चलता जा निर्द्वंद्व बटोही मंज़िल हो कितनी ही दूर
पथ जाना हो या अनजाना
लेकिन कभी नहीं घबराना
पहले मंज़िल को पा जाना
फिर चाहे जी-भर सुस्ताना
चढ़कर अँधियारों के रथ में
रातें भी आयेंगी पथ में
दुर्गमताओं के आगे पर झुकना मत होकर मजबूर
सूरज बरसाये अंगारे
या वर्षा तुझको ललकारे
क्षणभर को भी मत रुक जाना
कोई कितना तुझे पुकारे
आशाओं को देकर न्योता
विपदा से करना समझौता
तुझे सफलता की दुलहन के मांँग लगाना है सिंदूर
आँधी की परवाह न करना
तूफ़ानों से तनिक न डरना
ख़ुद ही अपनी राह बनाना
लक्ष्य न मिल पाएगा वरना
रिसते छालों का दुख सहना
घायल पैरों से यह कहना
मिलते ही गंतव्य थकन सब हो जाएगी ख़ुद काफ़ूर
✍️ डा. कृष्णकुमार 'नाज़'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.................................
तिरंगा जान है अपनी,तिरंगा शान है अपनी।
गगन से कर रहा बातें,यही पहचान है अपनी।
इसी के शौर्य की गाथा,महकती है फिज़ाओं में।
सजी इन तीन रंगों में,मधुर मुस्कान है अपनी।।
नज़र मां भारती की ये ,लहू देकर उतारी है।
यही जननी भगत सिंह की,विजय श्री से संवारी है।
शहीदों ने दिलाई है,अमर अनमोल आज़ादी।
तिलक माटी बनी चंदन,धरा पावन हमारी है।।
वीरों के बलि दान से ,देश हुआ आज़ाद।
उनको करते हम नमन,लिए सुगंधित याद।।
नील गगन लहरा रहा,लिए शौर्य पहचान।
देख तिरंगा है बना,भारत का अभी मान।।
हरित धरा है गा रही,आज़ादी के गीत।
प्राची की किरणें सजीं,सिंदूरी है प्रीत।।
सकल जगत में गूंजती,भारत की आवाज़।
देश प्रेम के गीत हों,मानवता का साज़।।
गंगा की धारा कहे,अनुपम अपना देश।
कर्मों को समझा रहे,गीता के उपदेश।।
✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
.......................................
हिंसा भ्रष्टाचार द्वेष
आतंकवाद का तमस मिटायें
देशभक्ति के भाव जगायें,
आओ फिर से दिया जलायें
देशप्रेम ले चुका विदा अब,
नहीं दीखता है मानव में
बात देश की कौन करे
पनपे गुण जो होते दानव में
निजता से यह देश बड़ा है,
आओ बच्चों को सिखलायें
पहले थे भारतवासी
अब हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
दलित-सवर्णों में बँटकर फिर
कहाँ रहे हम भाई-भाई
चलो द्वेष के इस मरुथल में
देशप्रेम के सुमन खिलायें
जन्म लिया जिसने धरती पर
निश्चित है उसका तो मरना
शाश्वत है जब मृत्यु यहाँ पर,
फिर बोलो उससे क्या डरना
जब निश्चित है मरना तो फिर
चलो देश हित मर मिट जायें
सोने की चिड़िया कहलाता
देश आज बदहाल हुआ है
बाड़ खा गई स्वयं खेत को
इससे ही यह हाल हुआ है
आओ मिलकर फिर भारत को
पहले-सा सम्मान दिलायें
✍️ योगेन्द्र वर्मा व्योम
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................
जन जन को प्राणों से प्यारा भारत देश हमारा है।
ये स्वतंत्रता का उत्सव भी , हर उत्सव से न्यारा है।
आजादी के इस उत्सव को हम प्रतिवर्ष मनाते हैं।
भारत माँ की शान तिरंगा, लगता हमको प्यारा है।
अधिकारों के लिए लड़ रहे, कर्तव्यों को मत भूलो
जात धर्म की राजनीति में, भारत माँ को मत भूलो
भारत तेरे टुकड़े हों ये, नारे आप लगाते हो
देश बचेगा तभी बचोगे, याद रखो ये मत भूलो
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई, एकसूत्र में बँध जाएं
भारत माँ को देशद्रोहियों, के चंगुल से छुड़वाएं
घर के भीतर गद्दारों का, मिल जुल कर प्रतिकार करें
जन गण की पहचान तिरंगा, सदा शान से फहराएं
आओ इस अमृत उत्सव पर, गीत एकता के गाएं
राष्ट्र प्रेम की अलख जगाकर, देश राग फिर से गाएं
भारत माता का यश वैभव पुनः विश्व पर छा जाए
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, रंग तिरंगे के छाएं।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
........................................
सारी दुनिया को नई राहें तू दिखलाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
तेरे माथे को हिमाला चूमना जारी रखे
चांद तुझको चांदनी दे, घूमना जारी रखे
तेरी सुब्हें लाए सूरज और मुस्काता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
तेरे बादल तेरी नदियों को रवां करते रहें
तेरे दरिया तेरे खेतों को जवां करते रहें
खेत हर इक अन्न की ख़ुशबू को बिखराता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
तेरी मिट्टी से हमेशा सोंधी सी आए महक
तेरे पेड़ों पर परिदों की रहे यूं ही चहक
तेरा हर इक पेड़ फल और फूल बरसाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
राम पुरुषोत्तम रहें और कृष्ण गीता-सार हों
बुद्ध, नानक, चिश्ती तेरे प्रेम का आधार हों
फूल तेरे बाग़ को हर एक महकाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
तेरे कालीदास, ग़ालिब, तेरी मीरा और कबीर
प्रेमचंद, टैगोर तेरी लेखनी के हैं अमीर
सूर, तुलसी, मीर को संसार यह गाता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
तेरी सुब्हें तेरी शामें यूं ही ताबिन्दा रहें
बांटने वाले तुझे ता-उम्र शर्मिन्दा रहें
छोड़ जो तुझको गए तू उनको याद आता रहे
तेरा परचम ता-क़यामत यूं ही लहराता रहे
✍️ ज़िया ज़मीर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
......................................
जय हिंद दोस्तो है ,अपना तो एक नारा,
ये देश है उसी का ,जो देश पर है वारा।
ग़म की अँधेरी बदली, छायेगी अब न फिर से,
पाया है जान देकर ,आज़ादी का नज़ारा
जीते हैं हम वतन पर, मरते है हम वतन पर
भारत सदा रहेगा प्राणो से हमको प्यारा
दुश्मन खड़ा है हर सू, ललकारता है हमको
माँ भारती ने देखो ,हमको है फिर पुकारा
बाँधा कफन है सर से ,हमने वतन की खातिर,
देकर लहू जिगर का,हमने इसे सँवारा।
मरता है हिंद पर ही ,भारत का हर निवासी,
सदियो तलक रहेगा बस दौर ही हमारा।
है आरज़ू ये मेरी, तेरी ज़मी ही पाऊँ,
सातो जनम ही चाहे, आना पड़े दुबारा।
✍️ मीनाक्षी ठाकुर,
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
................................
तुम नींद चैन की सो जाना,
सीमा पर मैं हूँ जाग रहा।
तुम छांव तले बैठे रहना,
मैं जलते पथ पे भाग रहा।
तुम लड़ो न छोटी बातों पर,
मैं रोज मौत से लड़ता हूँ।
तुम गिरो न मतलब की खातिर,
मैं पल पल ऊँचा चढ़ता हूँ।
लू या बर्फीली हवा चले,
कदमों ने रुकना ना जाना।
भारत बसता है आँखों में,
कुछ और नहीं मुझको पाना।
जश्न ए तिरंगा होगा तो,
कुर्बानी मेरी गायेगी।
हँसते हँसते मर जाऊँगा,
जब बात देश की आयेगी।
मैं वीर सिपाही सीमा का,
मेरे दिल का अरमान सुनो।
झुक जाये न शीश तिरंगे का,
तुम देश का स्वाभिमान चुनो।
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................
अमृत की वर्षा झरे, स्वर्णिम हो उत्थान।
नित नित ही फूले फले, भारत देश महान।।
दसों दिशा गुंजित करे, जन गण मंगल गान।
जयति जयति मां भारती, जय जय हिंदुस्तान।।
आजादी को सींचता, वीरों का बलिदान।
शत शत वंदन आपको, कोटि कोटि सम्मान।।
शौर्य, शांति, समृद्धि की , गाथा रहा बखान
आज तिरंगी शान को, देखे सकल जहान
ऊपर अंबर केसरी, हरित खेत खलिहान
मध्य प्रेम सद्भाव की, पुरवाई वरदान
✍️ मोनिका "मासूम"
...............................
उन्नत माँ का भाल करें जो उनका वंदन होता है,
बलिदानी संतानों का जग में अभिनंदन होता है,
माटी में मिलकर ख़ुशबू उस नील गगन तक छोड़ गए,
ऐसे वीरों की धरती का कण-कण चंदन होता है।
गोरी सेना को हुंकारों से दहलाने वाले थे,
दाग ग़ुलामी वाला अपने खूँ से धोने वाले थे,
उनको कौन डरा सकता था आज़ादी की ख़ातिर जो,
संगीनों के आगे अपनी छाती रखने वाले थे।
✍️ मयंक शर्मा
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
.............................…
ये मेरे देश की मिट्टी, इसका कण-कण खुद कहानी है
इसी में पर्वत का राजा तो, इसी में नदियों की रानी है
इसी में चर्चों की घण्टी तो, इसी में गुरुओं की बानी है
यही है आव-ए-जम-जम, तो यही गंगा का पानी है
यह मेरे देश की मिट्टी, मिट्टी नही ये चंदन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे, उन वीरों को वंदन है।।
ये सीता की है जन्मभूमि, इसमें राम का बचपन है।
बंधुत्व का प्रेम भी इसमें, पितृभक्ति के भी दर्शन है ।।
यहाँ के राम ही हैं आदर्श, तो संस्कारों में रामायन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...
हुए यहाँ कर्ण से दानी, और अर्जुन से धुरंधर हैं।
यहाँ गीता की वाणी है, और कृष्ण भी निरन्तर हैं।।
गोकुल का रास भी इसमें, गोपियों का सुक्रंदन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...
बजी जब भी है रणभेदी, बनी पावस की ज्योति है।
रगों में उल्लास भर-भर के, निराशा पल में खोती है।।
है वीरों का लहु शामिल, तभी पावन तो कन-कन है।
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...
तुम अपने रक्त से सींचो, सजाया वीरों ने उपवन है
क्योंकि आशा तुम्हीं से है तुम्हारे नाम ही ये कल है
बढ़ा दो मान सब जग में, यही हर बार अभिनंदन है
लगा मस्तक पे जो उतरे उन वीरों...
✍️ दुष्यन्त 'बाबा'
पुलिस लाइन
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
जय हिंद। वंदे मातरम्।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएं