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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब'' द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा

 


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत  3 व 4 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद की युवा साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले मीनाक्षी ठाकुर द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं----

(1)
हथेली पर नया सूरज किसी ने फिर उगाया है
अँधेरा दूर करने को उजाला साथ लाया है

पकड़ना जब भी चाहा हर खुशी को हाथ से हमने
तभी  तितली सा उड़कर वक्त़ ने हमको रुलाया है

जगह थोड़ी सी माँगी थी किसी के दिल में रहने को
नहीं खाली मकां उसका, यही उसने बताया है

भरोसा करना मत क़िस्मत के लिक्खे फैसलों  का तुम
हमेशा हौसलों ने जीत का मंज़र दिखाया है

मै लिख दूँ आसमां पर नाम अपनी कामयाबी का
बुज़ुर्गों ने सदा मेरे मुझे उठना सिखाया है

(2)
तीर दिल पर चला कर गये हैं
मुझसे दामन छुड़ा कर गये है

हर दुआ दिल ने की जिनकी ख़ातिर
आज वो ही रुला कर गये हैं

छोड़ना ही था गर यूँ सफ़र में
ख़्वाब फिर क्यूँ सजा कर गये हैं

देने आये थे झूठी तसल्ली
चार आँसू बहा कर गये हैं

हैं पशेमाँ वो अपनी ज़फा से
इसलिए मुँह छुपा कर गये हैं

(3)
दोस्ती करके किसी नादान से
हमने झेले हैं बड़े तूफ़ान से

दिल में रहते थे कभी जो हमनवा
आज क्यूँ लगते भला मेहमान से

साथ मेरे तू नहीं तो कुछ नहीं
फ़िर गुलिस्तां भी लगे वीरान से

याद ही बाक़ी रही अब दरमियां
दिल के टूटे हैं कहीं अरमान से

ख़ुदक़ुशी करना नहीं यूँ हारकर
मौत भी आये मगर सम्मान से

वो गये दिल तोड़कर तो क्या हुआ
ज़िंदगी फिर भी चलेगी शान से

तंगदिल देंगे तुम्हें बस घाव ही
आरज़ू करना सदा भगवान से

(4)
हँसा के मुझको रुला रहा था
छुड़ा के दामन वो जा रहा था

उसी ने बदली हैं क्यूँ निगाहें
जो कसमें उल्फ़त में खा रहा था

हुआ किसी का न आज तक जो
वफ़ा के क़िस्से सुना रहा था

मिटाने को मेरी हर निशानी
ख़तों को मेरे जला रहा था

कभी न झाँका जो आइने में
वो मुझ पे उँगली उठा रहा था

(5)
दिल ही दिल में उनको चाहा करते हैं
सीने में इक तूफां पाला करते हैं

जब आये सावन का मौसम हरजाई
यादों की बारिश में भीगा करते हैं

कटती हैं अपनी रातें तो रो-रो कर
वो भी शायद, करवट बदला करते हैं

होते कब सर शानों पर दीवानों के
फिर भी क्यूँ खुद को दीवाना करते हैं

लिक्खें जितने नग़में उनकी यादों में
हँसकर हर महफ़िल में गाया करते हैं

(6)
रस्म उल्फ़त की कुछ तो अदा कीजिए
चाहिए ग़र वफ़ा तो वफ़ा कीजिए

इश़्क करने का अंजाम होता है क्या
दिल के बीमारों से मशविरा कीजिए

तोड़कर सारे रिश्ते चले जाएं पर
हाथ की इन लकीरों का क्या कीजिए

हो दग़ाबाज़ी जिनके लहू में घुली
ऐसे लोगों से बचकर रहा कीजिए

कुछ भरम प्यार का दरमियां ही रहे
ख्व़ाब में ही सही पर मिला कीजिए

(7)
खोकर मुझको रोया होगा
रातों को भी जागा होगा

दिल जो मेरा तोड़ा तूने
तेरा दिल भी टूटा होगा

वादों की तहरीरों में भी
सच का किस्सा झूठा होगा

होगी महफ़िल जब भी तेरी
चर्चा मेरा होता होगा

अश्कों के खारे पानी से
गम का दरिया हारा होगा

(8)
आइना सच हज़ार बोलेगा
इक नहीं बार-बार बोलेगा

क़त्ल होगा जो जिस्म मेरा ये
रूह का तार-तार बोलेगा

सिल गये लब,नज़र झुका ली है
आज तो शर्मसार बोलेगा

लुट गये हम वफ़ा की राहों में
प्यार में कर्ज़दार बोलेगा

मुंतज़िर थे कभी हमारे वो
बस यही राज़दार बोलेगा

(9)
कोई अपना भी रहनुमा होता
दर्द इतना न फिर मिला होता

बैठे हो सर झुकाए गै़रो में
तीर अपनों का सह लिया होता

मुब्तिला थे तेरी ख़ुशी में हम
राज़ ग़म का भी तो कहा होता

तोड़ देते वो दिल मेरा बेशक
मशवरा मुझ से कर लिया होता

भूल जाते हैं इश्क़ करके वो
ये हुनर हमको भी मिला होता

(10)
रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये

इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये

ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से
मरती दुनिया को मालिक दवा दीजिये

बंद कमरों में घुटने लगी साँस भी
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये

जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं
कै़द से हर परिंदा छुड़ा दीजिये


इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मीनाक्षी में लेखन के प्रति ललक भी है और उनके भीतर ऊर्जा भी है। पटल पर प्रस्तुत दस ग़ज़लें जहां अपनी भाव संपदा से भरपूर हैं, वहीं मुझे यह विशेष लगा कि वे अपने आकार में उतनी ही हैं जितना कि ग़ज़ल को होना चाहिए। जैसा कि जानकारों ने माना है कि अभी उनकी शुरुआत है। शुरुआत है तो भाव दृष्टि से संतोषजनक है।

वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहुत अच्छी कहन है। ईमानदारी और साफगोई के साथ सादा बयानी ने दिल में जगह बनाई है। अभ्यास हर कमी को दुरुस्त कर देगा। एक उभरती हुई मजबूत शायरा का साहित्य जगत में हार्दिक स्वागत है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि मुझे लगा कि मीनाक्षी छन्द युक्त लेखन पसन्द करती हैं जो ग़ज़ल के लिये अनिवार्य शर्त है।  पटल पर उनकी दस ग़ज़लें मेरी ये बात सिद्ध करने को पर्याप्त हैं। उनकी भाषा की सरलता उनके लेखन का क्षितिज विस्तृत करेगी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी ये दस ग़ज़लें  हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि उनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि वह परिश्रम से कतराने वाली नहीं, बल्कि चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत रखती हैं और उसमें सक्षम भी दिखाई देती हैं। ग़ज़ल जैसी कठिन काव्यविधा को साधना बहुत मुश्किल है, लेकिन वह इस मुश्किल को आसान बनाने में पूरी लगन के साथ जुटी हैं। मैं उनकी इस लगन की सराहना करता हूं।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर  पारदर्शी ग़ज़ल की हस्ताक्षर का साहित्य जगत में पूर्ण परिपक्वता पर स्वागत व सम्मान निश्चित ही होगा। मीनाक्षी जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं। 
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि पटल पर उनकी 10 ग़ज़लें प्रस्तुत की गई हैं । सभी ग़ज़लों में वह बड़ी सहजता और सादगी से अपनी बात कहती हैं। वह साहित्यिक आकाश में एक नया सूरज उगाने के हौसले के साथ अपनी भावाभिव्यक्ति का उजाला फैलाना चाहती हैं । उनके भीतर अश्कों के खारे पानी से गम के दरिया को हराने का भरपूर जज्बा है ।वह किस्मत के लिखे फैसलों पर भरोसा नहीं करती बल्कि अपने सीने में एक तूफ़ां पालकर आसमां पर अपनी कामयाबी का नाम लिखना चाहती हैं। 
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी की ग़ज़लें पहली बार पढ़ने को मिली। अभी तक काफी गोष्ठियों में उनके गीत ही सुनने को मिले थे। इन ग़ज़लों को पढ़कर लगा कि ग़ज़ल लेखन में भी वे उतनी है सिद्ध हस्त हैं जितनी कि गीत लेखन में। प्रस्तुत ग़ज़लों में कथ्य को ग़ज़ल के मिजाज़ के अनुरूप ही पिरोया गया है ताकि ग़ज़ल की गजलियत बरकरार रहे।प्रेम की गहरी अनुभूतियों के साथ साथ जीवन की कटु  सच्चाइयों को भी मीनाक्षी जी ने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपनी ग़ज़लों में स्थान दिया है।.                               
नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मीनाक्षी जी की रचनाएं पहली बार पढ़ रहा हूँ जो ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं, हालांकि काव्य-गोष्ठियों में कई बार उन्हें सुना है। आज मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाएं उनके उजले साहित्यिक भविष्य की आहट देती हैं और मुरादाबाद को भविष्य की एक सशक्त छांदस कवयित्री मिलने की संभावना को बलवती बनाती हैं।

कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनकी सभी गज़लें मैंने पढ़ीं, और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि उनका गज़ल कहने का अंदाज बिलकुल सरल सीधा सादा और साफगोई वाला है। भाषा अत्यंत सरल और कहन स्पष्ट है। ज्यादातर गज़लें सामाजिकता और व्यावहारिकता पर केंद्रित हैं।  बीच बीच में अत्यंत प्रेरक संदेश भी उनमें निहित हैं।

युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि मुरादाबाद में नयी पीढ़ी की चुनिंदा महिला साहित्यकारों में से एक मीनाक्षी जी की ग़ज़लें उम्मीदें जगाती हैं। इन की शायरी में फ़िक्र की गहरायी के निशानात मौजूद हैं। फ़न आते-आते आता है, सो वक़्त और मेहनत के साथ वो बुलंदी ही पाएगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि बहन मीनाक्षी ठाकुर जी का  रचनाकर्म इस बात को स्पष्ट दर्शा रहा है कि एक और ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी कवयित्री/शायरा का साहित्यिक पटल पर पदार्पण हो चुका है जो भविष्य में अनेक ऊँचाईयों का स्पर्श करेगी। मैं व अन्य अनेक साथी रचनाकार विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा के दर्शन कर चुके हैं। सीधी व सरल भाषा-शैली में  प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात कह देने वाली यह बहुमुखी प्रतिभा निश्चित ही समय के साथ और भी निखरेगी।
युवा साहित्यकार मनोज वर्मा 'मनु' ने कहा कि साहित्य की अन्य तमाम विधाओं में बेहतर शुरूआत करते हुए गद्य और पद्य में उत्तरोत्तर हाथ आजमाते हुए क्रमशः मुक्तक ....फिर शेरो -शाइरी की तरफ मुत्तासिर होना यह बताता है कि इनके ज़ेहन में शुरू से ही  ग़ज़लियत के अंकुर   विद्यमान रहे हैं... बस उनको आकार देने के लिए जो पर्याप्त वातावरण, प्रोत्साहन और प्लेटफॉर्म की आवश्यकता थी वह  "साहित्यिक मुरादाबाद" वाट्स एप समूह के रूप में समय रहते इन्हें मिला  जिसके  सबब  आज उनकी लगन परिश्रम और हौसले के परिणामस्वरूप इस सम्मानित समूह पर समीक्षा हेतु साहित्य की अन्य विधाओं के इतर 10 गजलें प्रस्तुत की गई हैं।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आज पटल पर उनकी दस ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं किंतु मैंने उन्हें मुक्तक, छन्द, कविताएं और कहानी कहते हुए भी सुना है। रचनाओं में भाव और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग उनकी ख़ासियत है, जैसा कि आज की दस ग़ज़लों में हमें देखने को भी मिला है। ग़ज़लों की तरन्नुम और उनका प्रस्तुतिकरण श्रोताओं को आकर्षित करने वाला होता है। उनकी सभी दस ग़ज़लें अलग-अलग विषयों और भावों को लिये हुए हैं।

 हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी ने अपनी आरंभिक रचनाओं से ही जता दिया है कि उन्हें साहित्य के संस्कार उस पावन भूमि की हवाओं से,परिवेश से स्वत: ही प्राप्त हैं और साथ ही उस प्राप्त अंकुरण को गौरवशाली स्तर तक ले जाने के लिए अपनी लगन,सादगी,साफगोही,कहने की निर्भीकता,मेहनत और वरिष्ठ रचनाकारों की सलाह पर विनम्रता से मनन करने जैसी अपनी खूबियों के चलते जो न केवल सर्वथा सक्षम हैं बल्कि इसके लिए प्रयासरत भी हैं।आज के हालात को समेटती हुई,निराशाओं में आशाओं की राह तलाशती,व्यवहारिक समाधान सुझाती इस सामयिक ग़ज़ल को रखकर दस ग़ज़लों के इस शानदार बुके में अन्तिम ग़ज़ल से सुन्दर रैपिंग करते हुए भी मीनाक्षी दी ने अपनी विशिष्टता प्रस्तुत कर दी है।
युवा कवि दुष्यंत 'बाबा' कहा कि आप अंग्रेजी विषय के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत भी हिंदी की एक प्रखर लेखिका है। हिंदी और उर्दू के प्रति इतना स्नेह/लगाव इनके रचनाकर्म में सुस्पष्ट प्रतीत होता है। इनकी रचनात्मकता का प्रदर्शन इनकी गज़लों और कविताओं में देख ही चुके है ।

ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि मीनाक्षी का मिज़ाज ग़ज़ल का है। यानी यह महसूस नहीं होता कि उन्होंने ज़बरदस्ती ज़ुबान का स्वाद बदलने के लिए ग़ज़ल कहने की कोशिश की हो। क्योंकि उनका मिज़ाज ग़ज़ल का है इसलिए उनके यहां ग़ज़ल वाकई ग़ज़ल के रूप में नजर आ रही है। यह शुरुआती ग़ज़ल है लेकिन इस ग़ज़ल में बहुत रोशन इमकानात हैं। मीनाक्षी ने ग़ज़ल में किसी तरह अपने आप को मनवाने की कोशिश नहीं की है। यह उनकी सादगी है जो उनके फ़न में और उनकी ग़ज़ल में भी नज़र आती है। ज़ुबान बहुत सादा है। हिंदी और उर्दू के सांझे अल्फ़ाज़ उनकी ग़ज़ल में बहुत आसानी से आ रहे हैं जो कि एक बहुत पॉज़िटिव बात है।

✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद
मो० 8755681225

सोमवार, 14 सितंबर 2020

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब ने किया प्रख्यात साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन।


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 9 सितंबर 2020 को  साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व  एवं कृतित्व  पर विचार व्यक्त किये ।
चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि भारतेन्दु ने ऐसा प्रतिभा संपन्न लेखक मंडल तैयार किया जिसने सभी गद्य विधाओं में रचनाएं करके साहित्य को समृद्ध किया। भारतेन्दु ने भाषा के रूप को तो व्यवस्थित किया ही, साथ ही अपने प्रयासों से जनता में साहित्य के प्रति अभिरुचि भी जाग्रत की। भारतेन्दु मंडल के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट,प्रताप नारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालमुकुंद गुप्त, बद्रीनारायण चौधरी, अंबिका दत्त व्यास और लाला श्रीनिवास दास के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी गद्य के विकास का श्रेय भारतेन्दु और उनके साहित्यिक मंडल को ही जाता है। उनके इस लेखक मंडल ने अपने लेखन में रोचक तत्व को महत्व देकर उसे जन-जन का प्रिय बना देने का ऐतिहासिक कार्य किया। यूं तो भारतेन्दु हिन्दी नाटक परंपरा के मूल स्रोत होकर उसके प्रवर्तक रूप में सामने आए।उनका 'अंधेर नगरी ' नाटक अन्य नाटकों के साथ समाज में धूम मचाए रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि विलक्षण प्रतिभा, अद्भुत कार्यक्षमता और अपार ज्ञान के भंडार,कुल पैंतीस वर्ष का जीवन मिला,उसी छोटे से काल खंड में भारत की दशा का आकलन किया, भविष्य के लिए दिशानिर्देश भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था के अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिये , भाषाई विकास को सही मार्ग पर लाने के लिए, समाज के समक्ष प्रस्तुत किये। आप सोच सकते हैं कि जो काम राजा राम मोहन राय ने किया था उसी को आगे बढ़ा कर उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक एवं वैचारिक रूप से थके-हारे भारत को अपनी स्वतंत्रता पाने का बल प्रदान किया। वर्तमान समय के कथित बड़े लेखक उतना सोच भी नहीं सकते जितना विस्तृत और विविध लेखन परम सम्माननीय भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र कर गये।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के अद्वितीय निर्माता और प्रेरक व्यक्तित्व थे। उनके नाम पर ही उनके युग का साहित्यिक नामकरण हुआ। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में हिंदी भाषियों का नेतृत्व किया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रतिबिंब उनके समकालीन अन्य लेखकों एवं कवियों की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भारतेंदु युगीन मुरादाबाद के साहित्यकारों में लाला शालिग्राम वैश्य का नाम सर्वोपरि है । उनका जन्म भारतेंदु जी से काफी समय पहले सन 1831 ईसवीं में हो चुका था । उनकी मृत्यु भी भारतेंदु जी के बाद सन 1901 ईसवी में हुई । मुरादाबाद के पंडित झब्बीलाल मिश्र (1833-1860) ,पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र (1862- 1916), पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (1869-1904) भी भारतेंदु जी के समकालीन साहित्यकार थे । इसके अतिरिक्त कन्हैयालाल मिश्र, सुभद्रा देवी, रामदेवी, पंडित जुगल किशोर बुलबुल, पंडित श्याम सुंदर त्रिपाठी, रामस्वरूप शर्मा, स्वरूप चंद्र जैन, पंडित भवानी दत्त जोशी, पन्नालाल जैन बाकलीवाल, वैद्य शंकरलाल, तथा सूफी अंबा प्रसाद भी उल्लेखनीय साहित्यकार रहे।
प्रसिध्द समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि किसी साहित्यकार की मृत्यु के पश्चात उसके कार्यों और गुणों की चर्चा और उसकी महिमा का वर्णन करना एक आम बात है। लेकिन यदि उस साहित्यकार के जीवन काल में ही उसके कार्यों को सराहा जाने लगे और उसकी महिमा को स्वीकार कर लिया जाए तो उस साहित्यकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। यह सौभाग्य हरिश्चंद्र जी को प्राप्त हुआ। जिस समय शिवप्रसाद जी को ब्रिटिश गवर्नमेंट की तरफ से 'सितारा-ए-हिंद' की उपाधि प्रदान की गई तो उसी समय हरिश्चंद्र जी के प्रशंसकों ने उन्हें 'महताब-ए-हिंद' अर्थात भारतेंदु की उपाधि से सम्मानित किया। लोकप्रियता का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं हो सकता। इस से यह भी सिद्ध होता है कि भारतेंदु जी जनमानस के हृदय में घर कर चुके थे। भारतेंदु जी भी जनमानस की भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वयं को भारतेंदु कहलाना ज़्यादा पसंद करते थे। साथ ही साथ वह अपने मूल नाम हरिश्चंद्र पर भी गर्व करते थे और सत्यवादी हरिश्चंद्र का अनुसरण करने की हमेशा कोशिश करते थे।
कादम्बिनी वर्मा  ने कहा कि प्राचीन संस्कृतनिष्ठ और तत्कालीन नवीन अरबी फ़ारसी मिश्रित हिन्दवी के मध्य हिंदी खड़ी बोली गद्य सरीखा सुंदर सामंजस्य भारतेन्दु जी की कला का विशेष माधुर्य है। 15 वर्ष की अवस्था मे ही इनका साहित्य प्रेम जाग उठा और 18 वर्ष की अवस्था मे 'कविवचनसुधा" पत्रिका का सम्पादन किया जिसमें बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैग्ज़ीन, बालबोधिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक रहे भारतेन्दु जी के द्वारा अंग्रेजी की शिक्षा के लिए राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद जी की शरण लेना इनके सरल व्यक्तित्व का ही उदाहरण है। जो इन्हें इनके पिता से मिला।
युवा शायर फरहत अली ख़ान ने कहा कि जिस हिंदी को हम हिंदी जानते हैं, जिस ने हमें हमारे पसंदीदा लेखक दिए, ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी रचनाएँ दीं। उस हिंदी से हमें वाक़िफ़ कराने वाले सब से पहले लोगों में से एक थे भारतेंदु। उन्होंने हिंदी को सींचा और साथ ही उसे कवि, निबंधकार और नाटककार के रूप में अपने साहित्य कर्म से एक दिशा भी दी, जिस से आगे चल कर न जाने कितनों की राह रौशन हुई। वो हिंदी गद्य में विषयों की विविधता लाए। एक साहित्यिक मैगज़ीन भी चलाई।
युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने कहा कि 'भारतेन्दु' उपाधि से विभूषित श्री हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य की ऐसी विभूति हुए हैं जिन्होंने रीतिकालीन सामन्ती परम्परा का स्पष्ट विरोध करते हुए एक भिन्न विचारधारा का सूत्रपात किया। अगर यह कहा जाय कि हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु जी से ही हुआ तो गलत न होगा। उनके रचनाकर्म का अवलोकन करने पर यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि वह साहित्यकार होने के साथ-साथ एक युगदृष्टा भी थे। भविष्य में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों को संभवतः उन्होंने अनुभव कर लिया था। यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता की कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं। 'अँधेर नगरी', 'भारत दुर्दशा', 'नील देवी', 'गीत गोविंदानंद', 'बंदर सभा', 'बकरी विलाप', 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?',।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का आधार स्तंभ माना जाता है। वह हिंदी नवयुग के निर्माणकर्ता थे। उन्होंने अपने अल्प जीवन काल के प्रत्येक क्षण को हिंदी के लिए जिया। हिंदी साहित्य को राज दरबारों से निकालकर जनसामान्य के सम्मुख लाने का श्रेय भारतेंदु जी को ही है। काशी के संपन्न वैश्य परिवार में जन्म लेने वाले भारतेंदु जी के माता पिता उनकी अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए। इसी कारण भारतेंदु जी की शिक्षा व्यवस्थित नहीं हुई किंतु अपने स्वाध्याय से ही मात्र 18 वर्ष की आयु में इन्होंने हिंदी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन कर लिया। जिस आयु में सामान्य व्यक्ति साहित्य क्षेत्र में आँख खोलता है उस आयु में भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्य का बड़ा खजाना छोड़कर इस दुनिया से प्रयाण कर गए। अट्ठारह सौ सत्तर से उन्नीस सौ तक का समय भारतेंदु युग माना गया है।
युवा कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि अल्पायु में ही विविध विधाओं में, विविध विषयों पर न केवल प्रचुरता से बल्कि प्रभावोत्पादक और गुणवत्तापूर्ण उनके द्वारा लिखा गया।भाषा,कला,साहित्य,समाज और देश को अपने छोटे से जीवन काल में जो सौगात वह दे गये हैं,उसका सही-सही मूल्यांकन करने में हमें कई जीवन लग जायेंगे।भारतेंदु हरिश्चंद्र जी और जिग़र मुरादाबादी जैसे व्यक्तित्व युगों में इस धरती पर अवतरित होते हैं।हम गौरवान्वित हैं,धन्य हैं कि हमने उस धरती पर जन्म लिया है जहाँ ऐसी विलक्षण सार्वभौमिक प्रतिष्ठा वाले पुरूषों ने जन्म लिया और हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर पा रहे हैं।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि देश की गरीबी, पराधीनता तथा अंग्रेजी शासन अमानवीय चित्रण को अपने साहित्य का लक्ष्य बना कर प्रत्येक भारतीय की आत्मा को जगाने वाले भारतीय नवजागरण के अग्रदूत प्रसिद्ध लेखक, सम्पादक, रंगकर्मी, नाटककार, निबंधकार, कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे।  भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म वाराणसी में हुआ था इनके पिता हिंदी के प्रथम नाटक 'नहुष' के रचियता गोपाल चंद्र थे। उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि हिंदी ज़बान का जो आज का रूप है। उसे ऐसा बनाने में जिन लोगों का योगदान है, यानी जो लोग हमारी हिंदी के यहां तक लगातार बहने का सबब हैं, उनमें भारतेंदु बाबू का नाम सबसे ज़्यादा एहम है। भारतेंदु बाबू अपने युग से आगे के साहित्यकार थे। अपने समय से आगे सोचने वाले भाषा प्रवर्तक थे। वह न केवल बड़े साहित्यकार और भाषाकार थे बल्कि उनका प्रभाव ऐसा था कि उन के प्रभाव के में आकर उस समय के कई साहित्यकारों ने हिंदी के नए और ज़्यादा खुले रूप को अपनाकर न सिर्फ़ साहित्य का सर्जन किया बल्कि हिंदी साहित्य में अपना अलग स्थान भी बनाया।  भारतेंदु बाबू का हम हिंदी से प्यार करने वालों और उर्दू से मुहब्बत करने वालों पर बड़ा एहसान है। उन्होंने हिंदी को आसान बनाया जिसके सबब उस आसान हिंदी को उर्दू ने अपनाया और उर्दू भी उसी असान हिंदी के सबब ज़्यादा हिंदुस्तानी ज़बान बन गई। क्योंकि भारतेंदु बाबू को उर्दू का भी बहुत अच्छा ज्ञान था और उर्दू में उन्होंने शायरी भी की तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतेंदु बाबू उन बड़े नामों में से एक थे जिन्होंने हिंदी और उर्दू को क़रीब लाने में का बड़ा काम किया। भारतेंदु बाबू हम सभी का गौरव हैं।
      युवा लेखक अभिनव चौहान ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को महज़ 34 वर्ष का जीवन मिला। इतने कम जीवनकाल में उन्होंने हिंदी, उर्दू, थियेटर, पत्रकारिता हर क्षेत्र के लिए अपना कुछ न कुछ योगदान किया। इसलिए हिंदी में शुरू होने वाला नवजागरण काल भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है। पूर्व भारतेंदु काल और उत्तर भारतेंदु काल की अवधारणा भी अब नए अध्ययनों में मिलने लगी है। अपने से पूर्व और समकालीन हिंदी साहित्य में जिन दो भाषाई परंपराओं को भारतेंदु देख रहे थे, उसे पूरी तरह पलट कर रख दिया था इस व्यक्ति ने। यही वजह है कि हिंदी साहित्य की चर्चा करते ही पहला नाम किसी का आता है तो वो हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र।

::::::  प्रस्तुति:::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष जिगर मुरादाबादी की पुण्यतिथि पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 8 व 9 सितंबर 2020 को  मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार जिगर मुरादाबादी को उनकी बरसी पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। उनकी बरसी 9 सितंबर को थी।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी कि बीसवीं सदी के अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी का वास्तविक नाम अली सिकन्दर था। वो 1890 ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। जिगर को शायरी विरासत में मिली थी, उनके वालिद मौलवी अली नज़र शायर थे। जिगर की आरम्भिक शिक्षा घर पर और फिर मकतब में हुई। पहले वो अपने पिता से इस्लाह लेते थे। फिर “दाग” देहलवी, मुंशी अमीरुल्लाह “तस्लीम” और “रसा” रामपुरी को अपनी ग़ज़लें दिखाते रहे। जिगर को स्कूल के दिनों से ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था। जिगर आगरा की एक चश्मा बनानेवाली कंपनी के विक्रय एजेंट बन गए। इस काम में जिगर को जगह जगह घूम कर आर्डर लाने होते थे। शराब की लत वो विद्यार्थी जीवन ही में लगा चुके थे। उन दौरों में शायरी और शराब उनकी हमसफ़र रहती थी। जिगर बहुत हमदर्द इन्सान थे। किसी की तकलीफ़ उनसे नहीं देखी जाती थी, वो किसी से डरते भी नहीं थे। लखनऊ के वार फ़ंड के मुशायरे में, जिसकी सदारत एक अंग्रेज़ गवर्नर कर रहा था, उन्होंने अपनी नज़्म "क़हत-ए-बंगाल” पढ़ कर सनसनी मचा दी थी। कई रियासतों के प्रमुख उनको अपने दरबार से संबद्ध करना चाहते थे और उनकी शर्तों को मानने को तैयार थे लेकिन वो हमेशा इस तरह की पेशकश को टाल जाते थे। उनको पाकिस्तान की शहरीयत और ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी की ज़मानत दी गई तो साफ़ कह दिया जहां, पैदा हुआ हूँ वहीं मरूँगा। जिगर आख़िरी ज़माने में बहुत मज़हबी थे। उनके अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। जिगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में केवल दूसरे कवि थे, जिन्हें  डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया - इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले शायर डॉ इक़बाल थे। उनका निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 में हुआ। जिगर मुरादाबादी का मज़ार, तोपखाना गोंडा में स्थित है।जिगर साहिब रिवायती शायरी के आख़िरी अज़ीम शायर हैं। जिगर साहिब उन चन्द अहद-साज़ शोअरा में शामिल हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी, उसे नए लहजे और नए उसलूब से रूशनास भी कराया। जिगर साहब ने शायरी को इतना आसान करके दिखाया है और शेर कहने में ऐसा कमाल हासिल किया है कि उसे देख कर सिर्फ़ हैरत की जा सकती है। जिगर साहिब की लगभग हर ग़ज़ल में तीन-चार मतले मिलना आम बात है जबकि मतला कहना सबसे मुश्किल माना जाता है। यह शायरी बिला-शुबह अपने वक़्त की मुहब्बत की तारीख़ तो है ही मगर यह शायरी हर एहद के मुहब्बत करने वालों के दिलों में धड़कती है। हिज्र में तड़पती हुई रूहों को सहलाती है। हर एहद में मुहब्बत के लिए आमादा करती है।
प्रख्यात शायर और जिगर मुरादाबादी फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि-
था जिसका इकतेदार ग़ज़ल के जहान पर,
उस जैसा बादशाह कहाँ अब नजर में है,
हालांकि उसको गुजरे जमाना हुआ मगर,
अब भी जिगर की टीस हमारे जिगर में है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि जिगर साहब बीसवीं सदी के एक ऐसे शायर होकर सामने आये,जो अदब की दुनिया और समाज द्वारा खूब सराहे गए और आज भी उनकी सराहना बुलंदियों पर है। हर समय में अदब और साहित्य को बहुत कुछ देने वाले बहुत से कलमकार होते हैं,पर समाज के सिर चढ़कर बोलने वाले कम ही होते हैं। वह भारत की मिट्टी की आत्मा के शायर थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि जिगर मुरादाबादी को स्मरण करना मुरादाबाद के मस्ताना अंदाज को याद करना है।सादा मिजाज जिगर अपने घर को लगी आग में उम्र भर झुलसते रहे।  यहीं से शराब का दामन थाम लिया। शायरी में सूफियाना रंग मुरादाबाद की देन है। मुरादाबाद की कल्चर में जो हम आहंगी तबीयत का मिज़ाज है वही जिगर की शायरी में भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूप में उभरा है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि -
शायर हैं, मुसाफ़िर हैं इसी राहगुज़र के
अशआर के पाँव में हैं छाले भी सफ़र के
ग़ज़लों में हमारे भी है कुछ रंगे- तगज़्ज़ुल
हे फ़ख़्र है  कि बाशिन्दा है हम शह् रे-जिगर  के
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि मुरादाबाद की धरती अपने ऊपर जितना गर्व करे कम है कि उसे ग़ज़ल के बेताज बादशाह हज़रते जिगर मुरादाबादी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यह जिगर मुरादाबादी ही हैं जिन्होंने मुरादाबाद का नाम अदब के हवाले से सारी दुनिया में रोशन किया है। साहित्य के मैदान में ऐसी शख़्सियात कम ही गुज़री हैं जिनकी रचनाओं और व्यक्तित्व में पूरी तरह समानता हो । जिगर साहब ऐसे ही गिने चुने शायरो में से एक हैं। जिगर ने अपनी शायरी के ज़रिए मोहब्बत का जो  पैग़ाम दिया है आज के माहौल में जब सियासत ने हर जगह नफ़रत के अलाव जला रखे हैं उनके पैगाम को आम करने की और भी अधिक ज़रूरत है।
प्रसिध्द नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनेक शायर हुए हैं जिन्होंने अपनी शायरी से हिन्दुस्तान की रूह को तर किया है, जिगर मुरादाबादी भी ऐसे ही अहम शायरों में शुमार होते हैं। अपनी खूबसूरत शायरी के दम पर मुहब्बतों का शायर कहलाने वाले जिगर के शे’र आज भी लोगों के दिलो-दिमाग़ में बसते हैं जो उन्हें बड़ा और अहम शायर बनाते हैं। जिगर साहब का शे’र पढ़ने का अन्दाज़ बेहद जादूभरा था और तरन्नुम लाजबाव। जिगर साहब के शेर पढ़ने के ढंग से उस दौर के नौजवान शायर इतने ज़यादा प्रभावित थे कि उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ में शे’र पढ़ने की कोशिश किया करते थे।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि बीसवीं शताब्दी में अली में सिकंदर जिगर मुरादाबादी ने अपनी ग़ज़लों की बुनियाद पर पूरी दुनिया में मुरादाबाद को साहित्यिक पहचान दिलवाई। जिगर ने अपना रंग-ओ-आहंग ख़ुद तय किया उन्होंने शायरी में किसी की पैरवी नहीं की। उन्होंने इश्क़ किया और सिर्फ इश्क़ किया। इश्क़ के रास्ते में जितने पड़ाव आये हर पड़ाव से उनकी शायरी का नया दौर शुरू हुआ। जिगर ने कभी बनावटी शायरी नहीं की बल्कि वह जिस दौर से गुजरे और जो उन्होंने महसूस किया उसे शेर की शक्ल में पेश कर दिया। जिगर की शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष जिगर मुरादाबादी जी जैसे ऐतिहासिक शायर को पढ़ना, उनकी रचनाओं को  किसी न किसी माध्यम से सुनना अर्थात् शायरी के एक पूरे युग से जुड़ना, उससे  साक्षात्कार करना।
युवा शायर नूर उज़्ज़मां नूर ने कहा कि यह कहना ग़लत होगा कि जिगर सिर्फ़ इश्क़ो मस्ती के शायर है। बेशक़ जिगर शराब औ शबाब में डूबे हुए हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे अपने आसपास के माहोल से बे ख़बर हैं। वो कहते बंगाल जैसी नज़्म भी कहते हैं जिसमें उस वक़्त की अंग्रेज़ी सरकार को तंक़ीद का निशाना बनाते हैं। उन्होंने "गांधी जी की याद में" " ज़माने का आक़ा गुलामे ज़माना" "ग़ुज़र जा" "ऐलाने जम्हूरियत" जैसी नज़्में भी कही हैं। इन नज़्मों से हमें उनके सियासी शऊर का पता मिलता है। 60 साल गुज़र जाने के बाद भी अगर जिगर के शाइरी में आज भी नये पहलू तलाश किये जा रहे हैं तो ये उनके अज़ीम शाइर होने की ही निशानी है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि जिगर मुरादाबादी भी कई दूसरे बड़े शायरों की तरह ये भ्रम खड़ा करते हैं कि बेहतरीन शायरी का रास्ता शराबखाने से होकर गुज़रता है। जिगर साहब की शायरी को देखें तो उसमें अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। जिगर आशिक़ मिज़ाज इंसान थे। उन्होंने मेहबूब को टूटकर चाहा। उनके नाम के आगे लिखा मुरादाबादी हमें ये गर्व कराता है कि जिगर साहब हमारे हैं और अपने कलामों से हमेशा हमारे भीतर ज़िन्दा रहेंगे।
युवा कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि जिगर साहब की परंपरागत शाइरी हुस्न,इश्क ,ग़म और सादगी में लिपटी  और आधुनिकता का टच लिये हुए है।उनकी रिवायती ग़ज़लों का बेपनाह हुस्न जब चाहने वालों के बीच आया तो दीवानों के मेले लगने लगे।जिगर साहब का मस्तमौला और बेपरवाह ज़िंदगी जीने का अंदाज़ उनकी कलम में भी दिखता है। जब जब दीवाने मुहब्बत करेंगे, तब तब जिगर साहब के शेर पढ़कर ही मुहब्बत के दरिया में  पहला गोता लगाकर ,अपनी मुहब्बत का आगाज़ करते हुए, मुकम्मल करने की कसमे खायेंगे। जिगर मुरादाबादी शाइरी के आसमान में  चमकते रहेंगे।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि आली मोहतरम जिगर मुरादाबादी बीसवीं सदी के मुकम्मल गजल लिखने वाले शायर माने जाते हैं। साधारण शिक्षा के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उन्हें सम्मान स्वरूप डी-लिट की उपाधि से नवाजा। 'जिगर' जब शेर कहना शुरू करते तो लोगों पर जादू सा छा जाता। जिगर उन भाग्यशाली शायरों में से हैं जिनकी रचना उनके जीवनकाल में ही 'क्लासिक' माने जाने लगी।           
युवा और साहित्यिक पत्रकार अभिनव चौहान ने कहा कि जिगर मुरादाबादी शायरों को पेमेंट देने की हिमायत करने वाले पहले शायर थे। मुशायरों में उनसे पहले किसी ने यह मांग नहीं की थी। लेकिन उन्होंने अपने कलाम पेश करने की एवज़ में पेमेंट की परंपरा शुरू की। अतिश्योक्ति न होगी यह कहना कि इसी चलन के कारन सिनेमा में गीतकारों को पूरा सम्मान और बेहतर पारिश्रमिक दिया जाने लगा था। मोहब्बत और अना के शेरों में अक्सर उनका हवाला दिया जाता है।

:::::::::प्रस्तुति::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

सोमवार, 7 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु की दस ग़ज़लों पर ''मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" द्वारा ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा


    वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह  'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा  'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 5 व 6 सितंबर 2020 को मुरादाबाद के युवा शायर मनोज वर्मा मनु 
की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सबसे पहले मनोज वर्मा मनु द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं-

(1)

खाक़ दिल की दवा करे कोई
जब न मरहम शिफा करे  कोई

कोई तो हो कि ग़म की बात करे
ज़ख्म दिल का हरा  करे  कोई

इश्क़ में क्या सुकूँ  मिला  हमको
काश ये  मशवरा   करे   कोई

आप  की  रहमतें  ही  इतनी  हैं
किस  तरह  हक़  अदा करे कोई

लाख कोशिश करें भुलाने की
फिर तेरा तज़किरा करे कोई

क़ौल पर मुस्तनद रहे अपने
और वादा  वफ़ा  करे  कोई

बुत-परस्त अब नहीं रहे हैं हम
अब न हमसे गिला  करे  कोई

(2)

खा रहा सबको यही मुंह का निवाला आजकल
हम पतंगे हर तरफ़ झूठा उजाला आजकल

हैं बड़ी खुश फ़हमियां मेहरूमियों के बीच भी
किस क़दर अंदाज़ है अपना निराला आजकल

कौन कहता है हंसी अब लापता हो जाएगी
कौन रोता है बज़ाहिर बात वाला आजकल

हादसों में जिंदगी घुटनों तलक तो आ गई
और इन मजबूरियों ने मार डाला आजकल

झूठ बिक जाता है हाथों हाथ अच्छे दाम में
और सच्चाई का मुंह होता है काला आजकल

हाँ मुझे अहसास होता है  कि तू नज़दीक है
दें रही हैं खुशबुएँ तेरा हवाला  आजकल

(3)

कभी जो हक़ किसी का काटता है
जमीरो-ज़र्फ़ खुद का काटता है

सियासी अस्लियत में हो गया वो
जो अस्ली  है वो  मुद्दा  काटता है

बज़ाहिर जो हिमायत में खड़ा था
गला अब खुद हमारा काटता ह

दिले-हस्सास भी नादाँ है कितना
वफ़ा करता है ख़दशा काटता है

कभी जज़्बात की रौ में न बहना
गरम लोहे को ठंडा काटता है

नज़र का फेर है या फिर हक़ीक़त
बिकाऊ वक़्त अच्छा काटता है

ज़मीरो-ज़र्फ़ का तो ये है साहिब
जो रखता है वो घाटा काटता है

अदालत किस क़दर अंधी हुई है,
कि पैसा हक़ का क़िस्सा काटता है

(4)

हमारी क़ुव्वतों से भी सिवा हैरान रखता है
कि अपने फैसले से वो हमें अनजान रखता है

हज़ारों किस्म के दुनिया मे भरता रंग भी है वो
हज़ारों बार दुनिया भी वही  वीरान रखता है

जिन्हें हम सुन नहीं सकते जिन्हें छू भी नहीं सकते
उसी की दस्तरस में है वो सब में जान रखता है

अज़ीज़ों में नहीं कोई रक़ीबों  में  नहीं कोई
मगर वो रहमतों में रहम दिल  इंसान रखता है

मिरे रब शुक्रिया सद शुक्रिया सद शुक्रिया तेरा
तू ही दोनों जहां मेरे लिए आसान  रखता है

उसे जितने भी सजदे हों 'मनु' कम है इबादत में
हमारे वास्ते क्या ख़ूब वो मीज़ान  रखता है

(5)

चाह में उसकी न जाने क्या मुक़द्दर हो गया
मंजिलों का एक मुसाफिर एक पत्थर हो गया

दर्द जो लेकर किसी का बाँटता खुशियां रहा
एक दरिया से वही इंसाँ समंदर  हो गया

जीतने को सरहदें जीती सिकंदर ने मगर
जो दिलों को जीत पाया वह कलंदर हो गया

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का यह असर
दिल हमारी जान का खुद ही सितमगर हो गया

एक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की
मकतबे-रिश्वत यहां हर एक दफ्तर हो गया

मैं बज़ाहिर तो बहुत ही नर्मो - नाज़ुक था मगर
किस तरह टेढ़ा मेरे क़ातिल का खंजर हो गया

हौसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु'
आग में तापे गए कुंदन से  बेहतर  हो गया

(6)

ज़मीं पे पांव फलक पे निगाह याद रहे
मियाँ बुज़ुर्गों की ये भी सलाह याद रहे

अगर हो ग़ैर से तक़रार बात दीग़र है
मगर हो भाई से तो बस निबाह याद रहे

करें जो नेकियाँ उनको भुला भी सकते हैं
मगर गुनाह से तौबा गुनाह याद रहे

नवाज़ता है वही मत गुमान में डूबो
कि कर वो देगा कभी भी तबाह  याद रहे

रहम पसन्द बनो ये पसन्द है उसको
मुआफ़ियों में है रब की पनाह  याद रहे

हमेशा मनु रहे दिल में ख़्याल मालिक का
कभी बिगड़ने न देगा ये राह याद रहे

(7)

उसे खोने का ग़म ही उसको बतलाने नहीं देता
ये ख़दशा क्यों मेरे दिल से खुदा जाने नहीं देता

हमें अपनी तरक्की पर बशर्ते नाज़  हो कितना
मगर जो उसका रुतबा है वो  इतराने नहीं देता

उसे हक़ है कि मुझको आज़माए अपनी शर्तों पर
मुझे इतना यकीं है मुंह की वो  खाने नहीं देता

ये क़ुदरत है फकत उसकी कि हर जा सब्ज़ बिखरा है
वगराना ज़िन्दगी क्या गर वो अफ़साने नहीं देता

ग़ुरूर इतना है तुझको शम्म: अपने नूर पे लेकिन
ये जज़्बे जां निसारी गर वो परवाने नहीं देता?

ये ख़ुद मुख्तारियत उलझा रही है पर निज़ाम उसका
किसी शय को किसी पर भी सितम ढाने नहीं देता

(8)

हां न पैरहन जाए
और न ही कफ़न जाए

नेकियों बताओ तो
क्या किया जतन जाए

आ गया है दुनिया में
अब कहां हिरन जाए?

तू खुदा नहीं लेकिन
तू खुदा न बन जाए

है अदब शनासा जो
गंगा-ओ-जमन जाए

देर तक ख़ुशी फैले
दूर तक अमन जाए

अब  वही  ठिकाना है
जिस गली सजन जाए

रूह में बसा जब से
अब न बांकपन जाए

(9)

तेरे ख़याल में बैठे हुए हैं मुद्दत से,
हम अपने आप में उलझे हुए हैं मुद्दत से,

अना की ख़ैर हो, सूरत कोई निकल आए
कि इस हिसार में जकड़े हुए हैं मुद्दत से

बिखर न जाएं ये तस्वीरे-आरज़ू के सदफ़
बड़ी संभाल के रख्खे हुए हैं मुद्दत से

खुदा के वास्ते कोई समेट ले हमको
कि हम ज़मीन पे बिखरे हुए हैं मुद्दत से

खुदा बराए करम रास्ता दिखा उनको
ये राहबर ही जो भटके हुए हैं मुद्दत से

चले भी आओ कि फिर से बहार आ जाए
चमन निगाह के उजड़े हुए हैं मुद्दत से

तेरे ही नूर की सहबा में मस्त है यह नज़र
गिलास मेज़ पे रक्खे हुए हैं मुद्दत से

(10)

काश ऐसा कमाल हो जाता
वो मेरा हम ख्याल हो जाता

देख लेता निगाह भर के अगर
दिन मेरा बेमिसाल हो जाता

हाथ उठते ही बस दुआ के लिए
और पूरा सवाल हो जाता

छेड़ता मैं कभी शरारत से
उसका चेहरा गुलाल हो जाता

दूर रख कर किसे परखता मैं
मेरा जीना मुहाल हो जाता

आपकी बात टालता कैसे
चाहतों में न बाल हो जाता

कौन आता मुझे मनाने को
मैं अगर बद-ख्याल हो जाता

आंख में अक्स तैरता तेरा
आईना-ए-जमाल हो जाता
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात  नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि मनोज मनु एक निष्कलुष मन के सीधे सच्चे इंसान हैं उनका यही अक्स उनकी शायरी ,गीतों दोहों में झलकता है।
एक अच्छा कवि या शायर बनने के लिए जो प्राथमिक शर्त है एक अच्छा इंसान होना ,वह गुण उनके व्यक्तित्व की पहचान में शामिल है। बाकी प्रतिभा, निपुणताऔर अभ्यास में भी प्रतिभा उनके पास है, निपुणता हासिल करनी है अभ्यास की निरंतरता से किसी हद उसे भी हासिल किया जा सकता है, बस उसके साथ आवश्यक है किसी उस्ताद या गुरु की वात्सल्य पूर्ण अशीषवती छाया। अधिक से अधिक साहित्य का अध्ययन। वे अभी वनफूल हैं। उनमें सुगंध भी है अपनी लेकिन उस सुगंध से शायद अभी वे स्वयं परिचित नहीं हैं।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि कोई शक नहीं कि मनोज मनु के अंदर आने वाले वक़्तों का एक होनहार शायर मौजूद है। मनोज के पास ये सलाहियत मौजूद है। उनके बहतरीन विवेक के रूप में पटल पर प्रस्तुत उनकी ग़ज़लों में पाठक का दामन थामने लायक शक्ति महसूस की जा सकती है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नकवी ने कहा कि मनोज 'मनु' अपने बड़ों के प्रति अत्यधिक विनयशील शायर और कवि है जो अपनी ग़ज़लों, गीतों और दोहों में परिपक्वता की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है। जहाँ तहाँ उर्दू शब्दों को अपनी रचनाओं में निस्संकोच प्रयोग करने वाला यह रचनाकार हिन्दी भाषा पर भी  सशक्त पकड़ रखता है। प्रेम या रोमांस की शायरी से हट कर रचनाकार सामाजिक सरोकारों के प्रति अधिक अाकर्षित है। जिसके दर्शन प्राय: सभी रचनाओं में परिलक्षित होते हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि मनोज मनु हमारे शहर के होनहार शायर हैं। उनकी शायरी परंपरा और आधुनिकता का संगम है। वह बहुत सोच-समझकर शेर कहते हैं। वह चूंकि व्यवहार कुशल व्यक्ति हैं, इसलिए उनकी शायरी में भी व्यवहार की वही सादगी छिपी हुई है। अपनी शायरी के कैनवास पर वह ख़ुद भी हैं, समाज भी है, राजनीति भी है, घर परिवार भी हैं और वर्तमान हालात का चित्रण भी है। सामाजिक चिंतन की ड्योढ़ी पर मनु कहीं-कहीं शिक्षक की भूमिका में भी आ जाते हैं और समस्याओं के साथ-साथ निदान का रास्ता भी सुझाते हैं। वह अपनी शायरी के प्रारंभिक दौर से गुज़र रहे हैं, लेकिन उनका यह प्रारंभिक दौर भी बेहद ख़ूबसूरत है।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज वर्मा मनु जी द्वारा प्रस्तुत रचनाएं सराहनीय हैं । वह अपनी रचनाओं के माध्यम  से समाज में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हैं ।भूमंडलीकरण के दौर में लुप्त होती जा रही सम्वेदनाओं पर चिन्ता व्यक्त करते हैं वहीं अपनी संस्कृति और परंपराओं से भी जुड़े रहने का आह्वान करते हैं।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मनोज मनु जी की ग़ज़लें परंपरागत शायरी की मिठास लिए हुए हैं, इसलिए ग़ज़ल के मूल भाव श्रंगार की चहलकदमी उनके अश'आर में यहाँ-वहाँ स्वभाविक रूप से दिखाई दे ही जाती है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ और सिर्फ श्रंगार या प्रेम की प्रचुरता हो, उनकी शायरी में जीवन जगत के अनुभव संपन्न यथार्थ भी उपस्थित हैं। उनकी ग़ज़लों में कहीं कहीं सूफ़ियाना रंग भी अपनी एक अलग ही खुशबू लिए उपस्थित नज़र आता है।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मनु जी की शायरी का उजला पहलू उर्दू शब्दों का इस्तेमाल है जिसके लिए वह खूब कोशिश करते हैं, जो सराहनीय है। समय के साथ साथ इसमें और परिपक्वता आएगी और शब्दों के इस्तेमाल पर पकड़ मज़बूत होती जाएगी। मनु जी अपनी बात कहने में खूब सक्षम है। उनका कहन स्पष्ट है। उनके नज़दीक शायरी सिर्फ दिल लगी और वक्त गुजारी का साधन नहीं बल्कि समाज को सही राह दिखाने का माध्यम भी है।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि मनु जी की तहरीरें उर्दू की चाशनी में डूबी होती हैं और एक ख़ास रवानी रखती हैं। मनु जी समाज का अक्स अदब के आइने में देख कर उस से शायरी बर-आमद करते हैं। सब से अच्छी बात ये कि शेर जैसे उतरते हैं, वैसे ही तशकील पाते हैं। यानी ख़्याल से बे-ज़रूरत छेड़खानी नहीं दिखती। फ़िक्र नैचुरल रहती है, आर्टिफिशल नहीं लगती। यानी ख़्याल को शक्ल देने के लिए लफ़्ज़ों के इन्तेख़ाब और उन के प्लेसमेंट पर काम करने की गुंजाइश नज़र आती है। कई जगह मिसरे अपने ख़्याल को अपनी पूरी क़ुव्वत के साथ भी अच्छी तरह ज़ाहिर नहीं कर पाते, यानी ख़्याल तो वज़्नी होता है, मगर मिसरा हल्का रह जाता है।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि महानगर मुरादाबाद की गौरवशाली ग़ज़ल परम्परा के सशक्त प्रतिनिधि, भाई मनोज 'मनु' जी ऐसे उत्कृष्ट रचनाकारों में से हैं, जिनकी लेखनी संवेदना के प्रत्येक स्वरूप को भीतर तक स्पर्श करने की शक्ति रखती है। भाई मनोज 'मनु' जी की ग़ज़लें व अन्य रचनाएं बोलती हैं तथा बोलते-बोलते कब अन्तस को स्पर्श कर जायें, श्रोताओं/पाठकों को पता ही नहीं चलता।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि ग़ज़ल का क्षेत्र मनु जी का अपनी रुचि के आधार पर है। आम तौर पर बातचीत में भी वह उर्दू के अल्फ़ाज़ का प्रयोग करते हैं। यही उनकी प्रस्तुत की गई ग़ज़लों में भी दिखाई देता है। उर्दू के थोड़े से मुश्किल शब्दों का प्रयोग हुआ है। कुछ ग़ज़लों की ज़मीन बहुत अच्छी है। मनु जी की हिंदी रचनाएँ भी गोष्ठियों में सुनी हैं। इसका अर्थ है कि वह भाषा के हर मैदान पर खेलते हैं।
युवा शायर  नूर उज्जमा ने कहा कि मनोज मनु साहिब के कलाम को पढ़ते हुए महसूस होता है कि उन्हें शाइरी से दिली मुहब्बत है। शायद ग़ज़ल में उन्होंने अपने सफ़र का आगाज़ हाल ही में किया है। एक ऐसे सफ़र का जो न सिर्फ तवील है बल्कि पुरख़ार भी है। ऐसे में एहतियात लाज़िमी है जिसकी और बुज़ुर्गों और दोस्तों ने इशारा भी किया है। मुझे लगता है कि छोटी बहरों में कहे गये उनके ज़्यादातर मिसरे ख़ूबसूरत हैं, या यूँ कहे काफ़ी आसानी से कहे गये मालूम होते है। हालांकि बड़ी बहरों में कहे गये अशआर में शायद उन्हें ये आसानी नहीं रही होगी। वहाँ मेहनत ज़्यादा दिखाई देती है।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि मनु की ग़ज़ल का लहजा इस्लाही है यानी वह ग़ज़ल में अपने साथ के लोगों और अपने बाद के लोगों की तरबियत करते हुए नज़र आते हैं। उनकी शायरी में इश्क लगभग न के बराबर है और अगर है तो अभी बहुत कम है। अभी यह हल्के से छूकर गुज़र गया है। इसके पीछे वज्ह शायद यह हो कि मनु शायरी को इश्क़ का इज़हार न मानते हों और उनके नज़दीक शायरी सिर्फ इस्लाह का ज़रिया हो। ज़माने को अपने अंदाज़ से देखने की ललक ज़रूर है मगर अपना नज़रिया दूसरों पर ज़ाहिर करने का एतमाद भी कम दिखाई देता है। अभी उनकी शायरी शुरुआती मरहलों में है इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक़्त में उनकी शायरी में मज़बूती आएगी और यह शायरी अपनी तरफ खींचने की ताक़त रखेगी।

:::::::प्रस्तुति::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद।
मो० 7017612289