मुरादाबाद की संस्था पंडित मदन मोहन गोस्वामी संगीत अकादमी की ओर से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भवन में प्रवासी साहित्यकार प्रो हरिशंकर आदेश की पुण्य स्मृति में गुरुवार 29 दिसंबर 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ अमेरिका निवासी कादंबरी आदेश, समीक्षा, प्रगति एवं निहारिका द्वारा प्रस्तुत स्मृति शेष आदेश रचित माॅं सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ। संयोजक डॉ विनीत मोहन गोस्वामी ने कार्यक्रम की रूपरेखा पर प्रकाश डाला। मुख्य अभ्यागत के रूप में बाल संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ विशेष गुप्ता ने कहा कि प्रो आदेश ने अपने साहित्य के माध्यम से जहां भारतीय संस्कृति का प्रसार किया वहीं विश्व बंधुत्व की भावना पर बल दिया। विशिष्ट अभ्यागत विवेक शंकर आदेश (अमेरिका) ने प्रो हरि शंकर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 7 अगस्त 1936 को बरेली में जन्मे प्रो हरिशंकर आदेश ने विदेश में हिंदी के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। कनाडा, अमेरिका तथा त्रिनिडाड टुबैगो में रहते हुए उन्होंने तीन सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। अनुराग, शकुंतला, महारानी दमयंती, देवी सावित्री, अन्यथा, मर्यादा, लकीरों का खेल, मित्रता,रक्षक, निर्णय उनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं। उनका निधन 28 दिसंबर 2020 को हुआ।
काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिन्दी और अंग्रेजी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल ने कहा -
"संभावित करुणा के सम्मुख अपना शीश झुकाऊॅं।
मन कहता है आज तुम्हारे आंगन में रुक जाऊॅं।"
देश विदेश में हिन्दी की अलख जगा रहे रचनाकार साहित्य भूषण डा. महेश 'दिवाकर' ने हरि शंकर आदेश को समर्पित रचना प्रस्तुत करते हुए कहा -
काव्य, कला, संगीत के, उच्च शिखर आदेश।
मनुज रूप में देवगुरू, संत शिरोमणि शेष।
भारत मां के पुत्र हैं, सकल विश्व विख्यात,
संस्कृति, दर्शन, काव्य में, अप्रवासी विशेष ।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने रूस यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में कहा -
उड़ रही गंध , ताजे खून की ।
बरसा रहा जहर मानसून भी ।
घुटता है दम बारूदी झोंको के बीच ।
सुप्रसिद्ध व्यंगकार डॉ. मक्खन मुरादाबादी की अभिव्यक्ति थी -
मन के दर्शन शब्द जगत के, आभासी सभी पटल। खरपतवार लगी कोशिश में हो मटियामेट फसल।
सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने शीत लहर पर दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा --
कुहरे ने जब धूप पर, पाई फिर से जीत।
सर्दी भी लिखने लगी, ठिठुरन वाले गीत।
कुहरा धरता ही रहा, रोज़ भयंकर रूप।
जीवन में तहज़ीब-सी, कहीं खो गई धूप।
वरिष्ठ रचनाकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने आह्वान किया -
ग़मों के बीच से आओ! ख़ुशी तलाश करें।
अंधेरे चीर के हम रोशनी तलाश करें ।
अकेलेपन को मिटाने को आज दुनिया से,
भुला के भेद सभी दोस्ती तलाश करें ।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने गीत प्रस्तुत कर समां बांध दिया-
मंजिलों से लगी देख ऐसी लगन ।
चांदनी बन गई रास्तों की तपन।
दीप जलता रहा आँधियां भी चलीं ,
रेत में खिल उठे आस्था के सुमन।
वरिष्ठ साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने हास्य रस से सराबोर करते हुए कहा -
मिलना जुलना, शादी उत्सव यारी रिश्तेदारी,
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी I
जबसे बैंक्वेट हाल हुए हैं प्रेम नहीं दिखता है
बफेट् सिस्टम में खाने का स्वाद नहीं मिलता है
धक्का मुक्की भीड़भाड़ में क्या पायें क्या खायें
प्लेट सम्हालें या अपने कपड़ों की खैर मनायें
प्लेट थामकर खड़े हुए हैं जैसे खड़े भिखारी
एक लिफाफे में सिमटी है सारी दुनियादारी.
प्रसिद्ध बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना का कहना था -
सीपी बनने की
कोशिश में
टूट गए
घोंघों के खोल
खुल गयी
नकलीपन की पोल!
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा -
जुगनू, तारों, दीप तक,अपना जमे हिसाब।
सूरज अपनी आंख से,दिखता नहीं जनाब।
इसी क्रम में कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने नवगीत प्रस्तुत किया --
सूरज की अठखेलियाँ, करें पूस को तंग
रात ठिठुरती देखकर, फिर से हल्कू दंग
फटे चीथड़े कर रहे, कंबल से फरियाद
माँ के हाथों सा लगे, नर्म धूप का स्वाद।
चर्चित गजलकार राहुल शर्मा ने ग़ज़ल प्रस्तुत कर वातावरण को एक नया आयाम दिया । उन्होंने कहा -
उलझ रहे हैं उन उलझनों से वज़ूद जिनका कहीं नहीं है ।
हम अपने साये से डर रहे है असल में खतरा कहीं नहीं है ।
कभी वसीयत लिखोगे अपनी तो जान पाओगे ये हक़ीक़त।
तुम्हारी अपनी ही मिल्कियत में तुम्हारा हिस्सा कहीं नहीं है।
साहित्यकार राजीव प्रखर ने मुक्तक प्रस्तुत करते हुए कहा -
निराशा ओढ़कर कोई, न वीरों को लजा देना।
नगाड़ा युद्ध का तुम भी, बढ़ाकर पग बजा देना।
तुम्हें सौगंध माटी की, अगर मैं काम आ जाऊॅं,
बिना रोए प्रिये मुझको, तिरंगे से सजा देना।
युवा साहित्यकार ज़िया ज़मीर ने कहा -
दर्द की शाख पे इक ताज़ा समर आ गया है।
किस की आमद है भला कौन नज़र आ गया है।
लहर ख़ुद पर है पशेमान कि उसकी ज़द में,
नन्हें हाथों से बना रेत का घर आ गया है।
युवा गीतकार मयंक शर्मा ने देश भक्ति की अलख जगाते हुए कहा -
उन्नत माँ का भाल करें जो उनका वंदन होता है,
बलिदानी संतानों का जग में अभिनंदन होता है,
माटी में मिलकर ख़ुशबू उस नील गगन तक छोड़ गए,
ऐसे वीरों की धरती का कण-कण चंदन होता है।
बाबा संजीव आकांक्षी ने मुक्तक प्रस्तुत किया वहीं कादंबरी आदेश ने अपनी रचनाओं से समां बांध दिया ।
कार्यक्रम में डॉ मीनू मेहरोत्रा, धवल दीक्षित, मंसूर अहमद, मनदीप सिंह, नेहा गोस्वामी, देवांश, समृद्धि आदि साहित्य प्रेमी भी उपस्थित रहे। डॉ. नवनीत गोस्वामी ने आभार अभिव्यक्त किया।