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शनिवार, 14 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की कविता ---अज्ञात शहीद। उनकी यह कविता संस्कार भारती मुरादाबाद द्वारा प्रकाशित संस्कार दीपिका मुरादाबाद नगर विशेषांक 1992 में प्रकाशित हुई थी।


शौर्य से रणशंख ध्वनि में,

गूंज गर्जन की जगा दो।

रक्त से लोहित मचलती,

बेड़ियों की झनन गा दो।।

मर मिटे कितने उपासक,

प्राण करतल में समेटे।

गल गए कितने तिमिर में,

कफन-पट सिर पर लपेटे ।।

अपरिचित अज्ञात से वे,

काल-सागर में समाए,

कौन जाने कौन थे वे ?

गीत उनके भी सुना दो।।

शौर्य से रणशंख ध्वनि में,

गूँज गर्जन की जगा दो। शौर्य (1)


बाँधकर लटका विटप से,

डाल फंदा सिर झुकाए।

तान दी संगीन, कुछ को,

'काल-पानी' में डुबाए।।

क्रूर, निर्लज यातना दे,

उर विदारक कुफ्र ढाए।

हण्टरों के घात निर्मम,

वे करुण अर्चन सुना दो।। शौर्य... (2)


प्यार में नृप ताज गढ़ते,

मकबरा मृत पर बनाते।

'शांतिवन', 'रजघाट' सजते,

धूम से बरसी मनाते ।।

वे शलभ से जल मिटे पर,

उर्स-पर्व न कुछ मनाएँ।

दर्द भर दो गीत गा दो।। शौर्य.....(3)


तोप-गोली से उड़ाया

ग्राम तक उनके जलाए।

घेर 'जलियाँ में हजारों,

भूनकर भू पर सुलाए।।

टांग उलटा द्रुम वनों से,

आग में जिन्दा जलाए।

झाँक लो इतिहास अपना

आज दो आँसू बहा दो। शौर्य .....(4)


घोष था टुकड़े न होंगे,

रक्त रंजन भी न होगा।

बंद मंदिरालय करेंगे,

'राम-राज' स्वराजहोगा।।

पूर्व-पश्चिम में घटा क्या,

शांति के चिथड़े उड़ाए।

दर्द भर जयकार करके,

आज उनके प्रण सुना दो।। शौर्य.... (5)


एकता खण्डित हुई फिर,

रक्त की नदियाँ बहाई ।

भेद निज 'कश्मीर' स्वर्णिम,

फूट ने 'हिंसा' जगाई।

'जिन्न' दीमक से चिपटते,

प्यार के दीपक बुझाए।

चाँद भी लपटें उगलता,

क्रूर परिवर्तन सुना दो ।।

शौर्य से रण शंख ध्वनि में,

गूँज गर्जन की जगा दो।(6)


✍️ ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश





::::::::प्रस्तुति:::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर  9456687822

मंगलवार, 3 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त का गीत -----प्राण भी मेरे न होंगें। उनका यह गीत लगभग 54 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने....


 

प्राण भी मेरे न होंगें

प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे । 

वेदना की लपट भरकर, हृदय में ज्वाला धधकती। 

नीर नेत्र उलीचते पर, और भी भीषण भभकती । 

जब न दृग-जल से बुझी तो, और साधन कौन होंगे !

 प्राण के......


आ लगाई तब किसी ने, हृदय में मृदु थपथपी सी । 

कुछ क्षणों के बाद ही फिर, जल उठी वह गुदगुदी सी । 

मधुर अमृत पात्र मैं भी, ज्वाल के भय गान होंगे। प्राण के.....


 बढ़ रही प्रतिपल निरन्तर, कर रही विप्लव उसी से । 

आ लगी नभ-पटल से भी, चाहती मिलना किसी से ।

 पर निभाने मर्म इसका, कौन इसके साथ होंगे।

प्राण के .......


सान्त्वना इसको मिले तब, जब न उर में प्राण होंगे । 

प्राण भी तब तक रहेंगे, प्राण में जब प्राण होंगे । 

प्राण भी तरसें कहें फिर, और कैसे पार होंगे।

प्राण के ........


प्रज्ज्वलित करके अनल कण, यह हृदय में ही रहेगी । 

कामना जयमाल देकर, भेंट लेकर ही मिटेगी ।

जल अनल भी एक हो क्या, भावना के साथ होंगे। प्राण के ........


फूट जायेगी हृदय में, हृदय तन सब जल उठेंगे ।

जब हृदय ही न रहा तो, प्राण रहकर क्या करेंगे ? 

किन्तु फिर अरमान मन के, प्राण बिन पूरे न होंगे ! 

प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे ।


✍️ ईश्वर चन्द्र गुप्ता, मुरादाबाद (उप्र)


::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822



सोमवार, 2 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की चर्चित काव्य कृति - चा का प्याला। डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के हालावाद की तर्ज पर प्यालावाद का प्रवर्तन करते हुए इस कृति में ईश जी ने 146 पदों के माध्यम से भारत में चाय के प्रवेश , चाय की महिमा, चाय और समाज के साथ- साथ भारत के इतिहास की झलक भी प्रस्तुत की है। उनकी यह कृति वर्ष 1994 में ईश प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई थी । इस कृति की भूमिका लिखी है डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने ।



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रविवार, 1 अगस्त 2021

शनिवार, 31 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की काव्य कृति -ईश अंजली । उनकी यह कृति वर्ष 1997 में ईश प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई थी । इस कृति में उनकी वर्ष 1940 से 1996 तक के समय की 63 काव्य रचनाएं हैं । इस कृति की भूमिका लिखी है डॉ कौशल कुमारी ने । यह कृति हमें उपलब्ध हुई है डॉ अजय अनुपम से ...



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बुधवार, 28 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की कृति -ईश दोहावली । इस कृति में उनके वंदना, नीतिपरक, धर्माचरण, स्वास्थ्य,श्रृंगार और हास्य-व्यंग्य सम्बन्धी 151 दोहे हैं ।इसके अतिरिक्त 15 सँस्कृत श्लोकों व गीता सार का पद्यानुवाद और एक कविता भी है। इस कृति की भूमिका लिखी है उमेश पाल बरनवाल 'पुष्पेंद्र' ने। यह कृति वर्ष 1994 में ईश प्रकाशन क़ानूनगोयान द्वारा प्रकाशित हुई है। यह कृति हमें उपलब्ध कराई है उनके सुपुत्र उपदेश चन्द्र अग्रवाल ने ।



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सोमवार, 26 जुलाई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश का गीत ----मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे । मैं गरल पीता रहूँ तुम, जलद से रमते रहोगे ।। उनका यह गीत अशोक विश्नोई व डॉ प्रेमवती उपाध्याय के सम्पादन में प्रकाशित काव्य संकलन 'समय के रंग' में प्रकाशित हुआ है। यह साझा काव्य संकलन सागर तरंग प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2002 में प्रकाशित हुआ था ।



मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे । 
मैं गरल पीता रहूँ तुम, जलद से रमते रहोगे ।। 
पी अंधेरा दीप जलकर, 
तमस पथ में झलक भरते ।।
तपन शीतल पवन सहकर, 
कमल मन की तपन हरते ।।
दे रहे उपहार पर तुम मुस्करा छलते रहोगे ।
मैं अँगारों पर चलूँ, तुम फूल पर चलते रहोगे ।।
स्नेह सिंचित श्रम-सुमन से, 
वाटिका सुरभित बनाता । 
जेठ श्रावण-पूस में भी, 
स्वेद भर भूतल सजाता ।। 
घुन बना पिसता रहूँ तुम देव से पुजते रहोगे ।
 मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे ।।
शूल से कर्त्तव्य पथ को, 
चमन सा मधुमय खिलाता । 
हृदय में पीड़ा संजोए. 
रजत-पट पथ पर बिछाता ।।
धरा पर पीड़ित रहूँ तुम, चन्द्रिका पीते रहोगे । 
मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे ।।
फूट की आँधी उड़े तो, 
सुप्त भावों को जगाती । 
लूट-हिंसा-स्वार्थ-भय की, 
बिजलियाँ पग-पग जलातीं ।।
ठोकरें सहता रहूँ तुम, योजना गढ़ते रहोगे । 
मैं अँगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे ।। 
आँसुओं की गंग-यमुना, 
मर्म सागर को सुनाती
 स्नेह ममता की तरंगें, 
 वज्र मन झर झर बहाती ।।
हृदय में जलता रहूँ तुम,इन्दु से खिलते रहोगे । 
मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे ।। 
धरा पर विछता तिमिर सा, 
भ्रमर गुन-गुन विजय गाते । 
गगन का आंगन न हँसता,
दर्द नीरव स्वर सुनाते ।।
पवन दूषित बिखरता तुम, कोष निज भरते रहोगे 
मैं अंगारों पर चलूँ तुम, फूल पर चलते रहोगे || 
मैं गरल पीता रहूँ तुम , जलद से रमते रहोगे।।

✍️ ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश

:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

शनिवार, 24 जुलाई 2021