रविवार, 13 मार्च 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' ने होली पर रविवार 13 मार्च 2022 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी - 'रंगों से संवाद...'

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से दयानन्द कन्या महाविद्यालय के सभागार में होली को समर्पित एक काव्य-गोष्ठी 'रंगों से संवाद...' का आयोजन रविवार 13 मार्च 2022 को किया गया। मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकान्त गुप्त रहे।

वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए यश भारती से सम्मानित सुप्रसिद्ध नवगीतकार माहेश्वर तिवारी ने फागुन गीत सुनाया ---

कैसी शोख हुई, पछुवाई फागुन में। 

दिन-दुपहर लेती, अंगड़ाई फागुन में। 

नई-नई कोंपल, मंजरियों फूलों में। 

ढूंढें सब अपनी, परछाईं फागुन में।

विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रेमवती उपाध्याय ने सुनाया- 

आतंकवाद का फन,सेवक कुचल रहा है। 

दुष्टों के मान ,मर्दन ,का चक्र चल रहा है। 

होली रंगों का त्यौहार। 

प्रेम रंग में रंगे सृष्टि सब बिहसे जगदाधार

 है होली रंगों का त्योहार।।  

 विशिष्ट अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने दोहे सुनाए -

 सुबह रंगीली हो गई, मस्त हो गई शाम।

 होली के वातावरण, मेरा तुझे प्रणाम।। 

 होली के परिवेश की, भाई वाह क्या बात। 

 गुजिया देने लग गई, बिरयानी को मात।। 

  कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा साहित्यकार राजीव 'प्रखर' ने कहा ---

  गुमसुम पड़े गुलाल से, कहने लगा अबीर। 

  चल गालों पर खींच दें, प्यार भरी तस्वीर।। 

  बदल गयी संवेदना, बदल गए सब ढंग। 

  पहले जैसे अब कहाॅ॑, होली के हुड़दंग।। 

 वरिष्ठ गीतकार वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' ने सुनाया- 

 होली का हर रंग मुबारक,

 गुझिया पापड़ भंग  मुबारक। 

 संतोष रानी गुप्ता ने सुनाया- 

 सांसें भी चंदन घुली,भीतर दहकी आग।

  फागुन फिर से आ गया,हमें सुनाने फाग। 

कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने सुनाया -

फागुन का है मस्त महीना नटखट सा व्यवहार लिए।

 रूठों की हम चलो मनाएं,रंगों का उपहार लिए।

 मुस्काई गेहूं की बाली,छटा निराली सरसों की

 महक उठी सांसों की बगिया,यौवन के कचनार लिए।। 

 प्रख्यात हास्य कवि फक्कड़ मुरादाबादी ने कविता सुनाई-

  वक्त के आगोश में है आदमी केवल खिलौना।

  कितनी ऊंची छोड़ दे लेकिन रहा आदत से बौना। 

  कल गली के कुत्तों में इस बात पर चर्चा छिड़ी। 

  आचरण से हो गया है आदमी कितना घिनौना।। 

  वरिष्ठ कवि डॉ. मनोज रस्तोगी ने अपनी रचना प्रस्तुत की- 

प्रेमभाव से सब खेलें होली। 

रंग अबीर गुलाल बरसायें।

आपस के सब झगड़े भूल। 

आज गले से सब लग जाएं।

  नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने दोहे प्रस्तुत किए-

   सुबह सुगंधित हो गई, खुशबू डूबी शाम।

    अमराई ने लिख दिया, खत फागुन के नाम।। 

    रंग-बिरंगे रंग से, कर सोलह श्रंगार। 

    खुशी लुटाने आ गया, रंगों का त्योहार।। 

     कवयित्री डॉ. अर्चना गुप्ता ने होली गीत प्रस्तुत किया-

  खिले रंगों से मन होता बड़ा आह्लाद होली में। 

  पुरानी यादें हो जाती हैं फिर आबाद होली में।।

  कवयित्री डा. संगीता महेश ने सुनाया-

  ससुराल में थी मेरी पहली होली। 

  सब खुश थे की पाई है बहु भोली भोली। 

  घर में अनेक पकवान बन रहे थे। 

   शायर ज़िया ज़मीर ने होली के रंग में रंगी ग़ज़ल पेश की-

    क्या मोहब्बत का नशा रूह पे छाया हुआ है। 

    अब के होली पे हमें उसने बुलाया हुआ है। 

    वह जो खामोश सी बैठी है नई साड़ी में। 

    उसने पल्लू में बहुत रंग छुपाया हुआ है। 

  कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पढ़ा-

  पतझड़ का पीलापन सोखें,

  हरियाली की शाख बढ़ाएँ। 

  दिन के उजलेपन में शामिल,

  स्याह रात के दाग़ मिटाएँ। 

  रखे रहें न केवल कर में,

  मन के तन पर रच बस जाएँ। 

  रंग जो जल से कभी धुले न,

  आओ ऐसे रंग लगाएँ। 

   कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने घनाक्षरी प्रस्तुत की- 

   जम के रंग गुलाल उड़ेंगे ,आज ब्रज की होली में।

    गोरी तेरे गले लगेंगे ,आज ब्रज की होली में। 

    सोच समझ के आइये रे छोरे,बरसाने की गलियों को,

    दीख गया तो लट्ठ पड़ेंगे, आज ब्रज की होली में।

     मनोज मनु ने गीतिका प्रस्तुत की- 

     होली पर हुरियारों देखो, कसर न दम भर रखना

      रंगों का त्योहार है सबके तन संग मन भी रंगना,

      ..ठिठुरन भुला बसंत घोलता मन मादकता हल्की, 

      करती है किस तरह प्रकृति, रचना हर एकपल की, 

      फिर मन भावन फागुन खूब खिलाता टेसू अंगना। 

  कवि मयंक शर्मा ने सुनाया- 

  रंगों के रंग में रंग जाएं खेलें मिलकर होली, 

  मुँह से कुछ मीठा सा बोलें भूलके कड़वी बोली। 

  कवि दुष्यंत 'बाबा' ने सुनाया-

   है बहुत मजे की बात, कि आज पुरानी मिल गई। 

   बिना मिले की आस, हमें वो नजरों से ही रंग गई।। 

कवि ईशांत शर्मा ने सुनाया- 

गीत बनूँ तुम्हारे होंठों का, गुनगुना लो तुम मुझे 

अश्क बनूँ तुम्हारी आँखों का,बहा लो तुम मुझे।  

संस्था के संयोजक योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया ।


























::::प्रस्तुति:::::

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद.

मोबाइल-9412805981


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