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रविवार, 8 मई 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से विश्व मातृ दिवस की पूर्व संध्या शनिवार 07 मई 2022 को आयोजित काव्य-गोष्ठी में अध्यक्ष अशोक विश्नोई , मुख्य अतिथि वीरेंद्र सिंह बृजवासी, विशिष्ट अतिथि सविता लाल, डॉ अजय अनुपम, ओंकार सिंह विवेक ,योगेंद्र वर्मा व्योम, मुजाहिद फराज, जिया जमीर, मनोज मनु ,संचालक राजीव प्रखर,----- हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका मासूम, निवेदिता सक्सेना, डॉ ममता सिंह ,आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, शिवम वर्मा और प्रशांत मिश्र द्वारा प्रस्तुत की गईं रचनाएं -----


जाड़ों की गुनगुनी धूप

ज्येष्ठ की गर्मी में शीतल हवा

सावन में भीनी भीनी फुहार

संस्कृति की आदर्श

आशाओं की उत्कर्ष

मान - सम्मान से भरपूर

कुरीतियों से बहुत दूर

संस्कृति की वृहद आकार

आंखों में पढ़ने को अखबार

सेवा भाव में एक मिसाल

खुली खिड़की सा दिल

इरादों में बरगद

संस्कारों में बेमिसाल

श्रेष्ठता में सर्वश्रेष्ठ

आशीषों की पोटली

कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।

उधड़े रिश्तों की तुरपाई

करती है माँ ,

शबरी की तरह मीठे

बेर खिलाती है माँ ,

अनोखी निराली

होती है माँ ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत

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मुझको पहला कौर खिलाया,

माँ       के       हाथों        ने,

झूला  बन  के  खूब  झुलाया,

माँ        के       हाथों       ने।

      

मालिश कर मुझेकोनहलाया,

माँ       के        हाथों       ने,

रेशम   का  झबला  पहनाया,

माँ        के        हाथों      ने।


हाथ थाम चलना सिखलाया,

माँ         के        हाथों     ने,

काला  टीका   रोज़  लगाया,

माँ         के        हाथों     ने।


पहला  अक्षर  ज्ञान   कराया,

माँ          के       हाथों     ने,

ग़लती का  एहसास  कराया,

माँ          के       हाथों     ने।


थपकी   देकर  मुझे  सुलाया,

माँ          के       हाथों      ने,

स्वयं   गुदगुदा  मुझे   उठाया,

माँ          के       हाथों     ने।


गिरने  पर  झट  मुझे  उठाया,

माँ           के       हाथों     ने,

अश्रु   पौंछकर  गले  लगाया,

माँ           के       हाथों     ने।


बीमारी    में   सर   सहलाया,

माँ          के       हाथों      ने,

खांसी  का  सीरप  पिलवाया,

माँ          के       हाथों      ने।


मेरे  मन   का   भोग   बनाया,

माँ          के       हाथों      ने,

ईश्वर   को    प्रसाद    चढ़ाया,

माँ           के       हाथों     ने।

       

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर - 9719275453

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माँ एक ऐसा भाव है 

जो सहस्त्रों धाराओं से फूटता है

 उसकी ममता के रोम रोम में बसता 

और खिलखिलाता है …..

यही वो आँचल है…..

जो क़भी स्तनों में दूध बनकर उतरता है और

कभी अपने स्पर्श से सहलाता दुलारता है 

यही वो भरोसा है….

जो बचपन की किलकारियों में गूंजता और मुस्कराता है 

यही वो संबल है……

जो बचपन को ज़िन्दगी के उबड़खाबड़ पगडंडियों पर आगे बढ़ना सिखाता है…

माँ एक भाव एक आँचल एक भरोसा है 

एक संबल है एक आधार है एक शाश्वता है 

जो सृष्टि के आदि से अन्त तक 

सरस बहता रहता है । 

✍️ सरिता लाल

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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शुभ संकल्पित साधुवाद है

वह शुचिता का शंखनाद है

करुणा, कृपा,दया से दीपित

मां परमेश्वर का प्रसाद है।।

अमृत का अविकल्प स्वाद है

ममता का मधुमय निनाद है 

वह पावन प्रबोध जीवन का

मां परमेश्वर का प्रसाद है।।


✍️ डॉ अजय अनुपम

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,

सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।

कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,

सदा  यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।

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दूर   सारे   अलम   और   सदमात  हैं,

माँ  है  तो  ख़ुशनुमा  घर के हालात हैं।


दिल को  सब  ठेस  उसके  लगाते  रहे,

ये न  सोचा  कि  माँ के भी जज़्बात हैं।


दुख  ही दुख  वो उठाती है सबके लिए,

माँ के हिस्से में कब सुख के लमहात हैं।


छोड़  भी आ  तू अब लाल  परदेस को,

मुंतज़िर  माँ  की  आँखें ये दिन-रात हैं।


मैं जो  महफ़ूज़ हूँ  हर बला से 'विवेक',

ये तो  माँ की  दुआओं  के असरात हैं।

  

✍️ओंकार सिंह विवेक

रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

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नतमस्तक हो गिर पड़ी, मज़हब की दीवार।

आया मेरे सामने, जब माॅं का क़िरदार।।

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फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।

मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।।

******

क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस।

जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।

*****

चहकी है फिर कोकिला, मिलकर मेरे साथ।

दुनिया वालो अब नहीं, कहना मुझे अनाथ।।

******

चलते-चलते जब मिले, जीवन-पथ पर जाम।

आया तेरी छाॅंव में, माॅं हमको आराम।।

******

दाना चुगते देख कर, तुमको अरसे बाद।

प्यारी चीं-चीं आ गयी, हमको अम्मा याद।।

******

सबको ख़ुशबू बाॅंट कर, खुद झेले जो शूल।

माॅं है घर-परिवार की, बगिया का वह फूल।।


✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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किसको चिन्ता किस हालत में

कैसी है अब माँ


सूनी आँखों में पलती हैं

धुंधली आशाएँ

हावी होती गईं फ़र्ज़ पर

नित्य व्यस्तताएँ

जैसे खालीपन काग़ज़ का

वैसी है अब माँ


नाप-नापकर अंगुल-अंगुल

जिनको बड़ा किया

डूब गए वे सुविधाओं में

सब कुछ छोड़ दिया

ओढ़े-पहने बस सन्नाटा

ऐसी है अब माँ


फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर

बस पीड़ा भोगी

हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो

हुई अनुपयोगी

धूल चढ़ी सरकारी फाइल

जैसी है अब माँ


✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मेरी प्यारी मां ने मुझको, जीवन का उपहार दिया।

जाग जाग कर रात रात भर ,ममता और दुलार दिया ।।


कितने दुख सह कर भी उसने, हर  मुश्किल में साथ दिया। 

मेरे सपने अपने माने,कर सबको साकार दिया ।।


मेरे हँसने औ रोने पर , वो कितना बलिहार हुई।

मेरी इक किलकारी पर ही, अपना सब सुख वार दिया ।।


खून पिलाकर पाला पोसा , मुझको सदा दुलार दिया। 

सीने पर पत्थर रख कर फिर ,एक नया संसार दिया ।।


मेरे जन्मों के तप का ही शुभ फल है तेरी 'ममता'।

मुझको है वरदान सरीखा, माँ तूने जो प्यार दिया।।


✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मैं जब कुछ भी नहीं था

मुझे एक हैसियत उसने आता की

उसी की लोरियाँ सुन कर मैं सोया

उसी के मीठे नग़मों ने किया बेदार मुझ को,

उसी की गोद में पल कर

मैं अपने आप को समझा

ज़माने का चलन जाना

उसी ने रंग दुनिया के बताये

हैं कितने रूप इस के सब दिखाए 

कई दुख ओढ़ कर उसने ख़ुशी मुझ पर निछावर की

दुआओं से उसी की मैं 

घना एक पेड़ बन कर अब खड़ा हूँ

मेरी शाखें,

मेरी सब कोंपलें शादाब

ख़ुदा ने जिस क़दर इन'आम से मुझ को नवाज़ा

“मेरी माँ”

उन में सब से बेश क़ीमत

सब से दिलकश एक तोहफा है

बताऊं क्या

कि वह मेरे लिए क्या है

मेरी तारीक रातों का उजाला है,

मेरे मासूम बच्चों का खिलौना है,

वह बूढ़ी हो के भी मेरा सहारा है,

मेरी दुनिया का एक रौशन सितारा है

ख़ुदा रक्खे।


✍️ डा. मुजाहिद "फराज़"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मां का साथ

सर्दी में लिहाफ ।

मां का प्यार 

गर्मी में फुहार।

मां का सिंगार

पापा का व्यवहार।

मां का संसार 

अपना परिवार।

मां की पहचान 

बेटों के नाम।

मां की अंगूठियां 

खिल खिलाती बेटियां।

कोई उदास

 मां का उपवास ।

 बच्चों की खुश हाली

 मां की दीवाली।

मां का क्रोध 

सारा घर खामोश।

मां मुस्कुराई 

 रिश्तों को तुरपाई।

मां की अवहेलना

ताउम्र दुख झेलना।

अच्छी आदत 

 मां की अदालत ।

पापा का आंगन 

 मां के कंगन।

मां का हाथ

नहीं डर की कोई बात।

मां की आंखे 

सब पढ़ ले जब झांके ।

मां की प्रार्थना 

घर आए कोई आंच न।

मां की आदत 

प्रभु की इवादत ।

मां का जीवन 

सर्वस्व समर्पण ,सर्वस्व समर्पण,सर्वस्व समर्पण।।


✍️ निवेदिता सक्सेना

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ का दामन खजाना दुआ का,

माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,

क़र्ज़  इस का   चुका ना   सकेंगे,

जिंदगी  भी  फ़ना  करके  सारी,,


बात  कोई  ज़रा  आ पड़े  तो,

ढाल बन जाए औलाद की वो,

जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,

बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,


फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,

माँ खुदाई  पे   पड़  जाए  भारी,,

              माँ का दामन खजाना..


 साया  होते  हुए सर पे माँ  का,

 जो नहीं जानते माँ की खिदमत,

 जानिए  उनसे  रूठी   हुई   है,

 साथ रहते हुए उनकी किस्मत,


 देखने  में   लगे  ना   भले  ही,

 बेसुकूँ  उम्र   रहते   हैं   सारी,,

            माँ का दामन सजाना...


सब्र कितना दिया माँ को रब ने,

काश  होती  ख़बर  आदमी को,

जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,

माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,


अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,

जैसे  पहले   कभी   हों   गुजारी,,

              माँ का दामन खजाना..


अपनी ममतामयी माँ के  सदके,

आओ एक शाम अर्पित करें हम,

जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,

उनको यह शाम अर्पित करें हम,,


यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,

जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,

माँ का दामन खजाना दुआ का,

माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,


 ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

  मोबाइल फोन नम्बर- 6397093523

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मां पर कुछ लिखना है

क़लम उठाया

सोचा क्या लिखना है

लिखने का आसान तरीक़ा

यह होता है

उपमा देकर समझा देना


ममता को क्या उपमा दूं मैं

कौन सी शय इस जज़्बे को

आकार करेगी


लोरी के शब्दों को 

और गुनगुनाहट को

कौन से गीत से तोलूं


मां की गोद को दुनिया भर की 

किस नर्मी और गर्माहट से

मैं ताबीर करूं


मां की थपकी जैसी 

चोट न लगने वाली 

मां की डांट के जैसी 

दुख नहीं देने वाली

याद को कौन सी याद के साथ 

मिलाऊं


मां की हंसी को 

कौन से फूल के जैसा लिक्खूं

और आंसू को 

दिल पिघलाने वाली

किस पीड़ा से याद करूं


मां के चेहरे और हाथों की

सिकुड़न जैसी 

कौन सी सुंदर शय है

मां की तन्हाई सी 

कौन सी तन्हाई है


कितना मुश्किल काम है 

यह सब लिखना

छोड़ो

प्रेम गीत ही लिखता हूं मैं


✍️ ज़िया ज़मीर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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मक्खन,पंख,रूई-सा कोमल,

है माँ का एहसास।

आक्सीजन वायु में जैसे,

रिश्तों में वह खास।

दो रोटी के चक्कर बाँटे,

सबको मजबूरी,

यों रहते सब आस पास में,

फिर भी है दूरी।

मीलों भी माँ रहे दूर पर,

हरदम दिल के पास।

मक्खन,पंख...


मुस्कानों का पाउडर सूखा

लेता सोख नमी,

करते दावा हम हँस हंँसकर,

कोई नहीं कमी,

माँ ढूँढ लाती पर कैसे 

कोने छुपी भड़ास।

मक्खन,पंख......


बच्चों के दिल रहती चाहत,

हमजोली हो माँ।

हर कोई डांटे उसको कहकर,

तुम भोली हो माँ,

पर मुश्किल में वही बचाती

उसके नुस्खे खास।

मक्खन,पंख....


नन्हें पौधे उसने सींचे

दे के अपना रक्त।

कोमलांगी चट्टान बन गयी,

बीता मुश्किल वक्त।

देखा सख्त जड़ों के बल पर

पल्लव में उल्लास।

मक्खन, पंख......


✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है

माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है


चूम लेती है वह  जिस वक़्त मेरे माथे को 

हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है


माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें

दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है 


माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा 

माँ विधाता को भी अवतार नया देती है


वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का

हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है


✍️ मोनिका "मासूम"

उत्तर प्रदेश, भारत

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माँ तेरी वंदना में..

मैं शीश वंदन क्या करूँ,

जीवन अर्पण हैं तुम्हें

और अर्पण क्या करूँ,

मिला जो कुछ मुझे

वो है दान तुम्हारा...

खाली हथेली, मैं निःशब्द

तेरा गुणगान क्या करूँ

जीवन तेरा तुझको अर्पण 

माँ 

मैं और अर्पण क्या करूँ...

✍️  प्रशान्त मिश्र

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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वो है मेरी धड़कन  वही मेरी जाँ है ़़़

मेरी माँ का आँचल मेरा आसमां है ़़़

 

दुआओं में उसकी खुदा का निशाँ है

 लगे वाणी  उसकी के जैसे अजाँ है


चरण जिसके चूमे ख़ुदा की वो जन्नत,

नहीं और कोई वो मेरी माँ है।। 


है वेदों की महिमा वही तो कुराँ है ़़़

कंही पर है सीता कंही फातिमा है ़़़


उसके ही कारण ये सारा जहाँ है ़़़

निर्मल है गंगा सी  पावन धरा है ़़़


काँटों के वन में गुलाबों सी है जो, 

नहीं और कोई वो मेरी माँ है।। 


दिन में ना सोये वो रातों को जागे ़़़

खिलाने को भोजन मेरे पीछे भागे ़़़


कितनी है शीतल वो कितनी सरल है ़़

 ममता का जिसके हृदय में तरल है ़़़


उस जैसा दूजा उदाहरण कहाँ है, 

नहीं और कोई वो मेरी माँ है..। 


✍️ शिवम वर्मा

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।

जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।

जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे

उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।

माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।

ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।

जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।

प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।

अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।

केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।

जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।

त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।


✍️ आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत







बुधवार, 23 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से आज बुधवार 23 मार्च 2022 को वाट्स एप पर 'शहीदों को नमन' काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता अशोक विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि - डॉ. प्रेमवती उपाध्याय और विशिष्ट अतिथि वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी' रहे । प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विश्नोई, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय,वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', डॉ. अर्चना गुप्ता, राजीव 'प्रखर', हेमा तिवारी भट्ट, मोनिका शर्मा 'मासूम', डॉ. ममता सिंह, मीनाक्षी ठाकुर, निवेदिता सक्सेना, डॉ. रीता सिंह और प्रशांत मिश्र की रचनाएं ----


जग बदलूँ संकल्प धरा है

वीरों  ने बलिदान  वरा  है

इस माटी की गन्ध बताती

सच सोने की तरह खरा है।

✍️ अशोक विश्नोई

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राष्ट्र हित शीश बलिदान जो कर गए

उनको मेरा नमन और शत-शत नमन ।।

हँसते-हँसते लगाया गले मौत को, 

वीर बलिदानियों तुमको शत-शत नमन।।


स्वप्न आजाद भारत का मन में पला

चल पड़ा काफिला न रुका सिलसिला 

वर्ष पर वर्ष बीते शताब्दी गई 

मिटने वालों का बढ़ता गया होंसला

आततायियों के खट्टे किये दांत थे,

वीर महाराणा-सांगा को शत-शत नमन।।


कितनी वीरांगनाएं समर में लड़ी,

भाल ऊँचा किए आन पर थी अड़ी।

लक्ष्मीबाई का बलिदान भी याद है

पुत्र को बांध कटि में समर में लड़ी

आज आजाद-विस्मिल-भगतसिंह को, 

पंच प्यारों को करते हैं शत-शत नमन।।

तुमको है शत-शत नमन ।

✍️ डॉ प्रेमवती उपाध्याय

 मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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देकर  अपनी   सांस,  हमारे

जीवन  को  महकाया  तुमने

सकल गुलामी  के  बंधन  से

सबको  मुक्त  कराया  तुमने।


 तोड़ा  सब घमंड  गोरों  का

आज़ादी   के    दीवानों    ने

भरी  सभा  में करा  धमाका

भारत  माँ   की   संतानों  ने।


कफन बांधकर निकले सर पे,

प्राणों  की परवाह  नहीं   की,

आज़ादी   के   इन   वीरों   ने,

सुख वैभव की चाह नहीं की।


घोर  यातनाएं  सह  कर  भी,

भारत माता  की  जय  बोली,

टससे मस न कर सके उनको,

गोरों  के   हंटर   औ    गोली।


चूमा  फांसी   के   फंदों   को,   

राजगुरु,  सुखदेव,  भगत  ने,

वीरों  के साहस को  झुककर,

नमन किया  संपूर्ण  जगत ने।


आओ मिलकर सीस झुकाएं,

माँ  के  बलिदानी   बेटों   को,

मातृभूमि  से  दूर   रखें   सब,

गद्दारों,  किस्मत    हेटों   को।


मंत्र फूंककर  देश  भक्ति का,

दुनियां   को   चेताया   तुमने,

बड़ा   न   कोई  आजादी  से,

जन-जन को समझाया तुमने।

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत        

9719275453

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अमर शहीदों के लिए, सुबह-दोपहर-शाम

नतमस्तक इस देश का, हर पल उन्हें प्रणाम

ऋणी रहेगा उम्रभर, उनका हिन्दुस्तान

किया जिन्होंने देश पर, प्राणों को बलिदान

✍️ योगेन्द्र वर्मा व्योम

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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हँसते हँसते जान भी, अपनी की कुर्बान 

राजगुरु, सुखदेव, भगत, थे वो वीर महान

थे वो वीर महान, देश था उनको प्यारा

जिस दिन हुए शहीद, रो पड़ा था जग सारा 

कहे 'अर्चना' बात, नमन हम उनको करते

फाँसी ली थी चूम, जिन्होंने हँसते हँसते 

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आज़ादी के दीवानों को, भूल नहीं हम पाते हैं।

सोच सोच कर उस मंजर को,भर- भर आँसू आते हैं।

हँसते हँसते जानजिन्होंने,  भारत माँ पर कर डाली,

उन वीरों को श्रद्धा से हम,अपने शीश नवाते हैं।

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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दुनियां के हर सुख से बढ़कर,

मुझको प्यारे तुम पापा ।

मेरे असली चंदा-सूरज,

और सितारे तुम पापा ।

ओढ़ तिरंगा घर लौटे हो,

बहुत गर्व से कहता हूॅं।

मिटे वतन पर सीना ताने,

मगर न हारे तुम पापा।।

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लिये गीत कुछ चल पड़े, बाॅंके वीर जवान।

हॅंसते-हॅंसते कर गए, प्राणों का बलिदान।।

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लगा रही है आज भी, माटी यही पुकार।

खड़ी न होने दीजिये, नफ़रत की दीवार।।

******

चाहे गूंजे आरती, चाहे लगे अज़ान।

मिलकर बोलो प्यार से, हम हैं हिन्दुस्तान।।

✍️ राजीव प्रखर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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फिर से भगत सिंह आओ तुम।

सोते है युवा जगाओ तुम।


अंग्रेजी ज्यों शासन डोला

बारूदी फिर फैंको गोला

अलसाये सिंह उठाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


सेवा को वय मुहताज़ नहीं

बिन त्याग सफल सुकाज नहीं

मक्कारों को समझाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


जब रंगा बसंती चोला था

कपटी सिंहासन डोला था

वो इंकलाब दोहराओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


दुश्मन अब नक्कारी का है

विषबेली मक्कारी का है

कैसे भी इसे हटाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।


शहादत व्यर्थ न जा पाये

रग रग में खून खौल जाये

हर दिल में भगत जगाओ तुम।

फिर से भगत सिंह आओ तुम।

हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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राजगुरु सुखदेव भगत सिंह

आजादी  के  दीवाने  थे ,

हँसते हँसते गए फँदे पर

वे बलिदानी मसताने थे ।


इंकलाब का नारा देकर

वो नयी चेतना लाये थे

देश प्रेम की ज्योत जलाकर

सरदार वही कहलाये थे ।


नाम शिवराम हरि राजगुरू  

वेदों और ग्रन्थों के ज्ञाता ,

छापामार युद्ध शैली से

था उनका नजदीकी नाता ।


सुखदेव थापर भगत सिँह ने

संग संग दीक्षा पायी थी ,

लाजपत की हत्या के बदले

साण्डर्स की बलि चढ़ायी थी ।


साहस का पर्याय थे तीनों 

भारत माँ न भूल पाएगी

ऐसे शहीदों की कुर्बानी 

युग युग तक गायी जाएगी ।

✍️ डॉ रीता सिंह

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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नमन उस मां की ममता को जो बेटा देखकर रोई

बहन बेटी के जज़्बे को नमन जिसने खुशी खोई

कि उस पत्नी के धीरज को नमन साष्टांग है मेरा

कलाई छोड़कर जिसकी शहादत बर्फ में सोई


घाटी से संसद तक पसरा मातम है , हंगामा है 

आतंकी कातरता का फिर साक्ष बना पुलवामा है

 जिसके शब्द -शब्द को पढ़कर दहक उठे ज्वाला मन में

वीरों ने यूं खून से अपने लिखा शहादत- नामा है

✍️ मोनिका मासूम

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वतन की आन पे तो जान भी क़ुर्बान है यारो। 

क़फन गर हो तिरंगे का तो बढता मान है यारो।।


न आने देंगे इसकी शान पर हम आँच कोई भी, 

वतन के नाम से ही तो मिली पहचान है यारो।। 


रहे ऊँचा जगत में नाम मेरे देश का  हर पल, 

मिटा दूँ ज़िन्दगी इस पे यही अरमान है यारो।। 


नहीं कर पायेगा दुश्मन हमारा बाल भी बाँका, 

खुला उसको हमारा आज ये ऐलान है यारो।। 


मिटा दे इसकी हस्ती को भला किसमें है दम *ममता* ,

वतन गीता वतन मेरे लिए कुरआन है यारो।।

✍️ डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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जय हिंद दोस्तो है ,अपना तो एक नारा,

ये देश है उसी का ,जो देश पर है वारा।


ग़म की अँधेरी बदली, छायेगी अब न फिर से,

पाया है जान देकर ,आज़ादी का नज़ारा


जीते हैं हम  वतन पर, मरते है हम वतन पर

भारत सदा रहेगा प्राणो से हमको प्यारा


दुश्मन खड़ा है हर सू, ललकारता है हमको

माँ भारती ने देखो ,हमको है फिर पुकारा


बाँधा कफन है सर से ,हमने वतन की खातिर,

देकर लहू  जिगर का,हमने इसे  सँवारा।


मरता है हिंद पर ही ,भारत का हर निवासी,

सदियो तलक रहेगा बस दौर ही हमारा।


है आरज़ू ये मेरी, तेरी ज़मी ही पाऊँ,

सातो जनम ही चाहे, आना पड़े दुबारा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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विजय है तुम्हारी विजय है ।

 जो कर्तव्य पथ पर चलें पग संभल कर 

सफलता निसंदेह तय है ।।

विजय है तुम्हारी विजय है।।

नहीं रोक पाए नहीं तुम्हें

 प्रात और रात 

बरसात हिमपात भारी ।।           

 अलखनाद जब

 हो गया मन के भीतर,

  उठा मन में उत्पात भारी ।।

पुकारा हिमालय  शिवालय ने तुमको 

कहां कोई त्यौहार देखा ,

न देखा सिसकता हुआ 

 मां का आंचल 

न राखी भरा प्यार देखा,

 चले कंटको को 

  पुआला समझकर 

न मुड़ करके 

फिर द्वार देखा ।।

तड़पती रही खनखनाने को चूड़ी न

 भार्या का श्रृंगार देखा 

 अटल हो गई जीत की लालसा जब 

  वही दुश्मनों की प्रलय है 

विजय है तुम्हारी विजय है।।

विजय है तुम्हारी विजय है।

✍️ निवेदिता सक्सेना

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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भगत सिंह की गर्जना से 

अंग्रेजों  का सिंहासन डोला था,

जब हिन्द के वीर सपूतों ने 

 भारत माँ की जय बोला था।


लाला लाजपत का लहू देख

 खून सुखदेव का भी खौला था,

जॉन सॉन्डर्स को धूल चटाने 

निर्भीक, बहादुर ने धावा बोला था।


जश्न शहादत चुनी  बाँकुरों ने 

न ओढ़ा माफ़ी का चौला था 

राजगुरु बाइस में लाहौर सेंट्रल जेल

दोनों संग हँसकर फांसी पर झूला था। 

✍️ प्रशान्त मिश्र

राम गंगा विहार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


रविवार, 13 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' ने होली पर रविवार 13 मार्च 2022 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी - 'रंगों से संवाद...'

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से दयानन्द कन्या महाविद्यालय के सभागार में होली को समर्पित एक काव्य-गोष्ठी 'रंगों से संवाद...' का आयोजन रविवार 13 मार्च 2022 को किया गया। मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकान्त गुप्त रहे।

वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने फागुन गीत सुनाया ---

कैसी शोख हुई, पछुवाई फागुन में। 

दिन-दुपहर लेती, अंगड़ाई फागुन में। 

नई-नई कोंपल, मंजरियों फूलों में। 

ढूंढें सब अपनी, परछाईं फागुन में।

विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- 

आतंकवाद का फन,सेवक कुचल रहा है। 

दुष्टों के मान ,मर्दन ,का चक्र चल रहा है। 

होली रंगों का त्यौहार। 

प्रेम रंग में रंगे सृष्टि सब बिहसे जगदाधार

 है होली रंगों का त्योहार।।  

 विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने दोहे सुनाए -

 सुबह रंगीली हो गई, मस्त हो गई शाम।

 होली के वातावरण, मेरा तुझे प्रणाम।। 

 होली के परिवेश की, भाई वाह क्या बात। 

 गुजिया देने लग गई, बिरयानी को मात।। 

  कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा ---

  गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर। 

  चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।। 

  बदल गयी संवेदना, बदल गए सब ढंग। 

  पहले जैसे अब कहाॅ॑, होली के हुड़दंग।। 

 वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' ने सुनाया- 

 होली का हर रंग मुबारक,

 गुझिया पापड़ भंग  मुबारक। 

 संतोष रानी गुप्ता ने सुनाया- 

 सांसें भी चंदन घुली,भीतर दहकी आग।

  फागुन फिर से आ गया,हमें सुनाने फाग। 

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने सुनाया -

फागुन का है मस्त महीना नटखट सा व्यवहार लिए।

 रूठों की हम चलो मनाएं,रंगों का उपहार लिए।

 मुस्काई गेहूं की बाली,छटा निराली सरसों की

 महक उठी सांसों की बगिया,यौवन के कचनार लिए।। 

 प्रख्यात हास्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी ने कविता सुनाई-

  वक्त के आगोश में है आदमी केवल खिलौना।

  कितनी ऊंची छोड़ दे लेकिन रहा आदत से बौना। 

  कल गली के कुत्तों में इस बात पर चर्चा छिड़ी। 

  आचरण से हो गया है आदमी कितना घिनौना।। 

  वरिष्ठ कवि डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपनी रचना प्रस्तुत की- 

प्रेमभाव से सब खेलें होली। 

रंग अबीर गुलाल बरसायें।

आपस के सब झगड़े भूल। 

आज गले से सब लग जाएं।

  नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किए-

   सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम।

    अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम।। 

    रंग-बिरंगे रंग से, कर सोलह श्रंगार। 

    खुशी लुटाने आ गया, रंगों का त्योहार।। 

     कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता ने होली गीत प्रस्तुत किया-

  खिले रंगों से मन होता बड़ा आह्लाद होली में। 

  पुरानी यादें हो जाती हैं फिर आबाद होली में।।

  कवयित्री डा. संगीता महेश ने सुनाया-

  ससुराल में थी मेरी पहली होली। 

  सब खुश थे की पाई है बहु भोली भोली। 

  घर में अनेक पकवान बन रहे थे। 

   शायर ज़िया ज़मीर ने होली के रंग में रंगी ग़ज़ल पेश की-

    क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है। 

    अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है। 

    वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में। 

    उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है। 

  कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पढ़ा-

  पतझड़ का पीलापन सोखें,

  हरियाली की शाख बढ़ाएँ। 

  दिन के उजलेपन में शामिल,

  स्याह रात के दाग़ मिटाएँ। 

  रखे रहें न केवल कर में,

  मन के तन पर रच बस जाएँ। 

  रंग जो जल से कभी धुले न,

  आओ ऐसे रंग लगाएँ। 

   कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने घनाक्षरी प्रस्तुत की- 

   जम के रंग गुलाल उड़ेंगे ,आज ब्रज की होली में।

    गोरी तेरे गले लगेंगे ,आज ब्रज की होली में। 

    सोच समझ के आइये रे छोरे,बरसाने की गलियों को,

    दीख गया तो लट्ठ पड़ेंगे, आज ब्रज की होली में।

     मनोज मनु ने गीतिका प्रस्तुत की- 

     होली पर हुरियारों देखो, कसर न दम भर रखना

      रंगों का त्योहार है सबके तन संग मन भी रंगना,

      ..ठिठुरन भुला बसंत घोलता मन मादकता हल्की, 

      करती है किस तरह प्रकृति, रचना हर एकपल की, 

      फिर मन भावन फागुन खूब खिलाता टेसू अंगना। 

  कवि मयंक शर्मा ने सुनाया- 

  रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली, 

  मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली। 

  कवि दुष्यंत 'बाबा' ने सुनाया-

   है बहुत मजे की बात, कि आज पुरानी मिल गई। 

   बिना मिले की आस, हमें वो नजरों से ही रंग गई।। 

कवि ईशांत शर्मा ने सुनाया- 

गीत बनूँ तुम्हारे होंठों का, गुनगुना लो तुम मुझे 

अश्क बनूँ तुम्हारी आँखों का,बहा लो तुम मुझे।  

संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।


























::::प्रस्तुति:::::

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद.

मोबाइल-9412805981