गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----- मां का दंड


आज सुंदरवन नामक जंगल में दुनिया भर के जीव जंतुओं की सभा होने जा रही है. जीवों की सभी प्रजातियां यहाँ एकत्र हो रही हैँ, सिर्फ मनुष्य को छोड़ कर. सभी अपनी समस्याओं और शिकायतों के साथ उपस्थित हो रहे हैँ. आज की सभा की निर्णय कर्त्री होंगी माँ सृष्टि अथवा प्रकृति.
इस सभा का नेतृत्व चमगादड़ जी को दिया गया क्योंकि हाल ही में चाइनीज नामक दानव प्रजाति ने चमगादड़ समुदाय का अस्तित्व ही मिटा दिया.
यों  तो हर जीव समुदाय की मानव समुदाय के प्रति कोई ना कोई शिकायत है लेकिन छोटे जीव इस बात से परेशान की उनकी आबादी निरंतर कम हो रही है. मानव अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस तरह जीव हत्या करता वो तरीका भी अलग ही है.
सभा प्रारभ  हुई. माँ प्रकृति सिंहासन पर आसीन हुई. सबने अभिवादन किया. हर एक जीव अपनी बात कहे. माँ प्रकृति ने कहा .
चमगादड़ गिलहरी कुत्ता  खरगोश सभी एक स्वर में बोले,"माँ क्या हम आपकी संतान नहीं है? क्यों आपने मानव अनुशासन नहीं सिखाया. जव  सृष्टि की थी तव सारे जीवों की आबादी  बराबर थी पर अब..............., मनुष्य इतना निर्दयी हो गया है हमारे नवजात शिशु भी सुरक्षित नहीं.
जो आयु हमें प्रदान की गई थी उतना जीवन तो हमें नसीब नहीं होता. फिर मौत भी इतनी बेदर्दी से की.......,
सिसक कर सभी रोने लगे. माँ से लगातार प्रश्न किये जा रहे पर वह चुपचाप सुन रही थी. आज पहली बार माँ को अपनी सबसे सुन्दर संतान के कुकर्मो की गाथा सुनाई पड़ी. वह तो समझ रही थी की सबसे विकसित स्थान के निवासी अधिक समझदार होंगे, 'पर........., अब आप चाहते क्या हैँ? माँ कातर स्वर में बोली. उन्होंने जैसा हमारे साथ किया वैसी मौत इंसान की भी हो. तभी उनको हमारे दर्द का अहसास होगा. एवमस्तु कहकर माँ प्रकृति उठी और बोली, "आज  मैं तुम्हारे अंतःकरण से निकली आह को एक माहमारी का रूप देती हूं. जो तुम्हारे अस्तित्व को खतरा बना मनुष्य तुमको हाथ लगाना भी भूल जायेगा. तुमको भोजन के रूप में खाकर वह जिसको भी छुएगा वही उस मौत के वायरस का शिकार हो जायगा. जो तुमको जीवन दान देंगे बही जीवित रहेंगे. इतना कहकर माँ प्रकृति अन्तर्ध्यान होगई.
✍️ डॉ प्रीति  हुंकार
मुरादाबाद

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