जाड़ों की गुनगुनी धूप
ज्येष्ठ की गर्मी में शीतल हवा
सावन में भीनी भीनी फुहार
संस्कृति की आदर्श
आशाओं की उत्कर्ष
मान - सम्मान से भरपूर
कुरीतियों से बहुत दूर
संस्कृति की वृहद आकार
आंखों में पढ़ने को अखबार
सेवा भाव में एक मिसाल
खुली खिड़की सा दिल
इरादों में बरगद
संस्कारों में बेमिसाल
श्रेष्ठता में सर्वश्रेष्ठ
आशीषों की पोटली
कर्तव्यनिष्ठ प्रतिमा ।
उधड़े रिश्तों की तुरपाई
करती है माँ ,
शबरी की तरह मीठे
बेर खिलाती है माँ ,
अनोखी निराली
होती है माँ ।।
✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
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मुझको पहला कौर खिलाया,
माँ के हाथों ने,
झूला बन के खूब झुलाया,
माँ के हाथों ने।
मालिश कर मुझेकोनहलाया,
माँ के हाथों ने,
रेशम का झबला पहनाया,
माँ के हाथों ने।
हाथ थाम चलना सिखलाया,
माँ के हाथों ने,
काला टीका रोज़ लगाया,
माँ के हाथों ने।
पहला अक्षर ज्ञान कराया,
माँ के हाथों ने,
ग़लती का एहसास कराया,
माँ के हाथों ने।
थपकी देकर मुझे सुलाया,
माँ के हाथों ने,
स्वयं गुदगुदा मुझे उठाया,
माँ के हाथों ने।
गिरने पर झट मुझे उठाया,
माँ के हाथों ने,
अश्रु पौंछकर गले लगाया,
माँ के हाथों ने।
बीमारी में सर सहलाया,
माँ के हाथों ने,
खांसी का सीरप पिलवाया,
माँ के हाथों ने।
मेरे मन का भोग बनाया,
माँ के हाथों ने,
ईश्वर को प्रसाद चढ़ाया,
माँ के हाथों ने।
✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी"
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर - 9719275453
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माँ एक ऐसा भाव है
जो सहस्त्रों धाराओं से फूटता है
उसकी ममता के रोम रोम में बसता
और खिलखिलाता है …..
यही वो आँचल है…..
जो क़भी स्तनों में दूध बनकर उतरता है और
कभी अपने स्पर्श से सहलाता दुलारता है
यही वो भरोसा है….
जो बचपन की किलकारियों में गूंजता और मुस्कराता है
यही वो संबल है……
जो बचपन को ज़िन्दगी के उबड़खाबड़ पगडंडियों पर आगे बढ़ना सिखाता है…
माँ एक भाव एक आँचल एक भरोसा है
एक संबल है एक आधार है एक शाश्वता है
जो सृष्टि के आदि से अन्त तक
सरस बहता रहता है ।
✍️ सरिता लाल
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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शुभ संकल्पित साधुवाद है
वह शुचिता का शंखनाद है
करुणा, कृपा,दया से दीपित
मां परमेश्वर का प्रसाद है।।
२
अमृत का अविकल्प स्वाद है
ममता का मधुमय निनाद है
वह पावन प्रबोध जीवन का
मां परमेश्वर का प्रसाद है।।
✍️ डॉ अजय अनुपम
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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डगर का ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
सफ़र आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
सदा यह भान होता है अगर माँ साथ होती है।
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दूर सारे अलम और सदमात हैं,
माँ है तो ख़ुशनुमा घर के हालात हैं।
दिल को सब ठेस उसके लगाते रहे,
ये न सोचा कि माँ के भी जज़्बात हैं।
दुख ही दुख वो उठाती है सबके लिए,
माँ के हिस्से में कब सुख के लमहात हैं।
छोड़ भी आ तू अब लाल परदेस को,
मुंतज़िर माँ की आँखें ये दिन-रात हैं।
मैं जो महफ़ूज़ हूँ हर बला से 'विवेक',
ये तो माँ की दुआओं के असरात हैं।
✍️ओंकार सिंह विवेक
रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत
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नतमस्तक हो गिर पड़ी, मज़हब की दीवार।
आया मेरे सामने, जब माॅं का क़िरदार।।
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फिर नारों के शोर में, बहुत दिनों के बाद।
मातृ-दिवस पर आ गयी, बूढ़ी माॅं की याद।।
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क्या तीरथ की कामना, कैसी धन की आस।
जब बैठी हो प्रेम से, अम्मा मेरे पास।।
*****
चहकी है फिर कोकिला, मिलकर मेरे साथ।
दुनिया वालो अब नहीं, कहना मुझे अनाथ।।
******
चलते-चलते जब मिले, जीवन-पथ पर जाम।
आया तेरी छाॅंव में, माॅं हमको आराम।।
******
दाना चुगते देख कर, तुमको अरसे बाद।
प्यारी चीं-चीं आ गयी, हमको अम्मा याद।।
******
सबको ख़ुशबू बाॅंट कर, खुद झेले जो शूल।
माॅं है घर-परिवार की, बगिया का वह फूल।।
✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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किसको चिन्ता किस हालत में
कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं
धुंधली आशाएँ
हावी होती गईं फ़र्ज़ पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे खालीपन काग़ज़ का
वैसी है अब माँ
नाप-नापकर अंगुल-अंगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ
फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ
✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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मेरी प्यारी मां ने मुझको, जीवन का उपहार दिया।
जाग जाग कर रात रात भर ,ममता और दुलार दिया ।।
कितने दुख सह कर भी उसने, हर मुश्किल में साथ दिया।
मेरे सपने अपने माने,कर सबको साकार दिया ।।
मेरे हँसने औ रोने पर , वो कितना बलिहार हुई।
मेरी इक किलकारी पर ही, अपना सब सुख वार दिया ।।
खून पिलाकर पाला पोसा , मुझको सदा दुलार दिया।
सीने पर पत्थर रख कर फिर ,एक नया संसार दिया ।।
मेरे जन्मों के तप का ही शुभ फल है तेरी 'ममता'।
मुझको है वरदान सरीखा, माँ तूने जो प्यार दिया।।
✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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मैं जब कुछ भी नहीं था
मुझे एक हैसियत उसने आता की
उसी की लोरियाँ सुन कर मैं सोया
उसी के मीठे नग़मों ने किया बेदार मुझ को,
उसी की गोद में पल कर
मैं अपने आप को समझा
ज़माने का चलन जाना
उसी ने रंग दुनिया के बताये
हैं कितने रूप इस के सब दिखाए
कई दुख ओढ़ कर उसने ख़ुशी मुझ पर निछावर की
दुआओं से उसी की मैं
घना एक पेड़ बन कर अब खड़ा हूँ
मेरी शाखें,
मेरी सब कोंपलें शादाब
ख़ुदा ने जिस क़दर इन'आम से मुझ को नवाज़ा
“मेरी माँ”
उन में सब से बेश क़ीमत
सब से दिलकश एक तोहफा है
बताऊं क्या
कि वह मेरे लिए क्या है
मेरी तारीक रातों का उजाला है,
मेरे मासूम बच्चों का खिलौना है,
वह बूढ़ी हो के भी मेरा सहारा है,
मेरी दुनिया का एक रौशन सितारा है
ख़ुदा रक्खे।
✍️ डा. मुजाहिद "फराज़"
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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मां का साथ
सर्दी में लिहाफ ।
मां का प्यार
गर्मी में फुहार।
मां का सिंगार
पापा का व्यवहार।
मां का संसार
अपना परिवार।
मां की पहचान
बेटों के नाम।
मां की अंगूठियां
खिल खिलाती बेटियां।
कोई उदास
मां का उपवास ।
बच्चों की खुश हाली
मां की दीवाली।
मां का क्रोध
सारा घर खामोश।
मां मुस्कुराई
रिश्तों को तुरपाई।
मां की अवहेलना
ताउम्र दुख झेलना।
अच्छी आदत
मां की अदालत ।
पापा का आंगन
मां के कंगन।
मां का हाथ
नहीं डर की कोई बात।
मां की आंखे
सब पढ़ ले जब झांके ।
मां की प्रार्थना
घर आए कोई आंच न।
मां की आदत
प्रभु की इवादत ।
मां का जीवन
सर्वस्व समर्पण ,सर्वस्व समर्पण,सर्वस्व समर्पण।।
✍️ निवेदिता सक्सेना
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के क़दमों में नेअमत है सारी,,
क़र्ज़ इस का चुका ना सकेंगे,
जिंदगी भी फ़ना करके सारी,,
बात कोई ज़रा आ पड़े तो,
ढाल बन जाए औलाद की वो,
जितनी नाज़ुक है ममतामयी है,
बन भी जाती है फ़ौलाद सी वो,,
फिर ज़माने की ताक़त ही क्या है,
माँ खुदाई पे पड़ जाए भारी,,
माँ का दामन खजाना..
साया होते हुए सर पे माँ का,
जो नहीं जानते माँ की खिदमत,
जानिए उनसे रूठी हुई है,
साथ रहते हुए उनकी किस्मत,
देखने में लगे ना भले ही,
बेसुकूँ उम्र रहते हैं सारी,,
माँ का दामन सजाना...
सब्र कितना दिया माँ को रब ने,
काश होती ख़बर आदमी को,
जिसकी क़ुव्वत के मद्देनजर ही,
माँ का रुतबा मिला है ज़मीं को,,
अब न ग़म की गुज़ारे ये घड़ियां,
जैसे पहले कभी हों गुजारी,,
माँ का दामन खजाना..
अपनी ममतामयी माँ के सदके,
आओ एक शाम अर्पित करें हम,
जिनसे अस्तित्व अपना जुड़ा है,
उनको यह शाम अर्पित करें हम,,
यूं तो क्या उनको हम दे सकेंगे,
जिनके आगे है दुनिया भिखारी,,
माँ का दामन खजाना दुआ का,
माँ के कदमों में नेअमत है सारी.,,
✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर- 6397093523
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मां पर कुछ लिखना है
क़लम उठाया
सोचा क्या लिखना है
लिखने का आसान तरीक़ा
यह होता है
उपमा देकर समझा देना
ममता को क्या उपमा दूं मैं
कौन सी शय इस जज़्बे को
आकार करेगी
लोरी के शब्दों को
और गुनगुनाहट को
कौन से गीत से तोलूं
मां की गोद को दुनिया भर की
किस नर्मी और गर्माहट से
मैं ताबीर करूं
मां की थपकी जैसी
चोट न लगने वाली
मां की डांट के जैसी
दुख नहीं देने वाली
याद को कौन सी याद के साथ
मिलाऊं
मां की हंसी को
कौन से फूल के जैसा लिक्खूं
और आंसू को
दिल पिघलाने वाली
किस पीड़ा से याद करूं
मां के चेहरे और हाथों की
सिकुड़न जैसी
कौन सी सुंदर शय है
मां की तन्हाई सी
कौन सी तन्हाई है
कितना मुश्किल काम है
यह सब लिखना
छोड़ो
प्रेम गीत ही लिखता हूं मैं
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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मक्खन,पंख,रूई-सा कोमल,
है माँ का एहसास।
आक्सीजन वायु में जैसे,
रिश्तों में वह खास।
दो रोटी के चक्कर बाँटे,
सबको मजबूरी,
यों रहते सब आस पास में,
फिर भी है दूरी।
मीलों भी माँ रहे दूर पर,
हरदम दिल के पास।
मक्खन,पंख...
मुस्कानों का पाउडर सूखा
लेता सोख नमी,
करते दावा हम हँस हंँसकर,
कोई नहीं कमी,
माँ ढूँढ लाती पर कैसे
कोने छुपी भड़ास।
मक्खन,पंख......
बच्चों के दिल रहती चाहत,
हमजोली हो माँ।
हर कोई डांटे उसको कहकर,
तुम भोली हो माँ,
पर मुश्किल में वही बचाती
उसके नुस्खे खास।
मक्खन,पंख....
नन्हें पौधे उसने सींचे
दे के अपना रक्त।
कोमलांगी चट्टान बन गयी,
बीता मुश्किल वक्त।
देखा सख्त जड़ों के बल पर
पल्लव में उल्लास।
मक्खन, पंख......
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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हर खुशी को वो मेरे घर का पता देती है
माँ ग़मों को मेरी राहों से हटा देती है
चूम लेती है वह जिस वक़्त मेरे माथे को
हर बुरे साये को मां धूल चटा देती है
माँ का आँचल हो तो बीमारियां सब दूर रहें
दूध के साथ वो बच्चों को शिफ़ा देती है
माँ की ममता को तरसते हैं फरिश्ते भी सदा
माँ विधाता को भी अवतार नया देती है
वो सिखा देती है "मासूम" सबक़ जीवन का
हाथ बच्चे पे कभी मां जो उठा देती है
✍️ मोनिका "मासूम"
उत्तर प्रदेश, भारत
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माँ तेरी वंदना में..
मैं शीश वंदन क्या करूँ,
जीवन अर्पण हैं तुम्हें
और अर्पण क्या करूँ,
मिला जो कुछ मुझे
वो है दान तुम्हारा...
खाली हथेली, मैं निःशब्द
तेरा गुणगान क्या करूँ
जीवन तेरा तुझको अर्पण
माँ
मैं और अर्पण क्या करूँ...
✍️ प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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वो है मेरी धड़कन वही मेरी जाँ है ़़़
मेरी माँ का आँचल मेरा आसमां है ़़़
दुआओं में उसकी खुदा का निशाँ है
लगे वाणी उसकी के जैसे अजाँ है
चरण जिसके चूमे ख़ुदा की वो जन्नत,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है।।
है वेदों की महिमा वही तो कुराँ है ़़़
कंही पर है सीता कंही फातिमा है ़़़
उसके ही कारण ये सारा जहाँ है ़़़
निर्मल है गंगा सी पावन धरा है ़़़
काँटों के वन में गुलाबों सी है जो,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है।।
दिन में ना सोये वो रातों को जागे ़़़
खिलाने को भोजन मेरे पीछे भागे ़़़
कितनी है शीतल वो कितनी सरल है ़़
ममता का जिसके हृदय में तरल है ़़़
उस जैसा दूजा उदाहरण कहाँ है,
नहीं और कोई वो मेरी माँ है..।
✍️ शिवम वर्मा
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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केवल शब्द नही है ‘माँ’ बल्कि बालक का पूरा संसार है।
जिससे उत्पन्न हुआ ये जग सारा ‘माँ’ ऐसा अलौकिक अवतार है।
जब -जब धरती पर आए प्रभु तो उन्होंने भी माँ के है पाँव पखारे
उसकी गोद मे खेले है, स्वयं जगदीश्वर जो स्वयं जगत के पालनहार है।
माँ न होती तो जीवन कहाँ से पाते, उसकी ममता की छाया बिना कैसे पल पाते।
ममता और त्याग की मूरत है माँ, धरती पर प्रथम गुरु की सूरत है माँ।
जो जीवन जिये वो ‘श्रेष्ठ’ हो कैसे, हमको बताती हमारी है माँ।
प्रेम में ही नही दण्ड में भी दिए ‘माँ’ के वरदान है।
अगर कैकयी न भेजती वन राम को, तो क्या कोई कहता भगवन राम को।
केवल जीवनदाता नही अपितु भाग्यविधाता भी है माँ ।
जो न पूजे माँ को उसे धिक्कार, उसका जीवन जीना ही बेकार है।
त्रिलोक की वैभव सम्पदाओं से भी बढ़कर ‘माँ’ का प्यार है।
✍️ आवरण अग्रवाल “श्रेष्ठ”
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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