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शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कृति ....रामपुर के रत्न (भाग 1) । यह पुस्तक वर्ष 1986 में सहकारी युग साप्ताहिक रामपुर द्वारा प्रकाशित हुई थी। इसमें रामपुर के स्वतंत्रता सेनानियों, साहित्यकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के जीवन-चरित्र विस्तार से लिखे गए हैं। अब पुस्तक उपलब्ध नहीं है। केवल एक प्रति रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरक्षित है।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति 

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मंगलवार, 2 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष शिव अवतार रस्तोगी सरस पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 







शिव अवतार रस्तोगी "सरस"
का जन्म 4 जनवरी 1939 को तत्कालीन जनपद मुरादाबाद के नगर संभल के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम रतनलाल एवं माता का नाम द्रौपदी देवी था। प्रारंभिक शिक्षा सम्भल में पंडित चैतन्य स्वरूप की पाठशाला में हुई। इस प्रारंभिक पाठशाला में कक्षा 5 तक की पढ़ाई पूरी कर लेने के उपरांत उन्होंने लगभग 10 वर्ष की अवस्था में संभल के ही शंकर भूषण इंटर कॉलेज में कक्षा 6 में प्रवेश लिया । वर्ष 1954 में हाईस्कूल और वर्ष 1956 में इंटरमीडिएट की परीक्षाएं इंटर कॉलेज संभल से उत्तीर्ण की। इसके पश्चात आपने बेसिक सी टी का द्विवार्षिक प्रशिक्षण प्राप्त किया । इस प्रशिक्षण के पश्चात आपकी 8 जुलाई 1958 को हिंद इंटर कॉलेज संभल में ही शिक्षक के रूप में नियुक्ति हो गई। अध्यापन कार्य के दौरान वर्ष 1960 में आपने वाणिज्य विषय से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा वर्ष 1962 में हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी साहित्य विषयों के साथ स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1964 में हिंदू कॉलेज मुरादाबाद से बी टी (बीएड) और हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य रत्न की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात आप की नियुक्ति कालागढ़(जिला बिजनौर) स्थित रामगंगा परियोजना उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य पद पर हो गई। यहीं सेवारत रहते हुए आपने वर्ष 1968 में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त कर ली तथा आदर्श इंटर कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता के रूप में नियुक्त हो गए बाद में उन्होंने यहां से त्यागपत्र देकर सर्वोदय इंटर कॉलेज में प्रवक्ता पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया। वर्ष 1970 में उन्होंने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में संस्कृत विषय से भी स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर ली। यहां से आपने 31 दिसंबर 1972 को त्यागपत्र देकर 2 जनवरी 1973 को महाराजा अग्रसेन इंटर कॉलेज मुरादाबाद में हिंदी के प्रवक्ता के रूप में कार्यभार ग्रहण कर लिया । यहीं से वर्ष 1997 में उन्होंने स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ग्रहण की।

वर्ष 1959 में 20 जून को स्याना निवासी बालमुकुंद रस्तोगी की सुपुत्री कनक लता से आपका विवाह हुआ। आपके दो सुपुत्रियां रश्मि रस्तोगी एवं ऋचा रस्तोगी तथा एक सुपुत्र पुनीत रस्तोगी हैं ।     साहित्यिक प्रतिभा उन्हें विरासत में प्राप्त हुई। पिता रतनलाल उर्दू के शायर थे और संभल के आसपास के क्षेत्रों में मुशायरे में शिरकत करते थे। हिंदू और मुसलमान दोनों संप्रदायों के लोग उनका सम्मान करते थे । हिंदी पट्टी में वह कवि चच्चा  और उर्दू पट्टी में वह रतन संभली के नाम से प्रसिद्ध थे। उनकी साहित्यिक प्रतिभा का विकास उस समय हुआ जब वह 1962 में बीए के छात्र थे।  हिंदू कालेज में बी टी के प्रशिक्षण के दौरान उनका संपर्क शिक्षक मुकुट बिहारी लाल रस्तोगी से हुआ। मुकुट बिहारी शिक्षक होने के साथ-साथ एम खुशदिल नाम से साहित्यकार के रूप में भी चर्चित थे। यहीं से उनमें साहित्य लेखन के प्रति रुझान उत्पन्न हुआ। वर्ष 1964 जब वह कालागढ़ में प्रधानाचार्य हुए तो उन्होंने निरंतर 6 वर्षों तक विद्यालय की पत्रिका नव प्रदीप का संपादन करके अपनी साहित्य साधना का बीजारोपण किया तथा अरुण और कक्कड़ उपनाम से काव्य लेखन शुरू कर दिया। वर्ष 1966 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रति अपनी भावनाओं को "गुदड़ी के लाल"  खंड काव्य के रूप में लिखना प्रारंभ किया लेकिन वह किन्हीं परिस्थितियों वश वह उसे पूर्ण नहीं कर सके। इस दौरान उनकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं आदि में प्रकाशित होने लगी।
   मुरादाबाद आने पर प्रो महेंद्र प्रताप और डॉ शिवबालक शुक्ल के मार्गदर्शन से उनकी साहित्यिक प्रतिभा को एक नया आयाम मिला। उनकी प्रथम कृति "पंकज पराग" प्रकाशित हुई। दूसरी कृति "हमारे कवि और लेखक" विद्यार्थियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय हुई। इस कृति में उन्होंने हिंदी साहित्यकारों के विस्तृत जीवन परिचय और साहित्य सेवा को 6 पंक्तियों की कुंडलियां छंद में बांधने का प्रयास किया। इस कृति का दूसरा परिवर्धित संस्करण वर्ष 1983 में  हिंदी साहित्य सदन द्वारा प्रकाशित हुआ। वर्ष 1985 में आपकी कृति "अभिनव मधुशाला" का प्रकाशन हुआ। डॉ हरिवंश राय बच्चन की कालजयी कृति "मधुशाला" की तर्ज पर रचित यह कृति सर्वाधिक चर्चित रही। इसका परिवर्धित संस्करण वर्ष 2013 में प्रकाशित हुआ। आप का सर्वाधिक साहित्यिक योगदान  बाल साहित्य लेखन में रहा। वर्ष 2003 में प्रकाशित "नोकझोंक", वर्ष 2007 में प्रकाशित "सरस संवादिकाएं ", वर्ष 2013 में प्रकाशित "पर्यावरण पचीसी" और वर्ष 2021 में प्रकाशित "सरस बालबुझ पहेलियां" आपकी उल्लेखनीय काव्य कृतियां हैं।  वर्ष 2014 में आपका ग्रंथ "मैं और मेरे उत्प्रेरक" (आत्मकथा एवं अभिनंदन ग्रंथ) का प्रकाशन हुआ। इसके अतिरिक्त सिंघल ब्रदर्स मुरादाबाद द्वारा हाईस्कूल स्तर की पाठ्य पुस्तकों का भी प्रकाशन हो चुका है। गुदड़ी के लाल, राजर्षि महिमा, सरस-संवादिका शतक ,मकरंद मोदी,सरस बाल गीत आपकी अप्रकाशित काव्य कृतियां हैं ।
     आपकी रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र पत्रिकाओं बाल-वाणी, बाल-भारती, बाल-वाटिका, बाल-प्रहरी, बाल-सेतु, बच्चों का देश, देव-पुत्र, राष्ट्र-धर्म, जान्हवी, वामांगी, सेवाभारती, कलाकुंज-भारती, साहित्य-अमृत, राष्ट्रदेव, जन
प्रवाह, आर्यवृत-केसरी, विश्व-भारती, शोध-दिशा आदि में हो चुका है। इसके अतिरिक्त डा. सुनीता गांधी एवं श्री शरण द्वारा प्रकाशित पाठ्य पुस्तकों में  भी आपकी रचनाओं का समावेश हुआ है।
     हिन्दी साहित्य संदर्भ कोश, सम्मेलन के रत्न, उ.प्र. के हिन्दी साहित्यकार, संकेत, हरिश्चन्द्र वंशीय समाज का इतिहास, हिन्दी का वास्तुपरक इतिहास आदि ग्रंथों में आपका उल्लेख किया गया है।
   आपने साहित्यकार स्मारक समिति की स्थापना करके अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया। आपका विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं हिन्दी साहित्य सदन, अन्तरा, संस्कार-भारती, तरुण शिखा, सेवा-भारती, आर्यसमाज, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, दीनदयाल उपाध्याय सेवा संस्थान, एम.एच. डिग्री कालिज, द्रोपदी रत्न शिक्षा समिति आदि से भी जुड़ाव रहा।
आकाशवाणी के रामपुर केंद्र से वार्ता एवं काव्य-पाठ
का प्रसारण भी समय समय पर होता रहा।
    आपको रंभा ज्योति (चंडीगढ़), हिंदी प्रकाश मंच (सम्भल), 'सागर तरंग प्रकाशन' (मुरादाबाद), संस्कार भारती (मुरादाबाद), (मुज़फ़्फ़रनगर), व हापुड़, भूपनारायण दीक्षित बाल साहित्य- सम्मान' (हरदोई), 'अ० भा० राष्ट्रभाषा विकास सम्मेलन' (गाजियाबाद), 'बाल-प्रहरी' (अल्मोड़ा) 'अभिव्यंजना' (फर्रुखाबाद), 'ज्ञान-मंदिर पुस्तकालय' (रामपुर), 'डा० मैमूना खातून बाल साहित्य सम्मान' (चन्द्रपुर, महाराष्ट्र) तथा 'अ० भा० साहित्य कला मंच' आदि संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
      कोरोना काल में आपका निधन 2 फरवरी 2021 को हुआ।

   


✍️  डॉ मनोज रस्तोगी
    8, जीलाल स्ट्रीट
    मुरादाबाद 244001
    उत्तर प्रदेश, भारत
    मोबाइल फोन नंबर 9456687822

बुधवार, 1 जनवरी 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष आनन्द स्वरूप मिश्रा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख








स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी साहित्य में मुरादाबाद के कथाकार आनन्द स्वरूप मिश्रा ने अपनी एक अलग पहचान स्थापित की है । आपने  शताधिक  कहानियों और उपन्यासों की रचना कर हिन्दी कथा सहित्य में एक उल्लेखनीय योगदान दिया है।

     श्री मिश्रा का जन्म 14 अगस्त 1943 को मुरादाबाद के लाईनपार क्षेत्र में हुआ । आपके पिताश्री ब्रज बिहारी लाल मिश्रा रेलवे विभाग में विद्युत इंजीनियर के पद पर थे। आपके पितामह श्री गुलजारी लाल मिश्रा भी रेलवे विभाग में थे। चार भाइयों एवं तीन बहनों में उनका स्थान छठा था । उनके तीनों भाइयों के नाम आत्म स्वरूप  

मिश्रा, ब्रह्म स्वरूप मिश्रा और ज्योति स्वरूप मिश्रा थे।

    आपकी प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा बरेली और देहरादून में हुई। वर्ष 1955 में मुरादाबाद नगर के केजीके इण्टर कालेज से हाईस्कूल एवं हिन्दू इण्टर कालेज से वर्ष 1957 में इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा प्राप्ति हेतु बी एससी की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1961 में हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर उपाधि ग्रहण करने के पश्चात् उन्होंने विधि कक्षा में  प्रवेश ले लिया। प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् ही वर्ष 1962 में उनकी नियुक्ति डिफेन्स विभाग में हो गयी लेकिन उनका मन वहां नहीं रमा और वर्ष 1963 में त्यागपत्र देकर पुनः मुरादाबाद आ गये। वर्ष 1964 में उन्होंने बीटी परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उनकी नियुक्ति सरस्वती इण्टर कालेज नजीबाबाद में अध्यापक के रूप में हो गयी। 

  वर्ष 1966 से 1968 तक केजीके इंटर कॉलेज मुरादाबाद, वर्ष 1968 से 69 तक सनातन धर्म इण्टर कालेज, रामपुर में उन्होंने अध्यापन कार्य किया । वर्ष 1969 में उनकी नियुक्ति मुरादाबाद के महाराजा अग्रसेन इण्टर कालेज में हो गयी ।

   वर्ष 1963 में जब वह डिफेन्स विभाग में सेवारत थे। तब उनका विवाह शाहजहाँपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक की पुत्री सरोज मिश्रा के साथ 15 जून 1963 को सम्पन्न हो गया । आपके तीन पुत्र विपिन मिश्रा, अमित मिश्रा और डॉ अजय मिश्रा हैं ।एक पुत्री  नीलम मिश्रा की मृत्यु वर्ष 2009 में हो चुकी है।

    विद्यार्थी जीवन में देवकीनन्दन खत्री की चंद्रकांता संतति, बंगला कथाकार रवीन्द्र नाथ टैगोर तथा बंकिम चन्द्र की कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते उनकी रुचि भी कहानी लेखन हेतु जागृत हो गयी और उन्होंने कहानी लिखना आरम्भ कर दिया। मेरठ में शिक्षाध्ययन के दौरान वह वीरेन्द्र कुमार गौड़ के सम्पर्क में आये तथा उनके साथ ही सूरज कुण्ड पर एकान्त में बैठकर कहानियों के प्लाट सोचकर लेखन करते थे ।

  इसके अतिरिक्त ओम प्रकाश शर्मा, कैलाश मिश्र, बनफूल सिंह, शिव अवतार सरस, मनोहर लाल वर्मा, दयानन्द गुप्त, शांतिप्रसाद दीक्षित, रमेश चन्द्र शर्मा विकट तथा आनन्द प्रकाश जैन उनकी मित्र मण्डली में रहे ।

  उनकी पहली कहानी का प्रकाशन नगर से प्रकाशित होने वाले पत्र में वर्ष 1956 में 'मुरझाया पुष्प' शीर्षक से हुआ । तत्पश्चात् चित्रकार साप्ताहिक (दिल्ली), छात्र संगम, मासिक (मेरठ), प्रगति मासिक (मेरठ), लोकधाता साप्ताहिक (रामपुर), देशवाणी दैनिक (मुरादाबाद), भारत दर्पण साहित्यिक (मेरठ), साथी मासिक (मुरादाबाद), अरुण मासिक (मुरादाबाद), आदर्श कौमुदी (चंदक, बिजनौर), सरिता (दिल्ली) तथा हरिश्चन्द्र बन्धु (मेरठ) आदि विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ प्रकाशित हुईं। 

मुरादाबाद से प्रकाशित मासिक पत्र 'अरुण' में प्रकाशित ' बराबर बाजी', 'टूटती  कड़ियां (अगस्त, 1974), एक सुलगती हुई बाती (सितम्बर, 1975), कालिख (नवम्बर 1974), मेरठ की पत्रिका में 'अनाथालय (1960), यात्रा के पन्ने (1961), चित्रकार में प्रकाशित विद्रोह की चिंगारी (दिसम्बर 1956) भारत-दर्पण में प्रकाशित 'मृत्यु की घड़ी ( सितम्बर 1958), जलती चिंगारी (सितंबर 1960) छात्र संगम में अभिनय ( नवम्बर 1960), चुनाव की चाय, ज्योत्सना में प्रकाशित क्या उसने कारण पूछा था (1970), उलझन (1971), जीवन की दौड़ (1972), एक बलिदान और (1991), उसका अधिकार (1976), साथी में प्रकाशित पासा पलट गया, उम्मीद के सितारे, देवता, हरिश्चन्द्र बन्धु में प्रकाशित त्रिभुज का नया बिन्दु, उलझता सुलझता जीवन ( अप्रैल 1988), शाप का अंत (1990), खोटा सिक्का, एक नया सीरियल आदि उल्लेखनीय है।

   स्वतंत्र रूप से  उनकी पहली कृति उपन्यास के रूप में 'अलग अलग राहें (1962) पाठकों के समक्ष आई। दूसरा उपन्यास प्रीत की रीत (1969), तीसरा उपन्यास अंधेरे उजाले प्रकाशित हुआ।  चौथा उपन्यास कर्मयोगिनी(1992), पांचवा उपन्यास चिरंजीव(1994) तथा छठा उपन्यास रजनी (2002) प्रकाशित हुआ। आपके तीन

कहानी संग्रह टूटती कड़ियाँ(1993), झरोखा(1996) तथा इंतजार (2003) प्रकाशित हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त एक कविता संग्रह विस्मृतियांं (1997) प्रकाशित हुआ ।

    आपको अनेक संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित भी किया गया। अभी बीती 8 सितंबर 2023 को रोटरी क्लब धामपुर इंडस्ट्रियल एरिया द्वारा आपको शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए मरणोपरांत सम्मान से विभूषित किया गया ।

    आपका निधन तीन अप्रैल 2005 को मुरादाबाद में सिविल लाइंस स्थित अपने आवास मिश्रा भवन में हुआ ।



✍️  डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

   


रविवार, 6 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पुष्पेंद्र वर्णवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 




प्रख्यात साहित्यकार, इतिहासकार एवं पुरातत्ववेत्ता  पुष्पेंद्र वर्णवाल का जन्म मुरादाबाद नगर के नबावपुरा मोहल्ले में 4 नवंबर 1946 को हुआ था ।  

         तीन भाइयों एवं दो बहनों में सबसे बड़े पुष्पेंद्र वर्णवाल का वास्तविक नाम उमेश पाल वर्णवाल था ।आपके पिता नेत्र पाल एवं माता जी शांति देवी के व्यक्तित्व का आप पर पूरा प्रभाव पड़ा। आपने अपने पिताजी से ही छंद और गति पर अधिकार प्राप्त कर दिया था। विद्यार्थी जीवन काल में सन 1966 में पुस्तकालय विज्ञान में प्रमाण पत्र परीक्षा उत्तीर्ण कर कुछ समय उपरांत उत्तर प्रदेश पुस्तकालय संघ की मुरादाबाद शाखा के सचिव पद पर 1974 से 1976 ईस्वी तक रहे। नियमित अध्ययन करते हुए आगरा विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में 1972 ईस्वी में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की ।इसी बीच 25 जून 1972 को मृदुला गुप्ता से परिणय हुआ किंतु संयुक्त परिवार में आस्थावान, स्वभाव से फक्कड़, अपने ही ढंग से जीने की अलमस्त शैली वाले कवि का साथ न दे पाने के कारण विवाह के तुरंत बाद ही पत्नी का आपसे संबंध विच्छेद हो गया ।श्री वर्णवाल कुछ समय उत्तरकाशी में प्राध्यापक भी रहे । आप यहां नगर निगम में कार्यरत भी रहे ।परंतु स्पष्टवादिता और सत्य के प्रतिपादन में अपने स्वाभिमान को भी बनाए रखने की हठ में इनका किसी भी नौकरी में निर्वाह नहीं हो पाया और आपने नगर निगम की नौकरी से इस्तीफा दे दिया। विद्यार्थी काल से ही आपकी रुचि लेखन के प्रति हो गई थी ।आपकी रचनाएं वर्ष 1965 में पहली बार दिल्ली से प्रकाशित सैलानी पत्र में प्रकाशित हुई ।उसके पश्चात प्रदेश पत्रिका, दैनिक भास्कर,नव सत्यम, वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं ।
        श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल की कृतियों में  मुक्तक संग्रह- रिमझिम,  लघु काव्य -  अभीक, ऋषि, खण्डकाव्य - शब्द मौन , विराधोद्धार, प्रबंध काव्य - उत्पविता, सिंधु विजय, गीत- विगीत संग्रह- प्रणय दीर्घा, प्रणय योग, प्रणय बंध, प्रणय प्रतीति,  प्रणय परिधि, प्रणय पर्व, नाट्य वार्तिक- बीज और बंजर जमीन, कविता संग्रह - अबला,इतिहास- ब्रज यान की आधार भूमि, समीक्षा- विजय पताका एक विहंगम दृष्टि ,निबंधकार महामोपाध्याय पंडित रघुवर आचार्य ,  उपन्यास - रामानन्द बाल विरद उल्लेखनीय हैं।  
    आपकी मुरादाबाद के शिक्षण संस्थान, मुरादाबाद के पूजा स्थान और बलि विज्ञान नामक तीन कृतियों का जापानी भाषा में अनुवाद ओसाका(जापान) निवासी प्रसिद्ध हिंदीविद डॉ कात्सुरा  कोगा द्वारा किया जा चुका है ।इसके अतिरिक्त आपकी कृति विरोधोद्धार का डॉ भूपति शर्मा जोशी द्वारा संस्कृत और शब्द मौन का ऋषिकांत शर्मा द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद हो चुका है । आपकी कुछ कहानियों व लघुकथाओं का गुजराती व पंजाबी भाषा में भी अनुवाद हुआ है । मुरादाबाद जनपद के इतिहास के संबंध में उनके खोजपूर्ण लेख अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए ।
        आपके कृतित्व पर शोध प्रबंध - प्रणय मूल्यों की अभिव्यक्ति :नूतन शिल्प विधान (पुष्पेंद्र वर्णवाल के काव्य लोक में) -जय प्रकाश तिवारी 'जेपेश', पुष्पेंद्र वर्णवाल के विगीत-एक तात्विक विवेचन -डॉ कृष्ण गोपाल मिश्र, कवि पुष्पेंद्र वर्णवाल और उनका साहित्य - डॉ एस पी शर्मा,  विगीत और प्रेयस- डॉ छोटे लाल शर्मा नागेंद्र प्रकाशित हो चुके हैं । 

     आपका पत्रकारिता के क्षेत्र में भी एक उल्लेखनीय योगदान रहा ।आपने प्रदेश पत्रिका का संपादन, चित्रक साप्ताहिक का समाचार संपादन किया तथा सिने पायल, फिल्मी जागृति , सागर तरंग के प्रबंध संपादक रहे ।

       पुष्पेन्द्र वर्णवाल जी को साहित्य के क्षेत्र में विशेष उल्लेखनीय योगदान के लिए समय- समय पर भारत की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विविध उपाधियों, अलंकरणों और सम्मानों द्वारा विभूषित भी किया गया है जिनका विवरण इस प्रकार है-- विश्व हिन्दू सम्मेलन काठमाण्डू नेपाल द्वारा 'साहित्यालंकार' सम्मान (1982), साहू शिव-शक्तिशरण कोठीवाल स्मारक समिति, मुरादाबाद द्वारा साहित्य सम्मान' (1988), हैदराबाद हिन्दी अकादमी, आन्ध्र प्रदेश द्वारा साहित्य सम्मान' (1992), जगद्गुरु रामानन्दाचार्य पीठ, अहमदाबाद (गुजरात) द्वारा साहित्य सम्मान' (1994), सृजन (साहित्यिक - सांस्कृतिक-संस्था), उत्तरकाशी (उत्तराखण्ड) द्वारा साहित्य सम्मान' (2004), हिन्दी साहित्य संगम, मुरादाबाद (उ.प्र.) द्वारा 'साहित्य श्री सम्मान' (2005), राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति मुरादाबाद (उ.प्र.) द्वारा साहित्य गौरव सम्मान (2006), श्री पुष्पेन्द्र वर्णवाल हीरक जयन्ती अभिनन्दन समिति द्वारा हीरक जयन्ती सम्मान (2006), रूहेलखण्ड साहित्य-साधना संस्था, बरेली द्वारा सृजन सम्मान' (2009), अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मेरठ (उ.प्र.) द्वारा 'साहित्य भूषण सम्मान' (2012), अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद (उ.प्र.) द्वारा काठमाण्डू (नेपाल) में 'साहित्य श्री सम्मान' (2013), अन्तर्राष्ट्रीय साहित्य संगम, सम्भल (उ.प्र.) द्वारा साहित्य - वैभव सम्मान' ( 2018 ) ।
     विभिन्न संस्थाओं के अध्यक्ष और पदाधिकारी भी रहे। वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद  के वह वरिष्ठ सदस्य थे ।
4 जनवरी 2019 को उन्होंने मुरादाबाद में यह नश्वर देह त्याग दी ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

Sahityikmoradabad.blogspot.com
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मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ भूपति शर्मा जोशी पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 




डॉ भूपति शर्मा जोशी का जन्म तहसील अमरोहा के ग्राम सरकड़ा कमाल में मार्गशीर्ष शुक्ल तृतीया तदनुसार *13 दिसंबर 1920* को सोमवार के दिन हुआ था। आपके पिता का नाम तेजो राम शर्मा तथा माता का नाम रिसालो देवी था। उनके पूर्वज महाराष्ट्र में कोंकण क्षेत्र के निवासी थे। कालांतर में आपके पितामह नंदराम के पितामह  पंजाब होकर मुरादाबाद जनपद में आ बसे थे। 

       डॉ जोशी की प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। वर्ष 1932 में अमरोहा के तहसीली स्कूल में प्रवेश लिया। वर्ष 1935 में हिंदी और वर्ष 1936 में उर्दू मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1944 तक विशेष योग्यता के साथ हिंदी प्रभाकर (ऑनर्स), साहित्य रत्न एवं संस्कृत साहित्य शास्त्री परीक्षाएं उत्तीर्ण की और धामपुर (जनपद बिजनौर स्थित के एम इंटर कॉलेज में हिंदी शिक्षक के रूप में नियुक्त हो गए। अध्यापन कार्य के दौरान उच्च अध्ययन के प्रति आप की ललक निरंतर बनी रही। वर्ष 1950 में साहित्याचार्य,  वर्ष 1955 में स्नातकोत्तर हिंदी और वर्ष 1958 में स्नातकोत्तर संस्कृत की परीक्षाएं उत्तीर्ण की । इसी मध्य आपका विवाह फतेहपुर विश्नोई निवासिनी लीलावती से हो गया। कुछ समय बाद पत्नी का अस्वस्थता के कारण असामयिक निधन हो गया। दूसरा विवाह अमरोहा निवासी मोहन लाल शर्मा की सुपुत्री मनोरमा जोशी से हुआ। 

       वर्ष 1957 में आपको केंद्रीय गृह मंत्रालय (वर्तमान में राजभाषा विभाग) की हिंदी शिक्षण योजना के अंतर्गत प्राध्यापक के रूप में कोचीन (केरल प्रदेश) में जाकर सरकारी कर्मचारियों को हिंदी सिखाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। इस योजना के अंतर्गत आपने लगभग 20 वर्षों 1978 तक अहिंदी भाषी प्रांतों में हिंदी की अलख जगाई। सेवाकाल के दौरान ही उन्होंने बंगला, असमिया और मलयालम भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। इसके अलावा उन्हें फारसी भाषा का भी ज्ञान था। वर्ष 1968 में उन्होंने विविध भाषा मर्मज्ञ डॉ रमानाथ त्रिपाठी के निर्देशन में शोध कार्य पूर्ण किया ,जिसका विषय था- *फारसी भाषा से हिंदी में आगत शब्दों का भाषा शास्त्रीय अध्ययन* । 

      साहित्य सर्जन के नवांकुर तो आपके भीतर बाल्यकाल से ही प्रस्फुटित होने लगे थे। आप जब कक्षा 6 के विद्यार्थी थे तो आपने पहली कविता *बालचर* शीर्षक से लिखी थी। धामपुर में सेवाकाल के दौरान विद्यालय के प्रधानाचार्य और वीर रस के कवि पंडित अनूप शर्मा ने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित किया। उन्हीं से प्रेरित होकर उन्होंने 68 छंदों की एक काव्य रचना *प्रोत्साहन* का प्रणयन किया। ( यह रचना 1960 में केरल प्रवास के दौरान केरल भारती पत्रिका में प्रकाशित भी हुई।)   उसके बाद तो उनकी लेखनी रुकी ही नहीं।केरल प्रवास के दौरान उनकी काव्य प्रतिभा को नए आयाम मिले। उन्होंने हिंदी के साथ-साथ संस्कृत भाषा में भी गीतों और छंदों की रचना की । इसके अतिरिक्त बंगला भाषा के पद्य नाटक *मीराबाई* और असमिया के उपन्यास *सपोन जोतिया मांगे* का हिंदी में अनुवाद किया। मलयालम की अनेक कविताओं का भी पद्यानुवाद किया। मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल के खंडकाव्य *विराधोद्धार* का संस्कृत भाषा में रूपांतर भी किया। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि उनका संपूर्ण साहित्य अप्रकाशित है । 

अपने अनेक देशों में हिंदी व सनातन धर्म का प्रचार प्रसार भी किया। आपके अनुज ज्योतिषाचार्य पंडित डाल चंद शास्त्री महर्षि महेश योगी के सलाहकार थे। वर्ष 1955 में ममतामयी मां रिसालो देवी के निधन के उपरांत वह अपने अनुज के माध्यम से महर्षि महेश योगी के संपर्क में आये और पेरु, चिली, पनामा, मैक्सिको, हॉलैंड, कोलंबिया, जर्मनी, यूएसए आदि देशों में हिंदी व सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया।

     आपको महानगर की विभिन्न संस्थाओं साहू शिव शक्ति शरण कोठीवाल स्मारक समिति, राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, ब्राह्मण महासभा, मानसरोवर कन्या इंटर कालेज द्वारा सम्मानित भी किया गया ।

 आप का निधन 15 जून 2009 को गांधीनगर,मुरादाबाद स्थित आवास पर हुआ।

::::;;प्रस्तुति ::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

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मुरादाबाद के रंगकर्मी मास्टर फिदा हुसैन नरसी पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख प्रकाशित हुआ था दैनिक जागरण मुरादाबाद के 11 जुलाई 1999 के अंक में ...









मुरादाबाद के मास्टर फिदा हुसैन नरसी पारसी रंगमंच के वह आखिरी चिराग थे, जिन्होंने पारसी एवं हिन्दी रंगमंच को न केवल समृद्ध किया अपितु उसे विकसित भी किया। रंगमंच की नई पीढ़ी को पारसी रंगकर्म से परिचित कराया । अपनी एक सौ पांच वर्ष की आयु में भी वह सक्रिय रूप से रंगमंच से जुड़े हुए थे।

मुरादाबाद में 11 मार्च 1894 में जन्मे मास्टर फिदा हुसैन नरसी को अभिनय, गायन या वादन का शौक विरासत में नहीं मिला था। उनके परिवार में इनसे दूर-दूर तक का वास्ता न था। सन 1911 में कठपुतली का तमाशा देखकर वह अभिनय के प्रति आकृष्ट हुए और फिर उम्र के अंतिम पड़ाव तक रंगमंच से जुड़े रहे।

सन् 1917 में वह रामदयाल ड्रामेटिक क्लब से जुड़े। उस समय उन्होंने क्लब द्वारा मंचित किये गये नाटक “शाही फकीर“ में महिला कलाकार का अभिनय किया। सन् 1918 में उनकी मुलाकात दिल्ली में न्यू एल्फ्रेड कम्पनी के निदेशक मानिक शाह से हुई। यह कंपनी मुख्य रूप से पारसी नाटकों का मंचन करती थी। मास्टर फिदा हुसैन की कद काठी और बुलंद आवाज मानिक शाह को भा गयी। उन्होंने और कंपनी के लेखक निर्देशक पं. राधेश्याम कथा वाचक ने फिदा हुसैन की प्रतिभा को परखकर उन्हें कंपनी में शामिल कर लिया। इस कम्पनी में उन्होंने लगभग 12 वर्ष तक काम किया। सन 1921 में महात्मा गांधी अहमदाबाद में भक्त प्रहलाद नाटक में उनके अभिनय से खासे प्रभावित हुए।
   सन् 1928 में इसी कंपनी के नाटक ईश्वर भक्ति में मास्टर साहब के अभिनय और आवाज की तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मोतीलाल नेहरू सरोजिनी नायडू और पं. मदन मोहन मालवीय ने बेहद सराहना की। इस नाटक के एक गाने (निर्बल के प्राण पुकार रहे. जगदीश हरे, जगदीश हरे) ने तो मा. फिदा हुसैन को कामयाबी की बुलंदी पर पहुंचा दिया। उसके बाद भक्त नरसी मेहता नाटक में नरसी भगत के रूप में मा. फिदा हुसैन को देखकर जगदगुरु शंकराचार्य इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्हें नरसी की उपाधि से विभूषित कर दिया। उसी दौरान महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनके अभिनय को देखकर प्रेमशंकर की उपाधि से
अलंकृत किया और मा. फिदा हुसैन प्रेमशंकर और नरसी के नाम से विख्यात हो गये। उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र, नल दमयंती, यहूदी की लड़की, चंद्रावली, खूबसूरत बला, गर्म खून, सीता वनवास, ख्वाबे हस्ती, सिल्वर किंग, वीर अभिमन्यु, हिटलर आदि नाटकों में यादगार अभिनय किया था। इस समय तक उन्हें डेढ़ सौ से अधिक स्वर्ण  पदक प्राप्त हो चुके थे तथा गायक, संगीतकार नाटककार के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके थे। सन् 1932 में प्रसिद्ध ग्रामोफोन रिकार्ड कम्पनी एचएमवी ने उन्हें कलकत्ता में अपना ड्रामा डायरेक्टर नियुक्त किया।इस कंपनी में उन्होंने दस साल तक काम किया। इसी दौरान जहांआरा बेगम उर्फ कजन बाई की कंपनी, कजन थियेट्रिकल कंपनी में उन्होंने लैला मजनू, शीरी फरहाद बिल मंगल, गरीब का दर्द और हुमायूँ आदि नाटकों में मुख्य भूमिका निभाई।
    सन् 1948 में उन्होंने कलकत्ता में अपनी निजी मून लाइट कंपनी स्थापित की। फिल्म जगत में उनका प्रवेश सन 1932 में हुआ। उनकी पहली फिल्म बाबूलाल चौरवानी द्वारा निर्मित और प्रफुल्लराय द्वारा निर्देशित रामायण थी। उसके बाद उन्होंने चारु राय की फिल्म मस्ताना, इंसाफ, डाकू का लड़का, सोहराब मोदी की फिल्म दिल की प्यास, खुदाई,सितमगर, मतवाली मीरा, मुंशी मेहंदी हसन की दिल फरोश, कुंवारी मां और गरीब की दुनिया फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई ।
     फिल्मी दुनिया को अलविदा कहकर वह फिर रंगमंच की दुनिया में लौट आये और मून लाइट कंपनी पुनः शुरू की। वर्ष 1968 तक रंगमंच की दुनिया में धूम मचाने के बाद वह अपने शहर मुरादाबाद वापस लौट आये।
    यहां आने के बाद भी यह निष्क्रिय नहीं रहे और आदर्श कला संगम से जुड़ गये। तब से अब तक लगातार वह नयी प्रतिभाओं को मार्ग दर्शन करते रहे। यहां आकर उन्होंने पारसी रंगमंच शैली से महानगर के रंगमंच को न केवल गौरवान्वित किया बल्कि इस शैली को नयी प्रतिभाओं को सिखाया भी। यहां उन्होंने आदर्श कला संगम के बैनर तले आगा खां कश्मीरी का तुर्की हूर, अहमद हसन का भाई बहिन और पं. राधेश्याम कथा वाचक का वीर अभिमन्यु नाटक मंचित किये।
   कलकत्ता की प्रतिभा अग्रवाल ने उनके कार्यों का मूल्यांकन करते हुए एक ग्रंथ मास्टर फिदा हुसैन, रंगमंच के 50 साल शीर्षक से प्रकाशित किया। उनके जीवन पर वृत्त चित्र बनाया गया। दूरदर्शन, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संगीत नाटक अकादमी, भारत भवन जैसे राष्ट्रीय संस्थानों में उनकी सेवायें ली जाने लगीं।
   सन् 1985 में उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकट रमन द्वारा उन्हें रंगमंच सम्राट की उपाधि से अलंकृत किया गया। उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें तीन वर्ष की मानद सदस्यता प्रदान की। वर्ष 94 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के सर्वोच्च सम्मान यश भारती से सम्मानित किया गया। जिला प्रशासन द्वारा भी दर्जनों बार सम्मानित मा. फिदा हुसैन नरसी के आवास वाली गली का नामकरण भी उनके नाम पर किया गया।  उन्हें रंग भारती सम्मान से भी प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया। उनका निधन 10 जुलाई 1999 को हुआ ।
   हिन्दी और परसी रंगमंच में उनका योगदान अब इतिहास बनकर रह गया है। अपनी शायरी, बेजोड़ अभिनय की छाप जो उन्होंने छोड़ी है वह युग-युगों तक अमिट रहेगी।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 




छायावादोत्तर काल के सशक्त साहित्यकार कैलाश चन्द्र अग्रवाल का जन्म 18 दिसम्बर 1927 को मुरादाबाद के मंडी बांस मुहल्ले में हुआ । आपके पिता साहू रामेश्वर शरण अग्रवाल सुसम्पन्न सराफा व्यवसायी थे । आपकी माता का नाम श्रीमती राम सुमरनी देवी था जो अमरोहा निवासी श्री ब्रज रत्न अग्रवाल की एकमात्र सन्तान थीं। आपके पितामह भूकन शरण अग्रवाल नगर के प्रतिष्ठित साहूकार थे।

कैलाश जी की प्रारम्भिक शिक्षा अग्रवाल पाठशाला मुरादाबाद में हुई । स्व० पंडित लेखराज जी शर्मा आपकी प्राथमिक शिक्षा के गुरू थे । आपने वर्ष 1944 एवं 1946 में क्रमशः हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की । वर्ष 1948 में आपने एसएम कालेज चंदौसी में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की । आपने हिन्दी में स्नातकोत्तर की उपाधि वर्ष 1950 में लखनऊ विश्वविद्यालय से प्राप्त की तदुपरांत वर्ष 1952 में आगरा विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त करने के बाद वह मुरादाबाद में वकालत करने लगे।
      आपका विवाह तीन मार्च सन् 1952 को तहसील जानसठ (जनपद मुजफ्फरनगर) निवासी श्री हनुमान प्रसाद जी की सुपुत्री संतोष से हुआ । आपके ज्येष्ठ पुत्र आलोक चन्द्र अग्रवाल का 3 जनवरी2008 को स्वर्गवास हो चुका है ।उनके पुत्र अक्षय अग्रवाल हैं । द्वितीय पुत्र अतुल चन्द्र अग्रवाल पैतृक व्यवसाय (सराफा) में संलग्न हैं । उनके पुत्र डॉ मनुशेखर अग्रवाल हैं ।
   वकालत के दौरान आपके पिता का स्वास्थ्य निरंतर खराब रहने लगा । फलतः अपने पिता श्री का आदेश मानकर आप सन 1962 में वकालत छोड़कर अपने पैतृक व्यापार में लग गये । अंतिम समय तक आप इसी व्यापार से जुड़े रहे ।
  वर्ष 1945 में, जब वह इंटरमीडिएट के छात्र थे किया उनकी रुचि काव्य लेखन की ओर अग्रसर होने लगी। अपने काव्य गुरु के संबंध में कैलाश चन्द्र अग्रवाल के अनुसार सेवानिवृत्त डिप्टी कलेक्टर श्री केशव चन्द्र मिश्र से उन्होंने छन्द आदि का शान प्राप्त किया तदुपरान्त स्व पंडित दुर्गादत्त त्रिपाठी उनके काव्य गुरु रहे । धीरे-धीरे वर्ष 1947 तक उनकी प्रतिभा इतनी विकसित हो गयी कि वह परिपक्वता के साथ छन्दोबद्ध काव्य के रूप में गीत विद्या के माध्यम से अपनी अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने लगे।  उनके प्रारम्भिक गीतों का प्रतिनिधि संकलन वर्ष 1965 में "सुधियों की रिमझिम में" स्थानीय आलोक प्रकाशन मंडी बांस के माध्यम से पाठकों को प्राप्त हुआ, जिसमें उनकी 1947 ई. से 1965 ई. तक की काव्य यात्रा के विभिन्न पड़ाव समाहित है। चौसठ गीतों  के इस संकलन के पश्चात कवि की यात्रा वर्ष 1981 में 'प्यार की देहरी' पर पहुंची। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनके सन 1965 के पश्चात रचे गए 81 गीत संगृहीत हैं । वर्ष 1982 में उनका मुक्तक संग्रह 'अनुभूति' प्रकाशित हुआ, जिसमें वर्ष 1971 से 1981 तक लिखे गए 351 मुक्तक संगृहीत हैं। यह यात्रा आगे बढ़ी और वर्ष 1984 में 'आस्था के झरोखों' से होती हुई वर्ष 1985 में "तुम्हारे गीत -तुम्ही को" गीत संग्रह के माध्यम से हिन्दी साहित्य की गीत विधा के भंडार को भरने तथा छन्दोबद्ध काव्य रचना करने की प्रेरणा देती रही ।वर्ष 1989 में गीत संग्रह "तुम्हारी पूजा के स्वर" पाठकों के सम्मुख प्रभात प्रकाशन दिल्ली द्वारा आया । इसमें आपके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 तक रचे गये 71 गीत संगृहीत है। अंतिम सातवीं कृति के रूप उनका गीत संग्रह 'मैं तुम्हारा ही रहूंगा' पाठकों के समक्ष आया। इसका प्रकाशन सन 1993 में हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ।इसमें उनके अप्रैल सन 1989 से मार्च 1992 के मध्य रचे 71 गीत संगृहीत हैं। कुल मिलाकर 441 गीतों और 351 मुक्तको के माध्यम से हिन्दी काव्य के भंडार में अपना योगदान दिया है । यह मुरादाबाद नगर का गौरव ही कहा जायेगा कि दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय दैनिक पत्र 'हिन्दुस्तान' के सम्पादकीय में आपकी काव्य पंक्तियां देश के दिग्गज साहित्यकारों के साथ अनेक बार उद्घृत की गयी ।

  इन संस्थाओं ने किया सम्मान
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हिन्दी की सुविख्यात साहित्यिक संस्था 'दधीचि हिन्दी साहित्य परिषद' सहारनपुर ने  7 दिसम्बर 1985 को आयोजित भव्य समारोह में उनके गीत संग्रह 'आस्था के झरोखों से' को वर्ष 1984 की सर्वश्रेष्ठ काव्य कृति घोषित करते हुए उन्हें  दो हजार पाँच सौ की धनराशि देकर सम्मानित किया और उन्हें 'कवि रत्न' की उपाधि से अलंकृत किया । उन्हें यह सम्मान प्रख्यात साहित्यकार जैनेंद्र कुमार द्वारा प्रदान किया गया।
वर्ष 1982 में मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से आयोजित राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन जन्मशती समारोह में
आपका साहित्यिक अभिनंदन किया गया ।
व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर हो चुके हैं शोधकार्य
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कैलाश चंद अग्रवाल के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य भी हो चुके हैं। वर्ष 1992 में कंचन प्रभाती ने कैलाश चंद अग्रवाल के काव्य में प्रणय तत्व शीर्षक से डॉ सरोज मार्कंडेय के निर्देशन में लघु शोध कार्य किया ।तत्पश्चात वर्ष 1995 में उन्होंने डॉ रामानंद शर्मा के निर्देशन में रुहेलखंड के प्रमुख छायावादोत्तर गीतिकार एवं श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीति काव्य का अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण कर पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की।
      वर्ष 2002 में गरिमा शर्मा ने डॉ मीना कौल के निर्देशन में स्वर्गीय कैलाश चंद अग्रवाल (जीवन सृजन और मूल्यांकन )शीर्षक से लघु शोध कार्य किया। वर्ष 2008 में श्रीमती मीनाक्षी वर्मा ने डॉ मीना कौल के ही निर्देशन में स्वर्गीय श्री कैलाश चंद अग्रवाल के गीतों का समीक्षात्मक अध्ययन शीर्षक पर शोध कार्य पूर्ण किया।
इन संस्थाओं से रहा जुड़ाव
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कैलाश चन्द्र अग्रवाल वर्ष 1954 से वर्ष 1961 तक मुरादाबाद नगर के हिन्दू स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गोकुल दास गुजराती हिन्दू इंटर कालेज, गोकुल दास गुजराती हिन्दू कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय, प्रताप सिंह कन्या इंटर कालेज तथा राजकला कन्या इंटर कालेज की प्रबन्धकारिणी समितियों के सक्रिय सदस्य रहे । मुरादाबाद की प्राचीन साहित्यिक संस्था 'अन्तरा' के आप संस्थापक सदस्य रहे ।
        वर्ष 1996 में 31 जनवरी को उन्होंने इस नश्वर देह को त्याग दिया ।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख






 

स्मृतिशेष श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ईश का जन्म 7 दिसंबर 1925 को मुरादाबाद में हुआ था। आपके पिता श्री शांति प्रसाद अग्रवाल खिलौनों के निर्माता व व्यापारी थे। आप की माता जी का नाम श्रीमती भगवती देवी था। चार भाइयों श्री राजेश्वर प्रसाद अग्रवाल, श्री मिथिलेश्वर प्रसाद अग्रवाल,श्री हृदयेश्वर प्रसाद अग्रवाल और एक बहन श्रीमती धर्मवती में सबसे बड़े श्री ईश्वर चंद्र गुप्त ईश के पितामह श्री कुंज बिहारी अग्रवाल थे।
आप की शिक्षा दीक्षा मुरादाबाद में ही हुई। आप ने वर्ष 1952 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से साहित्य रत्न की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1954 में स्नातक, वर्ष 1957 में बीटी, वर्ष 1962 में स्नातकोत्तर (अर्थशास्त्र) एवं वर्ष 1973 में स्नातकोत्तर (समाजशास्त्र) की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1957 में आप की नियुक्ति परसादी लाल झंडू लाल रस्तोगी इंटर कॉलेज में अध्यापक के रूप में हो गई। वर्ष 1965 में आप इसी विद्यालय में अर्थशास्त्र प्रवक्ता के पद पर पदोन्नत हुए तथा वर्ष 1985 -86 में प्रधानाचार्य पद पर कार्यरत रहे। कुछ समय उन्होंने महाराजा अग्रसेन इंटर कालेज में भी अध्यापन कार्य किया ।
  उनका विवाह काशीपुर के व्यापारी श्री कल्लू मल अग्रवाल की सुपुत्री दयावती से वर्ष 1941 में हुआ। आप के सबसे बड़े सुपुत्र श्री सर्वेश चंद्र गुप्ता पंजाब नेशनल बैंक में वरिष्ठ प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त होकर वर्तमान में मेरठ निवास कर रहे हैं। मंझले पुत्र डॉ आदेश चन्द्र अग्रवाल रामनगर में फार्मास्यूटिकल कंपनी एमआर  हेल्थ केयर में सीईओ हैं तथा सबसे छोटे सुपुत्र उपदेश चंद्र अग्रवाल मुरादाबाद के प्रसिद्ध आयकर व्यापार कर अधिवक्ता हैं। उनकी भी रुचि का काव्य लेखन में है। आपकी सुपुत्रियों आभा एवं शोभा का निधन हो चुका है तथा अमिता वर्तमान में सहारनपुर में निवास कर रही हैं।
   साहित्य के प्रति उनकी रुचि किशोरावस्था से ही थी। काव्य लेखन की शुरुआत के संदर्भ में वे स्वयं लिखते हैं ---"मेरी आयु सन 1933 में लगभग 9 वर्ष की थी। मेरी पूज्या मां जब मेरे  श्रद्धेय मामाजी को रामनगर (नैनीताल) कभी पत्र लिखवाती तो प्रायः  वह लय के साथ तुकबंदी में कुछ पंक्तियां भी मुझे बोल कर  लिखवा देती थीं जिन्हें मैं भी तब गुनगुनाया करता था। सम्भवतः तभी से तुकबंदी की रचना मेरे मानस पटल पर भी पाषाण में उत्कीर्ण जैसी अंकित हो गई होंगी, जो आज तक प्रेरक बनकर मेरे मौन अंतः करण को प्रति ध्वनित कर रही हैं । अतः मैं इस तुकबंदी का श्रेय प्रेरक स्त्रोत अपनी परम पूज्या प्रिय मां भगवती देवी को ही मानता हूं।" (कुछ मेरी कलम से - ईश अंजली)
    वर्ष 1991 में उनकी पहली काव्य कृति 'ईश गीति ग्रामर' प्रकाशित हुई। इस कृति में उन्होंने अंग्रेजी ग्रामर को पद्यबद्ध किया है। प्रत्येक पद में कही बात को स्पष्टीकरण एवं उदाहरण द्वारा भी समझाया गया है।
     वर्ष 1994 में उनकी दूसरी काव्य कृति 'चा का प्याला' प्रकाशित हुई। इस कृति में उन्होंने भारत में चाय का प्रवेश, चाय की महिमा, चाय और समाज के साथ-साथ भारत के इतिहास की झलक को 140 पदों में प्रस्तुत किया है।
      तीसरी कृति 'ईश दोहावली' का प्रकाशन भी वर्ष 1994 में हुआ। इसमें वंदना, नीतिपरक, धर्माचरण स्वास्थ्य, श्रृंगार और हास्य व्यंग्य के 151 दोहे हैं।    
      चौथी कृति 'ईश अर्चना' का प्रकाशन वर्ष 1995 में हुआ। इस कृति में उनकी वर्ष 1941 से 1995 तक की ईश वंदना विषयक कविताओं का संग्रह है।    
      वर्ष 1997 में प्रकाशित 'ईश अंजलि' उनकी पांचवी कृति है। इस कृति में उनकी 1940 से 1996 तक की 63 रचनाएं हैं। छठी कृति 'हिंदी के गौरव' का प्रकाशन वर्ष 2000 में हुआ। इस कृति में हिंदी के प्रमुख कवियों एवं लेखकों का जीवन परिचय, कृतित्व एवं काव्यगत विशेषताओं को पद्य गद्य में प्रस्तुत किया गया है । उनकी अंतिम सातवीं कृति चिंतन मनन वर्ष 2004 में प्रकाशित हुई।
      ईश जी की रचनाएं विभिन्न साझा काव्य संकलनों  उन्मादिनी (संपादक शिवनारायण भटनागर साकी ), समय के रंग (संपादक अशोक विश्नोई व डॉ प्रेमवती उपाध्याय), उपासना (संपादक अशोक विश्नोई ), 31 अक्टूबर के नाम( संपादक अशोक विश्नोई ) आदि में भी प्रकाशित हुईं।
       कविवर मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, पंडित ज्वाला दत्त शर्मा जन्मशताब्दी कथा सम्मान के अतिरिक्त विभिन्न संस्थाओं कार्तिकेय, लायंस क्लब दीपशिखा, विभावरी (सहारनपुर), जनता सेवक समाज, डॉ हितेश चंद्र गुप्त मेमोरियल सोसायटी, साहू शिवशक्ति शरण कोठीवाल स्मारक समिति, अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनंदन समिति (मथुरा) सीनियर सिटीजन वेलफेयर सोसाइटी, सागर तरंग प्रकाशन, आकार आदि द्वारा भी समय-समय पर उन्हें सम्मानित किया गया।
         महानगर की विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं से भी ईश जी जुड़े रहे। वह मुरादाबाद की प्राचीन साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य सदन के संस्थापक सदस्य थे। उनका निधन 26 दिसंबर 2011 को उनके कानूनगोयान स्थित आवास पर हुआ।
:::::::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष प्रो.महेंद्र प्रताप के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख





 प्रो . महेंद्र प्रताप जी का जन्म 22 अगस्त 1923 को वाराणसी जनपद के  गांव सोनहुला में हुआ था। आपके पिता श्री नंदकिशोर लाल प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। माता का नाम क्षत्राणी देवी था। आप के दादा का नाम बेनी माधव प्रसाद था। 

   उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी एवं इलाहाबाद में हुई। प्रारंभ से ही वह मेधावी थे। वर्नाक्यूलर मिडिल परीक्षा में उन्होंने प्रदेश में 16 स्थान प्राप्त किया था । वर्ष 1942 में हाईस्कूल, वर्ष 1944 में इंटरमीडिएट, वर्ष 1946 में  बीए किया। वर्ष 1948 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए( हिंदी) में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। प्रख्यात साहित्यकार *सुमित्रानंदन पंत* के शब्दों में ''श्री महेंद्र प्रताप जी से मैं अच्छी तरह परिचित हूं वह प्रयाग विश्वविद्यालय के छात्र रहे और अभी पिछले साल उन्होंने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमए किया है और प्रथम स्थान भी पाया है और परीक्षाओं में भी वह इसी प्रकार प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। विद्यार्थी जीवन के अतिरिक्त भी जिसमें वह अपने अध्यवसाय और कुशलता के कारण अपने अध्यापकों के प्रिय रहे । "

      आपका विवाह श्री विंध्यांचल प्रसाद वर्मा की सुपुत्री शांति वर्मा से 2 जून 1948 को हुआ। अगस्त 1948 से दिसंबर 1948 तक उन्होंने के पी यूनिवर्सिटी कॉलेज इलाहाबाद में अध्यापन कार्य किया तदुपरांत 6 दिसंबर 1948 को यहां के जीके महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया । लगभग एक वर्ष (1960-61)डीएसएम डिग्री कॉलेज कंठ में प्राचार्य भी रहे, उसके बाद वह पुनः केजीके कालेज आ गए और वर्ष 1974 से जून 1983 तक महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर रहे।

     साहित्य के प्रति उनकी अभिरुचि प्रारम्भ से ही थी। उन्होंने पहली कविता उस समय लिखी जब वह जूनियर हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। बाद में वाराणसी तथा प्रयागराज (इलाहाबाद)में अपनी रचनाशीलता को विकसित और सम्पन्न किया। डॉ धर्मवीर भारती, विजयदेव नारायण साही, डॉ शम्भूनाथ सिंह, डॉ जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि उनके सहपाठी/साहित्यिक मित्र रहे हैं। आरम्भ में पंडित श्याम नारायण पांडे से भी उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला। डॉ सम्पूर्णानंद, भगवती शरण ,कमलेश्वर, डॉ नामवर सिंह, नरेश मेहता का भी उन्हें स्नेह प्राप्त था। यह बिडंबना ही कही जाएगी कि एक अत्यंत संवेदनशील साहित्यकार की स्वतंत्र रूप से अभी तक कोई कृति प्रकाशित नहीं हो सकी है। आप के अनेक गीत केजीके महा विद्यालय की वार्षिक पत्रिकाओं और विभिन्न काव्य संकलनो में  प्रकाशित हुए हैं। आपके निधन के पश्चात डॉ अजय अनुपम और आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई के संयुक्त संपादन और सुरेश दत्त शर्मा के  प्रबंध संपादन में प्रकाशित पुस्तक "महेंद्र मंजूषा" में उनके 21गीत, दो ग़ज़लें और 14 मुक्तक संकलित हैं।  उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हिन्दी कहानी, पन्द्रह पगचिह्न, निबंध निकष, कहानी पथ, गद्य विविधा तथा एकांकी पथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक-स्नातकोत्तर हिन्दी पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती रही हैं । आपने मुरादाबाद के अनेक साहित्यकारों की कृतियों की भूमिकाएं भी लिखीं।

    मुरादाबाद में साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए 14 अप्रैल 1963 को अंतरा संस्था की स्थापना की।  इसकी विशेषता थी कि इसमें एकमात्र पदाधिकारी संयोजक ही होता था। अन्य सभी सदस्य थे। सदस्यों की अधिकतम  संख्या 25 निर्धारित की गई थी। मासिक शुल्क दो रुपये था । संस्था की बैठकों में केवल सदस्य ही शामिल होते थे। अंतरा के संस्थापक सदस्यों में मदन मोहन व्यास, प्रभु दत्त भारद्वाज,डॉ राममूर्ति शर्मा, गिरधर दास पोरवाल, अम्बालाल नागर, सर्वेश्वर सरन सर्वे,बहोरी लाल शर्मा, कैलाश चंद अग्रवाल, डॉ बृज पाल शरण रस्तोगी, डॉ ज्ञान प्रकाश सोती,  सुरेश दत्त शर्मा पथिक, डॉ विश्वअवतार जैमिनी मुख्य थे । इसकी बैठक माह में दो बार होती थीं। ये बैठकें सामान्यतः अमरोहा गेट स्थित रस्तोगी इंटर कॉलेज में होती थीं।

 हिंदुस्तानी अकादमी के सचिव भी रहे : वह महानगर की अनेक साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के संरक्षक और अध्यक्ष रहे। इनमें तरुण शिखा, आदर्श कला संगम, आरोही, मंजरी, माला, सवेरा, संस्कार भारती, हिन्दी साहित्य सदन, नूतन कला मंदिर, जनता सेवक समाज  मुख्य संस्थाएं थीं। यही नहीं उन्हें प्रदेश के राज्यपाल द्वारा हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज का सचिव कोषाध्यक्ष भी मनोनीत किया गया था । 

 अनेक साहित्यकारों ने उनके निर्देशन में पूर्ण किया शोध कार्य : प्रो महेंद्र प्रताप जी के निर्देशन में 22  विद्यार्थियों ने शोध कार्य पूर्ण कर के पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। इनमें से मुख्य हैं- डॉ कृष्ण जी भटनागर, डॉ गोपी चंद्र शर्मा,  डॉ विश्व अवतार जैमिनी, डॉ इंदिरा गुप्ता, डॉ एसपी सक्सेना, डॉ प्रभा कपूर,  डॉ राकेश मधुकर,  डॉ मक्खन मुरादाबादी , डॉ किरण गर्ग , डॉ वंदना रानी, डॉ वाचस्पति शर्मा , डॉ शंकर लाल शर्मा और डॉ जगदीश शरण ।  

        महानगर की अनेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर उनको सम्मानित एवं नागरिक अभिनन्दन किया जाता रहा है । 

      उनका  निधन 20 जनवरी 2005 को काशी में हुआ।


 


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

 8,जीलाल स्ट्रीट 

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मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ललित मोहन भारद्वाज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख

 







ललित मोहन भारद्वाज का जन्म मुरादाबाद में अपनी ननिहाल में 8 अगस्त 1936 ई को हुआ । आपके पितामह पं थान सिंह शर्मा, बुलंदशहर में हेड मास्टर थे। आप स्वनाम धन्य कवि थे । आपके पिता का नाम प्रभुदत्त भारद्वाज था। वह अलौकिक प्रतिभासम्पन्न, शिक्षाशास्त्री, विद्यानुरागी साहित्यप्रेमी और एचएसबी इंटर कालेज मुरादाबाद के प्रधानाचार्य थे। मुरादाबाद में आयोजित होने वाले अधिकांश सामाजिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों की अध्यक्षता करने के कारण 'सभापति जी' नाम से भी विख्यात हो गए थे । आपकी माता जी डा० गिरिजा देवी भारद्वाज भी एक अच्छी कवयित्री थीं । आपके नाना पंडित अम्बिका प्रसाद शर्मा जी भी प्रख्यात शिक्षाविद तथा मुरादाबाद के अम्बिका प्रसाद इंटर कालेज के संस्थापक थे । इस तरह उन्हें साहित्यिक और कलात्मक संस्कार विरासत में ही प्राप्त हुए।

    आपकी प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय इंटर कालेज में हुई। इस विद्यालय से आपने वर्ष 1951 में हाई स्कूल एवं वर्ष 1953 में इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके पश्चात् आप उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए इलाहाबाद चले गये इलाहाबाद विश्व विद्यालय से वर्ष 1956 में आपने स्नातक, वर्ष 1958 में प्राचीन इतिहास एवं वर्ष 1960 में हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर उपाधियां प्राप्त की। आपने वहीं एलएलबी में प्रवेश ले लिया लेकिन आकाशवाणी पूना केन्द्र में आपकी नियुक्ति वर्ष 1961 में हो जाने के कारण एक वर्ष उपरान्त आपको पढ़ाई छोड़नी पड़ी।  आप आकाशवाणी पूना में 1964 तक रहे, उसके बाद चार वर्ष लखनऊ केन्द्र में कार्यक्रम निष्पादक पद पर रहे। वर्ष 1968 में आपका स्नानान्तरण आकाशवाणी कोहिमा में हो गया । वर्ष 1969 में पिता जी के देहान्त के कारण आपको आकाशवाणी की सेवा से त्यागपत्र देना पड़ा और आप स्थायी रूप से मुरादाबाद आकर बस गये । यहाँ आकर आपने वंदना प्रिंटर्स नाम से प्रकाशन व मुद्रण व्यवसाय आरम्भ किया । वर्ष 1990 में आपको ब्रेन हेमरेज हो गया, जिसके कारण आपको यह व्यवसाय बंद करना पड़ा । लगभग डेढ़ वर्ष तक शारीरिक पीड़ा भोगने के बाद आपने औषधि व्यवसाय आरम्भ किया।

     इसी बीच दो जुलाई 1964 में आगरा निवासी पंडित जगन्नाथ प्रसाद शर्मा एडवोकेट की सुकन्या निर्मला भारद्वाज से आपका पाणिग्रहण संस्कार हुआ । आपके चार पुत्रियाँ नमिता, इरा कौशिक, हिमानी भारद्वाज , वाणी भारद्वाज एवं एक पुत्र चारु मोहन है। चारु मोहन मुम्बई में म्यूजिक डायरेक्टर हैं।

     साहित्यिक संस्कार तो उनमें प्रारम्भ से ही थे लेकिन इलाहाबाद में शिक्षाध्ययन के दौरान उन्होंने लेखन कार्य शुरू किया। इलाहाबाद में ही आपने विभिन्न नाटकों में अभिनय किया तथा अनेक नाटक एवं रेडियो रूपक लिखे, जिनका प्रसारण आकाशवाणी से हुआ । इलाहाबाद प्रवास के दौरान उन्हें महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला' तथा पंडित सुमित्रानंदन पंत का भरपूर आशीष मिला, जिससे उनकी प्रतिभा निखरती गई।

   आकाशवाणी पूना में कार्य करते हुए उन्होंने पूना फिल्म इंस्टीट्यूट द्वारा एस दिनकर के निर्देशन में निर्मित पहले सवाक् वृत्त चित्र 'गाँव की ओर' में मुख्य नायक की भूमिका भी की । आपने मुरादाबाद में अप्रैल 1973 में हिन्दी मासिक 'प्रभायन' का संपादन व प्रकाशन किया । यह पत्रिका नवनीत और कादम्बिनी के समकक्ष कही जा सकती है। कतिपय कारणवश कुछ समय पश्चात इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा।

    स्वतंत्र रूप से आपका मुक्तक संग्रह 'प्रतिबिम्ब प्रकाशित हो चुका है तथा तीन कृतियाँ अप्रकाशित है । आपने मां दुर्गा की स्तुति में 108 मुक्तकों का सृजन भी किया । यह कृति प्रकाशनाधीन है।

    आपको विभिन्न संस्थाओं द्वारा समय समय पर सम्मानित भी किया जाता रहा है । 2 जनवरी 1995 को आपको साहू शिवशक्ति शरण कोठीवाल स्मारक समिति द्वारा  साहित्य के क्षेत्र में जिले के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया ।

   आप अनेक शिक्षण एवं साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध भी रहे । अंबिका प्रसाद इंटर कालेज मुरादाबाद के आप प्रबंधक रहे। इसके अतिरिक्त एचएसबी० इंटर कालेज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद पर भी आप कई वर्षों तक रहे । आपका निधन 12 मार्च 2009 को आगरा में हुआ ।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी 

 8,जीलाल स्ट्रीट

 मुरादाबाद 244001

 उत्तर प्रदेश, भारत

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