वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा 'एक दिन एक साहित्यकार' की श्रृंखला के अन्तर्गत 3 व 4 अक्टूबर 2020 को मुरादाबाद की युवा साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की दस ग़ज़लों पर ऑन लाइन साहित्यक चर्चा का आयोजन किया गया । सबसे पहले मीनाक्षी ठाकुर द्वारा निम्न दस ग़ज़लें पटल पर प्रस्तुत की गयीं----
(1)
हथेली पर नया सूरज किसी ने फिर उगाया है
अँधेरा दूर करने को उजाला साथ लाया है
पकड़ना जब भी चाहा हर खुशी को हाथ से हमने
तभी तितली सा उड़कर वक्त़ ने हमको रुलाया है
जगह थोड़ी सी माँगी थी किसी के दिल में रहने को
नहीं खाली मकां उसका, यही उसने बताया है
भरोसा करना मत क़िस्मत के लिक्खे फैसलों का तुम
हमेशा हौसलों ने जीत का मंज़र दिखाया है
मै लिख दूँ आसमां पर नाम अपनी कामयाबी का
बुज़ुर्गों ने सदा मेरे मुझे उठना सिखाया है
(2)
तीर दिल पर चला कर गये हैं
मुझसे दामन छुड़ा कर गये है
हर दुआ दिल ने की जिनकी ख़ातिर
आज वो ही रुला कर गये हैं
छोड़ना ही था गर यूँ सफ़र में
ख़्वाब फिर क्यूँ सजा कर गये हैं
देने आये थे झूठी तसल्ली
चार आँसू बहा कर गये हैं
हैं पशेमाँ वो अपनी ज़फा से
इसलिए मुँह छुपा कर गये हैं
(3)
दोस्ती करके किसी नादान से
हमने झेले हैं बड़े तूफ़ान से
दिल में रहते थे कभी जो हमनवा
आज क्यूँ लगते भला मेहमान से
साथ मेरे तू नहीं तो कुछ नहीं
फ़िर गुलिस्तां भी लगे वीरान से
याद ही बाक़ी रही अब दरमियां
दिल के टूटे हैं कहीं अरमान से
ख़ुदक़ुशी करना नहीं यूँ हारकर
मौत भी आये मगर सम्मान से
वो गये दिल तोड़कर तो क्या हुआ
ज़िंदगी फिर भी चलेगी शान से
तंगदिल देंगे तुम्हें बस घाव ही
आरज़ू करना सदा भगवान से
(4)
हँसा के मुझको रुला रहा था
छुड़ा के दामन वो जा रहा था
उसी ने बदली हैं क्यूँ निगाहें
जो कसमें उल्फ़त में खा रहा था
हुआ किसी का न आज तक जो
वफ़ा के क़िस्से सुना रहा था
मिटाने को मेरी हर निशानी
ख़तों को मेरे जला रहा था
कभी न झाँका जो आइने में
वो मुझ पे उँगली उठा रहा था
(5)
दिल ही दिल में उनको चाहा करते हैं
सीने में इक तूफां पाला करते हैं
जब आये सावन का मौसम हरजाई
यादों की बारिश में भीगा करते हैं
कटती हैं अपनी रातें तो रो-रो कर
वो भी शायद, करवट बदला करते हैं
होते कब सर शानों पर दीवानों के
फिर भी क्यूँ खुद को दीवाना करते हैं
लिक्खें जितने नग़में उनकी यादों में
हँसकर हर महफ़िल में गाया करते हैं
(6)
रस्म उल्फ़त की कुछ तो अदा कीजिए
चाहिए ग़र वफ़ा तो वफ़ा कीजिए
इश़्क करने का अंजाम होता है क्या
दिल के बीमारों से मशविरा कीजिए
तोड़कर सारे रिश्ते चले जाएं पर
हाथ की इन लकीरों का क्या कीजिए
हो दग़ाबाज़ी जिनके लहू में घुली
ऐसे लोगों से बचकर रहा कीजिए
कुछ भरम प्यार का दरमियां ही रहे
ख्व़ाब में ही सही पर मिला कीजिए
(7)
खोकर मुझको रोया होगा
रातों को भी जागा होगा
दिल जो मेरा तोड़ा तूने
तेरा दिल भी टूटा होगा
वादों की तहरीरों में भी
सच का किस्सा झूठा होगा
होगी महफ़िल जब भी तेरी
चर्चा मेरा होता होगा
अश्कों के खारे पानी से
गम का दरिया हारा होगा
(8)
आइना सच हज़ार बोलेगा
इक नहीं बार-बार बोलेगा
क़त्ल होगा जो जिस्म मेरा ये
रूह का तार-तार बोलेगा
सिल गये लब,नज़र झुका ली है
आज तो शर्मसार बोलेगा
लुट गये हम वफ़ा की राहों में
प्यार में कर्ज़दार बोलेगा
मुंतज़िर थे कभी हमारे वो
बस यही राज़दार बोलेगा
(9)
कोई अपना भी रहनुमा होता
दर्द इतना न फिर मिला होता
बैठे हो सर झुकाए गै़रो में
तीर अपनों का सह लिया होता
मुब्तिला थे तेरी ख़ुशी में हम
राज़ ग़म का भी तो कहा होता
तोड़ देते वो दिल मेरा बेशक
मशवरा मुझ से कर लिया होता
भूल जाते हैं इश्क़ करके वो
ये हुनर हमको भी मिला होता
(10)
रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये
इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये
ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से
मरती दुनिया को मालिक दवा दीजिये
बंद कमरों में घुटने लगी साँस भी
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये
जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं
कै़द से हर परिंदा छुड़ा दीजिये
इन गजलों पर चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि मीनाक्षी में लेखन के प्रति ललक भी है और उनके भीतर ऊर्जा भी है। पटल पर प्रस्तुत दस ग़ज़लें जहां अपनी भाव संपदा से भरपूर हैं, वहीं मुझे यह विशेष लगा कि वे अपने आकार में उतनी ही हैं जितना कि ग़ज़ल को होना चाहिए। जैसा कि जानकारों ने माना है कि अभी उनकी शुरुआत है। शुरुआत है तो भाव दृष्टि से संतोषजनक है।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि बहुत अच्छी कहन है। ईमानदारी और साफगोई के साथ सादा बयानी ने दिल में जगह बनाई है। अभ्यास हर कमी को दुरुस्त कर देगा। एक उभरती हुई मजबूत शायरा का साहित्य जगत में हार्दिक स्वागत है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि मुझे लगा कि मीनाक्षी छन्द युक्त लेखन पसन्द करती हैं जो ग़ज़ल के लिये अनिवार्य शर्त है। पटल पर उनकी दस ग़ज़लें मेरी ये बात सिद्ध करने को पर्याप्त हैं। उनकी भाषा की सरलता उनके लेखन का क्षितिज विस्तृत करेगी इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण उनकी ये दस ग़ज़लें हैं।
मशहूर शायर डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने कहा कि उनकी ग़ज़लें पढ़कर ऐसा महसूस होता है कि वह परिश्रम से कतराने वाली नहीं, बल्कि चुनौतियों का सामना करने की हिम्मत रखती हैं और उसमें सक्षम भी दिखाई देती हैं। ग़ज़ल जैसी कठिन काव्यविधा को साधना बहुत मुश्किल है, लेकिन वह इस मुश्किल को आसान बनाने में पूरी लगन के साथ जुटी हैं। मैं उनकी इस लगन की सराहना करता हूं।
वरिष्ठ कवि आनन्द गौरव ने कहा कि मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर पारदर्शी ग़ज़ल की हस्ताक्षर का साहित्य जगत में पूर्ण परिपक्वता पर स्वागत व सम्मान निश्चित ही होगा। मीनाक्षी जी को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि पटल पर उनकी 10 ग़ज़लें प्रस्तुत की गई हैं । सभी ग़ज़लों में वह बड़ी सहजता और सादगी से अपनी बात कहती हैं। वह साहित्यिक आकाश में एक नया सूरज उगाने के हौसले के साथ अपनी भावाभिव्यक्ति का उजाला फैलाना चाहती हैं । उनके भीतर अश्कों के खारे पानी से गम के दरिया को हराने का भरपूर जज्बा है ।वह किस्मत के लिखे फैसलों पर भरोसा नहीं करती बल्कि अपने सीने में एक तूफ़ां पालकर आसमां पर अपनी कामयाबी का नाम लिखना चाहती हैं।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी की ग़ज़लें पहली बार पढ़ने को मिली। अभी तक काफी गोष्ठियों में उनके गीत ही सुनने को मिले थे। इन ग़ज़लों को पढ़कर लगा कि ग़ज़ल लेखन में भी वे उतनी है सिद्ध हस्त हैं जितनी कि गीत लेखन में। प्रस्तुत ग़ज़लों में कथ्य को ग़ज़ल के मिजाज़ के अनुरूप ही पिरोया गया है ताकि ग़ज़ल की गजलियत बरकरार रहे।प्रेम की गहरी अनुभूतियों के साथ साथ जीवन की कटु सच्चाइयों को भी मीनाक्षी जी ने बहुत ही खूबसूरती के साथ अपनी ग़ज़लों में स्थान दिया है।. नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि मीनाक्षी जी की रचनाएं पहली बार पढ़ रहा हूँ जो ग़ज़लों के रूप में प्रस्तुत की गई हैं, हालांकि काव्य-गोष्ठियों में कई बार उन्हें सुना है। आज मुरादाबाद लिटरेरी क्लब के पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाएं उनके उजले साहित्यिक भविष्य की आहट देती हैं और मुरादाबाद को भविष्य की एक सशक्त छांदस कवयित्री मिलने की संभावना को बलवती बनाती हैं।कवि श्रीकृष्ण शुक्ल ने कहा कि उनकी सभी गज़लें मैंने पढ़ीं, और यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि उनका गज़ल कहने का अंदाज बिलकुल सरल सीधा सादा और साफगोई वाला है। भाषा अत्यंत सरल और कहन स्पष्ट है। ज्यादातर गज़लें सामाजिकता और व्यावहारिकता पर केंद्रित हैं। बीच बीच में अत्यंत प्रेरक संदेश भी उनमें निहित हैं।
युवा शायर फ़रहत अली ख़ान ने कहा कि मुरादाबाद में नयी पीढ़ी की चुनिंदा महिला साहित्यकारों में से एक मीनाक्षी जी की ग़ज़लें उम्मीदें जगाती हैं। इन की शायरी में फ़िक्र की गहरायी के निशानात मौजूद हैं। फ़न आते-आते आता है, सो वक़्त और मेहनत के साथ वो बुलंदी ही पाएगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि बहन मीनाक्षी ठाकुर जी का रचनाकर्म इस बात को स्पष्ट दर्शा रहा है कि एक और ऐसी बहुमुखी प्रतिभा की धनी कवयित्री/शायरा का साहित्यिक पटल पर पदार्पण हो चुका है जो भविष्य में अनेक ऊँचाईयों का स्पर्श करेगी। मैं व अन्य अनेक साथी रचनाकार विभिन्न कार्यक्रमों में उनकी प्रतिभा के दर्शन कर चुके हैं। सीधी व सरल भाषा-शैली में प्रभावपूर्ण ढंग से अपनी बात कह देने वाली यह बहुमुखी प्रतिभा निश्चित ही समय के साथ और भी निखरेगी।
युवा साहित्यकार मनोज वर्मा 'मनु' ने कहा कि साहित्य की अन्य तमाम विधाओं में बेहतर शुरूआत करते हुए गद्य और पद्य में उत्तरोत्तर हाथ आजमाते हुए क्रमशः मुक्तक ....फिर शेरो -शाइरी की तरफ मुत्तासिर होना यह बताता है कि इनके ज़ेहन में शुरू से ही ग़ज़लियत के अंकुर विद्यमान रहे हैं... बस उनको आकार देने के लिए जो पर्याप्त वातावरण, प्रोत्साहन और प्लेटफॉर्म की आवश्यकता थी वह "साहित्यिक मुरादाबाद" वाट्स एप समूह के रूप में समय रहते इन्हें मिला जिसके सबब आज उनकी लगन परिश्रम और हौसले के परिणामस्वरूप इस सम्मानित समूह पर समीक्षा हेतु साहित्य की अन्य विधाओं के इतर 10 गजलें प्रस्तुत की गई हैं।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि आज पटल पर उनकी दस ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं किंतु मैंने उन्हें मुक्तक, छन्द, कविताएं और कहानी कहते हुए भी सुना है। रचनाओं में भाव और उपयुक्त शब्दों का प्रयोग उनकी ख़ासियत है, जैसा कि आज की दस ग़ज़लों में हमें देखने को भी मिला है। ग़ज़लों की तरन्नुम और उनका प्रस्तुतिकरण श्रोताओं को आकर्षित करने वाला होता है। उनकी सभी दस ग़ज़लें अलग-अलग विषयों और भावों को लिये हुए हैं।
हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मीनाक्षी ठाकुर जी ने अपनी आरंभिक रचनाओं से ही जता दिया है कि उन्हें साहित्य के संस्कार उस पावन भूमि की हवाओं से,परिवेश से स्वत: ही प्राप्त हैं और साथ ही उस प्राप्त अंकुरण को गौरवशाली स्तर तक ले जाने के लिए अपनी लगन,सादगी,साफगोही,कहने की निर्भीकता,मेहनत और वरिष्ठ रचनाकारों की सलाह पर विनम्रता से मनन करने जैसी अपनी खूबियों के चलते जो न केवल सर्वथा सक्षम हैं बल्कि इसके लिए प्रयासरत भी हैं।आज के हालात को समेटती हुई,निराशाओं में आशाओं की राह तलाशती,व्यवहारिक समाधान सुझाती इस सामयिक ग़ज़ल को रखकर दस ग़ज़लों के इस शानदार बुके में अन्तिम ग़ज़ल से सुन्दर रैपिंग करते हुए भी मीनाक्षी दी ने अपनी विशिष्टता प्रस्तुत कर दी है।
युवा कवि दुष्यंत 'बाबा' कहा कि आप अंग्रेजी विषय के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरांत भी हिंदी की एक प्रखर लेखिका है। हिंदी और उर्दू के प्रति इतना स्नेह/लगाव इनके रचनाकर्म में सुस्पष्ट प्रतीत होता है। इनकी रचनात्मकता का प्रदर्शन इनकी गज़लों और कविताओं में देख ही चुके है ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि सबसे अहम बात यह है कि मीनाक्षी का मिज़ाज ग़ज़ल का है। यानी यह महसूस नहीं होता कि उन्होंने ज़बरदस्ती ज़ुबान का स्वाद बदलने के लिए ग़ज़ल कहने की कोशिश की हो। क्योंकि उनका मिज़ाज ग़ज़ल का है इसलिए उनके यहां ग़ज़ल वाकई ग़ज़ल के रूप में नजर आ रही है। यह शुरुआती ग़ज़ल है लेकिन इस ग़ज़ल में बहुत रोशन इमकानात हैं। मीनाक्षी ने ग़ज़ल में किसी तरह अपने आप को मनवाने की कोशिश नहीं की है। यह उनकी सादगी है जो उनके फ़न में और उनकी ग़ज़ल में भी नज़र आती है। ज़ुबान बहुत सादा है। हिंदी और उर्दू के सांझे अल्फ़ाज़ उनकी ग़ज़ल में बहुत आसानी से आ रहे हैं जो कि एक बहुत पॉज़िटिव बात है।
✍️ ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
"मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" मुरादाबाद
मो० 8755681225
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