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गुरुवार, 7 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघु कथा ----कोढ़


सब्जी वाला आवाज़ देता हुआ सामने से निकला तो आस पास के घरों की औरतें निकल कर सब्जी खरीदने लगी ।उसी समय हमारे पड़ोसी की बेटी निधि जो टी एम यू में नर्स है  उधर से गुजरी ।उसको दूर से आते देख गुप्ता जी की घर वाली घर की ओर तेजी से भागी ,अरे!भैया रहनेदो, फिर लेंगे ....,कहते हुए घर का दरवाजा बंद करने लगी ।मास्टरनी जी भी धोती का पल्लू मुँह पर रखकर साइड को ऐसे खिसकी मानो सामने से कोई ट्रक गुजरने वाला है।फिर मुझे देखकर  निधि  हँसी और नमस्ते कहकर आगे बढ़ती चली गई , लेकिन वे महिलायें दरवाजे की झिरी में बाहर को जाने क्या झाँक रही थीं ?    मुझे समझ नही आया ।मैं भी घर मे व्यस्त हो गई ।
अगले दिन फिर सब्जी वाले ने आवाज दी तो बातें बनाने के लिये फिर सब्जी खरीदने का बहाना करके   गुप्तानी इधर उधर की लगाती की मैं लोकी लेने बाहर निकली तो सामने वाली मास्टरनी उलाहना से देकर कहने लगी , वो नर्स की तुमसे पक्की दोस्ती हो गई है ।बड़ी  हँसके बात करती है तुमसे ....पर .....एक बात कहे हुम् भी पड़ोसी है तुम्हारे .....,।सोचसमझ के रहिओ भैया ।कोरोना के मरीज सुना है टी एम यू में भी भर्ती है ।सुना है ,निधि   की भी उस बार्ड में ड्यूटी लगती है। अब इनका तो काम है और ऊपर से सरकार ने बीमा भी  अच्छा खासा कर दिया है ........।हमें तुम्हें तो .......मुँह को टेढ़ा  कर वो फिर बिना सब्जी खरीदे , । मेरे उत्तर की परबाह न करती  हुई  घर मे घुस गई । मैं ठगी सी रह उसकी
व्यंग बान सी बातों को सुनकर ।........ये भी एक कोढ़ है हमारे समाज का जिसका इलाज कोरोना से भी दुर्लभ है।

 ✍️ डॉ प्रीति हुँकार
  मुरादाबाद

रविवार, 3 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना -----श्रमजीवी ही बनकर रहना देती हूं जग को पैगाम


मैं हूँ महिला श्रमिक  ,मेहनत करना मेरा काम ।
श्रमजीवी ही बनकर रहना ,देती हूँ
जग को पैगाम ।
ईंट उठाती पानी भरती,
 स्वप्न साकार कराती हूँ
छत विहीन अपना जीवन
पर भवन बनाती हूँ।
प्रतिपल नव उल्लास लिये मैं
करूँ परिश्रम आठों याम ।
श्रमजीवी ........
जन्मजात श्रमिक हूँ मैं
संघर्ष मेरे है अंतहीन ।
अधरों पर मुस्कान लिये मैं
अंतर के सुख में सदा लीन।
कर्म मार्ग है मेरी पूजा
इससे श्रेष्ठ नही है काम।
श्रम जीवी ,,......
प्रतिदिन ही कुछ स्वप्न अनोखे
मैं भी देखा करती हूं ।
एक रोज सुखों की भोर कोई
सुख सूरज देखा करती हूं ।
खुश रहकर इसको जीना है
जीवन हैअनुपम अभिराम ।
श्रमजीवी.....

 ✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मो 8126614625

गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ------ प्रतिफल


अपने अति व्यस्त समय में मुझे जो भी वक्त मिलता था मैं घर के गमलों में लगे छोटे पौधों की देखभाल में लगाती रही हूं ।यद्यपि  इसके लिये कभी किसी विशेष साधन की आवश्यक्ता नही पड़ी ।जैसे अपने बच्चों का होम वर्क कराना किचिन में खाना बनाना मेरे अपरिहार्य कामों में शामिल है बैसे ही पेड़ पौधों को दुलारना ।कुछ दिन पहले ही मैंने योंही गमले में टमाटर धनिया पुदीना और मिर्च लगा दी थी ।तभी अचानक दो तीन बाद कोरोना त्रासदी के लॉक डाउन घोषित हो जाने से मुझे घर में ही रहना पड़ा ।अब मुझे पहले से अधिक समय इन पौधों की देखभाल के लिये मिला । बीस इकीस दिन की मेहनत के  बाद मेरे छत के ऊपर
नीचे गमलो में सब ओर जो प्रकृति का सौंदर्य बिखरा ,वह आज से पहले नही दिखा। निःस्वार्थ की गई मेरी सेवा का फल मुझे किसी जीते जागते संसार मे मुझे मिला हो ,मुझे मालूम नही ,लेकिन इन नन्हें चेतन जगत के कृतज्ञ जनो ने मुझे प्रति फल में बहुत कुछ बो दिया जो और लोगों को नही मिल रहा था ।
काश ,हमारे आसपास के हमारी सेवाओं को लेने वाले भी यों ही हमें प्रतिफलित होते .......। यह सोचते हुये मेरे कपोल गीले हो गए ।

✍️  डॉ प्रीति हुंकार
मुरादाबाद 244001
मो 8126614625

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----- मां का दंड


आज सुंदरवन नामक जंगल में दुनिया भर के जीव जंतुओं की सभा होने जा रही है. जीवों की सभी प्रजातियां यहाँ एकत्र हो रही हैँ, सिर्फ मनुष्य को छोड़ कर. सभी अपनी समस्याओं और शिकायतों के साथ उपस्थित हो रहे हैँ. आज की सभा की निर्णय कर्त्री होंगी माँ सृष्टि अथवा प्रकृति.
इस सभा का नेतृत्व चमगादड़ जी को दिया गया क्योंकि हाल ही में चाइनीज नामक दानव प्रजाति ने चमगादड़ समुदाय का अस्तित्व ही मिटा दिया.
यों  तो हर जीव समुदाय की मानव समुदाय के प्रति कोई ना कोई शिकायत है लेकिन छोटे जीव इस बात से परेशान की उनकी आबादी निरंतर कम हो रही है. मानव अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस तरह जीव हत्या करता वो तरीका भी अलग ही है.
सभा प्रारभ  हुई. माँ प्रकृति सिंहासन पर आसीन हुई. सबने अभिवादन किया. हर एक जीव अपनी बात कहे. माँ प्रकृति ने कहा .
चमगादड़ गिलहरी कुत्ता  खरगोश सभी एक स्वर में बोले,"माँ क्या हम आपकी संतान नहीं है? क्यों आपने मानव अनुशासन नहीं सिखाया. जव  सृष्टि की थी तव सारे जीवों की आबादी  बराबर थी पर अब..............., मनुष्य इतना निर्दयी हो गया है हमारे नवजात शिशु भी सुरक्षित नहीं.
जो आयु हमें प्रदान की गई थी उतना जीवन तो हमें नसीब नहीं होता. फिर मौत भी इतनी बेदर्दी से की.......,
सिसक कर सभी रोने लगे. माँ से लगातार प्रश्न किये जा रहे पर वह चुपचाप सुन रही थी. आज पहली बार माँ को अपनी सबसे सुन्दर संतान के कुकर्मो की गाथा सुनाई पड़ी. वह तो समझ रही थी की सबसे विकसित स्थान के निवासी अधिक समझदार होंगे, 'पर........., अब आप चाहते क्या हैँ? माँ कातर स्वर में बोली. उन्होंने जैसा हमारे साथ किया वैसी मौत इंसान की भी हो. तभी उनको हमारे दर्द का अहसास होगा. एवमस्तु कहकर माँ प्रकृति उठी और बोली, "आज  मैं तुम्हारे अंतःकरण से निकली आह को एक माहमारी का रूप देती हूं. जो तुम्हारे अस्तित्व को खतरा बना मनुष्य तुमको हाथ लगाना भी भूल जायेगा. तुमको भोजन के रूप में खाकर वह जिसको भी छुएगा वही उस मौत के वायरस का शिकार हो जायगा. जो तुमको जीवन दान देंगे बही जीवित रहेंगे. इतना कहकर माँ प्रकृति अन्तर्ध्यान होगई.
✍️ डॉ प्रीति  हुंकार
मुरादाबाद