रविवार, 14 अगस्त 2022

संस्कार भारती की ओर से आजादी के अमृत महोत्सव के सुअवसर पर शनिवार 13 अगस्त 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन

आजादी के अमृत महोत्सव के सुअवसर पर, कला, संस्कृति एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था, "संस्कार भारती" की मुरादाबाद महानगर शाखा द्वारा शनिवार 13 अगस्त 2022 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।

    साहित्य विधा प्रमुख हेमा तिवारी भट्ट के संयोजन में विवेक निर्मल जी के निवास पर आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. काव्य सौरभ रस्तोगी एवं संचालन आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने किया। मां सरस्वती वंदना फक्कड़ मुरादाबादी ने प्रस्तुत की।

     मुख्य अतिथि डॉ पूनम बंसल ने मुक्तक प्रस्तुत करते हुए कहा-----

 तिरंगा जान है अपनी तिरंगा शान है अपनी

 गगन से कर रहा बातें यही पहचान है अपनी 

 इसी के शौर्य की गाथा महकती है फिजाओं में 

 सजी इन तीन रंगों में मधुर मुस्कान है अपनी 

विशिष्ट अतिथि वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी जी का स्वर था -----

 भारत मां को आओ हम सब 

 मिलकर नमन करें

 इसे सजाने का तन मन से 

  पावन जतन करें 

फक्कड़ मुरादाबादी का कहना था ------

 पूछा यूँ परीक्षा में प्राणों का पर्याय लिखो

  हमने कलम लहू में रंग कर प्यारा हिंदुस्तान लिखा

 डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा ------

 खाकर यहां का अन्न

 गीत औरों का गाना आता है

 नहीं लिखते हम

 भविष्य की सुनहरी इबारत

 इतिहास के काले पन्नों को ही दोहराते हैं

  विवेक निर्मल ने सुनाया ------

  दिन ही ऐसा है मनाएंगे इसे नाज के साथ 

  तुम भी आवाज मिलाना मेरी आवाज के साथ 

मयंक शर्मा ने कहा ----

गोरी सेना को हुंकारों से दहलाने वाले थे

 दाग गुलामी वाला अपने खून से धोने वाले थे 

 उनको कौन डरा सकता था आजादी की खातिर जो

  संगीनों के आगे अपनी छाती रखने वाले थे 

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा -----

आजाद थे आजाद हैं आजाद रहेंगे 

हम देश के शहीद जिंदाबाद रहेंगे 

प्रशांत मिश्रा ने कहा -----

  जब सत्ता के लालच में 

  इमरजेंसी लगाई जाती है

आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ ने कहा -----

अपने ही हाथों स्वाहा न कर 

तू अपनी कहानी

देश और समाज पर 

न्योछावर हो छोड़ जा तू

इतिहास के पन्नो पर 

अपनी स्वर्णिम निशानी

शलभ गुप्ता ने कहा ------

 महामारी का असर है अब भी,

लोग कैसे बेपरवाह होने लगे हैं।

बेटे जाकर बस गए विदेश में,

मां बाप जल्दी बूढ़े होने लगे हैं

कार्यक्रम में डॉ राकेश जैसवाल, सविता गुप्ता, दीपक कुमार भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर मयंक शर्मा ने स्मृतिशेष डॉ विश्व अवतार जैमिनी जी के गीतों का सस्वर पाठ भी किया । 



































वाट्स एप पर संचालित समूह मुरादाबाद लिटरेरी क्लब की ओर से शनिवार 13 अगस्त 2022 आॅनलाइन अमृत काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता डॉ कृष्ण कुमार नाज़ ने की। मुख्य अतिथि डॉ पूनम बंसल और विशिष्ट अतिथि योगेन्द्र वर्मा व्योम रहे। संचालन ज़िया ज़मीर ने किया। प्रस्तुत हैं गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों की रचनाएं.......




 चलता जा निर्द्वंद्व बटोही मंज़िल हो कितनी ही दूर

पथ जाना हो या अनजाना
लेकिन कभी नहीं घबराना
पहले मंज़िल को पा जाना
फिर चाहे जी-भर सुस्ताना
चढ़कर अँधियारों के रथ में
रातें भी आयेंगी पथ में
दुर्गमताओं के आगे पर झुकना मत होकर मजबूर
   
सूरज बरसाये अंगारे
या वर्षा तुझको ललकारे
क्षणभर को भी मत रुक जाना
कोई कितना तुझे पुकारे
आशाओं को देकर न्योता
विपदा से करना समझौता
तुझे सफलता की दुलहन के मांँग लगाना है सिंदूर

आँधी की परवाह न करना
तूफ़ानों से तनिक न डरना
ख़ुद ही अपनी राह बनाना
लक्ष्य न मिल पाएगा वरना
रिसते छालों का दुख सहना
घायल पैरों से यह कहना
मिलते ही गंतव्य थकन सब हो जाएगी ख़ुद काफ़ूर

✍️  डा. कृष्णकुमार 'नाज़'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

.................................



तिरंगा जान है अपनी,तिरंगा शान है अपनी।
गगन से कर रहा बातें,यही पहचान है अपनी।
इसी के शौर्य की गाथा,महकती है फिज़ाओं में।
सजी इन तीन रंगों में,मधुर मुस्कान है अपनी।।

नज़र मां भारती की ये ,लहू देकर उतारी है।
यही जननी भगत सिंह की,विजय श्री से संवारी  है।
शहीदों ने दिलाई है,अमर अनमोल आज़ादी।
तिलक माटी बनी चंदन,धरा पावन हमारी है।।

वीरों के बलि दान से ,देश हुआ आज़ाद।
उनको करते हम नमन,लिए सुगंधित याद।।

नील गगन लहरा रहा,लिए शौर्य पहचान।
देख तिरंगा है बना,भारत का अभी मान।।

हरित धरा है गा रही,आज़ादी के गीत।
प्राची की किरणें सजीं,सिंदूरी है प्रीत।।

सकल जगत में गूंजती,भारत की आवाज़।
देश प्रेम के गीत हों,मानवता का साज़।।

गंगा की धारा कहे,अनुपम अपना देश।
कर्मों को समझा रहे,गीता के उपदेश।।

✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

.......................................



हिंसा भ्रष्टाचार द्वेष
आतंकवाद का तमस मिटायें
देशभक्ति के भाव जगायें,
आओ फिर से दिया जलायें

देशप्रेम ले चुका विदा अब,
नहीं दीखता है मानव में
बात देश की कौन करे
पनपे गुण जो होते दानव में
निजता से यह देश बड़ा है,
आओ बच्चों को सिखलायें

पहले थे भारतवासी
अब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
दलित-सवर्णों में बँटकर फिर
कहाँ रहे हम भाई-भाई
चलो द्वेष के इस मरुथल में
देशप्रेम के सुमन खिलायें

जन्म लिया जिसने धरती पर
निश्चित है उसका तो मरना
शाश्वत है जब मृत्यु यहाँ पर,
फिर बोलो उससे क्या डरना
जब निश्चित है मरना तो फिर
चलो देश हित मर मिट जायें

सोने की चिड़िया कहलाता
देश आज बदहाल हुआ है
बाड़ खा गई स्वयं खेत को
इससे ही यह हाल हुआ है
आओ मिलकर फिर भारत को
पहले-सा सम्मान दिलायें

✍️ योगेन्द्र वर्मा व्योम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

......................................



जन जन को प्राणों से प्यारा भारत देश हमारा है।
ये स्वतंत्रता का उत्सव भी ,  हर उत्सव से न्यारा है।
आजादी के इस उत्सव को हम प्रतिवर्ष मनाते हैं।
भारत माँ की शान तिरंगा, लगता हमको प्यारा है।

अधिकारों के लिए लड़ रहे, कर्तव्यों को मत भूलो
जात धर्म की राजनीति में, भारत माँ को मत भूलो
भारत तेरे टुकड़े हों ये, नारे आप लगाते हो
देश बचेगा तभी बचोगे, याद रखो ये मत भूलो

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, एकसूत्र में बँध जाएं
भारत माँ को देशद्रोहियों, के चंगुल से छुड़वाएं
घर के भीतर गद्दारों का, मिल जुल कर प्रतिकार करें
जन गण की पहचान तिरंगा, सदा शान से फहराएं

आओ इस अमृत उत्सव पर, गीत एकता के गाएं
राष्ट्र प्रेम की अलख जगाकर, देश राग फिर से गाएं
भारत माता का यश वैभव पुनः विश्व पर छा जाए
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, रंग तिरंगे के छाएं।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

........................................

निराशा ओढ़ कर कोई, न वीरों को लजा देना।
नगाड़ा युद्ध का तुम भी, बढ़ाकर पग बजा देना।
तुम्हें सौगंध माटी की, अगर मैं काम आ जाऊॅं,
बिना रोए प्रिये मुझको, तिरंगों से सजा देना।
------------
लगा रही है आज भी, माटी यही पुकार।
खड़ी न होने दीजिये, नफ़रत की दीवार।।

आज़ादी हमको मिली, कड़े जतन के बाद।
पावन उत्सव प्रेम से, दिला रहा है याद।।

लिए गीत कुछ चल पड़े, बाॅंके वीर जवान।
हॅंसते-हॅंसते कर गये, प्राणों का बलिदान।।

प्यारे भारत को सदा, ऐसी मिले उमंग।
मन के भीतर भी खिलें, ध्वज के सारे रंग।।

पंछी दरबे में पड़ा, होकर बस हैरान।
भीतर से ही सुन रहा, आज़ादी का गान।।

आज़ादी के बाद हैं, हम इतने मुस्तैद।
बैर भाव-विद्वेष की, ज़ंजीरों में क़ैद।।

✍️  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
...................................................


सारी दुनिया को नई राहें तू दिखलाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

तेरे माथे को हिमाला चूमना जारी रखे
चांद तुझको चांदनी दे, घूमना जारी रखे
तेरी सुब्हें लाए सूरज और मुस्काता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

तेरे बादल तेरी नदियों को रवां करते रहें
तेरे दरिया तेरे खेतों को जवां करते रहें
खेत हर इक अन्न की ख़ुशबू को बिखराता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

तेरी मिट्टी से हमेशा सोंधी सी आए महक
तेरे पेड़ों पर परिदों की रहे यूं ही चहक
तेरा हर इक पेड़ फल और फूल बरसाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

राम पुरुषोत्तम रहें और कृष्ण गीता-सार हों
बुद्ध, नानक, चिश्ती तेरे प्रेम का आधार हों
फूल तेरे बाग़ को हर एक महकाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

तेरे कालीदास, ग़ालिब, तेरी मीरा और कबीर
प्रेमचंद, टैगोर तेरी लेखनी के हैं अमीर
सूर, तुलसी, मीर को संसार यह गाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

तेरी सुब्हें तेरी शामें यूं ही ताबिन्दा रहें
बांटने वाले तुझे ता-उम्र शर्मिन्दा रहें
छोड़ जो तुझको गए तू उनको याद आता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे

✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

......................................



जय हिंद दोस्तो है ,अपना तो एक नारा,
ये देश है उसी का ,जो देश पर है वारा।

ग़म की अँधेरी बदली, छायेगी अब न फिर से,
पाया है जान देकर ,आज़ादी का नज़ारा

जीते हैं हम  वतन पर, मरते है हम वतन पर
भारत सदा रहेगा प्राणो से हमको प्यारा

दुश्मन खड़ा है हर सू, ललकारता है हमको
माँ भारती ने देखो ,हमको है फिर पुकारा

बाँधा कफन है सर से ,हमने वतन की खातिर,
देकर लहू  जिगर का,हमने इसे  सँवारा।

मरता है हिंद पर ही ,भारत का हर निवासी,
सदियो तलक रहेगा बस दौर ही हमारा।

है आरज़ू ये मेरी, तेरी ज़मी ही पाऊँ,
सातो जनम ही चाहे, आना पड़े दुबारा।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

................................



तुम नींद चैन की सो जाना,
सीमा पर मैं हूँ जाग रहा।
तुम छांव तले बैठे रहना,
मैं जलते पथ पे भाग रहा।
    तुम लड़ो न छोटी बातों पर,
    मैं रोज मौत से लड़ता हूँ।
    तुम गिरो न मतलब की खातिर,
    मैं पल पल ऊँचा चढ़ता हूँ।
लू या बर्फीली हवा चले,
कदमों ने रुकना ना जाना।
भारत बसता है आँखों में,
कुछ और नहीं मुझको पाना।
   जश्न ए तिरंगा होगा तो,
   कुर्बानी मेरी गायेगी।
   हँसते हँसते मर जाऊँगा,
   जब बात देश की आयेगी।
मैं वीर सिपाही सीमा का,
मेरे दिल का अरमान सुनो।
झुक जाये न शीश तिरंगे का,
तुम देश का स्वाभिमान चुनो।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

.............................



अमृत की वर्षा झरे, स्वर्णिम हो उत्थान।
नित नित ही फूले फले, भारत देश महान।।

दसों दिशा गुंजित करे, जन गण मंगल गान।
जयति जयति मां भारती, जय जय हिंदुस्तान।।

आजादी को सींचता, वीरों का बलिदान।
शत शत वंदन आपको, कोटि कोटि सम्मान।।

शौर्य, शांति, समृद्धि की , गाथा रहा बखान
आज तिरंगी शान को, देखे सकल जहान

ऊपर अंबर केसरी, हरित खेत खलिहान
मध्य प्रेम सद्भाव की, पुरवाई वरदान

✍️ मोनिका "मासूम"
...............................



उन्नत माँ का भाल करें जो उनका वंदन होता है,
बलिदानी संतानों का जग में अभिनंदन होता है,
माटी में मिलकर ख़ुशबू उस नील गगन तक छोड़ गए,
ऐसे वीरों की धरती का कण-कण चंदन होता है।

गोरी सेना को हुंकारों से दहलाने वाले थे,
दाग ग़ुलामी वाला अपने खूँ से धोने वाले थे,
उनको कौन डरा सकता था आज़ादी की ख़ातिर जो,
संगीनों के आगे अपनी छाती रखने वाले थे।

✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

.............................…



ये मेरे देश की मिट्टी, इसका कण-कण खुद कहानी है
इसी में पर्वत का राजा तो, इसी  में नदियों की रानी है
इसी में चर्चों की घण्टी तो, इसी में गुरुओं की बानी है
यही है आव-ए-जम-जम, तो  यही  गंगा  का पानी है

यह मेरे देश की  मिट्टी, मिट्टी  नही  ये चंदन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे, उन वीरों को वंदन है।।

ये सीता की है जन्मभूमि, इसमें राम का बचपन है।
बंधुत्व का प्रेम भी इसमें, पितृभक्ति के भी दर्शन है ।।
यहाँ के राम ही हैं आदर्श, तो संस्कारों में रामायन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...

हुए यहाँ कर्ण से दानी, और अर्जुन  से  धुरंधर हैं।
यहाँ गीता की वाणी है, और कृष्ण भी निरन्तर हैं।।
गोकुल का रास भी इसमें, गोपियों का सुक्रंदन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...

बजी जब भी है रणभेदी, बनी पावस की ज्योति है।
रगों में उल्लास भर-भर के, निराशा पल में खोती है।।
है वीरों का लहु शामिल, तभी पावन तो कन-कन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...

तुम अपने रक्त से सींचो, सजाया वीरों ने उपवन है
क्योंकि आशा तुम्हीं से है तुम्हारे नाम ही ये कल है
बढ़ा दो मान सब जग में, यही हर बार अभिनंदन है
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...

✍️ दुष्यन्त 'बाबा'
पुलिस लाइन
मुरादाबाद 244001
उत्तर  प्रदेश, भारत

शनिवार, 13 अगस्त 2022

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था “हिन्दी साहित्य सदन “ के तत्वावधान में आज़ादी के अमृत महोत्सव पर 13 अगस्त 2022 को "अमृत स्वर"(कवि गोष्ठी) का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था “हिन्दी साहित्य सदन “ के तत्वावधान में आज़ादी के अमृत महोत्सव पर शनिवार 13 अगस्त 2022 को  "अमृत स्वर"(कवि गोष्ठी) का आयोजन श्रीराम विहार कालोनी, कचहरी परिसर स्थित डॉ. अजय अनुपम जी के आवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पर्यावरणविद के.के. गुप्ता ने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। पूरी दुनिया में भारत शक्तिशाली और समृद्ध देश के रूप में उदय हुआ है यह हमारे लिए गर्व की बात है। सरस्वती वंदना कवि राजीव प्रखर ने प्रस्तुत की तथा संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।

मुख्य अतिथि के रूप में  डॉ. कृष्ण कुमार नाज़  ने गजल सुनाई-

 एक मछली जो मर्तबान में है

कोई दरिया भी उसके ध्यान में है

बादलों ने लिखी है नज़्म कोई

यह जो तस्वीर आसमान में है

विशिष्ट अतिथि के रूप में कवयित्री निवेदिता सक्सेना ने रचना सुनाई- 

विजय है तुम्हारी विजय है

जो कर्तव्य पथ पर चले पग संभल कर

सफलता निःसंदेह तय है

विजय है तुम्हारी विजय है

वरिष्ठ कवि डॉ. अजय अनुपम ने मुक्तक सुनाया- 

हमारी चाह में जिसकी लगन है/

हमारे देश में जिसकी अगन है/

अमृत मन से मनाते हैं महोत्सव/

हृदय से इस तिरंगे को नमन है

 नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने मुक्तक सुनाया-

 व्यर्थ आपस में क्यों हम हमेशा लड़ें

भेंट षडयंत्र की क्यों सदा हम चढ़ें

छोड़कर नफ़रतें प्यार की राह पर

दो क़दम तुम बढ़ो, दो क़दम हम बढ़ें

 कवि राजीव प्रखर ने पढ़ा-

 पंछी दड़बे में पड़ा, होकर बस हैरान

भीतर से ही सुन रहा, आजादी का गान

आयोजक डॉ कौशल कुमारी ने आभार अभिव्यक्त किया।









:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ अजय अनुपम

 प्रबंधक-'हिन्दी साहित्य सदन'

मोबाइल- 9761302577

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शचींद्र भटनागर के आठ गीत

 


(एक)

अच्छा लगता है
तुलसी के पास
एक पल रुक जाना
अच्छा लगता है

यह तुलसी की पौध
तुम्हारी थाती है
इससे पावन महक
तुम्हारी आती है
फूल पँखुरियों वाले
जल से
इसे सवेरे अरघाना
अच्छा लगता है

पात -पात में इसके
दृष्टि तुम्हारी है
झलक रही इसमें
संतुष्टि तुम्हारी है
दरवाजे के निकट
आज भी
इसका दिन दिन हरियाना
अच्छा लगता है

जब भी खुद को
कभी अकेला पाता हूँ
बरसों पीछे
लौट-लौट में जाता हूँ
खड़े-खड़े ही
तब ने बोले
मन-ही-मन कुछ बतियाना
अच्छा लगता है।

(दो)

अब इस
तरतीब से लगे घर का
ख़ालीपन सहा नहीं जाता

शोकेसों के भीतर
सजी हुई
ये चीजें
जानी पहचानी हैं।

सब-की-सब हुईं आज
बेमौसम अर्थहीन
बिल्कुल बेमानी हैं।

घर के
हर कोने तक उग आया
बीहड़ बन सहा नहीं जाता ।

होली, दीवाली आईं
आकर
चली गईं
अनमनी अलूनी
राख की परत में
लिपटी
सुलगा करती है
अनदेखी धूनी

तुम बिन
हरियाली तीजों वाला
अब सावन सहा नहीं जाता।

(तीन)

दौड़ रहा है शोर
सड़क पर
फिर भी है गूँगे -से दिन
धुएँ- धुँध के घेरे
बोए-से लगते हैं
सभी अलग सपनों में
खोए- से लगते हैं।

घुटन भरी इन दुर्गंधों में
हुए साँपसूँघे-से दिन ।

पहली किरण तरसती है
घर में आने को
भीतर के कोने-कोने से
बतियाने को
उन्हें न भाती
सुबह गुलाबी
वे मोती-मूँगे- से दिन।

(चार)
ऐसा बाग़ लगा है
जिसमें जगह-जगह गिरगिट फैले हैं
जैसा रंग दीखता
वैसा रंग उन्हें भाने लगता है
परिवर्तन के संग
कंठ उस सुर में ही गाने लगता है
छवि है बिल्कुल भोली-भाली
बाहर से देखते हैं खाली
किंतु कार में अशर्फियों से
भरे कई भारी थैले हैं।

मिलते हैं वह सभी वर्ग में ,
राजनीति में,धर्म क्षेत्र में,
तन लिपटे उजले वस्त्रों में
लेकिन रखते कपट नेत्र में
जिस पलड़े को देखा भारी
उसी तरफ़ की बाजी मारी
ऐसे सरवर के स्वामी हैं
जिसके उद्गम ही मैंले हैं ।

अपने सुख की अधिक
न उनको लगती कोई कथा सुहानी
देश धर्म की श्रेष्ठ  कर्म की बातें
हैं उनको बेमानी
जीवनमूल्य न उनको भाते
ऊँची बातों से कतराते
कभी न ऊपर आँख उठाते
ऐसे चीकट गुबरैले हैं।

(पांच)
आओ करें साधना
हमको सबसे पीछे खड़े व्यक्ति के
शब्दों को ताकत देनी है ।

चारों तरफ भीड़ है
आपाधापी ऐसी
आपस में न कहीं कोई रिश्ता नाता है
आगे वाले को धकिया कर
पीछे वाला
गर्व- सहित उससे भी आगे बढ़ जाता है
लेकिन सबसे दूर
खड़ा जो निर्विकार है
बित्ता भर अपना पग नहीं बढ़ा पाता है
हमें उन्हीं सब लोगों से
लोहा लेने की
उसके मन को बहुत सबल चाहत देनी है ।

जितनी धाराएं हैं
जिनमें लहर न उठती
शांत दीखते हैं ऊपर के कुल- किनारे
जो कि राख की
कई सघन परतों के नीचे
मौन छिपाए रखते दबे हुए अंगारे
आने वाली
सभी परिस्थितियों को अपनी
नियति मानकर बैठे  रहते हैं मन मारे

हमें हवा देनी है
उनकी दबी  आग को
दहकाकर दुनिया को गर्माहट देनी है।

(छह)
हम जो भी हैं
अपने कारण हैं
आओ यह सत्य आज स्वीकारें

सुख-दुख
यश-अपयश के थे विकल्प
पर हम ने स्वेच्छा से
एक को स्वयं ही तो छाँटा है।
युग-युग से निर्विवाद सत्य यही है केवल
जैसा बोया हमने वैसा ही काटा है
हम ही लाए
अपने आँगन पर
बादल के दल,
बिजली,बौछारें
आओ यह सत्य आज स्वीकारें

सौंपें दायित्व
किसी सत्ता को नहीं
स्वतः जीवन में उठ रहे
अदम्य चकवातों का
मढ़ें नहीं दोष
किसी मौसम के माथे पर
ठिठुर दिशाओं का, खौलते प्रपातों का
नहीं किसी की
भेजी हैं बहती
तरल भयंकर पावक की धारें
आओ यह सहज स्वीकारें ।

हमने ही
अपने सुकुमार हृदय को
अपनी हठधर्मी से ही
शरबिद्ध किया बार-बार
शाश्वत स्रोतों से कटकर
केवल वृर्त्तों की
सीमा में यौवन को वृद्ध किया बार -बार
हमने सरिता पर तटबंधों की
निर्मित खुद की ऊँची दीवारें
आओ यह सत्य आज स्वीकारें।

(सात)
यह बहू जो छोड़ सब-कुछ
आ गई अनजान घर में
है अकेली तुम इसे अपनत्व देना।

माँ -पिता,भाई बहन का
प्यार छोड़ा
आँगना-दालान,
देहरी -द्वार छोड़ा
छोड़ सखियाँ ,
राखियाँ तीजें यहाँ आई शहर में
है अकेली,तुम इसे अपनत्व देना।

एक तुलसी पौध है
सुकुमार है यह
स्वस्थ्य प्राणों का
सुखद संचार है यह

ध्यान रखना
यह न मुरझाए सुलझती दोपहर में
है अकेली तुम इसे अपनत्व देना।

मायका था बस
भरा-पूरा सरोवर
तब अपरिचित था
न कोई भी वहाँ स्वर

ताल की मछली
यहाँ भेजी गई बहने लहर में
है अकेली, तुम इसे अपनत्व देना।

(आठ)
किसको कहें
कौन है मेला
कौन यहाँ बेदाग !

कितने भी
दिखते पवित्र हों
रिश्ते- नाते
शत्रु-मित्र हों
नए-नए संबोधन वाले
कितने भी उजले चरित्र हों

सब बाहर से
संत दीखते
भीतर से हैं घाघ

मोड़ भरी
सड़कों राहों में
आम,नीम
बट की छांहों में
तीर्थभूमि
आश्रम या गुरुकुल
देवालयों  ईदगाहों में
नज़र नज़र में
सबकी बैठा
एक भयंकर बाघ।

:::::::प्रस्तुति::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत                                           मोबाइल फोन नंबर 9456687822



मोबाइल फोन नंबर 9456687822