घर - घर हैं रंजिशें,
रिश्तों का मुआमलात का मतलब नही पता।
ठोकर में बाप दादा की दस्तार है पड़ी,
जन्नत की मालियात का मतलब नही पता।
बैठे बिठाए बाप की दौलत जिसे मिली,
उसको ही दाल भात का मतलब नही पता ।
बढ़के गले 'शुभम' ने सभी को लगा लिया,
उसको तो जात पात का मतलब नहीं पता।
 
✍️शुभम कश्यप 'शुभम'
मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 17 जून 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी ) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का व्यंग्य _----कारण के आगे कारण


कारण के आगे भी कारण होते हैं। कारण के पीछे  भी कारण होते हैं। कारण कभी कारण नहीं होता। कारण कभी अकारण नहीं होता। कारण न जानने के लिए कितने कारण होते हैं। कारण को न जानने के भी कई कारण होते हैं। कारण करुणा है। यह हर हृदय में पाई जाती है। पूरा जीवन कारण जानने में निकल जाता है। हम क्यों आये? किसलिए आये? क्या किया? यही सवालों का उत्तर हमको नहीं मिल पाता। इसके पीछे भी दो कारण हैं। एक-या तो घर में जरूरत थी। या हमारे बिना संसार नहीं चल रहा था। तीसरा कारण अज्ञात है। यानी हम जबरदस्ती आये। घर में चाह नहीं थी। उमंग नहीं थी। लेकिन हमारा धरती पर अवतार हो गया। हम बड़े हुए, फिर इसी खोज में लग गये, हम क्यों आये। स्कूल गये तो कारण ही कारण थे। हजारों सपने थे। ये बनेगा...वो बनेगा। यानी कारण ही कारण थे। नौकरी लगी तो कारण ही कारण थे। अकारण प्रश्न थे और हम उनका कारण  जानने के लिए सिर धुन रहे थे। जिनका हमसे मतलब नहीं। उनका कारण जानने में जुटे थे। यानी कारण के पीछे कारण थे। घर चलाना था। पेट भरना था। सो कारण ढूंढने में जुट गये। सेंसेक्स से लेकर सांसों तक के कारण हमारी टिप्स पर थे। हाथों में मोबाइल था। हमारी आंखों में सपने थे। उत्सुकता थी। हम कारण जानने में जुटे थे।

कारण न होता तो क्या होता। कारण तलाश करने के लिए पूरी मशीनरी काम करती है। सरकारी महकमे तो इसी वजह से चलते हैं। हजारों कर्मचारियों-अधिकारियों को पगार इसलिए ही मिलती है। पूरी सर्विस में कारण अज्ञात ही रहते हैं। जैसे किसी की हत्या हुई। कारण अज्ञात थे। यह बरसों तक अज्ञात रहते हैं। फिर केस होता है। पैरोकारी होती है। अधिवक्ता अपने बुद्धि-विवेक-तर्क से कारण का कारण जानने का प्रयास करते हैं। कभी कारण का कारण पता लग जाता है। कभी नहीं। कारण पता भी लग जाये तो कारण अंतिम नहीं होता। उसके पीछे और भी कारण होते हैं। तह में जाकर अनेक कारण मिलते हैं। अणुओं की मानिंद। सूर्य की किरणों की मानिंद। सिर में इतने बाल क्यों हैं? नाक का बाल भी अकारण नहीं है। नाक में बाल का भी कारण है। यह कारण आज तक अज्ञात है। यानी कितने आये और चले गये...मुहावरा बन गया लेकिन नाक का बाल नाक में रहा। यह कान तक नहीं आया। तफ्तीश भी नहीं हुई। हुक्मरान ने कभी नहीं विचारा...यह मुहावरा क्यों रचा गया। न आयोग बना। न जांच समिति बनी। न रिपोर्ट आई। सरकारी मशीनरी भी बिना कारण, कारण नहीं ढूंढती। उसके पीछे भी कारण होते हैं। कारण का पता करने के लिए बाकायदा एक पीठ काम करती है। वह यह पता करती है कि कारण क्यों कारण है? कारण पता भी चल जाये तो इसके क्या कारण होंगे। शोध पीठ न जाने कितने कारण रोज ढूंढती है। पीएचडी अवार्ड उनको मिलता है जो शोध करते हैं कि यह कारण पता नहीं लगा। यह शोध यहीं पूरा नहीं होता। जहां पर बात खत्म मान ली जाती है, उससे आगे बढ़ती है। दूसरा शोध करता है। फिर तीसरा। यानी शोधकर्ता कारण-दर-कारण बढते जाते हैं और कारण के पीछे कारण चलते रहते हैं।

हम अपने इर्द-गिर्द देखें। रोजाना कारण ही कारण हैं। सुबह हम कारण जानने निकलते हैं। शाम को मुंह लटकाए आ जाते हैं। पत्नी पूछती है...कारण पता लगा? हम क्या जवाब दें। कारण तो अकारण है। कारण ने एक बार कारण से पूछा...तुम कारण क्यों हो। तुममें ऐसा क्या है जो कोई नहीं जान सका। कारण बोला...मैं ही सच हूं। सत्य सनातन हूं। आगे-पीछे मेरे कोई नहीं। अर्जुन को श्रीकृष्ण ने कारण बताये। अर्जुन ने किसी को नहीं बताये। वह युद्ध लड़ा। कारण....? यही तो कारण था जो इतने साल से चला आ रहा है। हमारे नेता, अफसर, पत्रकार, कर्मचारी,कवि, लेखक सब इसी में जुटे हैं...कारण को कारागार में डालो। कोई क्या बताये...हर चीज का कारण नहीं होता। कारण अकारण भी होता है। ठीक वैसे ही, जैसे घर में पत्नी ही भूल जाती है कि हम क्यों लड़ रहे थे। नेता भूल जाते हैं कि हम फलां क्यों आये हैं। वहां क्या कहना है। क्या बोलना है। कारण अनेक होते हैं। कारण स्वतंत्र होते हैं। यह एक फाइल की तरह है। लाल फाइल। हरी फाइल। पीली फाइल। इन सभी में कारण अनेक होते हैं। फाइल क्यों लौटी...इसके पीछे भी कारण होते हैं। फाइल स्वीकृत हुई, इसके पीछे भी कारण होते हैं। कारण एक बांध की तरह हैं। बह जाते हैं। कारण एक सतत प्रक्रिया है। जब तक सांस है। चलती रहती है। कारण कभी अकारण नहीं होते। कारण के पीछे भी कारण होते हैं। लिखने के पीछे भी कारण होते हैं। बिकने के पीछे भी कारण होते हैं। आने के भी कारण होते हैं। जाने के पीछे भी कारण होते हैं। कारण नाक का बाल है। जो हर इंसान में पाया जाता है। चूंकि अरबों की आबादी है। आबादी की गणना में यह निकले नहीं। पता नहीं....क्या कारण रहे????

✍️सूर्यकांत द्विवेदी, मेरठ

बुधवार, 15 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जून 2022 को काव्यगोष्ठी का आयोजन

 मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति की ओर से 14 जून 2022 को काव्यगोष्ठी का आयोजन  श्री जंभेश्वर धर्मशाला में किया गया ।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा ---

   मानव बन तू दीप समान।

   दीपक सा तू जल जल के

    कर कर्तव्य महान

मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा ---

हर  धर्म की  इज्ज़त  करें

बांटें   नहीं   भगवान  को

पाठ    पूजा    के     लिए

टोकें    नहीं   इंसान   को 

सत्य   की  पहचान  हित

तालीम      ज़रूरी      है।

विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र पाल विश्नोई  ने कहा---

चलते चलते थक गये मंजिल नहीं मिली

बसंत की बयार में कलिका नहीं खिली

अशोक विद्रोही ने कहा--

करलो कितनी भी चालाकी,

हर जगह उसी को पाओगे

कंकर कंकर में शंकर है,

तुम कितने साक्ष्य मिटाओगे!

रामसिंह निशंक ने पढ़ा---

तू है जननी मेरी मां तुझे शत शत नमन

पहली सांस दायिनी मां तुझे शत शत नमन

योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा ----

व्यर्थ आपस में क्यों हम हमेशा

लड़ें,भेंट षड्यंत्र की क्यों हमेशा चढ़ें।

छोड़ कर नफरतें प्यार की राह पर

 दो कदम तुम बढ़ो'दो कदम हम बढें 

राजीव प्रखर ने कहा ----

स्वप्न सलोने सुन्दर युग की, 

बीती एक कहानी हूॅं। 

पढ़े-लिखे मानव के हाथों, 

झेल रही मनमानी हूॅं। 

मद में अन्धा जब करता हो

 जलधारा का चीर-हरण,

  मैं मछली तब कैसे खुद को, 

  कह दूॅं जल की रानी हूॅं।

प्रवीण राही ने कहा---

जो बंदे इधर से उधर जा रहे हैं,

 सबब मैंने पूछा तो हकला रहे हैं

करें गर्व कैसे न उन सैनिकों पे,

 तिरंगे में लिपटे जो घर जा रहे हैं

प्रशांत मिश्र ने पढ़ा-----

गम है जिंदगी तो रोते क्यों हो

 नैनो के नीर से जख्मों का दर्द कम नहीं होता

नकुल त्यागी ने कहा -----

अपनी प्रतिभा से आलोकित पगडंडी और राह बनाएं,

अंधकार को क्यों धिक्कारें अच्छा है एक राह बनाएं 

पूजा राणा ने पढ़ा- 

पल दो पल का परिचय भी क्या,

 प्रेम प्रसंग हुआ करता है!

 तुलसी दल के सेवन से भी 

 क्या व्रत भंग हुआ करता है

काव्य गोष्ठी में  रमेश गुप्ता, रवि शंकर चतुर्वेदी, चिंतामणि जी ने भी भाग लिया। रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने आभार अभिव्यक्त किया। 













:::::::::प्रस्तुति:::::::

अशोक विद्रोही 

अध्यक्ष

राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति मुरादाबाद

सोमवार, 13 जून 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर के काव्य-संग्रह 'नाम लिख तो लिया' का रविवार 12 जून 2022 को लोकार्पण समारोह

मुरादाबाद की साहित्यकार रश्मि प्रभाकर की काव्य-कृति 'नाम लिख तो लिया' का लोकार्पण रविवार 12 जून 2022 को दिल्ली रोड स्थित क्लासिक बैंकट हॉल में हुआ। 

मयंक शर्मा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  नवगीतकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा - "रश्मि प्रभाकर को सुनने के मुझे जितने भी अवसर मिले हैं उसके आधार पर मैं कह सकता हूॅं कि उनके भीतर एक सफल कवयित्री बनने की पूरी संभावना है। प्रस्तुत काव्य-संग्रह उनकी रचनात्मकता का नया प्रस्थानक होगा। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनके इस काव्य संग्रह का स्वागत हिंदी कविता के पाठकों द्वारा उनके पहले काव्य संग्रह जैसा ही होगा। उनकी रचनाधर्मिता का महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि वह आज के छंदहीन समय में छान्दस कवयित्री हैं।"

       विशेष अतिथि डॉ मक्खन मुरादाबादी का कहना था - "आम भाषा में रचा गया यह काव्य-संग्रह निश्चित रूप से पाठकों के हृदय को स्पर्श करेगा ऐसा मैं मानता हूॅ़।" 

      कृति के विषय में अपने विचार रखते हुए नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - "संग्रह की रचनाओं का विषय वैविध्य कवयित्री की काव्य-प्रतिभा और सृजन-क्षमता को प्रतिबिंबित करता है। इन रचनाओं में जहाँ एक ओर प्रेम की कोमल उपस्थिति है तो वहीं दूसरी ओर भक्तिभाव से ओतप्रोत अभिव्यक्तियाँ भी हैं।"

 विशेष अतिथि अल्पना रितेश गुप्ता ने  कहा - 'नाम लिख तो लिया' पुस्तक के लोकार्पण पर आ कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। साहित्य रचना आसान नहीं है। रश्मि प्रभाकर जी को मेरी बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं उनकी यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हो, ऐसी मेरी कामना है।" 

       इस अवसर पर कवयित्री रश्मि प्रभाकर ने काव्य-पाठ करते हुए कहा - आओ जीवन सफर पर चलें हमसफ़र। तुम मुझे साथ लो, मैं तुम्हें साथ लूं।" 

     लोकार्पण समारोह में डॉ प्रदीप शर्मा, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, ज़िया ज़मीर, डॉ. काव्य सौरभ रस्तोगी, मनोज मनु, पदम सिंह यादव, इन्दू रानी, सुशील शर्मा, सुनील शर्मा, डॉ मधुबाला त्यागी, डॉ. अनिल त्यागी नितिन गुप्ता (जिला शासकीय अधिवक्ता), फक्कड़ मुरादाबादी, वीरेन्द्र ब्रजवासी, आवरण अग्रवाल, दुष्यंत बाबा, अभिव्यक्ति सिन्हा, अमर सक्सेना, संजीव यादव, समर्थ यादव, प्रत्युष यादव, अमर सिंह बहराइच, अशोक यादव एडवोकेट आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. संजीव आकांक्षी ने किया। डॉ. बृजपाल सिंह यादव द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ समारोह समापन पर पहुॅंचा।