वाट्सएप पर संचालित साहित्यिक समूह
"प्रगति मंगला",एटा की ओर से प्रत्येक शनिवार को
"साहित्य के आलोक स्तम्भ" कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है । इसके तहत याद किया जाता हैं दिवंगत साहित्यकारों को। इसी श्रृंखला में शनिवार 7 नवंबर 2020 को मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार , इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता
पुष्पेंद्र वर्णवाल जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आयोजन किया गया । मुरादाबाद के वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी के संयोजन और जे.एल.एन. कॉलेज के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र जी की अध्यक्षता में पटल प्रशासक नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा मां सरस्वती को नमन और दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम आरम्भ हुआ। यह कार्यक्रम 7 नवंबर पूर्वाह्न 11 बजे से 8 नवंबर पूर्वाह्न 11बजे तक जारी रहा। पटल के संस्थापक बलराम सरस और प्रशासक नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा आभार अभिव्यक्ति से कार्यक्रम का समापन हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता पुष्पेंद्र वर्णवाल का जन्म मुरादाबाद नगर के नबावपुरा मोहल्ले में 4 नवंबर 1946 को हुआ था । श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल न केवल एक उल्लेखनीय साहित्यकार थे बल्कि एक इतिहासकार और पुरातत्व वेत्ता भी थे। मुरादाबाद जनपद के इतिहास के संबंध में उनके खोजपूर्ण लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल की कृतियों में मुक्तक संग्रह- रिमझिम, लघु काव्य - अभीक, ऋषि, खण्डकाव्य - शब्द मौन , विराधोद्धार, प्रबंध काव्य - उत्पविता, सिंधु विजय, गीत- विगीत संग्रह- प्रणय दीर्घा, प्रणय योग, प्रणय बंध, प्रणय प्रतीति, प्रणय परिधि, प्रणय पर्व, नाट्य वार्तिक- बीज और बंजर जमीन, कविता संग्रह - अबला,इतिहास- ब्रज यान की आधार भूमि, समीक्षा- विजय पताका एक विहंगम दृष्टि ,निबंधकार महामोपाध्याय पंडित रघुवर आचार्य , उपन्यास - रामानन्द बाल विरद उल्लेखनीय हैं। आपकी मुरादाबाद के शिक्षण संस्थान, मुरादाबाद के पूजा स्थान और बलि विज्ञान नामक तीन कृतियों का जापानी भाषा में अनुवाद ओसाका(जापान) निवासी प्रसिद्ध हिंदीविद डॉ कात्सुरा कोगा द्वारा किया जा चुका है ।इसके अतिरिक्त आपकी कृति विरोधोद्धार का डॉ भूपति शर्मा जोशी द्वारा संस्कृत और शब्द मौन का ऋषिकांत शर्मा द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है । आपकी कुछ कहानियों व लघुकथाओं का गुजराती व पंजाबी भाषा में भी अनुवाद हुआ है । आपके कृतित्व पर शोध प्रबंध - प्रणय मूल्यों की अभिव्यक्ति :नूतन शिल्प विधान (पुष्पेंद्र वर्णवाल के काव्य लोक में) -जय प्रकाश तिवारी 'जेपेश', पुष्पेंद्र वर्णवाल के विगीत-एक तात्विक विवेचन -डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र, कवि पुष्पेंद्र वर्णवाल और उनका साहित्य - डॉ एस पी शर्मा, विगीत और प्रेयस- राजीव सक्सेना प्रकाशित हो चुके हैं । आपका पत्रकारिता के क्षेत्र में भी एक उल्लेखनीय योगदान रहा ।आपने प्रदेश पत्रिका का संपादन, चित्रक साप्ताहिक का समाचार संपादन किया तथा सिने पायल, फिल्मी जागृति , सागर तरंग के प्रबंध संपादक रहे । विश्व हिंदू सम्मेलन काठमांडू नेपाल द्वारा सन 1982 में, साहू शिव शक्ति शरण कोठीवाल स्मारक समिति मुरादाबाद द्वारा सन 1988 में , हैदराबाद हिंदी अकादमी द्वारा वर्ष 1992 में, जगद्गुरु रामानंदाचार्य पीठ अहमदाबाद द्वारा वर्ष 1994 में, उत्तरकाशी की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था सृजन द्वारा वर्ष 2004 में, तथा हिंदी साहित्य संगम मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2005 में उन्हें सम्मानित भी किया गया।
आचार्य डॉ प्रेमी राम मिश्र ने कहा - सुनाम धन्य पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का कृतित्व चमत्कृत करता है। आप मात्र कवि के रूप में ही विख्यात नहीं रहे हैं ,अपितु कला, संस्कृति ,इतिहास, पुरातत्व ,लुप्त साहित्य के सुधी अन्वेषक आदि के रूप में भी आपने अप्रतिम प्रशंसा अर्जित की है। विविध क्षेत्रों में इतना चिंतन और अनुशीलन अविश्वसनीय सा प्रतीत होता है ।आपकी तत्वान्वेषी प्रतिभा ने साहित्य की महती सेवा की है। गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण जी का यह कथन आप पर पूर्णतः चरितार्थ होता है -कीर्तिःयस्य सः जीवति अर्थात् जिसका यश जीवित है उसी के जीवन की सार्थकता है । आपने कवि के रूप में अतिशय ख्याति अर्जित की है ।आपका प्रचुर काव्य- साहित्य इसका प्रमाण है । आपके द्वारा विरचित प्रचुर साहित्य मुग्ध करता है ।आप एक श्रेष्ठ कवि के रूप में तो प्रतिष्ठित रहे ही निबंध, नाटक, कहानी, उपन्यास, समीक्षा आदि के द्वारा भी अपनी लेखिनी की सामर्थ्य का बोध कराते रहे। विगीत विधा के ततो वे उद्गाता- जन्मदाता हैं ।इंदौर के सुविख्यात कवि -साहित्यकार चंद्र सेन विराटजी ने आपकी विगीत विधा की भूरि भूर प्रशंसा की है। कविता केवल कोरा शब्द व्यापार नहीं है ,उसमें संवेदनात्मक विचारों का संगुफन होना अनिवार्य होता है। जब कविता में शांत, विनम्र ढंग से हल्का तनाव या कंपन संगठित शिल्प के माध्यम से अभिव्यक्त होता है, तो वह सहृदय पाठक को अभिभूत किए बिना नहीं रहती। आपकी कविता अपनी अंतर्वस्तु और संवेदनात्मक अनुभूति के कारण मार्मिक प्रभाव स्थापित करती है। ऐसे महान् साहित्यकार से परिचय कराने वाले मुरादाबाद के यशस्वी ब्लॉगर, पत्रकार, साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी जी ने प्रगति मंगला पटल को धन्य कर दिया है।
वरिष्ठ साहित्यकार
अशोक विश्नोई ने कहा -स्मृति शेष पुष्पेन्द्र वर्णवाल एक जीवट व्यक्तित्व के सशक्त साहित्यकार थे ।इनका जन्म 4 नवम्बर 1946 को हुआ था।पुष्पेन्द्र जी को किसी एक विधा में बांधकर नहीं रखा जा सकता। उन्हें पुरातत्ववेत्ता , गीतकार, समीक्षक, अनुवादक,फ़िल्म पत्रकार, कहानीकार, इतिहासकार, लघुकथाकार , ज्योतिष आचार्य आदि के रूप में जाना जाता है । पुष्पेन्द्र जी को हिंदी साहित्य जगत में " विगीत " के जन्म दाता के रूप में भी जाना जाता है। अनेक लेखकों ने उनको विगीत के जनक के रूप में कोड किया है।इसके अतिरिक्त पुष्पेन्द्र जी प्रणय गीतों के रचियता के रूप में भी एक अलग स्थान रखते थे। उन्होंने अपनी काव्यात्मक श्रद्धांजलि कुछ इस तरह व्यक्त की ---
समकालिक लेखक पुष्पेंद्र गीतकार
जनक हैं विगीतों के प्रेयस सुविचार
आजीवन कविता कर नाम यश कमाया
हिंदी के सेवक को फक्कड़पन भाया
महानगर की धरती पर बोया प्यार
अनुजों पर स्नेह भाव अग्रज को आदर
सत्य निष्ठ रहे, नमन सबको ही आदर
जोड़कर जिए मन से हर मन के तार
युवा लेखकों के तो रहे पथ प्रदर्शक
यदि- गति छंदों में भी बनकर संशोधक
प्रेरित कर बना दिया है रचनाकार
पटल के संस्थापक
बलराम सरस ने कहा - कवि वर्णवाल जी ने गीत की एक नई विधा को जन्म दिया जिसे विगीत कहा गया। वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। छन्द के हर विधान पर उनका सृजन हुआ है। अनेकानेक पुस्तकें प्रकाशित हुई जो हिन्दी साहित्य में अपना योगदान करने की सामर्थ्य रखती हैं। वर्णवाल जी भी फक्कड़ स्वभाव के व्यक्ति थे ।
चर्चित नवगीतकार
योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा - मुरादाबाद के महत्वपूर्ण साहित्यकार थे कीर्तिशेष उमेशपाल वर्णवाल 'पुष्पेन्द्र' जी जिन्होंने गीत, मुक्तक, दोहे सहित कविता के अन्य अनेक प्रारूपों में तो प्रचुर मात्रा में सृजन किया ही, गद्य की भी अनेक विधाओं में महत्वपूर्ण सृजन किया. वह एक समर्थ रचनाकार तो थे ही, साहित्य के अतिरिक्त अन्य कई विषयों के प्रकांड विद्वान भी थे. इतिहास और ज्योतिष के संदर्भ में उन्हें वृहद ज्ञान था और वह अपने तर्कों के समर्थन में तथ्यात्मक प्रमाणों के साथ बहस करने से भी पीछे नहीं हटते थे. यह कहा जाता है कि जब गीत की विकास यात्रा नवगीत की ओर तेज़ी से बढ़ रही थी और नवगीत नई कविता के बरक्स एक आन्दोलन का रूप ले रहा था, उस समय उन्होंने गीत के परिमार्जित स्वरूप "विगीत" का आविर्भाव किया. "पुष्पेन्द्र वर्णवाल के विगीत" शीर्षक से उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ था. अनेक कार्यक्रमों में उनके सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य भी मिला.
वरिष्ठ कवियत्री
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल साहित्याकाश में एक विरल नक्षत्र थे । वह एक महान पुरातत्ववेत्ता, विज्ञान सम्मत अध्यात्म के समर्थक, ऐतिहासिक ग्रन्थों व मनीषियों के अपूर्व अद्भुत शोधकर्ता ,यायावर, ग्रह नक्षत्रों की ज्यामिति फलित ज्योतिष पर अनूठी पकड़ रखने वाले, सनातन धर्म के सच्चे साधक समर्थक,ऋषि परम्परा के पथानुरागी थे। वह हिंदीभाषा के प्रकाण्ड विद्वान तो थे ही विज्ञान के विद्यार्थी होने के कारणअंग्रेजी भाषा पर भी उनकी खासी पकड़ थी परन्तु दैनिक व्यवहार में उन्होंने कभी अंग्रेजी का प्रयोग नही किया । स्वभाव से अद्भुत स्वाभिमानी थे। मिलिट्री की परीक्षा उतीर्ण कर मात्र इसलिए त्याग दी क्योंकि उन्होंने माता ,पिता और हिंदी की सेवा करना प्रथम धर्म समझा। ततपश्चात नगर निगम की जन्म मृत्यु विभाग में लिपिक पद पर कार्य किया । सेवा निवृत्त होने के कुछ माह पूर्व ही अपने स्वाभिमान को सुरक्षित रखते हुए उसे भी त्याग दिया । हिंदी साहित्य में हर छंद विधा पर उनकी लेखनी पारंगत थी अनेकानेक पुस्तकों का सम्पादन ,भूमिकाएं उनके द्वारा लिखी गयी । मेरे भी दो काव्य संग्रह में उनका अमिट आशीर्वाद है । कई शोध भी उन पर हुये हैं । उनके द्वारा रचित गीत, विगीत और महाकाव्य जीवन के पथप्रदर्शक का कार्य भली भांति करने में सक्षम हैं।
बदायूं के वरिष्ठ साहित्यकार उमाशंकर राही ने कहा कि साहित्यक परिचर्चा के अंतर्गत स्मृति शेष विभूतियों को पटल के माध्यम से समाज के सामने लाने का कार्य निरंतर चल रहा है यह देखकर बहुत प्रसन्नता होती है । क्योंकि दिवंगत साहित्यिक विभूतियों को खोजना और खोज करके उनके संबंध में जानकारी हासिल करना उनके परिकर के लोगों को खोजना और उनसे उनके विचार लेना यह अपने आप में बड़ा कार्य है । स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल जी के साहित्य को पढ़कर के लगा कि वह इस धरातल से जुड़े साहित्यकार थे कविता के साथ साथ प्राकृतिक सम्पदा से उन्हें बहुत लगाव था वह एक अच्छे पुरातत्ववेत्ता भी थे ।
रामपुर के वरिष्ठ साहित्यकार
रवि प्रकाश ने कहा साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप समूह के माध्यम से मेरा संपर्क आदरणीय श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल जी से हुआ । डॉक्टर मनोज रस्तोगी जी इस समूह के संचालक है तथा मैं उसमें लेख कविता आदि लिखता रहता था । पुष्पेंद्र वर्णवाल जी मेरे लेख को गंभीरता से पढ़ रहे हैं , इसका पता मुझे तब चला जब उन्होंने एक सुंदर मार्मिक तथा पीठ थपथपाती हुई प्रतिक्रिया के साथ मुझे अवगत कराया । पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का पत्र- प्रतिक्रिया पढ़कर मैं आनंदित हो गया। सोचने लगा ,यह व्यक्ति असाध्य रोग से पीड़ित होते हुए भी परमानंद से भरा है। यह जीवन को सौ वर्षों से अधिक समय तक जीने की इच्छा रखता है । इसमें उत्साह ,उमंग और उल्लास कूट - कूट कर भरा है । यह निश्चित रूप से हम सब के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी प्रतिक्रिया स्वरूप प्राप्त आशीर्वाद को जब भी पढ़ता हूँ,तो मन द्रवित हो जाता है कि हिंदी साहित्य के तथा अध्यात्म के इस महान विद्वान का आशीष मुझे मिला और मैं धन्य हो गया ।
नई दिल्ली की कवियत्री
आशा दिनकर आस ने कहा - हम सौभाग्यशाली हैं जो स्मृतिशेष पुष्पेंद्र वर्णवाल जी का लेखन पढ़ पा रहे हैं | इस हेतु आदरणीय डाक्टर मनोज रस्तोगी जी, आदरणीय बलराम सरस जी और नीलम कुलश्रेष्ठ जी का बहुत बहुत आभार कि आप सब के प्रयासों से यह संभव हो सका |
आगरा के साहित्यकार
विजय चतुर्वेदी विजय ने कहा कि जिस व्यक्तित्व से अधिकतर सदस्य अपरिचित थे उनके बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए पटल के संयोजक वास्तव में साधुवाद पात्र हैं। इस कार्यक्रम की जितनी प्रसंसा की जाय कम है
गाजियाबाद की कवियत्री
सोनम यादव ने कहा कि परिचर्चा में मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति-शेष पुष्पेन्द्र वर्णवाल के बारे में पढा, उनके मुक्तक और गीत पढे । मन मुदित हो गया । अपने उन महान विभूतियों के बारे में सुनकर पढकर लगता है कि कितना शेष है पढना, सुनना, जानना जो हमारे कितने नजदीक है जिनके भाव,शब्द गीत, मुक्तक। एक-एक शब्द अनमोल है।
मुरादाबाद के साहित्यकार अनिलकान्त बंसल ने कहा -----
अंत में पटल की प्रशासक गुना (मध्य प्रदेश) की साहित्यकार
नीलम कुलश्रेष्ठ ने कहा - साहित्य के आलोक स्तंभ के अंतर्गत इस साहित्यिक परिचर्चा के केंद्रीय व्यक्तित्व सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्कारों से युक्त मुरादाबाद के धरती से जुड़े श्रद्धेय कीर्ति शेष श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल जी बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी थे। साहित्यकार, इतिहासकार, ज्योतिष्विद्, पुरातत्ववेत्ता, पत्रकार, फिल्मी पटकथा लेखक और भी न जाने कितने क्षेत्रों में गतिशील रहे और *विगीत* नई काव्य विधा के सृजेता और प्रवर्तक पुष्पेंद्र जी के व्यक्तित्व के वैराट्य से परिचित होने का अवसर सभी पटल- पाठकों को मिला। इसके लिए डॉ मनोज रस्तोगी जी भूरि भूरि प्रशंसा के अनुकरणीय पात्र हैं।