घोर अमावस की निशा छिपा रही मुख आज।
जगमग है दीपावली, उसको आती लाज।।1।।
ज्यों दीपों की ज्योत से मिटे धरा का शोक।
ऐसे ही करते रहें जग भर में आलोक।।2।।
दीप देहरी पर सखे, करें प्रज्वलित आप।
धन्वंतरि काटें सभी, पाप ताप, संताप।।3।।
जो समर्थ हैं बाल दें, दीपक कई हजार।
घना ॲंधेरा दूर हो, जगमग सब संसार।।4।।
कोना कोना झाड़ कर, स्वच्छ करें घर द्वार।
मन के नरकासुर मिटें, खुशियां मिलें हजार।।5।।
दीप और रंगोलियां, तोरण वंदनवार।
लक्ष्मी स्वागत हेतु सब, सजे हुए घर द्वार।।6।।
मात्र कनिष्ठा पर उठा, गोवर्धन गिरि राज।
कौतुक लीलाधर किया, हर्षित गोप समाज।।7।।
मिल जुलकर सबने लिया, अन्नकूट का भोग।
सिखा दिया श्रीकृष्ण ने, समरसता का योग।।8।।
यमुना के घर यम गये, हुआ खूब सत्कार।
भगिनी को निज बंधु से, मिला प्यार उपहार।।9।।
सुख संपति वैभव बढ़े, और बढ़े व्यापार।
मंगलमय हो आपको, दीपों का त्योहार।।10।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
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