मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता के सम्मान में रविवार 11 फरवरी 2024 को साहित्यिक मिलन का आयोजन किया गया। आयोजन में उपस्थित साहित्यकारों ने मुरादाबाद के साहित्यिक परिदृश्य पर चर्चा के साथ- साथ काव्य पाठ भी किया। दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त के संयोजन में उनके आवास पर आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ स्वीटी तालवाड़ ने की जबकि मुख्य अतिथि प्रदीप गुप्ता रहे। संचालन डॉ मनोज रस्तोगी एवं माॅं शारदे की वंदना राजीव प्रखर ने प्रस्तुत की। संयोजन उमाकांत गुप्ता का रहा। रचना-पाठ करते हुए वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी का कहना था -
अति विनाश का कारण होती,
इतना हमने जाना होता।
मानव से ईश्वर बन पाना,
बहुत कठिन है माना होता।
संयोजक उमाकांत गुप्त ने कहा -
गीत उमर ने लिख डाले हैं
सांसो के खाते धुंधले हैं
इन राहों में जितने बिछड़े
यादें ही अब शेष हो रहीं
फोन किया है पूछा तुमने
दिन मेरे कैसे गुजरे हैं
मुख्य अतिथि प्रदीप गुप्ता ने वेदना को साकार किया -
प्रतिभा का भंडार भरा था
सपनों का संसार रचा था।
रचना का आकार गढ़ा था
चिंतन का विस्तार बड़ा था।
फिर भी ख़ुद को बेच नहीं पाया।
डॉ अजय अनुपम ने परिस्थितियों का चित्र खींचा -
टूटते भय-बन्ध सारे जग हंसाई के
और गहरे रंग हो जाते लुनाई के।
मौन हो जाते अधर दृग मौन हो जाते,
बात जब करते कभी कंगन कलाई के।।
वरिष्ठ रचनाकार श्रीकृष्ण शुक्ल ने प्रणय दिवस को शब्द दिये -
एक दूजे के हम स्वयं, सदा रहें अनुरूप।
वैलेंटाइन का प्रिये, यही सात्विक रूप।।
वैलेंटाइन तुम जपो, अपना भला बसन्त।
अपने तो आदर्श हैं, शकुन्तला दुष्यंत।।
कवयित्री डॉ पूनम बंसल ने मधुमासी रंग में सभी को डुबोया -
जीवन की दहलीज पर,जब आया मधुमास।
सपने भी हैं खिल उठे,लिए हृदय में आस।।
राम नाम की मुद्रिका,जब हो मन के पास।
जीवन मर्यादित बने,पूरी हो हर आस।।
डॉ पुनीत कुमार ने व्यंग्य के माध्यम से सामाजिक विद्रूपता पर प्रहार करते हुए कहा -
प्यार अगर ऑनलाइन होता है।
सब कुछ सुपर फाइन होता है
जेब खाली,पर बात लाखों की,
मुफ्त ही में वेलेंटाइन होता है।
शायर डॉ कृष्णकुमार 'नाज़' के इन शेरों ने सभी के हृदय को स्पर्श किया -
इतना-सा लेखा-जोखा है, जीवन की अलमारी में,
कुछ तो वक़्त सफ़र में गुज़रा, कुछ उसकी तैयारी में।
निश्छल मुस्कानों का अपना, एक अलग दर्शन है 'नाज़'।
सातों सुर मिलकर हँसते हैं, बच्चे की किलकारी में।
डॉ अर्चना गुप्ता की अभिव्यक्ति थी -
प्यार का अहसास अब भी उन खतों में कैद है।
याद भी उनकी हमारी हिचकियों में कैद है।
खनखनाते रहते हैं यादों के सिक्के उम्र भर
आज तक बचपन हमारा गुल्लकों में कैद है।
संचालन करते हुए डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा -
सूरज की पहली किरण
जब उतरी छज्जे पर,
आंगन का सूनापन उजलाया।
गौरैया ने चीं चीं कर
फैलाए अपने पर,
एक मीठा सपना याद दिलाया।
राजीव 'प्रखर' ने अपने दोहों से सभी को मधुमासी रंग में डुबो दिया -
ओढ़े चुनरी प्रीत की, कहता है मधुमास।
ओ अलबेली लेखनी, होना नहीं उदास।।
नीम ! तुम्हारी छाॅंव में, आकर बरसों बाद।
फिर से ताज़ा हो उठी, बाबूजी की याद।।
ज़िया ज़मीर ने खूबसूरत ग़ज़ल से महफ़िल लूटी -
हमारे कौन से मिसरे पे उसका साया नहीं।
वो एक नाम जो अब तक कहीं भी आया नहीं,
चला गया वो हमें छोड़ के यूं ही इक दिन।
बुरा किया कि सबब तक हमें बताया नहीं।
मीनाक्षी ठाकुर ने मधुमास को इन शब्दों से सुंदर अभिव्यक्ति दी -
नर्म हुआ दिनमान गुलाबी,
मधुमास संग मुस्काया।
पूस ठिठुरता चला गया है,
माघ बावरा मदमाया।
पीली सरसों नाच रही है,
मस्त मगन बिन साज के।
पीत-वसन,सुरभित आभूषण,
ठाठ बड़े ऋतुराज के!
कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया -
घोर तम की नींद से सूरज जगा है।
देख फिर विश्वास को सम्बल मिला है।
कर दिये थे बंद किस्मत ने खजाने।
थी थकी मुस्कान बैठी हार माने।
अंकुरा पादप हँसी का तब नया है।
घोर तम की नींद से सूरज जगा है।
धन सिंह धनेंद्र ने कहा –
तन पर श्रमविन्दु हैं आते।
होकर घायल लहू बहाते।
तन पे कपडे़ सुखते जाते।
पीकर पानी भूख मिटाते।
जाने कब दिन कट जाता।
श्रमिक दिवस मन जाता।।
प्रत्यक्ष देव त्यागी का कहना था–
इतना भी क्या डरना खुद में।
जीते जी क्यों मरना खुद में।
तरसों जब मिलने को मुझसे,
मेरी ग़ज़ल को गढ़ना खुद में।
राशिद हुसैन का कहना था -
जख्मों पे इसलिए वो मेहरबान बहुत है।
दुश्मन हमारा आज पशेमान बहुत है।।
अध्यक्षता करते हुए दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय की सेवा निवृत प्राचार्या डॉ स्वीटी तालवाड़ ने इस प्रकार की गोष्ठियों के निरंतर आयोजन पर बल दिया। आभार संतोष गुप्ता ने व्यक्त किया ।