रविवार, 3 मई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना -----श्रमजीवी ही बनकर रहना देती हूं जग को पैगाम


मैं हूँ महिला श्रमिक  ,मेहनत करना मेरा काम ।
श्रमजीवी ही बनकर रहना ,देती हूँ
जग को पैगाम ।
ईंट उठाती पानी भरती,
 स्वप्न साकार कराती हूँ
छत विहीन अपना जीवन
पर भवन बनाती हूँ।
प्रतिपल नव उल्लास लिये मैं
करूँ परिश्रम आठों याम ।
श्रमजीवी ........
जन्मजात श्रमिक हूँ मैं
संघर्ष मेरे है अंतहीन ।
अधरों पर मुस्कान लिये मैं
अंतर के सुख में सदा लीन।
कर्म मार्ग है मेरी पूजा
इससे श्रेष्ठ नही है काम।
श्रम जीवी ,,......
प्रतिदिन ही कुछ स्वप्न अनोखे
मैं भी देखा करती हूं ।
एक रोज सुखों की भोर कोई
सुख सूरज देखा करती हूं ।
खुश रहकर इसको जीना है
जीवन हैअनुपम अभिराम ।
श्रमजीवी.....

 ✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मो 8126614625

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