सब्जी वाला आवाज़ देता हुआ सामने से निकला तो आस पास के घरों की औरतें निकल कर सब्जी खरीदने लगी ।उसी समय हमारे पड़ोसी की बेटी निधि जो टी एम यू में नर्स है उधर से गुजरी ।उसको दूर से आते देख गुप्ता जी की घर वाली घर की ओर तेजी से भागी ,अरे!भैया रहनेदो, फिर लेंगे ....,कहते हुए घर का दरवाजा बंद करने लगी ।मास्टरनी जी भी धोती का पल्लू मुँह पर रखकर साइड को ऐसे खिसकी मानो सामने से कोई ट्रक गुजरने वाला है।फिर मुझे देखकर निधि हँसी और नमस्ते कहकर आगे बढ़ती चली गई , लेकिन वे महिलायें दरवाजे की झिरी में बाहर को जाने क्या झाँक रही थीं ? मुझे समझ नही आया ।मैं भी घर मे व्यस्त हो गई ।
अगले दिन फिर सब्जी वाले ने आवाज दी तो बातें बनाने के लिये फिर सब्जी खरीदने का बहाना करके गुप्तानी इधर उधर की लगाती की मैं लोकी लेने बाहर निकली तो सामने वाली मास्टरनी उलाहना से देकर कहने लगी , वो नर्स की तुमसे पक्की दोस्ती हो गई है ।बड़ी हँसके बात करती है तुमसे ....पर .....एक बात कहे हुम् भी पड़ोसी है तुम्हारे .....,।सोचसमझ के रहिओ भैया ।कोरोना के मरीज सुना है टी एम यू में भी भर्ती है ।सुना है ,निधि की भी उस बार्ड में ड्यूटी लगती है। अब इनका तो काम है और ऊपर से सरकार ने बीमा भी अच्छा खासा कर दिया है ........।हमें तुम्हें तो .......मुँह को टेढ़ा कर वो फिर बिना सब्जी खरीदे , । मेरे उत्तर की परबाह न करती हुई घर मे घुस गई । मैं ठगी सी रह उसकी
व्यंग बान सी बातों को सुनकर ।........ये भी एक कोढ़ है हमारे समाज का जिसका इलाज कोरोना से भी दुर्लभ है।
✍️ डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद