प्रो . महेंद्र प्रताप जी का जन्म 22 अगस्त 1923 को वाराणसी जनपद के गांव सोनहुला में हुआ था। आपके पिता श्री नंदकिशोर लाल प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। माता का नाम क्षत्राणी देवी था। आप के दादा का नाम बेनी माधव प्रसाद था।
उनकी शिक्षा-दीक्षा वाराणसी एवं इलाहाबाद में हुई। प्रारंभ से ही वह मेधावी थे। वर्नाक्यूलर मिडिल परीक्षा में उन्होंने प्रदेश में 16 स्थान प्राप्त किया था । वर्ष 1942 में हाईस्कूल, वर्ष 1944 में इंटरमीडिएट, वर्ष 1946 में बीए किया। वर्ष 1948 में उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए( हिंदी) में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया। प्रख्यात साहित्यकार *सुमित्रानंदन पंत* के शब्दों में ''श्री महेंद्र प्रताप जी से मैं अच्छी तरह परिचित हूं वह प्रयाग विश्वविद्यालय के छात्र रहे और अभी पिछले साल उन्होंने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमए किया है और प्रथम स्थान भी पाया है और परीक्षाओं में भी वह इसी प्रकार प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए हैं। विद्यार्थी जीवन के अतिरिक्त भी जिसमें वह अपने अध्यवसाय और कुशलता के कारण अपने अध्यापकों के प्रिय रहे । "
आपका विवाह श्री विंध्यांचल प्रसाद वर्मा की सुपुत्री शांति वर्मा से 2 जून 1948 को हुआ। अगस्त 1948 से दिसंबर 1948 तक उन्होंने के पी यूनिवर्सिटी कॉलेज इलाहाबाद में अध्यापन कार्य किया तदुपरांत 6 दिसंबर 1948 को यहां के जीके महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया । लगभग एक वर्ष (1960-61)डीएसएम डिग्री कॉलेज कंठ में प्राचार्य भी रहे, उसके बाद वह पुनः केजीके कालेज आ गए और वर्ष 1974 से जून 1983 तक महाविद्यालय में प्राचार्य पद पर रहे।
साहित्य के प्रति उनकी अभिरुचि प्रारम्भ से ही थी। उन्होंने पहली कविता उस समय लिखी जब वह जूनियर हाई स्कूल में पढ़ रहे थे। बाद में वाराणसी तथा प्रयागराज (इलाहाबाद)में अपनी रचनाशीलता को विकसित और सम्पन्न किया। डॉ धर्मवीर भारती, विजयदेव नारायण साही, डॉ शम्भूनाथ सिंह, डॉ जगदीश गुप्त, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना आदि उनके सहपाठी/साहित्यिक मित्र रहे हैं। आरम्भ में पंडित श्याम नारायण पांडे से भी उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला। डॉ सम्पूर्णानंद, भगवती शरण ,कमलेश्वर, डॉ नामवर सिंह, नरेश मेहता का भी उन्हें स्नेह प्राप्त था। यह बिडंबना ही कही जाएगी कि एक अत्यंत संवेदनशील साहित्यकार की स्वतंत्र रूप से अभी तक कोई कृति प्रकाशित नहीं हो सकी है। आप के अनेक गीत केजीके महा विद्यालय की वार्षिक पत्रिकाओं और विभिन्न काव्य संकलनो में प्रकाशित हुए हैं। आपके निधन के पश्चात डॉ अजय अनुपम और आचार्य राजेश्वर प्रसाद गहोई के संयुक्त संपादन और सुरेश दत्त शर्मा के प्रबंध संपादन में प्रकाशित पुस्तक "महेंद्र मंजूषा" में उनके 21गीत, दो ग़ज़लें और 14 मुक्तक संकलित हैं। उनके द्वारा संपादित पुस्तकें हिन्दी कहानी, पन्द्रह पगचिह्न, निबंध निकष, कहानी पथ, गद्य विविधा तथा एकांकी पथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के स्नातक-स्नातकोत्तर हिन्दी पाठ्यक्रमों में पढ़ाई जाती रही हैं । आपने मुरादाबाद के अनेक साहित्यकारों की कृतियों की भूमिकाएं भी लिखीं।
मुरादाबाद में साहित्यिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिए 14 अप्रैल 1963 को अंतरा संस्था की स्थापना की। इसकी विशेषता थी कि इसमें एकमात्र पदाधिकारी संयोजक ही होता था। अन्य सभी सदस्य थे। सदस्यों की अधिकतम संख्या 25 निर्धारित की गई थी। मासिक शुल्क दो रुपये था । संस्था की बैठकों में केवल सदस्य ही शामिल होते थे। अंतरा के संस्थापक सदस्यों में मदन मोहन व्यास, प्रभु दत्त भारद्वाज,डॉ राममूर्ति शर्मा, गिरधर दास पोरवाल, अम्बालाल नागर, सर्वेश्वर सरन सर्वे,बहोरी लाल शर्मा, कैलाश चंद अग्रवाल, डॉ बृज पाल शरण रस्तोगी, डॉ ज्ञान प्रकाश सोती, सुरेश दत्त शर्मा पथिक, डॉ विश्वअवतार जैमिनी मुख्य थे । इसकी बैठक माह में दो बार होती थीं। ये बैठकें सामान्यतः अमरोहा गेट स्थित रस्तोगी इंटर कॉलेज में होती थीं।
हिंदुस्तानी अकादमी के सचिव भी रहे : वह महानगर की अनेक साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं के संरक्षक और अध्यक्ष रहे। इनमें तरुण शिखा, आदर्श कला संगम, आरोही, मंजरी, माला, सवेरा, संस्कार भारती, हिन्दी साहित्य सदन, नूतन कला मंदिर, जनता सेवक समाज मुख्य संस्थाएं थीं। यही नहीं उन्हें प्रदेश के राज्यपाल द्वारा हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज का सचिव कोषाध्यक्ष भी मनोनीत किया गया था ।
अनेक साहित्यकारों ने उनके निर्देशन में पूर्ण किया शोध कार्य : प्रो महेंद्र प्रताप जी के निर्देशन में 22 विद्यार्थियों ने शोध कार्य पूर्ण कर के पीएच-डी की उपाधि प्राप्त की। इनमें से मुख्य हैं- डॉ कृष्ण जी भटनागर, डॉ गोपी चंद्र शर्मा, डॉ विश्व अवतार जैमिनी, डॉ इंदिरा गुप्ता, डॉ एसपी सक्सेना, डॉ प्रभा कपूर, डॉ राकेश मधुकर, डॉ मक्खन मुरादाबादी , डॉ किरण गर्ग , डॉ वंदना रानी, डॉ वाचस्पति शर्मा , डॉ शंकर लाल शर्मा और डॉ जगदीश शरण ।
महानगर की अनेक सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, शैक्षिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर उनको सम्मानित एवं नागरिक अभिनन्दन किया जाता रहा है ।
उनका निधन 20 जनवरी 2005 को काशी में हुआ।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
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