पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति न्यास मुरादाबाद के तत्वावधान में प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल की जयंती के अवसर पर 11 नवंबर 2020 को सम्मान समारोह एवं कवि गोष्ठी का आयोजन महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुरादाबाद के साहित्यिक इतिहास लेखन एवं साहित्य संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान के लिए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी, हिंदी साहित्य में अतुलनीय योगदान के लिए वयोवृद्ध साहित्यकार योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई,ओज कवि विवेक निर्मल तथा हिंदी सेवा व सामाजिक कार्यों के लिए अनिल कांत बंसल को 'पुष्पेंद्र वर्णवाल स्मृति सम्मान' से सम्मानित किया गया । कार्यक्रम संयोजक रवि चतुर्वेदी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। डॉ मनोज रस्तोगी ने पुष्पेंद्र वर्णवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। अति विशिष्ट अतिथि डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि हिंदी साहित्य में हर विधा पर पुष्पेंद्र वर्णवाल की लेखनी पारंगत थी। विशिष्ट अतिथि रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल ने अनेक कृतियों की रचना कर हिंदी साहित्य भंडार में वृद्धि की है । मुख्य अतिथि महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के प्रबंधक डॉ काव्य सौरभ रस्तोगी ने कहा कि पुष्पेंद्र वर्णवाल साहित्यकार होने के साथ-साथ दार्शनिक, ज्योतिषाचार्य और इतिहासकार भी थे । अध्यक्ष अशोक विश्नोई ने कहा कि उन्होंने हिंदी साहित्य में विगीत विधा को जन्म दिया ।संचालक आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने सभी सम्मानित विभूतियों का जीवन परिचय प्रस्तुत किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि गोष्ठी में योगेंद्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा---
रागयुक्त पर विरतिमय ,जिसका जीवन गान ।
यह विमोह का आचरण है विगीत का मान
अशोक विश्नोई ने कहा----
समकालिक लेखक पुष्पेंद्र गीतकार
जनक हैं विगीतों के प्रेयस सुविचार
आजीवन कविता कर नाम यश कमाया
हिंदी के सेवक को फक्कड़पन भाया
डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा----
इज्जत हो रही तार-तार देश में
हो रहे हैं रोज बलात्कार देश में
खुद ही कीजिएगा हिफाजत अपनी
गहरी नींद में है पहरेदार देश में
डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा-- दीप सद्भावना के जलाते रहें
भाव संवेदनाएं जगाते रहें
द्वेष दुर्गंध व्यापी पवन बह रही हम गुलाबों की फसलें उगाते रहे
शिव ओम वर्मा ने कहा---
वक्त हथौड़ा हो गया है
मौत छेनी हो गई
महामारी तेरी मार
बहुत पैनी हो गई
नजीब सुल्ताना ने कहा ---
कोई भूखा मारता है कोई खिलाकर मारता है
यह सियासत है यहां कोई जिलाकर मारता है
प्रशांत मिश्रा ने कहा---
क्यों तुम मेरे पास आकर मुस्कुराकर चल दिए
डॉ एमपी बादल जायसी ने कहा ---
सजी सजाई दुल्हन रह गई, बाबुल नीर बहाए
माता रोती सौ आंसू, डोली लौटी जाए
प्रवीण राही ने कहा----
जब वह हम से नजर मिलाते हैं हम जमाने को भूल जाते हैं जिनकी औकात कुछ नहीं होती अपने बाजू वही चढ़ाते हैं।
रवि चतुर्वेदी ने आभार व्यक्त किया ।
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