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शनिवार, 18 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल ---- गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं । इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।


आखिर कब तक ऐसे मंज़र सहने को मजबूर हैं हम।
कब तक यूं खामोश रहें अब कहने को मजबूर हैं हम ।।

गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं ।
इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।

तुम को‌ जब अपने ही घर में दुश्मन बन‌कर रहना है।
तर्के ताल्लुक करने को फिर तुमसे अब मजबूर हैं हम ।।

तुमसे खफा होकर ही अपने रिश्ते नाते तोड़ेंगे ।   
दुनिया के ताने सुनने को बेबस और मजबूर हैं हम ।।

रिश्ता तोड़ें, मिलना छोड़ें सब करना मजबूरी है।
दूर तुम्हारे साए से भी रहने को मजबूर हैं हम ।।

क्यों करते हो नादानी,ये कौन तुम्हें सिखलाता है ।
राह दिखाने सबक सिखाने तुम को अब ‌मजबूर हैं हम ।।

हम भी सलामत कौम सलामत मुल्क सलामत रखना है ।
अपने ईमां की खातिर मर जाने को मजबूर हैं हम ।

हम हैं मुजाहिद मुल्क से नफ़रत हमको तो मंजूर नहीं ।
मुल्क पे जान लुटाने को ही  फिर सारे मजबूर हैं हम ।।


   ✍️ मुजाहिद चौधरी
  हसनपुर ,अमरोहा

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की कहानी ---अलविदा


सुशांत चौधरी शहर के एक मशहूर डाक्टर थे । लॉक डाउन में भी सुबह दस बजे से 2:00 बजे तक और शाम को 6:00 बजे से रात 10:00 बजे तक पहले की तरह अपने क्लीनिक आते जाते थे । बहुत हंसमुख मिलनसार और समाज सेवा में निरंतर योगदान देने वाले डॉक्टर को शहर के सभी लोग पसंद करते थे, उनकी प्रशासनिक अधिकारियों में भी  खासी पहचान थी । कोरोना के खिलाफ जंग में उन्होंने 50 लाख रुपए का योगदान पीएम केयर्स फंड में भी दिया था । एकदम स्वस्थ थे,ना डायबिटीज ना दिल या और कोई और बीमारी, पूरी तरह फिट और अपने जीवन से संतुष्ट नज़र आते थे । कल रात 10 बजे के लगभग डॉक्टर साहब अपने घर आए, रोज की तरह खाना खाया,थोड़ी देर घर के लॉन में अपने प्यारे कुत्ते टाइगर के साथ टहले,पत्नी और बच्चों के साथ टीवी देखा और सो गए । सुबह जब सोकर उठे तो उन्हें हल्का सा बुखार महसूस हुआ, लेकिन वो नहा धोकर तैयार हुए नाश्ता किया और बिना किसी को अपने बुखार के बारे में बताए क्लीनिक चले गए । क्लीनिक पर जब बुखार ज्यादा बढ़ा तो वह घर नहीं गए और अपने रैस्ट रूम में ही आराम करने लगे, बुखा़र तेज होता रहा और उन्हें शाम तक तेज बुखार के साथ-साथ कोरोना सारे लक्षण दिखायी देने लगे । डॉ.साहब को घबराहट हुई उन्होंने घर पत्नी को फोन कर दिया । थोड़ी देर में ही परिवार के सारे सदस्य क्लिनिक पर आ गए । अभी तक उन्होंने अपना टेस्ट नहीं कराया था । उन्हें तेज बुखार के साथ-साथ सांस लेने में परेशानी,सूखी खांसी और गले में बेइंतहा दर्द का सुनकर सारे घरवालों के होश उड़ गए । उन्हें कोरोना संक्रमण का शक होने लगा, टीवी पर कई डॉक्टरों को कोरोना होने की सूचना वह कई बार देख चुके थे । परिवार के सदस्यों के चेहरों पर कोरोना का खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था । घर पहुंचकर आनन-फानन में उनको घर में बने सर्वेंट क्वार्टर में शिफ्ट कर दिया गया । सारे परिवार वाले यहां तक कि नौकर चाकर भी डॉ.साहब से दूर होते चले गए, उनके साथ सर्वेंट क्वार्टर में कोई था तो केवल तनहाई और उनका पालतू कुत्ता *टाइगर* । और यह वही कुत्ता था,जिसे वह कुछ साल पहले सड़क से घायल अवस्था में सड़क से उठाकर लाये थे, जिसका उन्होंने स्वयं इलाज किया था, उन्होंने इसका नाम भी खुद ही रखा था टाइगर । उन्होंने उसे अपने बच्चे की ही तरह पाला था । वो उस के साथ खेलते, उसके साथ टहलते, टाइगर भी उन्हें बहुत प्यार करता था । सर्वेंट क्वार्टर में अब केवल डॉ.साहब,उनकी बेबसी,उनकी मजबूरी और उनकी तन्हाई के साथ उनका प्यारा टाइगर ही उनका साथी था । डॉ.साहब का एक बेटा उसकी बहू तथा एक बेटी थी,पत्नी सहित उन तीनों ने भी उनसे दूरी बना ली थी, घर के दोनों नौकर व नौकरानी उनके पास तक भी नहीं आ रहे थे । यहां तक कि पोते और पोती को भी उनके पास जाने से मना कर दिया गया था ।

प्रशासन द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी थी । मौहल्ले में भी सबको सूचना हो चुकी थी,लेकिन कोई उनसे मिलने नहीं आया । सिवाए पड़ोस की सरला आंटी के, जो साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये आईं और रोने लगीं, उन्होंने सुशांत चौधरी की पत्नी से कहा "अरे कोई इन्हें कुछ खिला तो दो, पता नहीं फिर यह मौका मिले ना मिले, उन्होंने डॉ.साहब की बेटी की तरफ देखते हुए कहा,अरे उनके पास दूर से ही खाना,वाना सरका दो, अस्पताल वाले तो इन्हें भूखा ही ले जाएँगे, वहां पता नहीं खाने को भी देंगे या नहीं ...

सब एक दूसरे का मुंह देख रहे थे,सब यह सोच रहे थे कि उनको खाना देनें के लिये कौन जाए । टीवी पर देख देख कर सभी परिवार वाले कोरोना से अनभिज्ञ नहीं थे । तब कहीं कहीं जाकर खाने की थाली बहू ने लाकर बेटी को और बेटी ने खाने की थाली अपनी मां को पकड़ा दी,थाली पकड़ते ही डॉक्टरनी के हाथ काँपने लगे ,पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों, उसकी खाना लेकर सर्वेंट क्वार्टर जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी । पूरे घर में शोक का माहौल था । घर के बाहर दर्जनों पत्रकार और टीवी वाले घर में घुसने की कोशिश कर रहे थे । जिन्हें डॉक्टर साहब का बेटा बमुश्किल रोकने का प्रयास कर रहा था । डॉक्टरनी की यह हालत देखकर उसकी पड़ोसन सरला आंटी ने जोर से चिल्लाकर कहा "अरी तेरा तो पति है तू भी ........। उन्होंने डांटते हुए कहा,चल मास्क लगाकर, हाथ में ग्लव्स पहनकर चली जा और दूर से थाली सरका दे । वो अपने आप उठाकर खा लेंगे " । सारा माजरा सुशांत चौधरी ‌सर्वेंट क्वार्टर में बिस्तर पर लेटे हुए देख रहे थे, सोच रहे थे कि वह परिवार वाले जिसके लिए उन्होंने ना दिन देखा ना रात,कभी अपने दर्द की चिंता नहीं की,कभी अपनी जरूरतों,अपनी इच्छाओं को ऊपर नहीं रखा और उनके लिए जीवन का हर सुख देने का प्रयास किया । आज वह सारे उस से मुंह मोड़ रहे हैं । उनकी आँखें गीली हो रहीं थीं, जिन्हें वह निरंतर छुपानेे का प्रयास कर रहे थे । उन्होंने खुद ही काँपते होठों से कहा कि "कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है,मुझे ना भूख है ना प्यास । वह बुदबुदाते जा रहे थे, कोई कमी रह गई हो तो मुझे माफ कर देना " ।
तभी सरकारी एम्बुलेंस आ जाती है और स्वास्थ्य कर्मी उनसे एम्बुलेंस में बैठने के लिये कहते हैं । सुशांत चौधरी घर के बाहर आकर एक बार पलटकर अपने घर की ओर निराशा भरी नज़रों से अपने सपनों के घर को,और दूर खड़े अपने परिवारजनों को देखते हैं । उनकी जीवन संगिनी,उनका बेटा, बेटी, बहू, पोता और पोती सभी मास्क लगाए हुए लोन में खड़े हुए उन्हें जाते हुए देख रहे हैं । सब उन्हें दूर से हाथ हिला कर विदा कर रहे हैं,पत्नी अपने दोनों हाथ जोड़े हुए एक मूर्ति के समान खड़ी है ।

सुशांत चौधरी के दिमाग में अपनी बीमारी नहींं,बल्कि अपनी जिंदगी का गुजारा हुआ वक्त,घरवालों के साथ बिताए गए पल जीवन चक्र की एक एक घटना विचारों के समंदर की तरह दिल में उमड़ रही थी । जब वह एंबुलेंस में बैठ गए तब उन्हें अपनी पत्नी की चीख सुनाई दी, उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो कि उस चीख़ ने उसे हमेशा के लिए सबसे जुदा कर दिया है । शायद उसे उसके जीवन ने ही अलविदा कह दिया है ।

डॉ.साहब की आँखों में रुका हुआ आंसुओं का सैलाब बाहर निकल गया । वह एंबुलेंस से उतरे उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूम लिया और वापस जाकर एम्बुलेंस में बैठ गये । उनकी बहू ने तुरंत पानी और डिटोल से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर डाल  दी,जिसको चूमकर वह एम्बुलेंस में बैठे थे ।

इसे कोरोना से बचाव का प्रयास कहो, मजबूरी कहो,अपने जीवन की रक्षा कहो, या परिवार के मुखिया का तिरस्कार कहो, लेकिन ऐसे दृश्य कि कल्पना कोई नहीं करना चाहता । दूर खड़ा बेचारा टाइगर भी यह सब देख रहा था और रो भी रहा था । जैसे ही एंबुलेंस चली,वह बेजुबान जानवर,वह कुत्ता, डॉ.साहब का प्यारा टाइगर अकेला उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे दौड़ने लगा,वह भी एंबुलेंस के  साथ ही अस्पताल पहुंच गया ।

सुशांत चौधरी को 14 दिन तक अस्पताल में रहना पड़ा । उनकी सभी जाँचें सामान्य थीं । 14 दिन बाद उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करते हुए उनके परिवार वालों को सूचना दे दी गई । आज अस्पताल से उनकी छुट्टी कर दी गयी । जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उन्हें अपने घर वाला कोई दिखाई नहीं दिया, लेकिन उनको अस्पताल के गेट पर उनका प्यारा कुत्ता टाईगर बैठा दिखाई दिया । जो 14 दिन तक लगातार गेट के बाहर भूखा प्यासा रह कर अपने मालिक का इंतजार कर रहा था । डॉ. साहब को देखकर कुत्ता उनकी तरफ दौड़ पड़ा और उनके पैरों में लोटने लगा,डॉ. साहब ने भी उस को अपने बच्चे की तरह अपनी बाहों में भर लिया । ‌दोनों एक दूसरे से लिपट गए और एक दूसरे को प्यार करने लगे । दोनों की आंखों से आंसुओं का सैलाब बह रहा था ।

जब तक उनकी पत्नी,बेटा,बेटी की लग्ज़री कार उन्हें लेने आती, उससे पहले ही डॉक्टर सुशांत चौधरी अपने कुत्ते टाइगर को साथ लेकर किसी अज्ञात स्थान की ओर निकल गए । उसके बाद वो कभी शहर में दिखाई नहीं दिए । लेकिन उनकी गुमशुदगी की सूचना समाचार पत्रों के साथ साथ टीवी पर भी प्रसारित हो रही थी, सूचना के अनुसार डॉ.सुशांत चौधरी की खबर देने वाले को 50 हजार रुपए का ईनाम देने की घोषणा की गई थी ।

✍️मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर, अमरोहा

गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की कहानी --बेजुबान कुत्ते


लॉक डाउन के कारण मनीष कई दिन से अपने घर में था,ना वह खुद बाहर निकल रहा था और ना ही अपने परिवार के किस सदस्य को उसने बाहर निकलने दिया था । उसने मंदिर जाना भी छोड़ दिया था और पूजा-पाठ भी वह घर पर ही करता था ।           नौदुर्गे में पूरे व्रत रखने वाला मनीष एक साधारण सा इंसान था । एक दो बार जरूरत का सामान उसने अपने घर के सामने ही आए हुए ठेले वालों से खरीद लिया था । वह अक्सर मोहल्ले के युवाओं से सड़क पर ना आने और घर के बाहर खड़े ना होने की निरंतर अपील भी करता रहता था ।
    आज घर में ब्रेड नहीं थी, जब उसकी पत्नी सुनीता ने उसको ब्रेड लाने के लिए कहा,तो मनीष बाहर ब्रेड लेने चला गया ।जैसे ही वह घर से बाहर निकला मनीष को मौहल्ले के 3-4 कुत्तों ने घेर लिया । मनीष डर रहा था, कोई कुत्ता उसको काट नहीं रहा था,लेकिन वह उसको आगे जाने भी नहीं दे रहे थे । कुत्ते बार-बार खड़े हो जाते और मनीष के चारों ओर चक्कर काट रहे थे, मनीष की समझ में नहीं आ रहा था क्या करे ? तभी सामने देख रहे दुकानदार सलीम ने मनीष को आवाज देकर कहा कि कुत्ते भूखे हैं,और ये आपसे कुछ खाने को मांग रहे हैं । आप आहिस्ता आहिस्ता आ जाइए और मनीष आहिस्ता आहिस्ता सलीम की दुकान तक पहुंच गया और दुकान से ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट लेकर जैसे ही कुत्तों को डाला, वे बिस्किट बड़े प्रेम से खाने लगे और जब पैकेट खत्म हो गया तो बिना कुछ कहे वहां से चले गए ।
   अब जब भी मनीष घर से बाहर निकलता, वे सारे कुत्ते मनीष के पैरों में लोटने लगते और मनीष भी  अपनी जेब में बिस्किट का पैकेट लेकर ही निकलता,शायद मनीष बेजुबानों का दर्द समझने लगा था,और बेजुबान कुत्ते भी मनीष के प्यार को पहचानने लगे थे । मनीष सोचता काश देश और दुनिया भर में सांप्रदायिकता और आतंकवाद फैलाने वाले जातिवाद धर्मवाद की लड़ाई लड़ने वाले इंसान बेजुबानों की इन भावनाओं को समझ पाते ...

***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

शनिवार, 28 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल -जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने । हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।


आओ चलो दुश्मने इंसां को मिटा दें ।
रिश्तो को निभाएं चलो नफरत को मिटा दें ।।

हर सिम्त करें चश्मे मोहब्बत के रवां हम ।
हम मुल्क से अपने हर अंधेरे मिटां दें ।।

जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने ।
हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।

घर में ही करें पूजा पढ़ें अपनी नमाजे़ं ।
हम अपने घरों के सभी शैतान मिटा दें ।।

गुरबानी भजन कुरां हर एक घर में रवां हो ।
दुश्मने ईमां की हर पहचान मिटा दें ।।

मिलने में मुहाजिर से रखें फासला बाहम ।
हम दर्दे जिगर के सभी शुब्हात मिटा दें ।।

महफ़ूज़ और मोहतात रहें अपने वतन में ।
हर सिम्त से ख़दशात की दीवार मिटा दें ।।

हम सब्रो सुकूं से रहें बस अपने घरों में  ।
बीमारी के हम जिंसो ज़ररात मिटा दें ।।

बस रहमो-करम का तेरे तालिब है मुजाहिद ।
हम अपने वतन पे ये दिलो जान लुटा दें ।।


***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा

मंगलवार, 24 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल -- गर प्यार है खुद से तो ज़रा दूर रहो सबसे । वो मौत बुलाने में तकल्लुफ भी नहीं करता






दस्तक नहीं देता वो इशारा भी नहीं करता ।
शातिर है बड़ा आने की खबर भी नहीं करता ।।

आ जाता है खामोशी से वो मेरे बदन में ।
फिर छोड़के जाने का इरादा भी नहीं करता ।।

हो जाए खबर कोई तो तूफान मचे है ।
फिर अपनों से मिलना वो गवारा भी नहीं करता ।।

गर प्यार है खुद से तो ज़रा दूर रहो सबसे ।
वो मौत बुलाने में तकल्लुफ भी नहीं करता ।।

तनहाई में रहकर करो महफ़ूज़ जहां को ।
मज़हबो मिल्लत की वो परवाह भी नहीं करता ।।

अपना हंसी चेहरा ना छुओ हाथों से अपने ।
नाज़ुक हो या मासूम मुरव्वत भी नहीं करता ।।

ना हाथ मिलाओ ना लो बांहों में किसी को ।
वो प्यार मोहब्बत की क़दर भी नहीं करता ।।

मैं घर में हूं मुझे ‌घर में ही रहना है मुजाहिद ।
तन्हा मुझे रहना यूं परेशां भी नहीं करता ।।

**मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत