शनिवार, 1 फ़रवरी 2025

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष रामलाल अनजाना की पुण्यतिथि 27 जनवरी 2025 को साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से आयोजित समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार को रामलाल अनजाना स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर काव्य गोष्ठी का भी आयोजन हुआ।

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष रामलाल अनजाना की पुण्यतिथि पर मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से वीरेंद्र सिंह बृजवासी के बुद्धि विहार स्थित आवास पर सोमवार 27 जनवरी 2025 को आयोजित समारोह में वरिष्ठ साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार को रामलाल अनजाना स्मृति सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें मान पत्र, श्रीफल और अंग वस्त्र प्रदान किए गए। वीरेंद्र सिंह बृजवासी के संयोजन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता डॉ महेश दिवाकर ने की तथा  संचालन डॉ मनोज रस्तोगी ने किया। 

     वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत मां सरस्वती वंदना से आरंभ समारोह के प्रथम  चरण में साहित्यकारों ने स्मृतिशेष रामलाल अनजाना तथा सम्मानित साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा 20 जून 1939 को जन्में राम लाल अनजाना प्रेम और मानवीयता के कवि थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से मानवीय सरोकारों को उजागर किया।उनका प्रथम काव्य संग्रह "चकाचौंध" वर्ष 1971 में प्रकाशित हुआ। उसके पश्चात गगन ना देगा साथ, सारे चेहरे मेरे, दिल के रहो समीप, वक्त ना रिश्तेदार किसी का काव्य कृतियां प्रकाशित हुईं। उनका देहावसान 27 जनवरी 2017 को हुआ । 

     कार्यक्रम के सह संयोजक राजीव प्रखर ने कहा 4 जुलाई 1950 को जन्में साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' सामाजिक सरोकारों के कवि हैं । उनका प्रथम ग़ज़ल संग्रह संसार हमारा है वर्ष 2008 में प्रकाशित हुआ। इसके पश्चात उनकी प्यार के दीप, आओ ! खुशी तलाश करें'  काव्य कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। उनको प्रदत्त मान पत्र का वाचन संयोजक वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने किया।

     समारोह के द्वितीय चरण में आयोजित काव्य गोष्ठी में कार्यक्रम अध्यक्ष डा. महेश  'दिवाकर' ने कहा .... 

कौओं की ये फौज उड़ रही, 

हंस  छुपे  जा  मानसरोवर! 

किसमें साहस इन्हें हराये? 

लोकतंत्र  ने  हिम्मत हारी!!

  सम्मानित साहित्यकार ओंकार सिंह 'ओंकार' ने कहा....

आज अच्छे आचरण से, लोग कतराने लगे।

जो भलाई कर रहा है, काँपता थर-थर मिला।।

कार्यक्रम संयोजक वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा ...

मैं चला जाता कभी का इस जहाँ से,

बस तुम्हारे प्यार की खातिर रुका हूँ!

लौट जाने को विवश हूँ पर  तुम्हारे,

प्यार के आभार की खातिर रुका हूँ!

श्री कृष्ण शुक्ल का कहना था ...

परदे के पीछे भी गंगा, अविरल ही बहती रहती है।

हमको तो ये मैली गंगा, फलदायी होती रहती है।

गंगा चाहे साफ नहीं हो, धन दौलत आती रहती है।

साझेदारी नेता और  दलालों की चलती रहती है।

मिलकर खाओ इस हमाम में, हम भी नंगे तुम भी नंगे

हर हर गंगे हर हर गंगे, नमामि गंगे हर हर गंगे।

डॉ राकेश चक्र ने कहा....

माँ धरती की चूनर धानी माँ ही सुख की छइयां रे।

कल्पतरू - सी माँ रे भइया माँ ठंडी पुरवइया रे।।

नौ माहों तक पीर सह गई अपने बच्चे की खातिर।

धूप - ताप में शिकन न लाई भूख प्यास भी भूली फिर।।

डॉ पूनम बंसल का गीत था .....

जितना सुलझाओ उलझी है

 मतवाली अलबेली है

चाल न इसकी कोई समझे

 जिंदगी ऐसी पहेली है

अमरोहा से आईं कवयित्री शशि त्यागी ने कहा ....

आ जाती जब बात मान की,एक हुआ करते थे,

कहाँ गए वे लोग जो,पश्चाताप किया करते थे।

कहाँ गए वे भ्रात,जो आपस में लड़़ते-मरते थे,

मातृ प्रेम में पगे, तुरत ही मेल किया करते थे।

घड़ी-दो-घड़ी रूठ के वापिस घर आया  करते थे,

कहाँ गए वो लोग,जो पश्चाताप किया करते थे।

बाल साहित्यकार राजीव सक्सेना ने कहा ....

गाँव -गाँव  छिड़े हैं दंगल

शहर बने नागों के जंगल 

अब किस पर भरोसा करें-

शहर पर या गाँव पर ?

जिंदगी है दाँव पर ...

कार्यक्रम के सहसंयोजक राजीव प्रखर ने कहा ....

चंदा बिन्दी भाल की, तारे नौलख हार। 

रजनी करके आ गई, फिर झिलमिल श्रृंगार।।

मयंक शर्मा ने कहा ....

मां हैं नदिया की गहराई तो नदिया का शोर पिता

कभी न रुकने वाले जैसे सागर का हैं शोर पिता

अशोक विद्रोही ने कहा ....         

मैं कबीरा,सूर,तुलसी और मीरा की हूं वाणी,

ओज दिनकर की सदा ही दिल मेरा हिन्दोस्तानी।

चन्दवरदाई की वाणी सा अमर हो जाऊंगा मैं। 

रात के गहरे अंधेरे में कहीं खो जाऊंगा मैं।

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा....

खुजली भ्रष्टाचार की,जब जब काढ़े खून।

साफ समय की पीठ पर,छूट गये नाखून।

योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा .….

विजयी सूरज का हुआ, सभी जगह सत्कार।

आज सुबह जब गिर गई, कुहरे की सरकार।।

छँटा कुहासा मौन का, निखरा मन का रूप।

रिश्तों में जब खिल उठी, अपनेपन की धूप।।

अचल दीक्षित ने व्यंग्य प्रस्तुत करते हुए कहा....

हिंदू मुस्लिम, गरीब अमीर पर प्यार लुटाते गांधी जी

करते वादे नेताजी,पर काम कराते गांधी जी,

मनोज मनु ने कहा ....

तुम ध्यान गुरु अरु मान तुम्हीं । 

सचराचर का संधान तुम्हीं। 

तुम भाषा, दृष्टि, समझ-अचरज 

लौकिक, आलौकिक ज्ञान तुम्हीं। 

 विवेक निर्मल ने कहा .... 

जन-जन की पीड़ा गाते थे रामलाल अनजाना जी। 

इसीलिए मन को भाते थे रामलाल अनजाना जी।

अशोक बाबा ने कहा... 

मेरे गुरुवर मेरे सद्गुरु मेरे प्राणाधार, 

जग भूलूं तुमको न भूलूं

 न भूलूं तुम्हारा प्यार। 

डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा... 

सूरज की पहली किरण, 

उतरी जब छज्जे पर, 

आंगन का सूनापन उजलाया।   

दुष्यंत 'बाबा' ने कहा –

गुरुवर मुझको जाँचकर, नम्बर रखे उधार।

ज्ञान पुस्तिका फाड़कर, बोले  बनो उदार।।

राशिद सैफी ने कहा ....

कहूँ मैं क्या ओंकार जी आपके सम्मान में,

आपके जैसा होगा ना कोई सारे जहान में,

राजीव कुमार गुर्जर ने कहा ....

संघर्षों के अंधियारों में

सूर्य सम तप करते रहना

कर्तव्य-पथ पर चलते रहना 

गोष्ठी में रघुराज सिंह निश्चल, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, राम सिंह निशंक, जितेंद्र कुमार जौली, काले सिंह साल्टा, रवि चतुर्वेदी, आकर्ष त्यागी ने भी काव्य पाठ किया।