सोमवार, 2 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीरा कश्यप का आलेख ---- प्रेम और श्रृंगार के कवि : कैलाश चन्द्र अग्रवाल


मुरादाबाद मंडल के प्रतिष्ठित कवि साहित्यकार स्मृतिशेष कैलाश चन्द्र अग्रवाल जी अपनी कालजयी रचनाओं के साथ, प्रेम और श्रृंगार के आदर्श रूप को अपने सृजन का आधार बनाते हैं, साथ ही यथार्थ का चित्रण उनके गीतों व मुक्तकों में देखने को मिलता है ,जो आने वाले समय में नयी पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है ।उन पर छायावादी प्रेम की अभिव्यक्ति और  कवि हरिवंशराय बच्चन जी के मधुशाला या हालावाद का प्रभाव  भी  झलकता है ।

 कैलाश जी के साहित्य में प्रिय का अनुपम सौंदर्य देखने को मिलता है, उनके गीतों में प्रेम की अनुभूति के साथ ही ,वियोग की पीड़ा ,दुःख, दर्द ,वेदना की विकलता टीस और छटपटाहट है - मौन प्राणों पर व्यथा / भार पल- पल ढो चुका हूँ/ मैं तुम्हारी वंदना के गीत गा -गा सो चुका हूँ/ मैं तुम्हारा हो चुका हूँ ।

गीत काव्य का प्राण है मानव के सरल हृदय में प्रेम के अतिरेक में भाव गीत बन स्वतः ही फूट पड़ता है, तो वियोग में भी कवि का घायल मन विरह गीत गाता दिखता है, कवि कैलाश चन्द्र जी का हृदय उतना ही पावन है, जितना उनका प्रेम ,इस प्रकार प्रणय का चितेरा कवि अपनी सम्पूर्ण रागात्मकता, और भाव प्रवणता में हृदय की गहन अनुभूति से प्रेममय हो चुका है ,सब कुछ भूल कर प्रेम की धारा में अवगाहन करता रहता है, कैलाश जी के गीतों में प्रेमानुभूति की विशद और विविध रंग देखने को मिलता है - प्राण तुम्हारी ही सुधियों में निस -दिन खोया रहता हूँ। उनके प्रेम में वासना का लेश मात्र भी नहीं है, बल्कि उसमें आत्मनियंत्रण व औदात्य रूप देखने को मिलता है - "सरिता के तट पर आकर भी जिसने जल की ओर न देखा/क्योंकि पपीहे से सीखा है मैंने अब तक आत्म नियंत्रण ।" उनके यहाँ प्रेम सुखद ही नहीं अलौकिक भी है   - देख तुम्हारा रूप अछूता पूनम का शशि भी शरमाया ।प्रणय जब जीवन का आस बनता है, तब मानों जीवन को अमूल्य निधि मिल जाता है ,प्रिय के रूप और लावण्य के आगे सब कुछ फीका लगता है -चाँद भी पलकें झुकाये देखता है/आज तो रूपसि करो श्रृंगार ऐसा ।

कैलाश जी कवि हृदय सिर्फ प्रेम का ही चितेरा नहीं है बल्कि उनके साहित्य में जन चेतना व लोक कल्याण की भावना भी देखने को मिलता है - लोक सेवा भावना का मूल्य है अपना /साधना की अग्नि में अनिवार्य है तपना /हर दुःखी का दुःख निवारण हो सके जिससे/चाहिये वह मंत्र ही निशि- दिन हमें अपना  ।

वास्तव में कैलाश जी का कवि व्यक्तित्व अपने जीवन की सार्थकता लोक सेवा में मानता है ,कर्म उनके लिये पूजा है।जन मन को सुरभित करने वाले जीवन संघर्ष के प्रति आस्था रखने वाले कवि हैं - प्रीति का पाखण्ड से परिचय नहीं/प्रीति में कोई कहीं शंसय नहीं / वास्तविकता ही इसे स्वीकार है /प्रीति करना जानती अभिनय नहीं  / उनका मानना है कि ईश्वर की सत्ता कण -कण में व्याप्त है ,समस्त प्राणी जगत उसी का प्राणाधार है -  तुमसे ही मानव जीवन का सम्भव है उद्धार /तुमसा कोई नहीं दूसरा निश्छल और पुनीत /तुम सचमुच अपने भक्तों के सदा रहे हो मीत /

कवि के लिये प्रेम मुक्ति का मार्ग है, भक्ति है, श्रद्धा है ।प्रेम का दीपक ईश तक जाने का मार्ग प्रशस्त करता है, अतएव उनकी कविता में -आँसू की वेदना है ,पीड़ा है , कामायनी का आनन्द है तो पंत जी की ग्रन्थि का अनुनय ग्रन्थिबन्धन है ,निराला जी की तरह शक्ति पाने  का मार्ग है। प्रेम जन- जन तक पहुंचाने का कार्य करता है, इसलिये उनका प्रिय अनन्य है -देख कर तुमको प्रथम बार ही /रह गयी दृष्टि मेरी ठगी /......चारुता वह अलौकिक तुम्हारी / अंत तक क्षीण होने न पायी / उस तुम्हारे मधुर राग में ही / बाँसुरी की प्रीति मैं बजाता /

✍️ डॉ मीरा कश्यप, अध्यक्ष ,हिंदी -विभाग ,के .जी. के. महाविद्यालय ,मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश,भारत

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