मंगलवार, 3 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त का गीत -----प्राण भी मेरे न होंगें। उनका यह गीत लगभग 54 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने....


 

प्राण भी मेरे न होंगें

प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे । 

वेदना की लपट भरकर, हृदय में ज्वाला धधकती। 

नीर नेत्र उलीचते पर, और भी भीषण भभकती । 

जब न दृग-जल से बुझी तो, और साधन कौन होंगे !

 प्राण के......


आ लगाई तब किसी ने, हृदय में मृदु थपथपी सी । 

कुछ क्षणों के बाद ही फिर, जल उठी वह गुदगुदी सी । 

मधुर अमृत पात्र मैं भी, ज्वाल के भय गान होंगे। प्राण के.....


 बढ़ रही प्रतिपल निरन्तर, कर रही विप्लव उसी से । 

आ लगी नभ-पटल से भी, चाहती मिलना किसी से ।

 पर निभाने मर्म इसका, कौन इसके साथ होंगे।

प्राण के .......


सान्त्वना इसको मिले तब, जब न उर में प्राण होंगे । 

प्राण भी तब तक रहेंगे, प्राण में जब प्राण होंगे । 

प्राण भी तरसें कहें फिर, और कैसे पार होंगे।

प्राण के ........


प्रज्ज्वलित करके अनल कण, यह हृदय में ही रहेगी । 

कामना जयमाल देकर, भेंट लेकर ही मिटेगी ।

जल अनल भी एक हो क्या, भावना के साथ होंगे। प्राण के ........


फूट जायेगी हृदय में, हृदय तन सब जल उठेंगे ।

जब हृदय ही न रहा तो, प्राण रहकर क्या करेंगे ? 

किन्तु फिर अरमान मन के, प्राण बिन पूरे न होंगे ! 

प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे ।


✍️ ईश्वर चन्द्र गुप्ता, मुरादाबाद (उप्र)


::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822



1 टिप्पणी:

  1. यह हिन्दी के महान साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ‘ईश’ जी द्वारा लिखा गया बड़ा ही मार्मिक गीत है जो सुनने वाले को गहन चिंतन में डालता है।

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