शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

मुरादाबाद के साहित्यकार फ़रहत अली ख़ान की चार लघुकथाएं । ये प्रकाशित हुई हैं भारतीय भाषा परिषद की कोलकाता से प्रकाशित मासिक पत्रिका वागर्थ के अक्टूबर 2024 के अंक में


1.
'हादसा'

जब वह घर से निकला तो रास्ते में एक अजनबी से सामना हुआ। उसे लगा कि वह शख़्स रो रहा है। या फिर उसकी सूरत ही ऐसी है। शायद लगातार दुःख और तकलीफ़ें सहने की वजह से उसकी शक्ल ऐसी हो गयी है।

दोनों अपनी-अपनी रफ़्तार से चल रहे थे, इसलिए वह बस कुछ ही पल के लिए उसका चेहरा पढ़ पाया।

थोड़ी देर बाद उसे शक सा होने लगा कि उसके चेहरे ने उस अजनबी की शक्ल इख़्तियार कर ली है।

उसने देखा कि राह चलते लोग उसकी सूरत को बहुत ग़ौर से देख रहे हैं।

अब उसे एक आईने की ज़रूरत थी।


2.  'गुम'

बिजली की कड़कड़ाहट से जब देर रात बड़े मियाँ की आँख खुली तो उन्हों ने देखा कि बड़ी बी अपने बिस्तर पर नहीं थीं। यहीं-कहीं होंगी, आती होंगी, सोच कर चंद लम्हे इंतेज़ार किया। मगर जब बे-चैनी बढ़ी तो बिस्तर से उठ कर इधर-उधर देखने लगे। बड़े बेटे के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया। बेटा और बहू निकल आए।

"तुम्हारी अम्मी कहाँ चली गयीं इस वक़्त?"

"ओह अब्बू!..." कहते हुए बेटे ने अफ़सोस से सर पकड़ लिया, "अम्मी जा चुकी हैं। अब वो नहीं आएँगी।"

परेशान बहू ने नर्म लहजे में कहा, "आप फिर भूल गए अब्बू! इस एक महीने में ये तीसरी बार है।"

बेटा हाथ पकड़ कर उन्हें उन के बिस्तर तक ले आया और लिटा कर चला गया।

बारिश शुरू हो चुकी थी। बड़े मियाँ देर तक ख़ाली बिस्तर को तकते रहे, फिर बुदबुदाए, "कैसा बुरा ख़्वाब है।"


3. 'बे-आई'

सूरज के डूबने का वक़्त नज़दीक था। भीड़, जिसकी नुमाइंदगी क़स्बे के चार-पाँच बदमाश कर रहे थे, बहुत ग़ुस्से में थी और लाठी-डंडों से लैस थी। शोर-शराबा बता रहा था कि ये लोग कुछ भी कर गुज़रने की हिम्मत रखते हैं।  

ज़रा ही देर में जब भीड़ अपनी मंज़िल पर पहुँच गयी तो उसकी नुमाइंदगी कर रहे लोगों में से एक शख़्स  एक तरफ़ उंगली से इशारा करते हुए बोला, "ये रहा, यही है उसका मकान।"

ये सुन कर भीड़ उस मकान, जिसका कमज़ोर लकड़ी का दरवाज़ा अंदर से खुला था, में घुस गयी और अंदर मिलने वाले हर सामान और शख़्स को तोड़ना-फोड़ना शुरु कर दिया। घर में एक हंगामा बरपा हो गया, चीख़-ओ-पुकार मच गई। एक दुधमुँहा बच्चा एक छोटी सी चार-पाई पर पड़ा बिलख रहा था। एक वही था जो भीड़ का शिकार होने से बच पाया। 

कारवाई शुरु हुए चंद मिनट ही हुए थे कि उंगली उठाने वाला शख़्स ज़ोर से चीख़ कर बोला, "अरे नहीं! शायद वो इसके बराबर वाला मकान था।"


4. 'जवाब’

"कई मिनट हो गए। पानी का नल घेर रखा है।.देखो, अब वो हाथ धो रहा है। ...अब उस ने हाथ गीला करके सर पर फेरा। ...लो, अब पैर धोने लगा। क्या तुम्हें ये सब अजीब नहीं लगता?"

"तुम्हारे लिए ये सब अजीब है। उस के लिए नहीं है। क्या फ़र्क़ पड़ता है इस बात से?"

"फ़र्क़ क्यूँ नहीं पड़ेगा? पब्लिक प्लेस पर वो ये सब कैसे कर सकता है? ...अब देखो, ज़मीन पर कपड़ा बिछा कर खड़ा हो गया।"

"एक कोने ही में तो खड़ा है। अब जैसी जिस की श्रद्धा। क्या तुम्हारा कुछ नुक़सान कर दिया उस ने?"

"जो भी हो, मगर मुझे ये सब पसंद नहीं।"

"तो अब तुम क्या करोगे?"

"अगर उस को आज़ादी है तो मैं क्यूँ पीछे रहूँ।" कह कर उस ने कुर्ते की जेब से माला निकाली और कुछ प्रबंध किया, फिर पूछा, "और तुम?"

"मेरी अभी इच्छा नहीं है। तुम करो। और हाँ, जब कर चुको तो उस को शुक्रिया ज़रूर बोल देना।"

✍️ फ़रहत अली ख़ान

लाजपत नगर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412244221 





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