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सोमवार, 9 अगस्त 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कृष्ण जी भटनागर का गीत संग्रह --बैखरी । इस कृति में उनके 44 गीत हैं । यह कृति वर्ष 1993 में लोकभारती प्रकाशन इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हुई है । इस कृति की पीडीएफ हमें उनके सुपुत्र श्री अभिषेक भटनागर से प्राप्त हुई है ।
रविवार, 8 अगस्त 2021
मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी के संयोजन में 7अगस्त 2021 को सम्भल में आयोजित कवि सम्मेलन में 'स्पर्शी उत्कृष्ट सम्मान' से सम्मानित हुए डॉ मनोज रस्तोगी
मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी को 'स्पर्शी उत्कृष्ट सम्मान' से सम्मानित किया गया । उन्हें यह सम्मान मुरादाबाद के साहित्य संरक्षण एवं प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्भल की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था ज्ञानदीप की ओर से प्रदान किया गया है । जकार्ता (इंडोनेशिया) की प्रवासी भारतीय वैशाली रस्तोगी के संयोजन में शनिवार 7 अगस्त 2021 को आयोजित कविसम्मेलन में अशोक त्यागी कृष्णम, नेहा मलय, डॉ अर्चना गुप्ता,वैशाली रस्तोगी और अतुल कुमार शर्मा द्वारा सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह प्रदान किया गया।
सम्भल के बरेली सराय स्थित प्रेम इन होटल में स्वतंत्रता दिवस अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में आयोजित कवि सम्मेलन में सम्मानित वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने काव्य पाठ करते हुए कहा ----
सुन रहे यह साल आदमखोर है
हर तरफ चीख, दहशत, शोर है।
मत कहो वायरस जहरीला बहुत,
इंसान ही आजकल कमजोर है।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने अपनी चर्चित रचना जरूरी है कुत्तों को बिस्कुट खिलाना प्रस्तुत कर नेताओं पर पैना व्यंग्य किया।
अध्यक्षता कर रहे चर्चित व्यंग्यकार त्यागी अशोक कृष्णम ने हाइकू प्रस्तुत करते हुए कहा --
बेटी बचाओ
नीचता खूब गुनो
बहु जलाओ
मुख्य अतिथि प्रख्यात रंगकर्मी डॉ पंकज दर्पण अग्रवाल ने श्री रामलीला के अनेक प्रसंगों की भावपूर्ण प्रस्तुति से कार्यक्रम को एक नया आयाम दिया ।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ अर्चना गुप्ता ने सुनाया -
"अपने भारत देश पर कभी आंच नहीं आने देंगे हम
जान चली भी जाएगी तो हमें ना होगा कोई भी गम।
प्रवासी भारतीय कवयित्री वैशाली रस्तोगी ने पढ़ा -"
जद्दोजहद जारी रहेगी हर वक्त इंसान की,
डूबती नहीं नैया,क्षमता वान की ।
दुख पर गर हंसते हैं जमाने वाले,
वहीं से कश्ती निकाल ले जाते हैं हिम्मत वाले"
व्यंग्यकार अतुल कुमार शर्मा ने सुनाया -
"झुक जाता है यह जग सारा,जिनकी मेहनत के आगे ,
रंग सदा भरते हैं वो, मावस की काली रातों में ।"
कवि दुष्यंत बाबा ने कहा -
"यह मेरे देश की मिट्टी,
मिट्टी नहीं चंदन है।
लगा मस्तक पर जो उतरे ,
उन वीरों का वंदन है।
कवयित्री डॉ नेहा मलय ने पढ़ा,-
"मेरे भारत देश की,
गाथा बड़ी महान ।
महिमा इसकी गा रहा
सारा आज जहान।"
कार्यक्रम में वीरेंद्र रस्तोगी, प्रभात मेहरोत्रा, सुभाष चंद शर्मा ,श्वेता तिवारी, सुशील मेहरोत्रा, शिवानी मेहरोत्रा, अश्वनी रस्तोगी, शिवानी शर्मा, शिखा रस्तोगी, नितिन गर्ग, पवन कुमार रस्तोगी,निधि,, एडवोकेट, संजय शंखधार ,विकास वर्मा, भरत मिश्रा, गुरमीत सिंह, रितिका चौधरी ,राजू रस्तोगी, अमन सिंह, डिम्पल रस्तोगी आदि उपस्थित रहे। अध्यक्षता त्यागी अशोक कृष्णम ने व संचालन अतुल कुमार शर्मा व वैशाली रस्तोगी ने संयुक्त रूप से किया।
मंगलवार, 3 अगस्त 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त का गीत -----प्राण भी मेरे न होंगें। उनका यह गीत लगभग 54 साल पहले प्रकाशित गीत संकलन 'उन्मादिनी' में प्रकाशित हुआ था। यह संग्रह कल्पना प्रकाशन , कानूनगोयान मुरादाबाद द्वारा सन 1967 में शिवनारायण भटनागर साकी के संपादन में प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह में देशभर के 97 साहित्यकारों के श्रृंगारिक गीत हैं। इसकी भूमिका लिखी है डॉ राममूर्ति शर्मा ने....
प्राण भी मेरे न होंगें
प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे ।
वेदना की लपट भरकर, हृदय में ज्वाला धधकती।
नीर नेत्र उलीचते पर, और भी भीषण भभकती ।
जब न दृग-जल से बुझी तो, और साधन कौन होंगे !
प्राण के......
आ लगाई तब किसी ने, हृदय में मृदु थपथपी सी ।
कुछ क्षणों के बाद ही फिर, जल उठी वह गुदगुदी सी ।
मधुर अमृत पात्र मैं भी, ज्वाल के भय गान होंगे। प्राण के.....
बढ़ रही प्रतिपल निरन्तर, कर रही विप्लव उसी से ।
आ लगी नभ-पटल से भी, चाहती मिलना किसी से ।
पर निभाने मर्म इसका, कौन इसके साथ होंगे।
प्राण के .......
सान्त्वना इसको मिले तब, जब न उर में प्राण होंगे ।
प्राण भी तब तक रहेंगे, प्राण में जब प्राण होंगे ।
प्राण भी तरसें कहें फिर, और कैसे पार होंगे।
प्राण के ........
प्रज्ज्वलित करके अनल कण, यह हृदय में ही रहेगी ।
कामना जयमाल देकर, भेंट लेकर ही मिटेगी ।
जल अनल भी एक हो क्या, भावना के साथ होंगे। प्राण के ........
फूट जायेगी हृदय में, हृदय तन सब जल उठेंगे ।
जब हृदय ही न रहा तो, प्राण रहकर क्या करेंगे ?
किन्तु फिर अरमान मन के, प्राण बिन पूरे न होंगे !
प्राण के आधार के बिन, प्राण भी मेरे न होंगे ।
✍️ ईश्वर चन्द्र गुप्ता, मुरादाबाद (उप्र)
::::::प्रस्तुति:::::::
डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
सोमवार, 2 अगस्त 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष ईश्वर चन्द्र गुप्त ईश की चर्चित काव्य कृति - चा का प्याला। डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के हालावाद की तर्ज पर प्यालावाद का प्रवर्तन करते हुए इस कृति में ईश जी ने 146 पदों के माध्यम से भारत में चाय के प्रवेश , चाय की महिमा, चाय और समाज के साथ- साथ भारत के इतिहास की झलक भी प्रस्तुत की है। उनकी यह कृति वर्ष 1994 में ईश प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित हुई थी । इस कृति की भूमिका लिखी है डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने ।
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:::::::::प्रस्तुति:::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी, 8, जीलाल स्ट्रीट, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश , भारत ,मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का आलेख ---- प्रेम और श्रृंगार के कवि : कैलाश चन्द्र अग्रवाल
मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल जी अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है ,जो आने वाले समय में नयी पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है ।उन पर छायावादी प्रेम की अभिव्यक्ति और कवि हरिवंशराय बच्चन जी के मधुशाला या हालावाद का प्रभाव भी झलकता है ।
कैलाश जी के साहित्य में प्रिय का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है, उनके गीतों में प्रेम की अनुभूति के साथ ही ,वियोग की पीड़ा ,दुःख, दर्द ,वेदना की विकलता टीस और छटपटाहट है - मौन प्राणों पर व्यथा / भार पल- पल ढो चुका हूँ/ मैं तुम्हारी वंदना के गीत गा -गा सो चुका हूँ/ मैं तुम्हारा हो चुका हूँ ।
गीत काव्य का प्राण है मानव के सरल हृदय में प्रेम के अतिरेक में भाव गीत बन स्वतः ही फूट पड़ता है, तो वियोग में भी कवि का घायल मन विरह गीत गाता दिखता है, कवि कैलाश चन्द्र जी का हृदय उतना ही पावन है, जितना उनका प्रेम ,इस प्रकार प्रणय का चितेरा कवि अपनी सम्पूर्ण रागात्मकता, और भाव प्रवणता में हृदय की गहन अनुभूति से प्रेममय हो चुका है ,सब कुछ भूल कर प्रेम की धारा में अवगाहन करता रहता है, कैलाश जी के गीतों में प्रेमानुभूति की विशद और विविध रंग देखने को मिलता है - प्राण तुम्हारी ही सुधियों में निस -दिन खोया रहता हूँ। उनके प्रेम में वासना का लेश मात्र भी नहीं है, बल्कि उसमें आत्मनियंत्रण व औदात्य रूप देखने को मिलता है - "सरिता के तट पर आकर भी जिसने जल की ओर न देखा/क्योंकि पपीहे से सीखा है मैंने अब तक आत्म नियंत्रण ।" उनके यहाँ प्रेम सुखद ही नहीं अलौकिक भी है - देख तुम्हारा रूप अछूता पूनम का शशि भी शरमाया ।प्रणय जब जीवन का आस बनता है, तब मानों जीवन को अमूल्य निधि मिल जाता है ,प्रिय के रूप और लावण्य के आगे सब कुछ फीका लगता है -चाँद भी पलकें झुकाये देखता है/आज तो रूपसि करो श्रृंगार ऐसा ।
कैलाश जी कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है - लोक सेवा भावना का मूल्य है अपना /साधना की अग्नि में अनिवार्य है तपना /हर दुःखी का दुःख निवारण हो सके जिससे/चाहिये वह मंत्र ही निशि- दिन हमें अपना ।
वास्तव में कैलाश जी का कवि व्यक्तित्व अपने जीवन की सार्थकता लोक सेवा में मानता है ,कर्म उनके लिये पूजा है।जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं - प्रीति का पाखण्ड से परिचय नहीं/प्रीति में कोई कहीं शंसय नहीं / वास्तविकता ही इसे स्वीकार है /प्रीति करना जानती अभिनय नहीं / उनका मानना है कि ईश्वर की सत्ता कण -कण में व्याप्त है ,समस्त प्राणी जगत उसी का प्राणाधार है - तुमसे ही मानव जीवन का सम्भव है उद्धार /तुमसा कोई नहीं दूसरा निश्छल और पुनीत /तुम सचमुच अपने भक्तों के सदा रहे हो मीत /
कवि के लिये प्रेम मुक्ति का मार्ग है, भक्ति है, श्रद्धा है ।प्रेम का दीपक ईश तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है, अतएव उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने का मार्ग है। प्रेम जन- जन तक पहुंचाने का कार्य करता है, इसलिये उनका प्रिय अनन्य है -देख कर तुमको प्रथम बार ही /रह गयी दृष्टि मेरी ठगी /......चारुता वह अलौकिक तुम्हारी / अंत तक क्षीण होने न पायी / उस तुम्हारे मधुर राग में ही / बाँसुरी की प्रीति मैं बजाता /
✍️ डॉ मीरा कश्यप, अध्यक्ष ,हिंदी -विभाग ,के .जी. के. महाविद्यालय ,मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत