प्रो.महेंद्र प्रताप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रो.महेंद्र प्रताप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 9 मार्च 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल का गीत संग्रह -' प्यार की देहरी पर' । 'सुधियों की रिमझिम में 'के बाद यह उनका दूसरा गीत संग्रह है । इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1981 में प्रभात प्रकाशन दिल्ली से हुआ था। इस कृति में उनके सन 1965 के बाद रचे 81 गीत संगृहीत हैं । गीत संग्रह की भूमिका प्रो महेंद्र प्रताप ने लिखी है । मुझे यह कृति डॉ मंजुला सिंहल द्वारा प्रदान की गई ।

क्लिक कीजिए और पढ़िये पूरी कृति

👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇

https://documentcloud.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:3b34d186-14d9-4011-b55f-b635ad44c062

 ::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत 

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मंगलवार, 25 अगस्त 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो. महेंद्र प्रताप की जयंती पर "मुरादाबाद लिटरेरी क्लब" की ओर से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर परिचर्चा ......


       वाट्स एप पर संचालित  साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "ज़मीं खा गयी आसमां कैसे कैसे" शीर्षक के तहत  मुरादाबाद के साहित्यकार एवं केजीके महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य स्मृतिशेष प्रोफेसर महेंद्र प्रताप को उनकी जयन्ती पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एंव कृतित्व पर ऑन लाइन चर्चा की। चर्चा तीन दिन चली। सबसे पहले ग्रुप के सदस्य वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से बताया और उनकी रचनाएं प्रस्तुत कीं
चर्चा शुरू करते हुए विख्यात नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने कहा कि दादा के रचनाकार के विषय में मुझे पहले कुछ विशेष नहीं मालूम था। उसके विषय में कुछ तो अंतरा की गोष्ठियों में, कुछ कटघर पचपेड़ा मेरी ससुराल से और कुछ आदरणीय डॉ. शम्भुनाथ सिंह जी से चर्चा के माध्यम से जानकारी मिली। दादा के गीतों को हम उनका अन्तःगीत कह सकते हैं। उनके एक गीत, मैं तुमको अपना न सकूँगा / तुम मुझको अपना लो, को सुनकर ब्रह्मलीन स्वसुर संत संगीतज्ञ पुरुषोत्तम व्यास गदगद हो उठते थे। यह उनके लिए एक प्रार्थना गीत था। इसी गीत की एक पंक्ति है - मेरे गीत किसी के चरणों के अनुचर हैं। किसी नायिका के चरणों का अनुचर होने की गवाही नहीं देते।
मशहूर शायर मंसूर उस्मानी ने कहा कि प्रो साहब वाकई सायादार शजर थे। मुझे उनका जितना भी सानिध्य मिला मैंने उनसे कुछ न कुछ सीखा ही जिसमें इंसानियत से प्यार और उसका सम्मान बहुत बड़ी दौलत है। 1993 में उप्र उर्दू अकादमी का सदस्य मनोनीत होने पर मेरे मुहल्ले के लोगों ने एक जलसा किया था जिसमें प्रो साहब ने मेरी इज्जत अफजाई करते हुए कहा था कि यह जलसा शहर में कहीं और हुआ होता तो मुझे इतनी खुशी नहीं होती क्योंकि ये जलसा वह लोग कर रहे हैं जिन्होंने मंसूर को बचपन से देखा है और ये मंसूर की बड़ी उपलब्धि है।
वरिष्ठ कवि शचीन्द्र भटनागर ने कहा कि मैंने उन्हें गोष्ठी अथवा कवि सम्मेलन में कभी नहीं सुना पर एक बार मेरे बहुत आग्रह पर उन्होंने घर पर ही एक गीत सुनाया था। गीत पढ़ते समय वह तल्लीन हो गये थे साधक की तरह। उनके प्रणय गीतों में कहीं स्थूलता नहीं है। आत्म प्रेम है, आत्मा से संवाद है।उनकी वाणी में मिठास, होठों पर तनाव रहित मुस्कान और व्यक्तित्व में आकर्षण था। प्राचार्य के प्रशासनिक पद पर नितांत भारतीय वेशभूषा में उन्हें शांतचित्त  देखकर उनके व्यक्तित्व की विलक्षणता का आभास होता था।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि हिन्दी साहित्य ही नहीं दादा मुरादाबाद के साहित्यिक, सांस्कृतिक, सांगीतिक और सामाजिक सरोकारों के अगुआ थे। विषय का इतना सटीक गहराई से विश्लेषण करने वाला मुझे तो अब तक मिला नहीं है। उनके मुख से निकला एक-एक शब्द अपने आप में शिलालेख होता था। वह तार्किक नहीं थे अपितु विषयों के सैद्धांतिक जानकर थे। यदि मैंने आधुनिक हिन्दी साहित्य की विशद व्याख्या की होती तो साहित्य के उस कालखंड के आशु साहित्य की खोजबीन करके उसे  'महेन्द्र प्रताप-युग' का नाम देने के सभी यत्न किए होते।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि मुरादाबाद के महत्त्वपूर्ण विद्वानों में अग्रगण्य स्व प्रो महेंद्र प्रताप जी एक चिन्तक व्याख्याता और ललित कलाओं के ज्ञाता प्रश्रय दाता तथा उन्नायक के रूप में सामने आते हैं। दिनांक छह दिसंबर १९४८को स्थानीय के जी के महाविद्यालय में हिंदी विभाग में कार्यभार ग्रहण करने वाले दिन ही सायंकाल हिन्दू कालेज में आयोजित कवि सम्मेलन में अध्यक्षता करने से उनकी यात्रा यहां आरंभ होती है। यहीं उनकी मित्रता पंडित मदनमोहन व्यास और प्रभुदत्त भारद्वाज से हुई, यह त्रिमूर्ति आगे चलकर मुरादाबाद में सांस्कृतिक और साहित्यिक जगत का पर्याय बन गई।
मशहूर शायरा डॉ० मीना नक़वी ने कहा कि वर्ष 2004 की बात है मेरी पहला ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुका था। डॉ.कृष्ण कुमार नाज़ के साथ मेरा स्मृति शेष आदरणीय महेन्द्र प्रताप जी के निवास-स्थान पर  पहली बार जाने का सुवसर प्राप्त हुआ। मैं सकुचाती हुई उनके घर में दाख़िल हुई। आ0 महेन्द्र प्रताप जी ने  बहुत स्नेह से मुझे बिठाया। नाज़ साहब ने मेरा परिचय कराया तो उन्होनेे मेरे डाक्टर होने के साथ हिंदी अंग्रेजी़ पर स्नातकोत्तर होने पर आश्चर्य व्यक्त किया। मैने अपनी पहली पुस्तक सायबान उन्हें भेट की। जो उन्होने सहर्ष स्वीकार की साथ ही मेरा उत्साह वर्धन भी किया। अज़ान के समय शांति से बैठ जाने की शिक्षा देने वाले सर्वधर्म के प्रति आदर व समभाव के वे जीते जागते उदाहरण थे और इसकी मैं साक्षी हूँ। ऐसे व्यक्तित्व वास्तव में युगों में पैदा होते है।
प्रख्यात रंगकर्मी डॉ प्रदीप शर्मा ने उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करते  हुए कहा कि प्रोफेसर महेंद्र प्रताप "आदर्श कला संगम" के संस्थापक अध्यक्ष थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। वह एक कुशल मार्गदर्शक व पथ प्रदर्शक भी थे । आदर्श कला संगम ने उनकी याद को बनाए रखने के लिए उनकी स्मृति में "प्रोफेसर महेंद्र प्रताप स्मृति सम्मान" देना भी शुरू किया।
वरिष्ठ कवियत्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि सरलता-सहजता से आच्छादित व्यक्तिव के धनी, विनम्रता की साक्षात प्रतिमूर्ति हमारे स्वर्गीय दादा प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी चिरकाल तक स्मृति में आज भी मार्गदर्शन करते हैं।
महाराजा अग्रसेन पब्लिक स्कूल मंडी बांस की पूर्व प्रधानाचार्य डॉ किरण गर्ग ने कहा कि दादा श्री के स्नेह और कृपा की प्राप्ति को मैं अपने जीवन की विशिष्ट उपलब्धि मानती हूं। उससे उऋण होना न मैं चाहती हूं न हो सकती हूं । दादा ज्ञान के समस्त पक्षों को आत्मसात करने के लिए सदैव आकांक्षी  रहते थे। मनीषियों व ज्ञानियों के साथ वह रात- दिन एक कर सकते थे। उनके लिए यहां तक मशहूर था कि दादा के पास जाओ तो पर्याप्त समय लेकर जाओ क्योंकि यदि किसी भी विषय पर उनसे चर्चा चल पड़े तो घंटों वह धाराप्रवाह बोले चले जाते थे, बिना अपने खाने-पीने की परवाह किए। सादा जीवन उच्च विचार की उक्ति उन पर पूर्णतया चरितार्थ होती है।
वरिष्ठ कवि शिशुपाल मधुकर ने कहा कि दादा कहते थे कि कभी भी प्रसिद्धि की स्प्राह मन में रखकर रचनाकर्म नहीं करना और कुछ भी मत लिखना, जो लिखना सार युक्त लिखना।

मशहूर शायर डॉ कृष्णकुमार 'नाज़' ने कहा कि दादा ऐसे वृक्ष थे जिनकी शीतल छांव में बैठकर मुझे ऐसे बहुत से रचनाकार अपनी अगली मंज़िलों के निशान तलाशते थे। मुरादाबाद में जितने भी साहित्यिक आयोजन होते थे, उनमें अधिकतर की अध्यक्षता दादा महेंद्र प्रताप जी ही करते थे। उनका अध्ययन इतना विषद था कि किसी भी विषय पर उनसे वार्ता की जा सकती थी और उपयुक्त उत्तर मिल जाता था। यदि किसी विषय पर पक्ष और विपक्ष दोनों पर बोलने की आवश्यकता पड़े, तो दादा प्रवीणता के साथ दोनों ही पक्षों पर सम्यक रूप से विचार रखते थे।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि बीती सदी का नवां दशक जब मैंने शुरू की थी अपनी साहित्यिक यात्रा। यही नहीं एक सामाजिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्था ''तरुण शिखा'' का गठन भी कर लिया था। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 'अंतरा' की गोष्ठियां ही मेरे साहित्यिक जीवन की प्रथम पाठशाला बनीं। इन गोष्ठियों में 'दादा', श्री अंबालाल नागर जी, श्री कैलाश चंद अग्रवाल जी, पंडित मदन मोहन व्यास जी, श्री ललित मोहन भारद्वाज जी, श्री माहेश्वर तिवारी जी ने मेरी अंगुली पकड़कर मुझे चलना सिखाया और उनके संरक्षण एवं दिशा निर्देशन में मैंने साहित्य- पत्रकारिता के मार्ग पर कदम बढ़ाए । दादा और आदरणीय श्री माहेश्वर तिवारी जी के सान्निध्य से न केवल आत्मविश्वास बढ़ा बल्कि सदैव ऐसा महसूस हुआ जैसा किसी पथिक को तेज धूप में वृक्ष की शीतल छांव में बैठकर होता है। लगभग सभी गोष्ठियों में दादा उपस्थित होते थे और मुझे प्रोत्साहित करते थे। यह मेरा सौभाग्य है कि लगभग 21- 22 साल तक मुझे दादा का आशीष प्राप्त होता रहा। दादा आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन उनकी स्मृतियां, उनका दुलार, उनका आशीष सदैव मुझे आगे और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता ही रहेगा ।
प्रसिद्ध नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि दादा के गीतों से गुज़रते हुए भी उसी चंदन की भीनी-भीनी महक महसूस होती है जिसका ज़िक्र राजीव जी ने अपने वक्तव्य में किया है क्योंकि आध्यात्मिक भाव-व्यंजना के माध्यम से मनुष्यता के प्रति दादा की प्रबल पक्षधरता उनके लगभग सभी गीतों में प्रतिबिंबित होती है। दादा महेन्द्र प्रताप जी का रचनाकर्म मात्रा में भले ही कम रहा हो किन्तु महत्वपूर्ण बहुत अधिक है।उनकी रचनाओं में सृजन के समय का कालखण्ड पूरी तरह प्रतिबिंबित होता है, निश्चित रूप से दादा की सभी रचनाएँ साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।
समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि मुझे यह अवसर तो प्राप्त नहीं हो सका कि मैं महेंद्र प्रताप जी को किसी साहित्यिक संस्था के निजी प्रोग्राम में शरीक होकर उन्हें सुन पाता अपितु सार्वजनिक प्रोग्रामों में उन्हें कई बार सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। विशेष रुप से जनता सेवक समाज के कार्यक्रमों में उन्हें अक्सर सुना। सच पूछिए तो उन्हें सुनने के लिए ही प्रोग्राम में जाया करता था। क्योंकि मैं उनकी बोलने की कला से बहुत प्रभावित था। उनका बोलने का अपना अलग अंदाज़ था जो मंत्रमुग्ध कर दिया करता था। वह हर विषय पर धाराप्रवाह बोलते थे। ऐसा महसूस होता था कि वह इस विषय के विशेषज्ञ है। मैंने उन्हें जिगर मेमोरियल कमेटी के मुशायरों में उन्हें जिगर की शायरी पर बोलते हुए ख़ूब सुना है। मुंह में पान की गिलोरी दबाकर मुस्कुराते हुए उनकी गुफ़्तगू का अंदाज़ आज भी याद है। उनकी वाणी से उनके मन की निर्मलता और और भावों की कोमलता साफ़ झलकती थी। हालांकि मेरा छात्र जीवन था और वह मुझसे परिचित भी नहीं थे और मैं भी उनसे इतना परिचित नहीं था जितना आज हुआ। लेकिन मैं कार्यक्रम के पश्चात उनसे मिलकर आशीर्वाद प्राप्त करने की कोशिश ज़रूर करता था।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि निश्चित ही स्मृति शेष दादा महेंद्र प्रताप जी की गणना ऐसी महान साहित्यिक विभूतियों में की जा सकती है जिनके द्वारा प्रदत्त आलोक में बाद की पीढ़ियों का मार्ग प्रशस्त हुआ। आज पटल पर उनके गीतों का अवलोकन करने के पश्चात् मेरा मानना है कि उनकी लेखनी से साकार हुए ये अद्भुत गीत मात्र मधुर कंठ की शोभा बनने हेतु ही नहीं अपितु, उन्हें आत्मसात करते हुए मनन करने के लिए भी हैं। उनके अद्भुत गीतों का एकाग्रचित्त होकर श्रवण व मनन करने का अर्थ है पाठक/श्रोता का स्वयं को पहचानना तथा जीवन से साक्षात्कार करना।
युवा शायर फरहत अली खान ने कहा कि पटल पर तीन दिन तक प्रोफेसर साहब पर चली
चर्चा के ज़रिए ये निष्कर्ष निकलता हुआ देख रहा हूँ कि उन के साहित्य-कर्म पर एक बड़ा काम करने की ज़रूरत है।
युवा कवियत्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि मुरादाबाद के गौरवशाली साहित्यिक इतिहास के अभिन्न और अधिकतम द्युतिमान नक्षत्र स्व०प्रो०महेन्द्र प्रताप जी के बारे में जानने के बाद उन्हें साक्षात देखने व सुनने का अवसर न मिल पाने का अत्यन्त दुख है।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल ने कहा कि आदरणीय दादा महेंद्र प्रताप जी से मेरा प्रथम परिचय वर्ष 1967 में हुआ था। उसके बाद एक बार वर्ष 1972 में रेलवे मनोरंजन सदन में रेलवे के एक आयोजन में उन्हें सुना। कविता में पूर्णतः डूबकर किये गये उनके कविता पाठ ने मुझे बहुत आकर्षित किया। इन दो अवसरों पर उनके दर्शन का मष्तिष्क पर अमिट प्रभाव आज भी है ।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि स्वर्गीय प्रोफेसर महेंद्र प्रताप साहब के गीतों को पढ़कर यह लगता है कि उनका जीवन जहां साहित्य को पढ़ते हुए गुज़रा वहीं साहित्य के बड़े लोगों के साथ बैठते हुए भी उनका जीवन गुज़रा है। मैं यह समझता हूं कि उनके अंदर साहित्य के साथ-साथ साहित्यकारों को भी सहेजने का एक बड़ा गुण था। तभी तो उन्होंने "अंतरा" जैसी संस्था की दाग़-बेल डाली। हम अपने ऊपर गर्व कर सकते हैं कि हमारे शहर में मोहब्बत करने वाली, जोड़ने वाली एक ऐसी शख्सियत भी गुज़री है।
महेन्द्र प्रताप जी के सुपुत्र सुप्रीत गोपाल ने मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से आयोजित इस सार्थक चर्चा के लिए सभी सदस्यों का शुक्रिया अदा किया। उन्होंने कहा कि दादा आज भी हम सबके प्रेरणास्त्रोत हैं।

:::::::प्रस्तुति:::::::

-ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो०8755681225

रविवार, 5 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष प्रोफेसर महेंद्र प्रताप के नौ गीत ---- ये गीत उनकी स्मृति में प्रकाशित पुस्तक 'महेंद्र मंजूषा' से लिए गए हैं । इस पुस्तक के प्रबंध संपादक के दायित्व का निर्वहन किया सुरेश दत्त शर्मा पथिक ने जबकि डॉ अजय अनुपम और आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई ने संपादन किया। इस पुस्तक का प्रकाशन लगभग 14 साल पहले सन् 2006 में हिंदी साहित्य सदन द्वारा किया गया था।











         ::::::::::::::::प्रस्तुति :::::::::::::::::

          डॉ मनोज रस्तोगी
          8, जीलाल स्ट्रीट
          मुरादाबाद 244001
          उत्तर प्रदेश, भारत
          मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष प्रो.महेंद्र प्रताप के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख





 प्रो . महेंद्र प्रताप जी का जन्म 22 अगस्त 1923 को वाराणसी जनपद के  गांव सोनहुला में हुआ था। आपके पिता श्री नंदकिशोर लाल प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। माता का नाम क्षत्राणी देवी था। आप के दादा का नाम बेनी माधव प्रसाद था। 

   उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी एवं इलाहाबाद में हुई। प्रारंभ से ही वह मेधावी थे। वर्नाक्यूलर मिडिल परीक्षा में उन्होंने प्रदेश में 16 स्थान प्राप्त किया था । वर्ष 1942 में हाईस्कूल, वर्ष 1944 में इंटरमीडिएट, वर्ष 1946 में  बीए किया। वर्ष 1948 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए( हिंदी) में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। प्रख्यात साहित्यकार *सुमित्रानंदन पंत* के शब्दों में ''श्री महेंद्र प्रताप जी से मैं अच्छी तरह परिचित हूं वह प्रयाग विश्वविद्यालय के छात्र रहे और अभी पिछले साल उन्होंने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमए किया है और प्रथम स्थान भी पाया है और परीक्षाओं में भी वह इसी प्रकार प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। विद्यार्थी जीवन के अतिरिक्त भी जिसमें वह अपने अध्यवसाय और कुशलता के कारण अपने अध्यापकों के प्रिय रहे । "

      आपका विवाह श्री विंध्यांचल प्रसाद वर्मा की सुपुत्री शांति वर्मा से 2 जून 1948 को हुआ। अगस्त 1948 से दिसंबर 1948 तक उन्होंने के पी यूनिवर्सिटी कॉलेज इलाहाबाद में अध्यापन कार्य किया तदुपरांत 6 दिसंबर 1948 को यहां के जीके महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया । लगभग एक वर्ष (1960-61)डीएसएम डिग्री कॉलेज कंठ में प्राचार्य भी रहे, उसके बाद वह पुनः केजीके कालेज आ गए और वर्ष 1974 से जून 1983 तक महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर रहे।

     साहित्य के प्रति उनकी अभिरुचि प्रारम्भ से ही थी। उन्होंने पहली कविता उस समय लिखी जब वह जूनियर हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। बाद में वाराणसी तथा प्रयागराज (इलाहाबाद)में अपनी रचनाशीलता को विकसित और सम्पन्न किया। डॉ धर्मवीर भारती, विजयदेव नारायण साही, डॉ शम्भूनाथ सिंह, डॉ जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि उनके सहपाठी/साहित्यिक मित्र रहे हैं। आरम्भ में पंडित श्याम नारायण पांडे से भी उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला। डॉ सम्पूर्णानंद, भगवती शरण ,कमलेश्वर, डॉ नामवर सिंह, नरेश मेहता का भी उन्हें स्नेह प्राप्त था। यह बिडंबना ही कही जाएगी कि एक अत्यंत संवेदनशील साहित्यकार की स्वतंत्र रूप से अभी तक कोई कृति प्रकाशित नहीं हो सकी है। आप के अनेक गीत केजीके महा विद्यालय की वार्षिक पत्रिकाओं और विभिन्न काव्य संकलनो में  प्रकाशित हुए हैं। आपके निधन के पश्चात डॉ अजय अनुपम और आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई के संयुक्त संपादन और सुरेश दत्त शर्मा के  प्रबंध संपादन में प्रकाशित पुस्तक "महेंद्र मंजूषा" में उनके 21गीत, दो ग़ज़लें और 14 मुक्तक संकलित हैं।  उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हिन्दी कहानी, पन्द्रह पगचिह्न, निबंध निकष, कहानी पथ, गद्य विविधा तथा एकांकी पथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक-स्नातकोत्तर हिन्दी पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती रही हैं । आपने मुरादाबाद के अनेक साहित्यकारों की कृतियों की भूमिकाएं भी लिखीं।

    मुरादाबाद में साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए 14 अप्रैल 1963 को अंतरा संस्था की स्थापना की।  इसकी विशेषता थी कि इसमें एकमात्र पदाधिकारी संयोजक ही होता था। अन्य सभी सदस्य थे। सदस्यों की अधिकतम  संख्या 25 निर्धारित की गई थी। मासिक शुल्क दो रुपये था । संस्था की बैठकों में केवल सदस्य ही शामिल होते थे। अंतरा के संस्थापक सदस्यों में मदन मोहन व्यास, प्रभु दत्त भारद्वाज,डॉ राममूर्ति शर्मा, गिरधर दास पोरवाल, अम्बालाल नागर, सर्वेश्वर सरन सर्वे,बहोरी लाल शर्मा, कैलाश चंद अग्रवाल, डॉ बृज पाल शरण रस्तोगी, डॉ ज्ञान प्रकाश सोती,  सुरेश दत्त शर्मा पथिक, डॉ विश्वअवतार जैमिनी मुख्य थे । इसकी बैठक माह में दो बार होती थीं। ये बैठकें सामान्यतः अमरोहा गेट स्थित रस्तोगी इंटर कॉलेज में होती थीं।

 हिंदुस्तानी अकादमी के सचिव भी रहे : वह महानगर की अनेक साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के संरक्षक और अध्यक्ष रहे। इनमें तरुण शिखा, आदर्श कला संगम, आरोही, मंजरी, माला, सवेरा, संस्कार भारती, हिन्दी साहित्य सदन, नूतन कला मंदिर, जनता सेवक समाज  मुख्य संस्थाएं थीं। यही नहीं उन्हें प्रदेश के राज्यपाल द्वारा हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज का सचिव कोषाध्यक्ष भी मनोनीत किया गया था । 

 अनेक साहित्यकारों ने उनके निर्देशन में पूर्ण किया शोध कार्य : प्रो महेंद्र प्रताप जी के निर्देशन में 22  विद्यार्थियों ने शोध कार्य पूर्ण कर के पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। इनमें से मुख्य हैं- डॉ कृष्ण जी भटनागर, डॉ गोपी चंद्र शर्मा,  डॉ विश्व अवतार जैमिनी, डॉ इंदिरा गुप्ता, डॉ एसपी सक्सेना, डॉ प्रभा कपूर,  डॉ राकेश मधुकर,  डॉ मक्खन मुरादाबादी , डॉ किरण गर्ग , डॉ वंदना रानी, डॉ वाचस्पति शर्मा , डॉ शंकर लाल शर्मा और डॉ जगदीश शरण ।  

        महानगर की अनेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर उनको सम्मानित एवं नागरिक अभिनन्दन किया जाता रहा है । 

      उनका  निधन 20 जनवरी 2005 को काशी में हुआ।


 


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

 8,जीलाल स्ट्रीट 

 मुरादाबाद 244001 

 उत्तर प्रदेश, भारत 

 मोबाइल फोन नंबर 9456687822