मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश द्वारा रचित हिन्दी के प्रमुख साहित्यकारों का काव्यमय परिचय।। यह उनकी वर्ष 2000 में प्रकाशित कृति हिन्दी के गौरव से लिया गया है । उनकी यह कृति ईश प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई थी । इसकी भूमिका लिखी थी डॉ रामानन्द शर्मा ने .
मुरादाबाद मंडल की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त एक जाने-माने साहित्यकारों व कवियों में एक है जिन की समस्त रचनाएं बहुत ज्ञानवर्धक वह जीवन में प्रेरणादायक रही है
मैं श्री ईश्वर चंद्र गुप्त की सबसे छोटी पुत्री अमिता गर्ग हूं। जिनकी रचनाएं ईशगीति ग्रामर पढ़कर मेरे बच्चों ने भी बहुत ज्ञान प्राप्त किया था। पूजनीय पिताश्री की अन्य रचनाएं पढ़कर भी हमने बहुत ज्ञान प्राप्त किया था।
मुझे गर्व है कि मैं हिन्दी के महान साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ‘ईश’ जी की पोती हूँ। मेरे बाबा ने अपने जीवन में बड़ा कठिन श्रम किया तथा हमें सदा अनुशासन में रहते हुए निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
मैं बचपन में खेल-खेल में ही उनके साथ उनकी रचनाओं को कंठस्थ कर अपने स्कूल में यथासंभव लिखती/ सुनाती थी। जिसके लिए मुझे हमेशा मेरे स्कूल में मेरे अध्यापकों द्वारा सराहा जाता था।
मैं यह कह सकती हूँ कि उनकी पुस्तकों जैसे “ईश गीति ग्रामर” तथा “हिन्दी के गौरव” की रचनाओं को स्कूल में बच्चों को सिखाना या सुनाना चाहिये। जिससे बच्चों को व्याकरण और हिन्दी के कवियों की जीविनी न केवल सरल लगेगी बल्कि वे उन्हें लम्बे समय तक याद भी रख पाएँगे।
मुरादाबाद मंडल की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त एक जाने-माने साहित्यकारों व कवियों में एक है जिन की समस्त रचनाएं बहुत ज्ञानवर्धक वह जीवन में प्रेरणादायक रही है
जवाब देंहटाएंमैं श्री ईश्वर चंद्र गुप्त की सबसे छोटी पुत्री अमिता गर्ग हूं। जिनकी रचनाएं ईशगीति ग्रामर पढ़कर मेरे बच्चों ने भी बहुत ज्ञान प्राप्त किया था।
जवाब देंहटाएंपूजनीय पिताश्री की अन्य रचनाएं पढ़कर भी हमने बहुत ज्ञान प्राप्त किया था।
अति उत्तम रचनाय
जवाब देंहटाएंमुझे गर्व है कि मैं हिन्दी के महान साहित्यकार श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ‘ईश’ जी की पोती हूँ। मेरे बाबा ने अपने जीवन में बड़ा कठिन श्रम किया तथा हमें सदा अनुशासन में रहते हुए निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
जवाब देंहटाएंमैं बचपन में खेल-खेल में ही उनके साथ उनकी रचनाओं को कंठस्थ कर अपने स्कूल में यथासंभव लिखती/ सुनाती थी। जिसके लिए मुझे हमेशा मेरे स्कूल में मेरे अध्यापकों द्वारा सराहा जाता था।
मैं यह कह सकती हूँ कि उनकी पुस्तकों जैसे “ईश गीति ग्रामर” तथा “हिन्दी के गौरव” की रचनाओं को स्कूल में बच्चों को सिखाना या सुनाना चाहिये। जिससे बच्चों को व्याकरण और हिन्दी के कवियों की जीविनी न केवल सरल लगेगी बल्कि वे उन्हें लम्बे समय तक याद भी रख पाएँगे।
उनकी सभी रचनायें बहुत खूबसूरत हैं।
पारुल
विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी
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