इतना भी क्या डरना खुद में,
जीते जी क्यों मरना खुद में ।।
प्यास बुझेगी मिलकर मुझसे,
छोड़ो खुद से लड़ना खुद में ।
तरसो जब मिलने को मुझसे,
मेरी ग़ज़ल को गढ़ना खुद में ।
जिसको चाहे पार लगा दो,
एक बार जो ठाना खुद में ।
प्यार कभी झूठा मत करना,
टूट है जाता इंसां खुद में ।
हर चेहरे में रब दिखता है,
गौर से झाँक के देखना खुद में ।
एक बार तो मिलना होगा,
और नहीं है जलना खुद में ।
रूह फ़ाख्ता हुई है मेरी,
मुझको होगा मारना खुद में।
कोई ये घर के शीशे तोड़ो,
मैं छोडूं उसे देखना खुद में ।
ताबीज़ बनाकर बांधें सारे,
फिर भी पड़ा ढूंढना खुद में ।
पत्थर की भी पूजा की है,
जब से पत्थर बना वो खुद में ।
जब हो उसमें गहरा डूबना,
पानी भरा मानना खुद में ।
तुमसे तो तन्हाई अच्छी,
इसे पड़ता नहीं मिलाना खुद में ।
हाथ किनारे लग जाएंगे,
थोड़ा गहरा डूबना खुद में।
✍️ प्रत्यक्ष देव त्यागी
झ-28, नवीन नगर
काँठ रोड, मुरादाबाद -244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल:9319086769
Superb
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
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