खूब चढ़ी कढ़ाई में आपका स्वागत है। आज हम आपको बिल्कुल नई रेसिपी बताते है। पहले भी यह मार्केट में आई थी। तब से यह मार्केट में है। रिस्पॉन्स अच्छा है। रेसिपी में बदलाव करते रहना चाहिए। इससे डिमांड बनी रहती है। रेसिपी टेस्टी होती है।
रेसिपी स्टेप-1
आपको बाहर से कोई आइटम नहीं मंगवाना। हम घर के आइटम से ही रेसिपी बनाएंगे। मेड इन इंडिया। यह वीडियो बनाने तक हम 140 करोड़ हैं। जब तक रेसिपी तैयार होगी। बढ़ सकते हैं। तो आइए, रेसिपी तैयार करते हैं।
स्टेप 2
एक नई कढ़ाई लीजिए। आपके पास नई न हो तो पुरानी भी ले सकते हैं। लेकिन इसमें वोट चोरी का अंदेशा होता है। आपके घर में एक थाली होगी। एक चम्मच होगी। उसको बजाइए। ठीक वैसे ही जैसे कोरोना में बजाई थी। यह काम घर के अंदर मत कीजिए। आप अपनी बालकनी में आ जाइए। फिर बजाइए। जितने बर्तन बजेंगे, सेहत के लिए अच्छा होगा। पड़ोस को पता होना चाहिए कि किस घर में बर्तन बज रहे हैं। इससे दो लाभ होंगे। पड़ोस में बर्तन खटकेंगे। नंबर दो.. तांक झांक बंद हो जाएगी।
स्टेप 3
अब थाली को लेकर किचिन में आ जाइए। गैस जलाइए। कढ़ाई लीजिए। अभी एक नंबर पर ही जलाइए क्यों कि सिलेंडर महंगा है। अब उसमें थोड़ा सा घी डालिए। घी जल जाए तो कोई बात नहीं, दुबारा डालिए। आग में जितना घी डालोगे, रेसिपी उतनी टेस्टी बनेगी।
स्टेप 4
आपके पास बासी मलाई होगी। ताजी हो तो भी चलेगी। ताजी मलाई में स्वाद नहीं आता। बासी मलाई को अच्छी तरह फेंट लें।
अब एक लौकी ले। चाकू लें। चाकू तेज होना चाहिए। आजकल चाकू तेज नहीं आते। अब हम चाकू से लौकी की ऊपर की हरी परत उतारेंगे। यह दो मिनट में उतर जाती है। किसी की भी उतारनी हो, दो मिनट ही लगते है। गोल गोल पीस कर लीजिए। लीजिए लौकी कट गई।
कटने में टाइम नहीं लगता है। बनने में देर लगती है। खाने में दो मिनट लगते हैं।
स्टेप 5
अब लौकी को ऐसे ही रहने दें। एक कटोरे में एक चम्मच जीरा, एक चम्मच अजवाइन, कड़ी पत्ता, थोड़ी सी हल्दी लीजिए। लौकी को इस मसाले में मिक्सड कीजिए। अब महीन महीन राजनीतिक मुद्दों की तरह प्याज काटिए। प्याज जितनी महीन होगी उतने ही लोग कहेंगे वाह।
लौकी को घी या तेल में फ्राई कर ले। फ्राई हल्के हल्के कीजिए। मसाला मिक्सड कर लीजिए। अब कढ़ाई में फ्राई कीजिए। मुद्दे बाहर आ जाएंगे।
स्टेप 6
लीजिए। रेसिपी तैयार हो गई। अब लौकी पर दही डालिए। और झट से सर्व कर दीजिए। एक बात और। लौकी खाने के दो फायदे हैं। पेट दुरुस्त होता है। हाजमा ऐसा कि ईडी को भी पता नहीं चलता। नंबर दो, लौकी से भाग्य बनता है। कारोबार फैलता है ।
मिसेज शर्मा जी ने पूछा.. आंटी जी मलाई का क्या करें ?
"उसका कुछ नहीं करना। और बासी होने दीजिए। विपक्ष के काम आयेगी। "
लौकी को फ्राई कितनी गैस पर करें? एक नंबर पर?
"ओह नो। फ्लेम तेज कर दें। जब तक आग नहीं भड़केगी, लौकी नहीं गलेगी।"
मिसेज शर्मा ने दही की जगह बासी मलाई मिलाई और मिस्टर शर्मा जी को परोस दी।
याद रखिए, हर रेसिपी लोकतंत्र का हिस्सा है। घर और राजनीति में कोई चीज बेकार नहीं जाती। घर की रसोई में पड़ी पन्नियां कभी न कभी काम आ जाती हैं। पन्नियां वो राजनीतिक दल हैं जिनकी बड़े दलों को कभी न कभी जरूरत पड़ती ही है।
मिलते हैं, अगली रेसिपी पर। देखते रहिए - खूब चढ़ी कढ़ाई। यह रेसिपी अच्छी लगी हो तो चैनल को सब्सक्राइब करें। लाइक करें। शेयर करें।
मुरादाबाद मंडल के साहित्य के प्रसार एवं संरक्षण को पूर्ण रूप से समर्पित संस्था साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो महेन्द्र प्रताप की जयंती शुक्रवार 22 अगस्त 2025 पर सम्मान समारोह एवं संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें रीति काव्य के संपादन और टीकाकरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ रामानन्द शर्मा को अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल भेंट कर प्रो महेन्द्र प्रताप स्मृति सम्मान से अलंकृत किया गया। वंदेभारत संस्था की ओर से धवल दीक्षित और मयंक शर्मा द्वारा उन्हें भारत माता का चित्र भेंट किया गया। उर्दू साहित्य शोध केंद्र और कृष्ण बिहारी नूर साहित्य संस्थान की ओर से भी डॉ रामानन्द शर्मा को सम्मानित किया गया।
लाजपतनगर स्थित महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय में आयोजित समारोह का शुभारंभ मनोज व्यास द्वारा पण्डित मदन मोहन व्यास द्वारा रचित मां सरस्वती वंदना की प्रस्तुति से हुआ। साहित्यिक मुरादाबाद के संस्थापक डॉ मनोज रस्तोगी ने स्मृतिशेष प्रो महेन्द्र प्रताप का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि 22 अगस्त 1923 को जन्में महेंद्र प्रताप वर्ष 1948 को यहां केजीके महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष पद पर नियुक्त होकर आए तो यहां की माटी में पूरी तरह रच बस गए । अपनी विद्वता, सौम्यता, शालीनता, विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न बहुआयामी व्यक्तित्व और आभा मंडल से उन्होंने समूचे मुरादाबाद को आलोकित कर दिया। वह हिंदुस्तानी अकादमी प्रयागराज के सचिव भी रहे । उनका देहावसान 20 जनवरी 2005 को हुआ।
सह संयोजक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने सम्मानित विभूति डॉ रामानन्द शर्मा का परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा 25 जुलाई 1951 को जन्में हिन्दू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य , सुविख्यात साहित्यकार डॉ. रामानन्द शर्मा की तीस से अधिक कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं तथा चालीस से अधिक शोधार्थी उनके निर्देशन में शोधकार्य पूर्ण कर शोध उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। उ.प्र. संस्कृत संस्थान, लखनऊ द्वारा आप कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं । डॉ विशेष कुमार शर्मा ने सम्मान पत्र का वाचन किया।
अध्यक्षता करते हुए डॉ प्रभात कुमार ने कहा कि जहाँ एक ओर उनका व्यक्तित्व बेहद सहज , भव्य और विराट था वहीं उनके गीत प्रेम व सौंदर्य के साथ-साथ दार्शनिकता व आध्यात्मिक चेतना से परिपूर्ण हैं।
इस अवसर पर प्रो महेन्द्र प्रताप के गीतों की सस्वर प्रस्तुति भी की गई। बाल सुंदरी तिवारी ने उनका गीत मैं तुमको अपना न सकूँगा, तुम मुझको अपना लो ,डॉ प्रियंका गुप्ता ने कितने दृग पंथ रहे निहार ,स्वागत है अभ्यागत उदार ,मनोज मनु ने आज मेरा कण्ठ फूटा, रागिनी तुमने उठाई और प्रीति अग्रवाल ने दे रहे तुमको विदाई आज आकुल चेतना है व्यथा की बाढ आई गीतों का सस्वर गायन किया ।
एम एच कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ विशेष गुप्ता ने कहा कि प्रो महेन्द्र प्रताप की हिन्दी भाषा, व्याकरण एवं अवधारणाओं की सैद्धान्तिक व्याख्या के विशेषज्ञ के रुप में स्पष्ट पहचान रही है।
केजीके कॉलेज के प्राचार्य डॉ सुनील चौधरी ने कहा वह बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।
रामावतार रस्तोगी शरणागत ने गुरु वन्दना, डॉ राकेश चक्र और काले सिंह साल्टा ने प्रो महेंन्द्र प्रताप के व्यक्तित्व पर केंद्रित गीत प्रस्तुत किये। वहीं डॉ मनोज रस्तोगी ने दादा के व्यक्तित्व पर केंद्रित डॉ प्रशांत भारद्वाज की कविता का वाचन किया।
आगरा से आईं उनकी ज्येष्ठ सुपुत्री वन्दना श्रीवास्तव ने दादा की स्मृतियों को साझा किया। लखनऊ से आईं उनकी सुपुत्री डॉ आरती श्रीवास्तव ने कहा बचपन से हमारे घर में इतना अद्भुत वातावरण था- बिना किसी प्रयास के आध्यात्म , साहित्य, संगीत सब के लिए रुचि और इन विषयों पर चर्चा और विवेचना अनायास हमको सुनने को मिलती रही। दादा के पास आने वाले सभी लोग धीरे-धीरे हमारे परिवार जैसे ही हो जाते थे थे और ऐसा होने से बनारस, उनके मूल स्थान से इतनी दूर इस मुरादाबाद शहर में हमें कितने ही चाचा जी, बुआ, भाई और दीदी का प्यार और संरक्षण मिला। आज भी मुरादाबाद में दादा के बनाये सम्बन्धो का प्यार हमको मिलता है।
लखनऊ से आये उनके सुपौत्र विनायक मणि ने कहा उनके व्यक्तित्व का मैं जब भी स्मरण करता हूँ तो उसमें एक ऐसा महान व्यक्ति दिखता है जिसने स्वयं के जीवन के आशियाने को पूर्ण रूप से ज्ञानप्राप्ति, त्याग और सेवा के तीन स्तंभों पर आधारित किया। फिर चाहे वो स्वयं के लिए हो, परिवार के लिए हो, अपने विद्यार्थियों के लिए हो या फिर समाज के लिए हो। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व का सार इन तीन स्तंभों में ही है। एक महान हिंदी के शिक्षक होने के साथ-साथ उनकी गहरी रुचि संगीत एवं कला में भी थी।
ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ...
वह प्रेम का अगाध सरोवर नहीं रहा।
वह हाथ अब दुलार का सिर पर नहीं रहा।।
नदियाँ जगत के ज्ञान की जिसमें विलीन थीं,
'ओंकार' ज्ञान का वह समंदर नहीं रहा।।
वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ प्रदीप शर्मा ने कहा प्रो महेन्द्र प्रताप जी ज्ञान का अथाह सागर थे । हिन्दी भाषा और व्याकरण के वह ज्ञाता थे ।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज ने कहा प्रो महेन्द्र प्रताप ऐसे वृक्ष थे जिनकी शीतल छांव में बैठकर मुझ ऐसे बहुत से रचनाकार अपनी अगली मंज़िलों के निशान तलाशते थे।
मनोज व्यास ने स्मृति शेष माहेश्वर तिवारी के आलेख का वाचन करते हुए कहा कि उन्होंने वाराणसी के प्रसाद परिषद और इलाहाबाद की परिमल की परिकल्पना और प्रेरणा से यहां मुरादाबाद में साहित्यिक संस्था अंतरा का गठन किया जो धीरे-धीरे कविता का गुरुकुल बनती गयी।
प्रत्यक्ष देव त्यागी ने स्मृतिशेष डॉ मक्खन मुरादाबादी का आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा ... वह अपनी साहित्यिक निधि कागज़ पर उतार कर संचित करने वाले साहित्यकार न होकर साहित्य को उस ही की भाषा में अपनी वाणी की मिठास से सुधीजन के हृदय में उतार देने वाले साहित्यकार थे।अपनी छोटी सी साहित्यिक समझ के आधार पर मैं यह कहने में कतई संकोच नहीं करूँगा और न ही लेश मात्र भी हिचकूँगा कि दादा 'एक्स्टेंपोर' साहित्यकार थे।
श्री कृष्ण शुक्ल ने दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार के आलेख का वाचन करते हुए कहा ... दादा' का रचना संसार मार्मिक एवं भावुक, साहित्यिक प्रेम गीतों से संतृप्त है, 'दादा' से मेरा आत्मीय संबंध रहा, यूँ तो उनके सम्पर्क मे जो कोई भी आया वह उनका स्नेह पात्र बन गया, मुझे 'दादा' से जो अतुल स्नेह, प्रेम और आर्शीवाद मिला उसकी स्मृतियाँ मेरा अनमोल खज़ाना हैं।
अशोक विश्नोई ने आगरा के साहित्यकार ए टी जाकिर के आलेख का वाचन करते हुए कहा कि परम आदरणीय प्रोफेसर महेंद्र प्रताप जी की मधुर मुस्कान और अंतरा की गोष्ठियों से सीखा ज्ञान आज मुझे जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी राह दिखा रहा है अब कई वर्षों से हिंदी फिल्मों का निर्माण और निर्देशन कर रहा हूं। आज जब कोई राह नजर नहीं आती तो महेंद्र जी का स्मरण और उनकी दी हुई सीख मेरा मार्गदर्शन करती है।
राजीव प्रखर ने योगेन्द्र वर्मा व्योम का आलेख प्रस्तुत करते हुए कहा उनके गीतों को सतही तौर पर पढ़ा जाए तो प्रथम दृष्टया ये गीत सहज प्रेमगीत ही लगते हैं किन्तु यदि गीतों के भीतर उतरकर उनकी भावभूमि को अनुभूत किया जाए तो ये गीत विशुद्ध आध्यात्मिक गीत प्रतीत होते हैं जिनमें उन्होंने अपने अभीष्ट के रूप में ईश्वर को केन्द्रित कर अपने भाव अभिव्यक्त किए हैं।
इसके अतिरिक्त डॉ नीरू कपूर, डॉ संजय जौहरी, डॉ धर्मेंद्र सिंह ने भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर आलेखों का वाचन किया।
इस अवसर पर डॉ मोहित कुमार,कृति श्रीधर , मुकुंद मणि ध्रुव मणि, संदीप सिन्हा, कल्पना सिन्हा, डॉ नरेन्द्र सिंह, उमाकांत गुप्ता, के डी शर्मा, हरि प्रकाश शर्मा, शिखा रस्तोगी, असद मोलाई, अजय शाह, नीरू शाह , मयंक शर्मा, जिया जमीर, फरहत अली, नकुल त्यागी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, आदर्श भटनागर, धन सिंह धनेंद्र , अनुराग रोहिला, डॉ अखिलेश , सीमा शर्मा, पूनम श्रीवास्तव, अचल दीक्षित, पुनीत रस्तोगी, शशि रस्तोगी आदि उपस्थित रहे । आभार संयोजक सुप्रीत गोपाल ने व्यक्त किया।