मुरादाबाद के रंगकर्मी डॉ. प्रदीप शर्मा को साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार दो फरवरी 2025 को हुए समारोह में कला साधक सम्मान से अलंकृत किया गया। यह समारोह मिलन विहार स्थित सनातन धर्मशाला में हुआ। राघव अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता रामदत्त द्विवेदी ने की। मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में हरि प्रकाश शर्मा एवं धवल दीक्षित उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया।
सम्मान स्वरूप डॉ. प्रदीप शर्मा को अंग वस्त्र, मान पत्र, स्मृति चिह्न एवं श्रीफल भेंट किए गये। मान पत्र का वाचन जितेन्द्र जौली द्वारा किया गया। डॉ. प्रदीप शर्मा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए राजीव प्रखर ने कहा .... डॉ. प्रदीप शर्मा ने रंगमंच के क्षेत्र में पिछले लगभग उनसठ वर्ष से निरंतर सक्रिय रहते हुए निर्देशक एवं अभिनेता दोनों रूपों में अनेक ऊंचाइयों को छुआ है। मुरादाबादी शैली की रामलीला के लिए देश भर में लोकप्रिय महानगर मुरादाबाद की रंगमंच संस्था आदर्श कला संगम आज उन्हीं के नेतृत्व में निरंतर सक्रिय रहते हुए समाज को अपनी सेवाएं दे रही है।
डॉ. प्रदीप शर्मा की रंगमंच यात्रा पर विचार रखते हुए महानगर के वरिष्ठ साहित्यकार एवं कार्यक्रम अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी ने कहा - महानगर मुरादाबाद का सौभाग्य है कि डॉ. प्रदीप शर्मा जी के रूप में रंगमंच का एक ऐसा अनमोल रत्न उपलब्ध है जिसकी चमक से आने वाले लंबे समय तक समाज लाभान्वित होगा। डॉ. प्रदीप शर्मा जी की विशेषता है कि वह रंगमंच में मात्र सक्रिय ही नहीं रहते अपितु इस कला को स्वयं में जीते भी हैं। अगर यह कहा जाए कि मुरादाबाद के रंगमंच की चर्चा डॉ. प्रदीप शर्मा की चर्चा के बिना अधूरी है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
कार्यक्रम के अगले चरण में काव्य गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें रचना पाठ करते हुए राजीव 'प्रखर' ने कहा -
बैरभाव-विद्वेष का, कर भी डालो अंत।
पीली चुनरी ओढ़कर, कहता यही बसंत।
छेड़े सम्मुख माघ के, कोकिल मीठी तान।
सरसों भी कुछ कम नहीं, फेंक रही मुस्कान।।
योगेन्द्र वर्मा व्योम का कहना था -
पीत-पत्र बन झर गए, सभी कष्ट-अवसाद।
किसलय जब करने लगे, वासंती अनुवाद।।
जितेन्द्र जौली के उद्गार थे -
स्वच्छता अभियान में, इतना करिये दान।
शौचालय घर में बना, साफ रखो मैदान।।
मीनाक्षी ठाकुर ने वसंत को अपने गीत से इस प्रकार दर्शाया -
पीली सरसों नाच रही है
मस्त मगन बिन साज के।
पीत-वसन, सुरभित आभूषण,
ठाठ बड़े ऋतुराज के।
राशिद सैफ़ी की अभिव्यक्ति थी -
ये जो साहित्य कला के रखवाले हैं,
सब प्रदीप जी के ही चाहने वाले हैं।
अशोक विद्रोही ने वर्तमान जनमानस को चेताया - रंग दे बसंती चोले की धुन में,
वे सब कुछ भूल गए।
याद रही बस भारत माता,
अपनी माॅं को भूल गए ।
श्रीकृष्ण शुक्ल की अभिव्यक्ति थी -
संस्कारों के कृष्ण अब, बदल गये भावार्थ।
चरण वंदना में निहित केवल कोई स्वार्थ।।
परिवारों में हैं निहित, सबके अपने स्वार्थ।
सेवा अब पितु मात की, लगे व्यर्थ परमार्थ।।
वीरेन्द्र ब्रजवासी का कहना था -
दो-दो घरों की आन, निभाती बेटियाँ हैं,
एक कुल से दूसरे कुल, में समाती बेटियाँ हैं।
इसके अतिरिक्त बाबा संजीव आकांक्षी, डॉ. मनोज रस्तोगी, विवेक निर्मल, पल्लवी शर्मा, ओंकार सिंह ओंकार, हरि प्रकाश शर्मा, कंचन खन्ना, कृष्ण औतार, अक्षेन्द्र सारस्वत, नकुल त्यागी, दीप्ति खुराना, राजीव गुर्जर, मंगू सिंह आदि ने भी डाॅ. प्रदीप शर्मा को हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति की। जितेन्द्र जौली ने आभार अभिव्यक्त किया ।
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