आखिर कब तक ऐसे मंज़र सहने को मजबूर हैं हम।
कब तक यूं खामोश रहें अब कहने को मजबूर हैं हम ।।
गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं ।
इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।
तुम को जब अपने ही घर में दुश्मन बनकर रहना है।
तर्के ताल्लुक करने को फिर तुमसे अब मजबूर हैं हम ।।
तुमसे खफा होकर ही अपने रिश्ते नाते तोड़ेंगे ।
दुनिया के ताने सुनने को बेबस और मजबूर हैं हम ।।
रिश्ता तोड़ें, मिलना छोड़ें सब करना मजबूरी है।
दूर तुम्हारे साए से भी रहने को मजबूर हैं हम ।।
क्यों करते हो नादानी,ये कौन तुम्हें सिखलाता है ।
राह दिखाने सबक सिखाने तुम को अब मजबूर हैं हम ।।
हम भी सलामत कौम सलामत मुल्क सलामत रखना है ।
अपने ईमां की खातिर मर जाने को मजबूर हैं हम ।
हम हैं मुजाहिद मुल्क से नफ़रत हमको तो मंजूर नहीं ।
मुल्क पे जान लुटाने को ही फिर सारे मजबूर हैं हम ।।
✍️ मुजाहिद चौधरी
हसनपुर ,अमरोहा
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