शुक्रवार, 31 जनवरी 2025

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति अग्रवाल का गीत.... चलो चलो रे प्रयागधाम रे


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल का गीत.... आज प्रतिष्ठित हैं श्रीराम


 

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की रचना ...संगम तट पर यह आयोजन महाकुंभ का भारी है..

 क्लिक कीजिए 

⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️⬇️


संगम तट पर यह आयोजन, महाकुंभ का भारी है। 

हुए करोड़ों लोग इकट्ठे,     छोड़ी दुनियादारी है।। 


अवगाहन करके संगम में, स्वस्थ सभी के तन होते, 

संतों की वाणी सुन- सुनकर, सबके निर्मल मन होते, 

यहाँ धर्म का लाभ उठाने,    उमड़ी जनता सारी है।। 


एक घाट पर डुबकी मारें, निर्धन या धनवान सभी, 

सुनते हैं सत्संग वहाँ फिर, बैठें एक समान सभी, 

जहाँ न कोई राजा रहता, एवं नहीं भिखारी है।। 


वर्षों में यह महाकुंभ का,  पावनतम संयोग बना, 

करते भजन सभी मिलकर हैं, कैसा अद्भुत योग बना।। 

उत्सव में आनंदित सब हैं,   नहीं रोग बीमारी है।। 


 दूर देश से चलकर आए, देखो लाखों लोग यहाँ, 

सुन 'ओंकार' सनातन को अब, करते सभी प्रयोग यहाँ, 

सत्य सनातन चला यहीं से, भारत की बलिहारी है।। 


ओंकार सिंह 'ओंकार' 

मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)

सोमवार, 27 जनवरी 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष राम लाल अनजाना के 18 दोहे .......

 


नफरत और गुरूर तो देते हैं विष घोल ।

खुशियों को पैदा करें मधुर रसीले बोल ।।1।।


जीवन के पथ पर चलो दोनों आंखें खोल ।

दुखे न दिल कोई कहीं, बोलो ऐसे बोल।।2।।


पूजा कर या कथा कर पहले बन इंसान।

हुआ नहीं इंसान तो जप-तप धूल समान।। 3।। 


कोई तो धन को दुखी और कहीं अंबार ।

जीवन शैली में करो कुछ तो यार सुधार।।4।।


पैसा ज्ञानी हो गया और हुआ भगवान ।धनवानों को पूजते बड़े-बड़े विद्वान ।।5।।


पैसे ने अंधे किए जगभर के इंसान।

पैसे वाला स्वयं को समझ रहा भगवान ।।6।।


मठ, मंदिर, गिरजे सभी हैं पैसे के दास।

बिन पैसे के आदमी हर पल रहे उदास।।7।।


लूटमार का हर तरफ मचा हुआ है शोर।

पैसे ने पैदा किए भांति-भांति के चोर।।8।।


जन्में छल, मक्कारियां दिया प्यार को मार।पैसे से पैदा हुआ जिस्मों का व्यापार ।।9।।


मेहनत को मत भूलिए यही लगाती पार

कर्महीन की डूबती नाव बीच मझधार।। 10।।


बाग़ कटे, जीवन मिटे, होता जग वीरान ।जीवन दो इंसान को, होकर जियो महान।।11।।


लूट रहे हैं डाक्टर, उनसे अधिक वकील।मानवता की पीठ में ठोंक रहे हैं कील।।12।।


पिता तुल्य गुरु भी करें अब जीवन से खेल।ट्यूशन पाने को करें, वे बच्चों को फेल।। 13।।


कहां-कहां किस ठौर का मेटें हम अंधियार ।

कवियों ने भी लिया है अपना धर्म बिगाड़।।14।।


रहे नहीं रहिमन यहां, तुलसी, सूर कबीर ।भोंडी अब कवि कर रहे कविता की तस्वीर।। 15।।


ठंडी ठंडी चांदनी और खिली-सी धूप ।खुशबू, मंद समीर सब हैं नारी के रूप।।16।।


झरने, बेलें, वादियां, सागर, गगन, पठार।नारी में सब बसे हैं मैंने लिया निहार।।17।।


नारी कोमल फूल-सी देती सुखद सुगंध।जीवन को ऐसा करे ज्यों कविता को छंद ।। 18।।

गुरुवार, 23 जनवरी 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार मनोज मनु का गीत ....राम का वंदन करें


 

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम के दोहे .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक निर्मल का गीत... सकल विश्व में गूंज रहा है, ऐसा अद्भुत नाम है जो ,प्रभु राम है वो सिया राम हे वो